नेताजी का चश्मा - Netaji ka chashma Class 10th ( हिंदी ) क्षितिज भाग – 2 Easy Summary
परिचय
लेखक – स्वयं प्रकाश
देशभक्ति का संदेश देने वाला यह पाठ स्पष्ट करता है कि देशभक्ति केवल किसी विशेष भू भाग से प्रेम करना नहीं बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक, प्रकृति जीव जंतु, पशु पक्षी, पर्वत पहाड़, झरने आदि सभी से प्रेम करना एवं उनकी रक्षा करना है
लेखक ने चश्मे बेचने वाले कैप्टन के माध्यम से एक ऐसे साधारण व्यक्ति के कार्य का वर्णन किया है जो अभावग्रस्त जिंदगी व्यतीत करते हुए भी देश भक्ति की भावना रखता है
परन्तु हमारी कॉम ऐसे व्यक्तियों को सम्मान देने के बजाए उनपर हस्ती है कैप्टन के चरित्र द्वारा लेखक ने उन असंख्य देश भक्तों को स्मरण करने का प्रयास किया है जिन्होंने देश हित के लिए कार्य किया और देशभक्तों को सम्मान दिलाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया
हालदार साहब
हालदार साहब हर 15 वें दिन कंपनी के काम से उस कस्बे से गुजरते थे
कस्बे में कुछ पक्के मकान एक छोटा सा बाजार बालक बालिकाओं के दो विद्यालय एक सीमेंट कारखाना दो खुली छत वाले सिनेमाघर तथा एक नगर पालिका थी
इसी कस्बे के मुख्य बाजार में मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक संगमरमर की मूर्ति लगी हुई थी
जिसे वह गुजरते हुए हमेशा देखा करते थे
हालदार साहब ने जब पहली बार इस मूर्ति को देखा तो उन्हें लगा कि इसे नगर पालिका के किसी उत्साही अधिकारी ने बहुत जल्दबाजी में लगवाया होगा
हो सकता है मूर्ति को बनवाने में काफी समय पत्र व्यवहार आदि में लग गया होगा और बाद में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर को यह कार्य सौंप दिया गया होगा
जिन्होंने इस कार्य को महीने भर में पूरा करने का विश्वास दिलाया होगा मूर्ति संगेमरमर की बनी थी और उसकी विशेषता यह थी कि उसका चश्मा सचमुच का था हालदार साहब को मूर्ति बनाने वालों का यह नया विचार बहुत पसंद आया
मूर्ती के बदलते चश्मे का कारण
हालदार साहब जब अगली बार वहाँ से गुजरे तो उन्हें यह देखकर हैरानी हुई कि इस बार नेताजी की मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा हुआ था
हालदार साहब ने पानवाले से इसका कारण पूछा
उसने बताया कि कैप्टन इन चश्मों को बदलता रहता है हालदार साहब ने सोचा कि कैप्टन कोई भूतपूर्व सैनिक या नेताजी की आजाद हिंद फौज का सिपाही होगा
इस संबंध में पूछने पर पानवाले ने मजाक बनाते हुए कहा कि वह लंगड़ा क्या जाएगा फौज में उसी समय हालदार सामने देखा कि कैप्टन एक बहुत बूढ़ा मरियल सा लंगड़ा आदमी है
जो सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए रहता है वह इधर उधर घूमकर चश्मे बेचता है
अगर किसी ग्राहक ने मूर्ति के चश्मे जैसा फ्रेम मांगा तो वह उस फ्रेम को वहाँ से उतारकर ग्राहक को देता है और मूर्ति पर नया फ्रेम लगा देता है
चश्मे का कारण
हालदार साहब को पान वाले से यह जानकारी मिली कि मूर्तिकार समय कम होने के कारण मूर्ति का चश्मा बनाना भूल गया था
जिसके कारण मूर्ति को बिना चश्मे के ही लगा दिया गया कैप्टन को नेताजी के बिना चश्मे वाली मूर्ति अच्छी नहीं लगती थी इसलिए वह मूर्ति पर चश्मा लगा दिया करता था हालदार साहब लगभग 2 साल तक मूर्ति पर लगे चश्मे को बदलते देखते रहे
चश्मा नहीं था
1 दिन जब हालदार साहब फिर उसी कस्बे से निकले तो उन्होंने देखा कि बाजार बंद था और मूर्ति के चेहरे पर कोई चश्मा भी नहीं था अगली बार भी उन्होंने मूर्ति को बिना चश्मे के देखा
उन्होंने पानवाले से इसका कारण पूछा तो उसने बताया कैप्टन मर गया हालदार साहब को यह सोचकर बहुत दुख हुआ कि अब नेता जी की मूर्ति बिना चश्मे के ही रहेंगी |
सरकंडे का चश्मा
अगली बार जब हालदार साहब उधर से निकले तो उन्होंने सोचा कि अब वे मूर्ति को नहीं देखेंगे परंतु आदत से मजबूर होने के कारण जब उन्होंने चौराहे पर लगी हुई नेताजी की मूर्ति को देखा तो उनकी आंखें भर आईं
मूर्ति पर किसी बच्चे ने सरकंडे का बना हुआ चश्मा लगा दिया था हालदार साहब भावुक हो उठे कि बड़ों के साथ बच्चों में भी अर्थात प्रत्येक नागरिक में देशभक्ति की भावना व्याप्त है