[ तोड़ो- रघुवीर सहाय ] - (काव्य खण्ड हिंदी ) अंतरा- व्याख्या
( तोड़ो- कविता- व्याख्या )
[ Summary ]
- इस कविता में कवि सृजन हेतु भूमि को तैयार करने के लिए चट्टानों, ऊसर और बंजर को तोड़ने का आह्वान करता है !
- इसमें कवि ने प्रकृति से मन की तुलना की है !
- इसमें कवि ने मन में व्याप्त रूढ़ियों को भी समाप्त करने की बात कही है !
तोड़ो तोड़ो तोड़ो
यह पत्थर यह चट्टाने
यह झूठे बंधन टूटे
तो धरती को हम जाने
सुनते हैं मिट्टी में रस है जिससे उगती दूब है
अपने मन के मैदानों पर व्यापी कैसी ऊब है
आधे आधे गाने।
व्याख्या- 1
- इसमें कवि मनुष्य से उसके मन के बंजरपन को दूर करके उसे उपजाऊ बनाने की बात कहता है !
- और कवि यह चाहता है कि मनुष्य सृजन कार्य करें !
- यहां कवि कहते हैं जिस तरह भूमि के बंजरपन को दूर करने के लिए भूमि के ऊपर फैले पत्थर और चट्टानों को तोड़कर उसे समतल बनाना पड़ता है !
- उसी प्रकार मनुष्य को अपने मन में जो अविश्वास है और जो समाज की कुरीतियों के बंधन है उन्हें तोड़ना पड़ेगा ताकि वह अपने मन को समझ सके !
- जब तक मनुष्य अपने मन में व्याप्त बाधाओं को उखाड़ नहीं फैकेगा तब तक वह अपनी क्षमता को समझ नहीं पाएगा !
- कवि कहते हैं अपने मन की उदासीनता को दूर कर श्रम करना चाहिए !
तोड़ो तोड़ो तोड़ो
यह ऊपर बंजर तोड़ो
यह चरती परती तोड़ो
सब खेत बनाकर छोड़ो
मिट्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को
हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खोज को ?
गोड़ो गोड़ो गोड़ो
व्याख्या- 2
- वे सभी चट्टाने और पत्थर जो बंजर बना रहे हैं उन्हें तोड़ दो, और उपजाऊ बनाओ !
- चरती तथा परती भूमि को उपजाऊ बनाकर उस पर खेती कर रहे हैं लेकिन मनुष्य अपने मन की उदासीनता को खत्म नहीं कर पाएगा तब तक वह सृजन कार्य नहीं कर पाएगा !
- इसलिए कवि कहते हैं, कि जब मिट्टी में रस होगा अर्थात उपजाऊपन होगा तभी तो वह उस बीज को पोसेगी फिर यही बीज आगे चलकर फसल का रूप ले लेता है !
- इसलिए जब तक मनुष्य के मन से यह बाधाएं और रूढ़ियां दूर नहीं होगी तब तक मनुष्य सृजन कार्य नहीं कर पाएगा !
[ विशेष ]
- इस कविता में प्रकृति की तुलना मन से की गई है !
- इस कविता में लयात्मकता है !
- इस कविता में खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है !
- इस कविता में देशज शब्दों का प्रयोग भी किया गया है !
- यह एक छंद मुक्त कविता है !
- यह एक क्रांतिकारी कविता है !
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