खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी ( Food processing and technology ) Home Science Class 12th Chapter- 5th

खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी ( Food processing and technology ) Home Science Class 12th Chapter- 5th

Introduction

  • खाद्य पदार्थों को विभिन्न कारणों से संसाधित ( Process ) किया जाता रहा हैं, जैसे कि- फसल कटने पर अन्न को सुखा ( लिया जाता था, ताकि उसका सुरक्षा काल ( Shelf Life ) बढ़ाया जा सके ।  
  • पहले के समय में खाद्य पदार्थों का संसाधन मुख्य रूप से उनकी सुपाच्यता, स्वाद सुधारने और खादय पदार्थ की निरंतर आपूर्ति ( Supply ) सुनिश्चित करने के लिए किया जाता था।

खादय प्रसंस्करण  का महत्व- (significance of food processing )

  • इसका तात्पर्य ऐसी विधियों और तकनीकों का समूह से हैं, जो कच्ची सामग्रियों को तैयार या आधे तैयार खाद्य उत्पादों में बदल देता है ।
  • लोगों को जीवनशैली में परिवर्तन, आवागमन में वृद्धि ( increasing mobility ) तथा वैश्वीकरण के कारण भी विभिन्न प्रकार के संसाधित खाद्य उत्पादों की माँग निरंतर बढ़ती जा रही है। 
  • जनवरी, 2010 को भारत सरकार ने भारत में खाद्य संसाधन उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्ष 2012 तक 30 वृहत् खाद्य संसाधन पार्को ( food processing parks ) की स्थापना की घोषण की हैं |

Food Fortification

  • खाद्य पदार्थों या मसालों में जिन पोषक पदार्थों की कमी होती है, उन्हें मिलाकर खाद्य पदार्थों का प्रबलीकरण / फूड फॉर्टिफिकेशन ( food fortification ) किया जाता है, ताकि आहार की न्यूनतम आवश्यकताएँ पूरी की जा सके । 
  • यह विधि आमतौर पर महँगे खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के लिए अपनाई जाती है
  • फूड फॉर्टिफिकेशन के उदाहरण
  • डबलरोटी के निर्माण के दौरान आटे में प्रोटीन लाइसीन मिलाया जाता है ।
  • वनस्पतिक तेलों तथा घी में विटामिन- ए तथा विटामिन- डी मिलाया जाता है ।
  • नमक में आयोडीन मिलाया जाता है । 

Shelf life of food

  • शैल्फ लाइफ खाद्य पदार्थ के उत्पादन व स्थानांतरण से लेकर सुरक्षित व स्वादिष्ट खाने योग्य बने रहने की अवधि को उसकी शैल्फ लाइफ कहते हैं । 

खाद्य विज्ञान ( Food Science )

  • खाद्य विज्ञान को एक ऐसे विशिष्ट क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें रसायन और भौतिकी जैसे आधारभूत विज्ञान विषयों के साथ - साथ पाककलाओं, कृषि विज्ञान तथा सूक्ष्मजीव विज्ञान का अनुप्रयोग किया जाता हैं । 
  • खाद्य विज्ञान एक बहुत ही विस्तृत विषय विशेष है।
  • खाद्य वैज्ञानिक खाद्य के भौतिक- रासायनिक विशेषताओं का अध्ययन करते हैं
  • जिससे हमें खाद्य पदार्थ की प्रकृति और उसकी विशेषताओं को समझने में मदद मिलती हैं ।
  • इसका तात्पर्य ऐसी विधियों और तकनीकों का समूह से हैं, जो कच्ची सामग्रियों को तैयार या आधे तैयार खाद्य उत्पादों में बदल देता है ।  
  • खादय संसाधन के लिए पौधों और अथवा जंतुओं से प्राप्त अच्छी गुणवत्ता वाले कच्चे माल की आवश्यकता होती है
  • जिसे लंबे सुरक्षा - काल वाले खाद्य उत्पादों में परिवर्तित कर दिया जाता है ।

खाद्य प्रौद्योगिकी ( Food Technology ) 

