Chapter 1 - हड़प्पा सभ्यता | Bricks, beads and bones, | Class 12th| History | ईंटे मनके और अस्थियां | harappa sabhyata in hindi notes ||

 हड़प्पा सभ्यता क्या हैं ? पहले  इतिहासकारों द्वारा माना जाता था कि मेसोपोटामिया की सभ्यता, मिस्र की सभ्यता और चीन की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से है। लेकिन 1920 के दशक में हड़प्पा सभ्यता की खोज हुई उसके बाद यह ज्ञात हुआ कि एक और प्राचीन हड़प्पा सभ्यता अस्तित्व में थी इस सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।

Chapter 1 - हड़प्पा सभ्यता | Bricks, beads and bones, | Class 12th| History | ईंटे मनके और अस्थियां | harappa sabhyata in hindi notes ||

 हड़प्पा सभ्यता क्या हैं?

पहले  इतिहासकारों द्वारा माना जाता था कि मेसोपोटामिया की सभ्यता, मिस्र की सभ्यता और चीन की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से है। लेकिन 1920 के दशक में हड़प्पा सभ्यता की खोज हुई उसके बाद यह ज्ञात हुआ कि एक और प्राचीन हड़प्पा सभ्यता अस्तित्व में थी इस सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।

 हड़प्पा सभ्यता की पहली जानकारी कब प्राप्त हुई?

लगभग 160 साल पहले पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) में पहली बार रेलवे लाइनें बिछाई जा रही थी और कुछ स्थानो पर खुदाई का कार्य चल रहा था। उत्खनन कार्य के दौरान कुछ इंजीनियरों को अचानक हड़प्पा पुरास्थल मिला, यह स्थान आधुनिक समय में पाकिस्तान में है। उन कर्मचारियों ने इसे खंडहर समझ लिया और यहां की हजारों ईंट उखाड़ कर यहां से ले गए और ईंटों का इस्तेमाल रेलवे लाइन बिछाने में किया गया लेकिन वह यह नहीं जान सके की यहां कोई सभ्यता थी।

हड़प्पा सभ्यता की खोज जॉन मार्शल के नेतृत्व में दयाराम साहनी द्वारा सन् 1921 में की गई

 

खोजकर्ता स्थान समय
दयाराम साहनी हड़प्पा (PAKISTAN) 1921
रखाल दास बैनर्जी मोहनजोदडो (PAKISTAN) 1922

  • 1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा नामक स्थल की खुदाई करवाई और हड़प्पा की मुहरें खोज ली।
  • 1922 में रखाल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो नामक स्थान पर उत्खनन कार्य किया और इन्होंने ने भी वैसी ही मुहरे खोज ली जैसी हड़प्पा में मिली थी।
  • इसके बाद यह अनुमान लगाया गया की यह दोनों क्षेत्र एक ही संस्कृति के भाग है। सन् 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल सर जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के सामने एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।

 ⊕ हड़प्पा सभ्यता का नामकरण :- 

  • इस सभ्यता की खोज सबसे पहले हड़प्पा नामक स्थान पर हुई इसीलिए इसका नाम हड़प्पा सभ्यता पड़ गया (Harappan Civilization) |
  • यह सभ्यता सिंधु घाटी के किनारे बसी एक सभ्यता थी इसलिए इसे सिंधु घाटी सभ्यता का नाम भी दिया गया है (Indus Valley Civilization) |
  • हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण 2600 से 1900 ईसा पूर्व के बिच किया गया।

