उपभोक्तावाद की सांस्कृतिक सारांश- Chapter - 3rd Class- 9th Hindi - क्षितिज
( लेखक का परिचय )
- इस पाठ के लेखक श्याम चरण दुबे जी हैं।
- जिनका जन्म सन 1922 में मध्य प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ था।
- उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में पीएचडी हासिल की।
- वो भारत के प्रमुख समाज वैज्ञानिकों में से एक थे।
- उनका देहांत सन 1996 में हुआ था।
- इस पाठ में लेखक श्यामाचरण दुबे जी ने
- अपने विचार प्रकट करते हुए आज के दौर के चकाचौंध और दिखावटी मानसिकता को दिखाया है।
- नए-नए भौतिक उत्पादों से सुख भोगा जा रहा है।
- नए उत्पादों के साथ- साथ मानव-चरित्र में भी बदलाव आता जा रहा है।
- यहां लेखक श्यामाचरण दुबे जी ने यह भी कहा कि नया योग “ उपभोक्ता ” का योग है
- जिसमें “उपभोक्तावाद की संस्कृति” खूब फल-फूल रही है।
- उपभोग-भोग ही सुख बन गया है।
- दैनिक जीवन में काम आने वाली विभिन्न वस्तुएं, सामग्रियां हमें अपनी ओर खींचते हैं।
- जैसे दांतों की सुरक्षा और स्वच्छता के लिए अनेक तरह के टूथपेस्ट बाजारों में उपस्थित हैं।
- परंतु हम तो मशहूर और अच्छा ब्रांड ही लेना पसंद करते हैं।
- कोई दांतो को मोतियों के भांति चमकाएगा,
- कोई मसूड़ों को मजबूत रखने वाला है
- तो कोई आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों द्वारा निर्मित।
- शारीरिक सौंदर्य बढ़ाने के लिए तो हर महीने नए उत्पाद देखने को मिल जाते हैं।
- जैसे एक साबुन को ही ले लिया जाए एक साबुन त्वचा को कोमल बनाता है तो दूसरा उसे तरोताजा करता है
- और कुछ तो शुद्ध-गंगाजल से निर्मित है।
- अधिकांश परिवारों की महिलाएं सौंदर्य-साम्रगी पर हजारों रुपए खर्च कर देती है।
- और इन सब साम्रगी को बढ़ावा मिलता है इन अनेक प्रकार के विज्ञापनों से।
- महिलाएं, लड़कियां तो अपनी पसंद की हीरोइन को यह
- साम्रगी का विज्ञापन करते देख उनकी तरफ और भी आकर्षित होती हैं।
- इसी प्रकार पुरुषों के लिए भी कई तरह की चीजें बाजार में उपलब्ध है।
- जैसे - पेरिस परफ्यूम, जेल, फेरन हैंडसम आदि अनेक प्रकार की क्रीमें।
- यह प्रतिष्ठा-चिहन् है, जो समाज में आपकी हैसियत दिखाते हैं।
- आगे लेखक बताते हैं कि बढ़ते उत्पादों के चलते उपभोक्ताओं पर स्वार्थ हावी होता जा रहा है।
- पहले घड़ी समय बताती थी, और तब लोग समय देखने के लिए घड़ी का उपयोग करते थे
- परंतु अब घड़ी समय के साथ - साथ उनकी हैसियत दिखाती हैं।
- आगे लेखक बताते हैं कि बढ़ते उत्पादों के चलते उपभोक्ताओं पर स्वार्थ हावी होता जा रहा है।
- पहले घड़ी समय बताती थी, और तब लोग समय देखने के लिए घड़ी का उपयोग करते थे
- परंतु अब घड़ी समय के साथ - साथ उनकी हैसियत दिखाती हैं।
- स्वार्थ में लोग इतने अंधे हो चुके है कि बढ़ती महंगाई के चलते लोग
- अपने शारीरिक त्वचा, बनावट, रंग रूप को और नुकसान पहुंचा रहें है परंतु लोग इस बात को नजरंदाज कर रहें हैं।
- आलू के चिप्स, पिज्जा, बर्गर व फ्रेंच फ्राइज या शीतल पेय पदार्थ यानी “कूड़ा खाद्य” खा-पीकर हम कैसे स्वस्थ रह सकते हैं?
- यह सब केवल दिखावा ही है जिसे हम केवल समाज में अपनी हैसियत दिखाने के लिए खरीदते व खाते हैं।
- यहां लेखक श्यामाचरण दुबे एक प्रश्न करते हैं
- कि इस उपभोक्ता संस्कृति का विकास भारत में क्यों हो रहा है ?
- अब यह एक चिंता का विषय बनता जा रहा है
- कि इस संस्कृति के फैलाव के क्या परिणाम निकलेंगे ?
- लोगों में आपसी झगड़ों के कारण उनमें दूरी बढ़ती जा रही है।
- अनेक संसाधनों का दुरुपयोग किया जा रहा है और लोग विदेशी संस्कृति को अपना रहे हैं।
- हम सब अपने लक्ष्य को पाने के लिए भटक जाएंगे।
- इस तरह का अंतर अशांति और एक-दूसरे के प्रति दुश्मनी उत्पन्न करता है।
- सभी अपने-अपने स्वार्थ को पूरा करने में लगे हुए हैं
- यदि ऐसा ही रहा तो भारत देश बिखर जाएगा
- फिर हम में एकता नहीं रहेगी। इस बात का फायदा बाहर का कोई भी उठा सकता है।
- भोग की इच्छा बहुत ज्यादा फैली हुई है।
- इसलिए गांधीजी के अनुसार हमें अपने और दूसरे लोगों के आदर्शों पर टिके रहते हुए स्वास्थ्य सांस्कृतिक प्रभावों को अपनाना
- चाहिए जिससे हम अपना ही नहीं अपने देश और देश के नागरिकों का भला करेंगे।
- हमें यह बात हमेशा याद रखनी होगी कि उपभोक्ता संस्कृति हमारे लिए खतरा है
- और आगे आने वाले समय में यह एक बहुत बड़ी मुसीबत बन सकती है।