  • प्रौद्योगिकी एक ऐसा विज्ञान है जिसमें वैज्ञानिक अनुप्रयोगों के साथ - साथ सामाजिक- आर्थिक ज्ञान तथा उत्पादन के वैध नियमों का व्यावहारिक उपयोग होता है ।  
  • यह  विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के उत्पादन के लिए खाद्य विज्ञान तथा खाद्य अभियांत्रिकी ( food engineering ) का उपयोग करती है ।
  • खाद्य प्रौद्योगिकी का अध्ययन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की गहरी समझ प्रदान करने के साथ - साथ, सुरक्षित, पोषक, संपूर्ण, वांछनीय तथा सस्ते. सुविधाजनक खाद्य पदार्थों के चयन, भंडारण, संरक्षण, संसाधन तथा पैक करने के कौशलों को विकसित करती है । 
  • इसका मुख्य उद्देश्य सभी उत्पादित खाद्यों पदार्थी की गुणवत्ता और सुरक्षा को सुनिश्चित करना होता है।

खाद्य विनिर्माण / उत्पादन ( Food Manufacturing ) : 

  • खाद्य उत्पादन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें खाद्य उत्पादों को बढ़ती जनसंख्या की विविध माँगों को पूरा करने के लिए
  • खाद्य प्रौद्योगिकी के सिद्धांतों का उपयोग करते हुए बड़े पैमाने पर तैयार किया जाता है ।  
  • खाद्य उत्पादन वर्तमान काल का संभवतः सबसे बड़ा उत्पादन उद्योग है ।

( खाद्य संसाधन और प्रौद्योगिकी का विकास )

  • 1810 में निकोलस ऐप्पट द्वारा खाद्य पदार्थों को डिब्बों में बंद करने की प्रक्रिया को विकसित करना एक महत्वपूर्ण घटना थी ।
  • खाद्य पदार्थों की डिब्बाबंदी का खाद्य संरक्षण तकनीकों पर गहरा प्रभाव पड़ा । 
  • वर्ष 1864 में लुई पाश्चर द्वारा अँगूरी शराब को खराब होने से कैसे बचाएँ का वर्णन खाद्य प्रौद्योगिकी को वैज्ञानिक आधार देने की शुरूआत थी ।
  • लुई पाश्चर ने ही विभिन्न प्रकार के खाद्यजनित रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए पाश्च्चुरीकरण ( निर्जीवीकरण ) विधि को विकसित किया ।
  • पाश्च्चुरीकरण विधि खाद्य पदार्थों को सूक्ष्मजीवों से सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में क्रांतिकारी कदम था।
  • खाद्य प्रौद्योगिकी का प्रयोग 20वी सदी की शुरूआत में सेना की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग।
  • इसके बाद दोनो विश्वयुद्धों, अंतरिक्ष अभियानों तथा उपभोक्ताओं द्वारा विभिन्न उत्पादों की बढ़ती मांग ने
  • खाद्य प्रौद्योगिकी के विकास को और अधिक प्रोत्साहित किया।
  • कामकाजी महिलाओं की आवश्यकताओं को विशेष रूप से पूरा करने के लिए तत्काल मिलाकर बनने वाले सूप मिश्रण ( instant Soup ) 
  • और पकाने को तैयार खाद्य पदार्थों ( ready to cook food items ) को विकसित किया गया । 
  • जैसे - जैसे खाद्य प्रौद्योगिकी का विकास होता गया वैसे - वैसे लोगों में ऐसे खाद्य उत्पादों की मांग बढ़ने लगी जो साल के किसी विशेष मौसम के दौरान ही पाए जाते थे ।
  • खाद्य प्रौद्योगिकी ने विविध प्रकार के सुरक्षित और सुविधाजनक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराए हैं । 
  • विकासशील देशों में तेजी से फैल रहे और विकसित हो रहे इस क्षेत्र ने खाद्य सुरक्षा में सुधार लाने में मदद की है और सभी स्तरों पर रोजगार के नए - नए रास्ते भी खोल दिए हैं ।

( खाद्य - संसाधन और संरक्षण का महत्त्व )

  • खाद्य संसाधन ( food processing ), खाद्य विनिर्माण ( food production ) की ही एक शाखा है, 
  • जिसमें वैज्ञानिक ज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का उपयोग करके कच्चे माल को मध्यवर्ती स्तर पर तैयार खाद्य पदार्थों ( semi - finished food items ) अथवा तुरत खाने के लिए तैयार खाद्य उत्पादों ( ready to eat food items ) में बदलते है ।
  • इस प्रक्रिया के द्वारा भारी / बहुत बड़े, जल्दी खराब होने वाले तथा कभी- कभी खाये न जा सकने वाले खाद्य पदार्थों ( bulky, perishable and inedible food items ) को अधिक उपयोगी, सद्रित, लंबे समय तक स्थायी रहने योग्य
  • और स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों अथवा पेय पदार्थों में बदलने के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जाता है ।