⊕ हड़प्पा सभ्यता में निर्वाह के तरीके

  1. कृषि
  2. पशुपालन
  3. व्यापार
  4. शिकार

हड़प्पा सभ्यता में कृषि प्रौद्योगिकी :-

  • वृषभ (बैल) : हड़प्पाई मुहर में वृषभ (बैल) की जानकारी मिलती है। इतिहासकारों ने ऐसा अनुमान लगाया है कि हड़प्पाई निवासी खेत जोतने में बैल का प्रयोग करते थे।
  • फसलें : हड़प्पा सभ्यता के स्थलों में रहने वाले लोग कृषि करते थे तथा गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरे, चावल इत्यादि उगाते थे।
  • हल : इतिहासकारों को चोलिस्तान (पाकिस्तान) और बनावली (हरियाणा) से मिट्टी के बने हल के प्रतिरूप मिले हैं इससे यह अनुमान लगाया है कि खेतों में हल के द्वारा जुताई की जाती थी।
  • जुते हुए खेत : कालीबंगन (राजस्थान) से जुते हुए खेत के प्रमाण मिले हैं जहां अनुमान लगाया गया है की एक साथ दो अलग-अलग फसलें उगाई जाती थी।
  • औजार : लोग लकड़ी के हाथों से बनाए गए पत्थर के फलको का प्रयोग फसल कटाई में करते थे।
  • सिंचाई : खेतों में सिंचाई की आवश्यकता भी पड़ती थी जिसके लिए नदी तथा नहर से पानी लिया जाता था अफगानिस्तान में शोतुघई से नहरों के कुछ सबूत मिले हैं।
  • जलाशय : कुछ स्थानों में कुएं से भी पानी लिया जाता होगा, धोलावीरा में जलाशय के प्रमाण मिले हैं शायद इनका प्रयोग भी कृषि में किया जाता होगा।

⊕ हड़प्पा सभ्यता में पशुपालन

हड़प्पा स्थलों से जानवरों की हड्डियां प्राप्त हुई है इससे पता लगता है कि यह लोग जानवरों को पाला करते थे।

  • पालतू  पशु :-   इस सभ्यता के लोग मवेशी, भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर पालन करते थे।
  • शिकार      :-     यहां मछली तथा पक्षियों और घड़ियाल की हड्डियां भी मिली है इससे यह अनुमान लगाया है कि हड़प्पाई निवासी जानवरों का शिकार करते  थे।

 

⊕ हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्रीय विस्तार

हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्र विस्तार त्रिकोण आकार में था।

  1. सुत्कागेंडोर     -         पाकिस्तान
  2. मांडा              -         कश्मीर
  3. आलमगीरपुर  -         उत्तर प्रदेश
  4. दैमाबाद         -          महाराष्ट्र

 

⊕ पुरास्थल : पुरास्थल ऐसे स्थल को कहते हैं जिस स्थल पर पुराने औजार, बर्तन (मृदभांड), इमारत तथा इनके अवशेष प्राप्त होते है इनका निर्माण यहां रहने वाले लोगों ने अपने लिए किया था जिन्हें छोड़ कर वह कहीं चले गए। हजारों वर्षों के बाद यह अवशेष ज़मीन के ऊपर या अंदर पाए जाते है। हड़प्पा संस्कृति के दो महत्वपूर्ण पुरास्थल हड़प्पा और मोहनजोदड़ो हैं।

⊕ मोहनजोदड़ो

 यहां बस्ती दो भागों में विभाजित थी।

  1. दुर्ग
  2. निचला शहर

1.  दुर्ग

  • यह छोटा  नगर था लेकिन ऊंचाई पर बनाया गया था।
  • दुर्ग ऊँचे इसलिए थे क्योंकि यहां पर बनी संरचना कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बनी थी, दुर्ग को चारों तरफ से दीवार से  घेरा  गया था।
  • यह दीवार इसे निचले शहर से अलग करती थीं।
  • दुर्ग पर बनी संरचनाओं का प्रयोग संभवतः विशिष्ट कार्यों, विशिष्ट सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए किया जाता था।

 

     दुर्ग की विशेषताए :-

  • मालगोदाम - मालगोदाम का निचला हिस्सा ईट से बना था इसके साक्ष्य मिले हैं इसका ऊपरी हिस्सा नष्ट हो गया जो संभवत लकड़ी का बना होगा।
  • विशाल स्नानागार - यह आंगन में बना एक आयताकार जलाशय है जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है। जलाशय तक जाने के लिए इसमें सीढ़ियां बनी थी। जलाशय से पानी एक बड़े नाले के द्वारा बहा दिया जाता था, यह एक अनोखी संरचना थी। संभवत इसका उपयोग अनुष्ठान के स्नान के लिए किया जाता होगा।

