असगर वजाहत- शेर ( Antra ) गद्य खण्ड- अंतरा- Summary
INTRODUCTION
1- शेर' असगर वजाहत की प्रतीकात्मक और व्यंगात्मक लघुकथा है |
2- शेर व्यवस्था का प्रतीक है, जंगल के जानवर सामान्य जनता के प्रतीक हैं।
3- शेर के पेट में जंगल के सभी जानवर किसी न किसी लालच में समाते जा रहे हैं।
4- व्यवस्था भी किसी न किसी प्रकार सभी को अपने जाल में फंसा लेती है |
( सत्ता का प्रतीक शेर )
1- आदमी सत्ता के जाल से बचने के लिए जंगल में जाता है किन्तु वहां भी सत्ता का प्रतीक शेर बैठा है |
2- सभी जानवर किसी न किसी लालच के कारण शेर के मुख में समाते जा रहे हैं।
3- गधे को यह लालच दी गयी की शेर के मुहं में घास का मैदान है।
4- लौमडी को यह बताया गया की वहां रोजगार का दफ्तर है।
5- कुत्तो से यह कहा गया की शेर के मुहं में प्रवेश करना ही निर्वाण का एकमात्र मार्ग है
( प्रमाण से अधिक महत्वपूर्ण विश्वास )
1- लेखक सच्चाई का पता लगाने शेर के कार्यालय जाता है, जिस प्रकार सत्ता के पक्षधर सता का गुणगान करते है उसी प्रकार
कार्यालय के कर्मचारी शेर की तरफदारी करते हैं।
2- लेखक उनसे सबूत मांगता है की शेर के मुहं में रोजगार का दफ्तर है भी या नहीं तब वे कहते हैं “मानव जीवन में प्रमाण से
अधिक विश्वास महत्वपूर्ण है"
3- लेखक कहता है जितने भी ठग और मक्कार लोग होते हैं वे अपनी बात का कोई प्रमाण नहीं डे सकते क्योंकि वे झूठे होते हैं।
4- इसलिए वे लोगों से बिना सबूत दिए, केवल ऐसे ही विश्वास करने का आग्रह करते हैं, जब लोग इन पर विश्वास करने
लगते हैं, तो वे उनके विश्वास का अनुचित लाभ उठाते हैं, शेर के ऑफिस के कर्मचारी भी यही कर रहे हैं।
शेर का मुंह भयानकता का प्रतीक है जबकि रोजगार का दफ्तर नौकरी देने का स्थान है
शेर के मुंह में लोग जाते हुए डरते हैं जबकि रोजगार के दफ्तर में लोग हंसते हुए जाते हैं
शेर के मुहं में लोग मरने के लिए जाते हैं परन्तु दफ्तर में नौकरी के लिए |
शेर का मुहं मात्र एक छलावा है एवं वहां जाने से धोका ही मिलता है।