पहलवान की ढोलक - Class 12th hindi (आरोह ) Term- 2 Important question

पहलवान की ढोलक - Class 12th hindi (आरोह )  Term- 2 Important question

 लुट्टन सिंह का गाँव किन बीमारियों के भय से थर - थर काँप रहा था ? वर्णन कीजिए  

  • लुट्टन सिंह का गाँव सर्दी में फैले हुए हैजे और मलेरिया की बीमारियों से ग्रस्त होकर शिशु की तरह थर - थर काँप रहा था । किसी भी गाँववासी की आह और सिसकियों के अतिरिक्त अन्य कोई आवाज़ सुनने में नहीं आ रही थी । पूरे गाँव में मौत का सन्नाटा फैला हुआ था । केवल बच्चे कभी - कभार निर्बल स्वर से माँ - माँ चीखकर रोने लगते थे । लोग अपनी पुरानी और उजड़ी बाँस - फूस की झोंपड़ियों में बलपूर्वक अपनी आहों और सिसकियों को रोके हुए भगवान के नाम का स्मरण कर रहे थे । 

बीमारियों के भय से चीत्कार करता हुआ गाँव और अधिक भयावह रूप किन परिस्थितियों में ग्रहण कर लेता था ?  

  • गाँव में फैली हुई बीमारियों के कारण प्रत्येक घर में मौत नाच रही थी । गाँव सुना हो चला था । घर के घर खाली पड गए थे । रोज दो तीन लाशें उठती थीं । ऐसे में दिनभर की राख की ठंडी मिट्टी पर बैठे हुए कुत्ते शाम होते ही किसी आशंका के चलते एकत्रित होकर रोने लगते थे । तब यह स्थिति अत्यंत भयावह रूप लेकर डराने लगती थी , जो चीत्कार से भी अधिक भयंकर मालूम होती थी । 

पहलवान की ढोलक की उठती - गिरती आवाज़ बीमारी से दम तोड़ रहे ग्रामवासियों में संजीवनी का संचार कैसे करती है ?  

  • पहलवान की ढोलक ग्रामीणों को एक आंतरिक शक्ति देती है । पहलवान के दोनों पुत्र अन्य ग्रामीणों की भाँति गाँव में फैले संक्रामक रोग की चपेट में आकर भगवान को प्यारे हो चुके थे , परंतु फिर भी वह ढोलक बजाता रहता है । उसका मनोबल नहीं टूटता , क्योंकि वह अपनी ढोलक के माध्यम से समूचे गाँव वालों को जीने की शक्ति देता है । इस प्रकार पहलवान संक्रामक रोग से जूझते ग्रामीणों के लिए एक आदर्श बन गया । ग्रामीणों को उससे यह संदेश मिला कि हँसते - हँसते भी मृत्यु को गले लगाया जा सकता है ।

लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है ?  

  • लुट्टन  पहलवान ने बचपन से ही कसरत करनी शुरू कर दी थी । उसने किसी भी गुरु से पहलवानी या कसरत की शिक्षा नहीं ली थी । अतः उसने किसी को भी अपना गुरु नहीं माना और न ही किसी से कुश्ती के दाँव - पेंच सीखे थे । वह अपनी शक्ति और दाँव - पेंच की परीक्षा ढोलक की आवाज़ के आधार पर करता था । ढोल की आवाज़ उसके शरीर में उमंग व स्फूर्ति भर देती थी । वह अखाड़े में उतरने से पहले ढोल को प्रणाम करता था , क्योंकि उसने गुरु का स्थान ढोल को दे दिया था । 

' पहलवान की ढोलक ' कहानी के संदेश को स्पष्ट कीजिए ।  पहलवान की ढोलक ' के आधार पर लिखिए कि प्राचीन लोक - कलाएँ किस प्रकार धीरे - धीरे विलुप्त हो रही हैं ? उनके पुनर्जीवन के लिए क्या किया जा सकता है ? 