 

2. निचला शहर  

  • ऐसा माना जाता है कि निचले शहर में आवासीय भवन थे निचला शहर दुर्ग के मुकाबले अधिक बड़े क्षेत्र में बसा था।
  • निचले शहर को भी दीवार से घेरा गया था, यहां भी कई भवनों को ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया था यह चबूतरे नींव का काम करते थे।
  • इतने बड़े क्षेत्र में भवन निर्माण में बहुत बड़े पैमाने पर श्रम की आवश्यकता पड़ी होगी जिसे पूरा किया गया।

⊕ हड़प्पा सभ्यता में जल निकासी व्यवस्था :-

  • हड़प्पा सभ्यता की अनूठी विशेषताओं में जल निकास प्रणाली भी थी। हड़प्पा शहरों में नियोजन के साथ जल निकासी की व्यवस्था की गई थी।
  • सड़कों और गलियों को लगभग ग्रीड पद्धति में बनाया गया था। यह एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
  • हपड़प्पाई भवनों को देखकर ऐसा पता लगा है कि पहले यहां नालियों के साथ गलियां बनाई गई उसके बाद गलियों के अगल-बगल मकान बनाए गए।
  • प्रत्येक घर का गंदा पानी इन नालियों के जरिए बाहर चला जाता था। यह नालियां बाहर जाकर बड़े नालों से मिल जाती थी जिससे सारा पानी नगर के बाहर चला जाता था।

⊕ हड़प्पा सभ्यता में गृह स्थापत्य कला :-

  • मोहनजोदड़ो के निचले शहर में आवासीय भवन हैं, यहां के आवास में एक आंगन और उसके चारों और कमरे बने थे, आंगन खाना बनाने और कताई करने के काम आता था।
  • यहां एकान्तता ( प्राइवेसी ) का ध्यान रखा जाता था, भूमि तल ( ग्राउंड लेवल ) पर बनी दीवारों में खिड़कियां नहीं होती थीं।
  • मुख्य द्वार से कोई घर के अंदर या आंगन को नहीं देख सकता था, हर घर में अपना एक स्नानघर होता था जिसमें ईटों का फर्श होता था।
  • स्नानघर का पानी नाली के जरिए सड़क वाली नाली पर बहा दिया जाता था। कुछ घरों में छत पर जाने के लिए सीढ़ियां बनाई जाती थी, कई घरों में कुएं भी मिले हैं।
  • कुएँ एक ऐसे कमरे में बनाए जाते थे जिससे बाहर से आने वाले लोग भी पानी पी सके। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि मोहनजोदड़ो में कुएँ की संख्या लगभग 700 थी।

हड़प्पाई समाज में भिन्नता का अवलोकन

  • हर समाज में रहने वाले लोगों के बीच सामाजिक और आर्थिक भिन्नताएं होती हैं। इन भिन्नताओं को जानने के लिए इतिहासकार कई तरीकों का प्रयोग करते हैं। इन तरीकों में एक है - शवाधान का अध्ययन।