खाद्य के ख़राब होने के कारण 

  • खाद्य पदार्थ के खराब होने का तात्पर्य उस स्थिति से हैं जिसमें कोई खाद्य पदार्थ मानव उपभोग के लिए सुरक्षित न हों अर्थात् उसे खाने से विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती है ।  
  • खाद्य पदार्थ भौतिक, रासायनिक या जैविक रूप से खराब हो सकते हैं ।
  • खाद्य पदार्थों के खराब या नष्ट होने के लिए बहुत से कारक उत्तरदायी है, जैसे कि :-

( 1. भौतिक परिवर्तन ( Physical Changes ) : 

  • भोजन में भौतिक कारणों से आए परिवर्तनों से भोजन का रंग - रूप, स्वाद खराब हो जाता है जैसे कि- भार या दबाव के कारण फल अथवा सब्जियों का ढीला / पिलपिला पड़ जाना ।

( 2. रासायनिक परिवर्तन ( Chemical Changes ) :

  • कई बार गर्मियों में दूध बाहर पड़े रहने से फट जाता है । ऐसा एक रासायनिक परिवर्तन के कारण होता है जिसमें दूध की प्रोटीन ( casein ) जम जाती है । कुछ पदार्थों में प्रोटीन और कार्बोज को आपसी क्रिया के कारण भोजन थोड़ी देर पड़े रहने पर भूरा हो जाता है ।
  • जैसे कि- सेब को थोड़ी देर काटकर छोड़ देने पर वह भूरा पड़ जाता है ।  

( 3. जीवाणुओं द्वारा परिवर्तन ( Changes Due to Microbes ) : 

  • भोजन में उपस्थित कुछ जीवाणुओं द्वारा भी खाद्य पदार्थ बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं ।
  • खमीर, फफूदी व बैक्टीरिया ऐसे कुछ जीवाणु हैं । 

खमीर ( Yeast ) : 

  • ऑक्सीजन की उपस्थिति तथा अम्लीय वातावरण में खमीर ( एक कोशीकीय जीव ) भोजन की शर्करा को कार्बन डाइआक्साइड व अल्कोहल में बदल देते हैं, जिससे खाद्य - पदार्थ फूलकर खट्टा जो जाता है । जैसे- आटे में खमीर । 

फफूदी ( Fungus ) : 

  • फफूंदी ऐसे वातावरण में पनपती है जहाँ अम्ल तथा क्षार में सन्तुलन कम होता है । नींबू, स्कवैश, अचार आदि पर पनपने वाली फफूदी हानिकारक नहीं होती परन्तु मटर, मूंगफली, गेहूँ, राई. जौं आदि पर होने वाली फफूदी खाद्य पदार्थ को विषाक्त कर देती है ।

बैक्टीरिया ( Bacteria ) : 

  • कई बैक्टीरिया बहुत जल्दी बढ़ते हैं तथा खाद्य पदार्थों में विष उत्पन्न कर देते हैं जो हानिकारक हो सकता है । यह अधिकतर दूध एवं दूध से बने पदार्थ, मास, मछली तथा पके हुए भोजन को दूषित करते हैं । 

एन्जाइम द्वारा ( Changes Due to Enzymes ) :

