पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन - Class 12th Chapter- 6th Political Science - Environment and natural resources Notes In Hindi
इस चैप्टर के नोट्स में हम आपको बताने वाले हैं पर्यावरण व प्राकृतिक संसाधन जिसमें आप देखोगे कुछ इस प्रकार के टॉपिक- पर्यावरण , पर्यावरण के मुद्दे पर वैश्विक प्रयास , विश्व की साझी सम्पदा , संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमाचार

⊗ पर्यावरण
- हमारे चारो तरफ कई प्रकार का वातावरण मिलता है इसे ही पर्यावरण कहते है I
- पर्यावरण में जिव जंतु और समस्त वनस्पति भी आ जाते है I
- प्राकृत रूप से मिलने वाले इन संसधानो का अत्यधिक दोहन होने से इनका विनाश हुआ है और इससे पर्यावरण में समस्या उत्पन हुई है I
- 1960 के दशक से पर्यावरण के मसले ने जोर पकड़ा I
- अब पर्यावरण के मसले पर विभिन्न देश बात करने के लिए तैयार हो गए हैं I
1. पर्यावरण में विभिन्न समस्याएँ -
- कृषि योग्य भूमि घट रही है I
- चरागाह में चारे खत्म हो रहे हैं I
- मतस्य भंडार घट रहा है I
- जल प्रदूषण बढ़ रहा है I
- जल की कमी हो रही है I
- खाद्य उत्पादन में कमी हो रही है I
- विकासशील देशों में पीने का स्वच्छ पानी नहीं है I
- वनों की अंधाधुंध कटाई हो रही हैI
- जैव विविधता को बहुत हानि हो रही है I
- ओजोन परत में छेद हो रहा है I
2. पर्यावरण के मुद्दे पर वैश्विक प्रयास
- पर्यावरण की यह समस्याएं विभिन्न देशों की सरकारों के द्वारा ही सुलझाया जा सकता है इसीलिए इसे राजनीति का मुद्दा माना जाता है I
- विद्वानों के एक समूह क्लब ऑफ राम ने 1972 में लिमिट्स टू ग्रोथ नामक पुस्तक लिखी I
- इस पुस्तक में दर्शाया गया की जनसंख्या के बढ़ने से किस प्रकार से संसाधन घट रहे हैंI
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर सम्मेलन करवाएं I
1. रियो सम्मलेन 1992
- 1992 में रियो सम्मेलन ब्राजील के रियो – डी – जनेरियो में हुआ था I
- UNO ने पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर सम्मेलन का आयोजन किया I
- इसमें 170 देश और हजारों स्वयंसेवी संगठन शामिल हुए I
- इसमें कई बहुराष्ट्रीय निगम भी शामिल थे I
- इसे पृथ्वी सम्मेलन ( Earth Summit ) भी कहा जाता है I
- इस सम्मेलन से 5 वर्ष पहले 1987 में “ आवर कॉमन फ्यूचर” नामक रिपोर्ट छपी थी I
- इस रिपोर्ट में यह बताया गया था कि आर्थिक विकास के चालू तौर-तरीके आगे चलकर टिकाऊ साबित नहीं होंगे I
- विश्व के दक्षिणी हिस्से में औद्योगिक विकास की मांग अधिक प्रबल है I
- रियो सम्मेलन में यह बात खुलकर सामने आ गई थी कि उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के देशों के सामने अलग अलग समस्याएं और चुनौतियां है I
- उत्तरी गोलार्ध के देश - विकसित और धनी देश I
- दक्षिणी गोलार्ध के देश - गरीब और विकासशील देश I
2. रियो सम्मेलन में सहमती
- रियो सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, वानिकी के संबंध में कुछ नियमाचार निर्धारित हुए I
- इसमें एजेंडा - 21 के रूप में विकास के कुछ उपाय सुझाए गए I
- सम्मेलन में इस बात पर सहमति बनी थी कि आर्थिक वृद्धि का तरीका ऐसा होना चाहिए कि जिससे पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचे I
- इसे टिकाऊ विकास का तरीका कहा गया I