1. शवाधान –

  • अंतिम संस्कार विधि हड़प्पा सभ्यता में लोग अंतिम संस्कार व्यक्ति को दफनाकर करते थे। कई ऐसे साक्ष्य मिले हैं कि कई कब्र की बनावट एक दूसरे से भिन्न है।
  • कई कब्रों में ईंटों की चिनाई की गई थी, कई कब्रों में मिट्टी के बर्तन तथा आभूषण भी दफना दिए जाते थे शायद यह लोग पुनर्जन्म में विश्वास करते हो।
  • यह सोच कर दफनाते थे की मृत्यु के बाद इन वस्तुओं का उपयोग किया जाएगा।
  • पुरुष तथा महिला दोनों के कब्र से आभूषण मिले हैं।
  • कुछ कब्रों में तांबे के दर्पण , मनके से बने आभूषण आदि मिले है।
  • मिस्र के विशाल पिरामिड हड़प्पा सभ्यता के समकालीन थे.इनमे से कई पिरामिड राजकीय शवाधान थे। इनमें बड़ी मात्रा में धन-संपत्ति दफनाए जाती थी।
  • परन्तु हर जगह यह देखने को नहीं मिलता , ऐसा लगता है कि हड़प्पा के निवासी मृतकों के साथ बहुमूल्य वस्तु दफनाने में विश्वास नहीं करते थे।

2. विलासिता (luxuries)की वस्तुओं की खोज–

  • सामाजिक भिन्नता को पहचानने का एक तरीका है उपयोगी और विलास की वस्तुओं का अध्ययन, उपयोगी वस्तुएं वह होती है जो रोजमर्रा के उपयोग में लाई जाती है। जैसे - चक्किया ,मिट्टी के बर्तन, सुई आदि।
  • यह वस्तु है पत्थर या मिट्टी जैसी सामान्य पदार्थ से बनाई जाती हैं, सामान्य रूप से आसानी से उपलब्ध थीं।
  • ऐसी वस्तुएं जो आसानी से स्थानीय स्तर पर उपलब्ध ना हो ,जो महंगी तथा दुर्लभ हो ऐसी वस्तुओं को पुरातत्वविद कीमती मानते हैं जैसे - फयांस के पात्र।
  • फयांस के पात्र कीमती थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था क्योकि घिसी रेत + रंग + चिपचिपा पदार्थ के मिश्रण में पकाकर बनाया जाता था।
  • ऐसे महंगे दुर्लभ पदार्थ से बनी वस्तुएं मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी बड़ी बस्तियों में ही मिले है। छोटी बस्तियों में यह बहुत ही कम मिलती है। सोना भी दुर्लभता शायद आज के जैसे ही महंगा रहा होगा।

⊕ हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल

प्रमुख स्थल

वर्तमान स्थिति

लोथल

गुजरात

कालीबंगा

राजस्थान

नागेश्वर

गुजरात

धोलावीरा

गुजरात

चहुंद्दरो

पाकिस्तान

बालाकोट

पाकिस्तान

कोटदीजी

पाकिस्तान

राखीगढ़ी

हरियाणा

बनावली

हरियाणा

सुरकोटड़ा

गुजरात

रोपड़

पंजाब

आलमगीरपुर

उत्तर प्रदेश

मांडा

कश्मीर

सुटकागेंडोर

पाकिस्तान

 

⊕ शिल्प उत्पादन :-  शिल्प उत्पादन में शिल्प कार्य  जैसे -मनके बनाना, शंख की कटाई, धातु कार्य, मुहर निर्माण, बाट बनाना आता है ,चहुंदड़ो नामक स्थान जो वर्तमान में पाकिस्तान में है शिल्प उत्पादन का महत्वपूर्ण केंद्र था।

 

1. मनको का निर्माण –

मनको का निर्माण विभिन्न प्रकार के पदार्थों से किया जाता था :

  • कार्नेलियन - सुंदर लाल रंग का
  • जैस्पर , स्फटिक ,क्वार्टज ,सेलखड़ी
  • धातु - सोना , तांबा , कांसा
  • शंख , फयांस , पकी मिट्टी

