( पद ) - तुलसीदास- (काव्य खण्ड हिंदी ) अंतरा- व्याख्या
( पद - तुलसीदास कविता व्याख्या )
(Summary)- 1
- इस कविता में तुलसीदास द्वारा रचित "गीतावली" से दो पद लिए गए हैं !
- इस पदों में श्री राम के वनगमन के बाद माता कौशल्या की मानसिक स्थिति का वर्णन किया गया है !
- वह श्री राम के जाने के बाद उनके सभी खिलौने को दिलों से लगाती है और उन्हें याद करती हैं !
जननी निरखति बान धनुहियाँ।
बार बार उर नैननि लावति प्रभुजू की ललित पनहियाँ।।
कबहुँ प्रथम ज्यों जाइ जगावति कहि प्रिय बचन सवारे।
"उठहु तात! बलि मातु बदन पर, अनुज सखा सब द्वारे"।।
कबहुँ कहति यों "बड़ी बार भइ जाहु भूप पहँ, भैया।
बंधु बोलि जेंइय जो भावै गई निछावरि मैया"
कबहुँ समुझि वनगमन राम को रहि चकि चित्रलिखी सी।
तुलसीदास वह समय कहे तें लागति प्रीति सिखी सी।।
व्याख्या- 1
- माता कौशल्या श्रीराम के खेलने वाले धनुष बाण को देखती है, और उनकी सुंदर नन्ही नन्ही जूतियां को अपने हृदय और आंखों से बार-बार लगाती है !
- तभी पहले की तरह सुबह-सुबह जाकर माता कौशल्या श्री राम को प्यारे प्यारे वचन कह कर जगाने लगती हैं। " हे पुत्र उठो तुम्हारे सुंदर चेहरे पर तुम्हारी माता बलिहारी जाती है उठो तुम्हारे सभी भाई और मित्र दरवाजे पर खड़े हैं और तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं !
- और कभी माता कौशल्या कहती है, भैया बहन देर हो गई है महाराज के पास जाओ और अपने साथियों को बुलाकर जो अच्छा लगे वैसा भोजन खाओ !
- और अंत में जैसे ही उन्हें वनगमन की बात याद आती है की श्रीराम तो यहां नहीं है,, तो वे बहुत ज्यादा दुखी हो जाती है !
- और उस दुख में वे एक चित्र की तरह स्थिर रह जाती है !
- तुलसीदास कहते हैं उस समय माता कौशल्या की स्थिति उस मोर के समान हो जाती है जो अपने पंखों को देखकर खुश होकर नाचता रहता है और जैसे ही उनकी नजर अपने पांव पर जाती है वह रोने लगता है !
विशेष (1)
- इस काव्यांश में राम के वनगमन के बाद माता कौशल्या की दुख पूर्ण मनोस्थिति का वर्णन किया गया है !
- अनुप्रास तथा उपमा अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया गया है !
- यह काव्यांश अवधि मिश्रित बृजभाषा में लिखित है !
- इस कविता में करुण रस है !
- इस कविता में संगीतात्मकता है !
- कवि की भाषा सहज सरल एवं भावानुरूप है !
(Summary)- 2
- इस कविता में तुलसीदास द्वारा रचित " गीतावली" को 2 पद लिए गए हैं !
- दूसरे पद में भी श्री राम के वनगमन के बाद दुखी माता कौशल्या की मनोस्थति का वर्णन किया गया है, वे बताती है कि राम के द्वारा पाले घोड़े भी राम के वियोग से तड़प रहे हैं अब तो वापस आजाओ राम !
राघौ! एक बार फिरि आवौ।
ए बर बाजि बिलोकि आपने बहुरो बनहिं सिधावौ।।
जे पय प्याइ पोखि कर-पंकज वार वार चुचुकारे।
क्यों जीवहिं, मेरे राम लाडिले ! ते अब निपट बिसारे।।
भरत सौगुनी सार करत हैं अति प्रिय जानि तिहारे।
तदपि दिनहिं दिन होत झावरे मनहुँ कमल हिममारे।।
सुनहु पथिक! जो राम मिलहिं बन कहियो मातु संदेसो।
तुलसी मोहिं और सबहिन तें इन्हको बड़ो अंदेसो।।
व्याख्या- 2
- माता कौशल्या कहती है, हे राघव ! तुम एक बार तो जरूर लौट आओ, एक बार फिर से आजाओ, यह आयोध्या तुम्हें बुला रही है !
- एक बार यहां आकर अपने इन खोलो को देख लो और फिर वापस वन में चले जाना लेकिन एक बार तो लौट कर आ जाओ !
- इन घोड़ों को तुमने पानी पिलाया था, तुम इन घोड़ों को पानी पिलाते थे और प्यार से स्पर्श करते थे और इन्हें पूचकारते थे तो अब उन्हीं घोड़ो को तुम भूल गए हो !
- तुम इन जीवो को भूल गए हो अब यह जीव कैसे जिएंगे, भरत जानते हैं कि यह घोड़े आपको बहुत प्रिय हैं और वे इनकी अच्छे से देखभाल भी करते हैं !
- लेकिन फिर भी यह घोड़े दिन प्रतिदिन बहुत ज्यादा कमजोर होते जा रहे हैं मानो किसी कमल के फूल पर पाला पड़ गया हो !
- माता कौशल्या पथिको से कहती है, सुनो यदि तुम्हें वन में राम मिल जाए तो उनसे माता का यह संदेश कहना कि मुझे सबसे बढ़कर इन घोड़ो की ही चिंता है और उन्हें घोड़ों की दशा के बारे में बता देना !
विशेष (2)
- इस काव्यांश में राम के वनगमन के बाद माता कौशल्या घोड़ों की खराब स्थिति को बताते हुए राम को वापस बुलाती है !
- इस कविता में अनुप्रास, रोपार्क, उपमा अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया गया है !
- इस कविता अवधि मिश्रित ब्रजभाषा में लिखित है !
- इस काव्यांश में करुण रस है !
- कवि की भाषा सहज सरल एवं भावानुरूप है !
- इस कविता में संगीतात्मकता है !