प्रेमचंद के फटे जूते- Chapter - 6th Class- 9th Hindi -क्षितिज
( लेखक परिचय )
- हरिशंकर परसाई जी का जन्म सन 1922 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी गाँव में हुआ।
- नागपुर विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के बाद कुछ दिनों तक अध्यापन किया।
- सन 1947 से स्वतंत्र लेखन करने लगे।
- सन 1995 में इनका निधन हो गया।
- 'प्रेमचंद के फटे जूते' पाठ के लेखक हरिशंकर परसाई जी
- प्रेमचंद नामक एक साधारण व्यक्ति के बारे में बता रहे हैं
- जो कि हिंदी के एक सुप्रसिद्ध लेखक हैं।
- जिनकी कहानियां और उपन्यास विश्व भर में फैले हुए हैं।
- लेखक हरिशंकर परसाई जी बताते हैं कि मैंने हैरानी में पूछा की प्रेमचंद जी फोटो खींचा रहे हैं
- वो भी फटे जूते पहनकर और वह किसी पर हंस भी रहे हैं।
- फिर लेखक हरिशंकर परसाई जी कहते हैं अगर फोटो खिंचानी ही थी, तो जूते तो ढंग के पहन कर आते।
- ओह! लगता है कि अपनी पत्नी के कहने पर ही फोटो खिंचवा रहे हैं।
- लेखक हरिशंकर परसाई प्रेमचंद जी की फोटो के द्वारा उनके कष्ट को महसूस कर रोना चाहते हैं।
- परंतु उन्हें ऐसा करने से उनके आंखों का दर्द रोक लेता है।
- लेखक व्यंग करते हुए कहते है, कि लोग इत्र लगाकर खुशबूदार फोटो खिंचवाते है।
- अगर प्रेमचंद जी फोटो का महत्व समझते तो जूते किसी से उधार में मांग लेते
- लोग तो शादी में पहनने के लिए कोट और कार तक मांग लेते हैं।
- लेखक हरिशंकर परसाई जी आगे बताते हैं
- कि सिर में पहनने वाली वस्तु सस्ती है जबकि पैरों की उतने ही अधिक महंगी।
- प्रेमचंद जी पर भी कुछ ऐसा ही भार रहा होगा।
- उनके यह विडंबना लेखक को बहुत दुख पहुंचा रही थी।
- एक महान उपन्यास, कलाकार, युग प्रवर्तक, सम्राट का जूता फटा हुआ देख, उन्हें बहुत दुख सा होता था।
- आगे लेखक हरिशंकर जी कहते हैं कि मेरा खुद का जूता भी कुछ अच्छा नहीं,
- बस ऊपर से ना फटकर अंगूठे के नीचे तला फट गया है।
- ऊपर से तो यह बढ़िया दिखता है पर नीचे से अंगूठा जमीन से रगड़ जाता है,
- पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है ।
- पर पैर के जख्मी होने पर भी उंगली दिखाई नहीं देगी ।
- आगे वे कहते हैं कि लेखक यानी उनके जैसे लोग वास्तविक सच्चाई को आडंबर के आवरण से ढकना चाहते हैं।
- जबकि प्रेमचंद जैसे व्यक्तित्व सच्चाई को अपनाने वाले लोग हैं।
- जो पर्दे का महत्व ही नहीं जानते और हम इसी पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं !
- अब लेखक प्रेमचंद जी के बारे में बातें करते हैं कि तुम तो बड़े ठाठ से फटे जूते पहने हुए हो
- लेकिन मैं ऐसा कभी नहीं कर पाऊंगा और फोटो खिंचवाने की बात तो रही दूर की।
- और लेखक उनकी इस व्यंग्य मुस्कान का मतलब पूछते हैं।
- लेखक उनके जूते फटने की वजह जानना चाहते हैं
- क्योंकि उनके अनुसार ज्यादा चलने से जूता फटता नहीं, हां पर घिस जाता है।
- लेखक हरिशंकर परसाई जी अब बार-बार इसी प्रश्न के बारे में सोचते हैं
- कि प्रेमचंद जी का जूता घिसने की जगह फट कैसे गया ?
- लेखक यह सोचते हैं कि जिसे हम घृणित समझते हैं
- उनकी तरफ हम पैर की उंगली का इशारा करते हैं।
- मतलब यह है कि अब लेखक समझ गए हैं
- कि प्रेमचंद जी समाज में उपस्थित व्याप्त भेद- भाव और आडम्बरपूर्ण स्वभाव को देख कर मुस्कुरा रहे हैं।
- लेखक समझ गए हैं कि प्रेमचंद स्वार्थपरक लोगों पर व्यंग्य कर रहे हैं जो अपने वास्तविकता को छिपाकर, संघर्षों से बच कर निकलते हैं उन पर हंस रहे हैं।
- अंत में लेखक हरिशंकर परसाई जी यही कहते हैं कि
- 'हम्म अब वह प्रेमचंद जी के जरिए दिए गए निर्देशों को अच्छे प्रकार से समझ चुके हैं।'