- कुछ आलोचकों का कहना है कि एजेंडा - 21 का झुकाव पर्यावरण संरक्षण की बजाय आर्थिक वृद्धि की ओर है I
⊗ विश्व की साझी सम्पदा
- साझी संपदा ऐसे संसाधनों को कहते हैं जिन पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का अधिकार है I
- उदाहरण : - संयुक्त परिवार का चूल्हा ,चरागाह ,मैदान ,कुआं, नदी इत्यादि I
1. वैश्विक सम्पदा या मानवता की साझी विरासत
- विश्व के कुछ हिस्से और क्षेत्र किसी एक देश के क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं इसलिए इनके प्रबंधन साझे तौर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के द्वारा किया जाता है इन्हें वैश्विक सम्पदा या मानवता की साझी विरासत कहा जाता है
- उदाहरण :- वायुमंडल, बाहरी अन्तरिक्ष, अंटार्कटिका, समुंद्री सतह इत्यादि I
2. वैश्विक संपदा की सुरक्षा के लिए संधियां
- अंटार्कटिका संधि 1959
- मॉन्ट्रियल न्यायाचार 1987
- अंटार्कटिका पर्यावरण न्यायचार 1991
3. सांझी परन्तु अलग – अलग जिम्मेदारी
- पर्यावरण को लेकर उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के देशों के रवैये में अंतर है I
- उत्तरी गोलार्ध के विकसित देश पर्यावरण को लेकर उसी रूप में चर्चा करना चाहते हैं जिस दशा में आज पर्यावरण मौजूद है I
- यह देश चाहते हैं कि पर्यावरण संरक्षण में हर देश बराबर की हिस्सेदारी निभाई I
- दक्षिणी गोलार्ध के विकासशील देश यह चाहते हैं कि पर्यावरण को ज्यादा नुकसान विकसित देशों ने पहुंचाया तो उसके नुकसान की भरपाई भी ज्यादा यही देश करें I
- विकासशील देश तो अभी औद्योगिकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं इन पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाए ,इसी कारणवश 1992 रियो सम्मेलन में इसे प्रस्तावित किया गया और मान लिया गयाI
- इसी सिद्धांत को ही साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारी कहा गया।
⊗ संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमाचार
1. UNFCCC
- UNFCCC (1992) :- यूनाइटेड नेशन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज।
- जलवायु के परिवर्तन से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमाचार UNFCCC (1992) में भी कहा गया है कि इस संधि को स्वीकार करने वाले देश अपनी क्षमता के अनुरूप पर्यावरण के अपक्षय में अपनी हिस्सेदारी के आधार पर साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारी निभाते हुए पर्यावरण की सुरक्षा का प्रयास करेंगे I
- इस नियमाचार को स्वीकार करने वाले देश इस बात पर सहमत थे कि ऐतिहासिक रूप से भी और मौजूदा समय में भी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में सबसे ज्यादा भूमिका विकसित देशों की है विकासशील देशों में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन क्षमता कम हैI
- इस कारण चीन, भारत और अन्य विकासशील देशों को क्योटो प्रोटोकाल के बाध्यता से अलग रखाI
2. क्योटो प्रोटोकोल
- क्योटो प्रोटोकोल एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है I
- इसके अंतर्गत औद्योगिक देशों के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए लक्ष्य निर्धारित किए गए I
- जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और हाइड्रो क्लोरोफ्लोरो कार्बन आदि गैसों के बारे में ऐसा माना जाता है कि यह ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में इनकी भूमिका है I
3. सांझी सम्पदा
- ऐसी संपदा जिस पर किसी समूह के प्रत्येक सदस्य का स्वामित्व हो साझी संपदा कहलाती है I
- ऐसे संसाधन के उपयोग तथा रखरखाव में हर सदस्य को समान अधिकार प्राप्त होंगे I
4. वन प्रांतर
- वनों के कुछ हिस्से को पवित्र मानकर उन्हें काटा नहीं जाता ऐसा माना जाता है कि इन स्थानों पर देवी-देवताओं का वास है इन्हें वन प्रांतर कहा जाता है I
- अक्सर गांव में हमें ऐसे स्थान देखने को मिल जाते हैं इन वन प्रांतर को अलग-अलग राज्यों में अलग - अलग नाम से जाना जाता है I
- वन प्रांतर के विभिन्न नाम
- राजस्थान में वानी I
- झारखंड में जेहरा थान और सरनाI
- मेघालय में लिंगदोह I
- केरल में काव I
- उत्तराखंड में थान या देवभूमि I
- महाराष्ट्र में देव रह्तिस I
⊗ पर्यावरण पर भारत का पक्ष
- भारत ने 2002 में क्योटो प्रोटोकॉल में हस्ताक्षर किए I
- ऐसा माना जाता है कि भारत और चीन भी जल्दी ही ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में आगे नजर आएंगे I
- भारत का कहना है कि ग्रीन हाउस गैसों को कम करने में सबसे ज्यादा जिम्मेदारी विकसित देशों की होनी चाहिए I
- भारत का ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन 0.9 टन 2000 तक तथा 1.6 टन 2030 तक हो जाएगा I
भारत सरकार द्वारा पर्यावरण को संरक्षण देने के लिए उठाये कदम
- भारत ने अपनी नेशनल ऑटो फ्यूल पॉलिसी में बदलाव किया I
- भारत में स्वच्छता ईंधन को अनिवार्य कर दिया I
- भारत में CNG द्वारा गाड़ियां चलाई जाने लगी I
- 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम पारित किया गया I
- 2003 में बिजली अधिनियम पारित किया गया I
- स्वच्छ कोयले के उपयोग को बढ़ावा दिया जाने लगा I
- बायोडीजल का प्रयोग को मंजूरी मिली I
- इलेक्ट्रिक वाहनों को मंजूरी I
- रसोई गैस को प्रोत्साहन I
⊗ पर्यावरण आन्दोलन
- ऐसे लोग जो पर्यावरण के प्रति सचेत एवं जागरूक होते है और पर्यावरण को हानि से बचाना चाहते हैं और पर्यावरण के संरक्षण के लिए आंदोलन चलाते है I
- ऐसे आंदोलन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तर पर चलाए गए हैं आज पूरे संसार में पर्यावरण आंदोलन जीवंत, विविधतापूर्ण और ताकतवर आंदोलन बन चुके हैं I
- यह आंदोलन अलग-अलग देशों में अलग-अलग मुद्दों पर चले हैं जैसे : –
1. वनों की कटाई के खिलाफ
- दक्षिणी देशों मैक्सिको, चिले, ब्राजील, मलेशिया, इंडोनेशिया, अफ्रीका और भारत में वन - आंदोलन चले है यहां वनों की कटाई का विरोध हुआ I
2. खनन के खिलाफ
- दक्षिणी गोलार्ध देशो में खनिज उद्योग पृथ्वी पर मौजूद सबसे ताकतवर उद्योग है I
- खनिज उद्योग के लिए खनन से धरती के भीतर मौजूद संसाधनों को बाहर निकाला जाता है I
- खनन से निकलने वाले रसायनों का भरपूर उपयोग किया जाता है I
- खनन से निकलने वाले रसायन भूमि और जल मार्गों को प्रदूषित करते है और स्थानीय वनस्पतियों का विनाश करते है I
- इसके कारण लोगों को विस्थापित होना पड़ता है I
- इस कारण विश्व के कई भागों में खनिज उद्योगों की आलोचना एवं विरोध हुआ है I
- उदाहरण – फिलीपींस में कई समूह और संगठनों ने एक साथ मिलकर एक ऑस्ट्रेलियाई बहुराष्ट्रीय कंपनी वेस्टर्न माइनिंग कॉरपोरेशन के खिलाफ अभियान चलाया है I