  • प्राचीन लोककलाएँ अब धीरे - धीरे विलुप्त हो रही हैं , क्योंकि औद्योगीकरण के कारण बढ़ते शहरीकरण में इन लोक - कलाओं की प्रासंगिकता समाप्त हो रही है । जो प्रासंगिक नहीं रह जाता , उसे समाप्त होना ही पड़ता है । आधुनिक समय में लोगों के मूल्य एवं जीवन - शैली अत्यधिक परिवर्तित हो गए हैं । अब कुश्ती जैसी कलाओं का अधिक महत्त्व नहीं रह गया है । आज के नए दौर में क्रिकेट , फुटबॉल , तैराकी , हॉकी , जिमनास्टिक जैसे अन्य खेल अधिक लोकप्रिय हो गए हैं । ' पहलवान की ढोलक ' पाठ के आधार पर कहा जा सकता है कि लुट्टन पहलवान या कुश्ती जब तक राज्याश्रित था , तब तक फला - फूला , लेकिन राज दरबार से निकल जाने के बाद उसकी स्थिति मरणासन्न हो गई । कुश्ती जैसी कलाओं के पुनर्जीवन के लिए सरकार के निवेश से ही शहरी एवं ग्रामीण नवयुवकों को विद्यालय एवं राष्ट्रीय स्तर पर अच्छे प्रशिक्षक के अंतर्गत उचित प्रशिक्षण एवं सम्मान आदि मिलना आवश्यक है । अतः ढोल बजाने के इस उत्साहपूर्ण तरीके के आधार पर यह कहना उचित ही कि इस पाठ में लोक कलाओं को संरक्षण दिए जाने का संदेश दिया गया है । - 

ढोलक की आवाज़ का पूरे गांव पर क्या असर होता था ?  

  • गांव के बड़े बूढ़े गाँववासियों में ढोलक की आवाज़ संजीवनी की शक्ति भरती थी। केवल ढोलक की आवाज़ ही निस्तब्ध रात को चीरती हुई लोगो को जीवित होने का अहसास कराती थी । जैसे ही ढोलक की आवाज़ सुनाई देती थी, वैसे ही नसों में बिजली सी दौड़ जाती थी। गाँववासियों को इस ढोलक की आवाज़ के कारण ही मृत्यु से डर नहीं लगता था। 

दंगल में विजयी होने के पश्चात् लुट्टन सिंह की जीवन शैली में क्या परिवर्तन आ गया था ?  

  • दंगल में विजयी होने के बाद लुट्टन सिंह राज पहलवान हो गया तथा राज दरबार का दर्शनीय जीव बन गया | मेलों में वह घुटने तक लम्बा चोला पहले, मतवाले हाथी की तरह झूमता हुआ घूमता था | उसकी बुद्धि बच्चों जैसी थी | सीटी बजाता , आँखों पर रंगीन चश्मा लगाए और  खिलोने से खेलता हुआ वह राज दरबार में आता | राजा साहब उसका बहुत ध्यान रखते थे और अब किसी को भी उससे लड़ने की आज्ञा नहीं देते थे |

गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढ़ोल क्यों बजता रहा ? 

  • लुट्टन पहलवान ने कभी कुश्ती नहीं हारी थी | ढ़ोल की आवाज़ सुनते ही उसमे शक्ति का संचार हो जाता था | वह ढ़ोल को ही अपना गुरू मानता था | वह यह भी मानता था की इसकी आवाज़ गाँववालों में उत्साह का संचार कर देगी , जिससे वे महामारी का सामना डटकर कर सकेंगे |
  • इसलिए वह सारी रात अपने पुत्रों की सहायता से गाँववालों के परोपकार हेतु ढोल बजता रहता | उसने मौत के सन्नाटे को चीरने के लिए और अपने पुत्रों की मृत्यु के पश्चात भी जीवन के उत्साह को बनाए रखने के लिए ढोल बजाना जारी रखा | 

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