दोपहर का भोजन- Chapter- 2nd Class 11th Hindi Elective

( INTRO )
- कहानी का परिवार निम्न मध्यवर्गीय है, जिसमें परिवार का मुखिया मुंशी चंद्रिका प्रसाद, उसकी पत्नी सिद्धेश्वरी तथा तीन पुत्र हैं ।
- मुंशीजी को नौकरी से निकाल दिया गया है ।
- पहला पुत्र रामचंद्र 21 वर्ष का युवक है, जो दैनिक समाचार - पत्र में प्रूफ़ - रीडरी का काम सीखता है और पिछले वर्ष ही उसने इंटर पास किया था ।
- दूसरा पुत्र मोहन 18 वर्ष का किशोर है, जो इस साल हाईस्कूल का प्राइवेट इम्तिहान देने की तैयारी कर रहा है
- और तीसरा पुत्र प्रमोद छ : वर्ष का कुपोषित बालक है ।
( दोपहर का भोजन )
- सिद्धेश्वरी पाठ की जीवंत पात्र, वह अत्यंत अभाव में अपने
- परिवार की गाड़ी को खींच रही है। परिवार की स्थिति अत्यंत दयनीय होने पर भी वह परिवार को जोड़ने का पूरा प्रयास करती है।
- परिवार को जोड़े रखने के लिए वह झूठ का सहारा भी लेती है। उसका अथक प्रयास रहा है कि घर के सभी सदस्यों को सुख
- पहुँचाए, भले ही स्वयं कष्टों में जीती रहे।
- वह परिवार के सदस्यों के सामने एक दूसरे की कमी न बताकर उनकी बातों को छिपाती है ताकि किसी भी सदस्य को मानसिक कष्ट न हो।
- ये सभी बातें उसके अपार धैर्य को दर्शाती हैं।
- सिद्धेश्वरी ने झूठ बोलकर कोई पाप नहीं किया बल्कि परिवार के सभी सदस्यों को एक-दूसरे से जोड़े रखा है। ऐसा झूठ जो किसी भलाई के लिए बोला जाए उसे बोलने में कोई बुराई नहीं है।
( आर्थिक स्थिति )
- सिद्धेश्वरी ने खाना बना लिया है और दोनों घुटनों के बीच सिर रखकर ज़मीन पर चलती चींटी व चींटे देख रही है।
- केवल सात रोटियाँ ही उसने बनाई हैं । उसे कुछ देर बाद प्यास का आभास हुआ, तो घड़े से लोटा भर पानी पी लिया ।
- खाली पेट पानी उसके कलेजे में जा लगा और वह हाय राम !
- कहकर वहीं ज़मीन पर लेट गई ।
- उसने पानी प्यास मिटाने के लिए नहीं, बल्कि भूख मिटाने के लिए पिया था ।
( निर्धनता )
- बरामदा में एक अध - टूटे खटोले पर छ : वर्ष का प्रमोद सो रहा है ।
- लड़का नंग - धड़ंग पड़ा था । उसके गले तथा छाती की हड्डियाँ साफ़ दिखाई देती थीं ।
- उसके हाथ - पैर बासी ककड़ियों की तरह सूखे तथा बेजान पड़े थे और उसका पेट हँडिया की तरह फूला हुआ था ।
- मुँह खुला होने के कारण अनगिनत मक्खियाँ उसके मुँह पर भिनक रही थीं ।
- तभी सिद्धेश्वरी ने बच्चे के मुँह पर अपना फटा - गंदा ब्लाउज़ डाल दिया ।
- सारा घर मक्खियों से भिनभिना रहा था । आँगन की अलगनी पर एक गंदी साड़ी टॅगी थी
- जिसमें कई पैबंद ( फटे कपड़े को सिलने के लिए लगाया गया कपड़े का टुकड़ा ) लगे हुए थे ।
- कहानी के पुरुष पात्र एक - एक कर दोपहर का भोजन करने आते हैं ।
- खाना खिलाते समय सिद्धेश्वरी परिवार के सभी सदस्यों को एक - दूसरे के प्रति सम्मान बनाए रखने के लिए उन्हें अपने द्वारा गढ़ी हुई बातें बताती है,
- जिससे उनमें एक - दूसरे के प्रति एकता व सम्मान भाव बना रहे ।
- उदाहरणार्थ ; वह अपने पति से कहती है- " रामचंद्र कह रहा था, कुछ दिनों में नौकरी लग जाएगी ।
- परिवार के सभी सदस्य अपने अभाव व निर्धनता से भली - भाँति परिचित थे, परंतु एक - दूसरे के समक्ष इस निर्धनता को व्यक्त नहीं होने देते ।
- सिद्धेश्वरी जानती है कि रोटियाँ कम हैं फिर भी वह एक और रोटी देने का उपक्रम करती है, उसी की भाँति मुंशी, रामचंद्र और मोहन भूखे होने पर भी पेट भरने का नाटक करते हैं ।
- उन सभी को भली - भाँति ज्ञात है कि सभी के लिए दो - दो रोटियाँ हैं, यदि उनमें से एक और रोटी ले ली, तो दूसरा भूखा रह जाएगा ।
- मुंशीजी के खाना खाने के पश्चात् सिद्धेश्वरी उनकी जूठी थाली लेकर चौके की ज़मीन पर बैठ गई ।
- बची हुई दाल को कटोरे में उड़ेल दिया फिर भी वह पूरा नहीं भरा । थोड़ी- सी चने की तरकारी बची थी और रोटी भी एक ही बची थी, वह भी मोटी, भद्दी और जली हुई ।
- उस जली हुई रोटी में से भी उसने आधी प्रमोद के लिए रख दी और एक लोटा पानी लेकर उस आधी रोटी को खाने बैठ गई ।
- एक निवाला मुँह में लिया ही था कि उसकी आँखों से टपटप आँसू गिरने लगे ।
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