3. बांध के खिलाफ
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ विभिन्न देशों में कुछ आंदोलन बड़े बांधों के खिलाफ भी हुए हैं I
- बांध विरोधी आंदोलन नदियों को बचाने के आंदोलन के रूप में देखे जाते हैं I
- 1980 के दशक के शुरुआती और मध्यवर्ती वर्षों में विश्व का पहला बांध विरोधी आंदोलन दक्षिणी गोलार्ध में चला I
- ऑस्ट्रेलिया में चला आंदोलन फ्रैंकलिन नदी तथा इसके परवर्ती वनों को बचाने का आंदोलन था I
- दक्षिणी गोलार्ध के देशों में तुर्की से लेकर थाईलैंड और दक्षिण अफ्रीका तक, इंडोनेशिया से लेकर चीन तक बड़े बांधों को बनाने की होड़ लगी है I
- भारत में भी बांध विरोधी आंदोलन चलाए गए हैं I ( जैसे नर्मदा बचाओ आंदोलन )
⊗ संसाधनों की भू - राजनीति
- इस संसार में विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न प्रकारों के संसाधन उपलब्ध हैं I
- इन संसाधनों को लेकर झगड़ा अतीत से चलता रहा है किसी देश के पास खनिज संसाधन है तो किसी देश के पास तेल संसाधन किसी देश के पास इमारती लकड़ी तो कुछ देशों के पास नदी, पहाड़, चट्टान हैं कुछ देशों के पास वृक्ष, वनस्पति, जानवर, पानी इत्यादि I
- यूरोपीय ताकतों का विश्व प्रसार का मकसद संसाधन ही था इमारती लकड़ी तेल संसाधन हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं पेट्रोलियम पर नियंत्रण बनाने का प्रयास सदैव किया जाता रहा है खाड़ी देशों के तेल संसाधनों का हथियाने का प्रयास किया गया I
- सऊदी अरब विश्व का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश , इराक दूसरे स्थान पर आता है I
- पानी भी एक महत्वपूर्ण संसाधन है पानी के बिना जीवन नहीं हो सकता और विश्व के कुछ हिस्सों में साफ़ पीने का पानी उपलब्ध नहीं है इसलिए जल संसाधन फसाद की जड़ बन सकते हैं I
- ऐसा माना जाता है कि तीसरा विश्वयुद्ध जल के कारण होगा ( जलयुद्ध ) जल संसाधन के नजदीकी देश इसका दुरुपयोग करते हैं पानी को लेकर हुई है पानी को लेकर हिंसक झड़प भी हुई है I
- उदाहरण :-
- 1950 से 1960 के दशक में इजरायल, सीरिया, जॉर्डन को बीच युद्ध I
- तुर्की, सीरिया, इराक के बीच फरात नदी जल विवाद l
⊗ मूलवासी
- मूलवासी लोगों को, ऐसे लोगों का वंशज माना गया है जो किसी मौजूदा देश में बहुत दिनों से रहते चले आ रहे हैं फिर किसी दूसरे देश के संस्कृति जातीय मूल के लोग यहां आए और इन लोगों को अपना गुलाम बना लिया
- मूलवासी आज भी अपनी संस्कृति परंपरा के अनुसार रहते हैं अपने खास ढर्रे पर जीवन यापन करते हैं l
- दुनिया भर में मूलवासी रहते हैं इनके रहन-सहन संस्कृति परंपरा में कुछ समानता है यह अपनी परंपरा को महत्व देते हैं l
1. मूलवासी लोगो के आंकड़े
- विश्व में 30 करोड़ मूलवासी हैं l
- फिलीपींस - 20 लाख मूलवासी l
- चिले - 10 लाख मूलवासी l
- बांग्लादेश - 6 लाख मूलवासी l
- उत्तरी अमेरिकी - 3 लाख 50 हजार मूलवासी l
- उत्तरी सोवियत - 10 लाख मूलवासी l
2. मूलवासियों की समस्याएं
- समानता के लिए संघर्ष l
- विकास के लिए संघर्ष l
- मूलवासी लोगों को स्वतंत्र पहचान की मांग l
- मूलवासी स्थान पर हक की मांग l
- जंगलों को ना उजाड़ने की मांग l
- इनके जीवन में दखल अंदाजी ना करने की मांग l
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