  • इससे पदार्थ गलने लगता है और उसमें से दुर्गन्ध आने लगती है. देर तक कटे रख हुऐ फलों व सब्जियों का रंग, स्वाद, सुगन्ध व सरंचना में अन्तर आ जाता है । 
  • मीट और मछली पड़े - पड़े सड़ने लगा है । 
  • कीड़े - मकोड़े , चूहों द्वारा ( Changes Due to Insects and Rodents ) :
  • कीड़े खाद्य - पदार्थों को खाकर नष्ट कर देते हैं जिससे पर खाने लायक नहीं रहते 
  • जैसे- अनाज व दालें । 
  • कीड़े - मकोड़े, चूहों द्वारा ( Changes Due to Insects and Rodents ) :
  • कुछ कीड़े अपने अण्डे छोड़ देते हैं और भोजन को खाने लायक नहीं रहने देते, जे गोल कृमि, फीता कृमि, बिना धुले फल, सब्जी व मीट में अपने अण्डे छोड़ते हैं ।  झींगुर की लार से अनाज के दाने चिपके हुए में दिखा देते हैं । इससे अनाज में बदबू पैदा हो जाती है ।
  • कीड़े - मकोड़े, चूहों द्वारा ( Changes Due to Insects and Rodents ) :
  • चूह के मल - मूत्र से भी खाद्य पदार्थों व अनाज में संक्रमण फैलता है । यह सब मनुष्य को रोगी बना सकता है ।

खाद्य संरक्षण की विधियाँ

1.धूप में सुखाना

  • भोजन पदार्थों में उपस्थित नमी को सुखाकर भोजन को संरक्षित करना  निर्जलीकरण कहलाता है।
  • खाद्य - पदार्थों को संरक्षित करने की यह बहुत पुरानी विधि है ।  

2.हिमीकरण ( Freezing ) :

  • कई खाद्य - पदार्थ ऐसे होते हैं जिन्हें संरक्षित करने के लिए उनमें नमी बनाए रखना आवश्यक होता है ।
  • ऐसे खाद्य पदार्थों को कम तापमान पर रखकर संरक्षित किया जाता है कम तापमान पर जीवाणु एवं एंजाइमों की क्रियाशीलता कम हो जात किया जा सकता है ।

प्राकृतिक पदार्थों के द्वारा खाद्य संरक्षण

नमक :

  • यह लगभग सभी संरक्षित पदार्थों में डाला जाता है नमक खाद्य पदार्थों का पानी निकाल कर उसकी नमी को कम कर देता है । 
  • नमक के कारण खाद्य पदार्थों में ऑक्सीजन नहीं धुल पाती जो कि जीवाणुओं के जीवित रहने में सहायक होती है । जिससे भोजन खराब होने से बच जाता है ।

चीनी :

  • यह फल - सब्जियों, जैम, स्क्वैश तथा मुरब्बे के संरक्षण में प्रयोग की जाती है ।
  • यह खाद्य पदार्थों के जल में घुल जाती है जिससे जीवाणुओं को पनपने के लिए उचित नमी नहीं मिलती ।

तेल :

  • यह मुख्य रूप से अचार को संरक्षित करने के लिए प्रयोग किया जाता है
  • आचार के ऊपर तेल की सतह हवा के साथ जीवाणुओं को आने से रोकती है जिससे अचार संरक्षित रहता है |

संरक्षित पदार्थों द्वारा खाद्य संरक्षण 

( रासायनिक पदार्थों के प्रयोग द्वारा खाद्य संरक्षण )

  • पोटेशियम मैटा बाई सल्फाईट ( Potassium Meta Bi Sulphiate ) ( KMS )
  • इसको खाद्य पदार्थ में डालने से सल्फर डाईआक्साइड बनती है जो खाद्य संरक्षण में सहायक होती है ।
  • यह सल्फर डाई आक्साइड बोतल के ऊपरी रिक्त स्थान पर आ जाती है और जीवाणुओं को प्रवेश नहीं पाने देती और उन्हें नष्ट भी कर देती है ।
  • इसका प्रयोग स्कवैश इत्यादि किया जाता है ।
  • यह ग्राम ( 1/4 छोटी चम्मच ) प्रति किलोग्राम तैयार खाद्य पदार्थ के हिसाब से डाली जाती है ।

( 2) सोडियम बेन्जोएट :

  • समें उपस्थित सोडियम बेन्जोऐट फफूंदी आदि को लगने से रोकता है ।
  • इसका प्रयोग सभी खाद्य पदार्थों में किया जा सकता है ।
  • यह 0.1 % सान्द्रता तक इस्तेमाल किया जाता है,  यह जल में आसानी से घुल जाता है ।

(3) सिट्रिक एसिड :

  •  यह भी एक अम्लीय पदार्थ है जिसका प्रयोग खाद्य संरक्षण में किया जाता है ।
  •  यह मुख्यतः जैम और स्कवैश के लिए प्रयोग में लाया जाता है ।

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