मनके बनाने के तरीके :-

  • कुछ मनके दो या दो से अधिक पत्थरों को आपस में जोड़कर बनाए जाते थे, यह मनके चक्राकार बेलनाकार , गोलाकार , ढोलाकार , खंडित आदि आकार के हो सकते हैं, इन पर चित्रकारी करके इन्हें सजाया जाता था।
  • मनके बनाने में विभिन्न पदार्थों का इस्तेमाल होता था, इन्हीं के अनुसार इनको बनाने की तकनीक में भी बदलाव किया जाता था।
  • सेलखड़ी एक मुलायम पत्थर था जो आसानी से उपयोग में लाया जा सकता था। कुछ मनके ऐसे भी मिले हैं जिन्हें सेलखड़ी के चूर्ण को सांचे में ढाल कर बनाया गया था, इससे विभिन्न आकार के मनके बनाए जा सकते थे।
  • कार्नेलियन का लाल रंग, पीले रंग के कच्चे माल को आग में पकाने से प्राप्त होता था, मनको को बनाने में घिसाई, पॉलिश और इस में छेद करने की प्रक्रिया से यह पूरे होते थे।
  • लोथल , चहुंदडो , धौलावीरा से छेद करने के उपकरण मिले है।
  • नागेश्वर और बालाकोट दोनों बस्तियां समुद्र तट के समीप है, यहां शंख की वस्तु , चूड़ियां, करछिया तथा पच्चीकारी बनाई जाती थीं, यहां से निर्मित वस्तुओं को दूसरी बस्तियों तक ले जाया जाता था।

2. इतिहासकारों द्वारा उत्पादन केंद्रों की पहचान –

  • जिन स्थानों पर शिल्प उत्पादन कार्य होता था वहां कच्चा माल तथा त्यागी गई वस्तुओं का कूड़ा करकट मिला है, इससे इतिहासकार अनुमान लगा लेते थे कि इन स्थानों में शिल्प उत्पादन कार्य होता था।
  • पुरातत्वविद सामान्यतः पत्थर के टुकड़े , शंख , तांबा अयस्क जैसे कच्चे माल , शिल्पकारी के औजार , अपूर्ण वस्तुएं, त्याग दिया गया माल , कूड़ा करकट ढूंढते हैं। इनसे निर्माण स्थल तथा निर्माण कार्य की जानकारी प्राप्त होती है।
  • यदि वस्तुओं के निर्माण के लिए शंख तथा पत्थर को काटा जाता था तो इनके टुकड़े कूड़े के रूप में उत्पादन स्थल पर फेंक दिए जाते थे।
  • कभी-कभी बेकार टुकड़ों को छोटे आकार की वस्तुएं बनाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता था।
  • लेकिन जो अति सूक्ष्म पत्थर के टुकड़े होते थे उनका उपयोग नहीं हो पाता था जिस कारण उसे कार्यस्थल पर ही छोड़ दिया जाता था। यह टुकड़े पुरातत्विदों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।

3. शिल्प उत्पादन में कच्चे माल की प्राप्ति –

दो तरह से होती थी - 

1. स्थानीय स्तर पर उपलब्ध जैसे – मिट्टी।

2. दूर से लायी जाने वाली वस्तु जैसे - पत्थर, लकड़ी , तथा धातु ,जलोढ़ मैदान से बाहर से मंगाए जाते थे।

1. उपमहाद्वीप तथा उसके आगे से आने वाला माल –

  • हड़प्पावासी शिल्प उत्पादन के लिए कच्चा माल प्राप्त करने के कई तरीके अपनाते थे
  • नागेश्वर और बालाकोट से शंख मिल जाता था।
  • अफगानिस्तान में शोतुघई से नीले रंग का लाजवर्ड मणि मिलता था।
  • लोथल से कार्नेलियन, पत्थर मिलता था।
  • सेलखड़ी दक्षिणी राजस्थान और उत्तरी गुजरात से मिलता था।
  • राजस्थान के खेतरी से तांबा।
  • दक्षिण भारत से सोना।

2. सुदूर क्षेत्रों से संपर्क –

  • हाल के कुछ वर्षों में कुछ पुरातात्विक खोज से ऐसा ज्ञात हुआ है कि तांबा ओमान से भी लाया जाता था।
  • ओमान के तांबे तथा हड़प्पाई पुरावस्तु दोनों में निकल के अंश मिले हैं।
  • एक हड़प्पाई मर्तबान जिसके ऊपर काली मिट्टी की एक मोटी परत चढ़ी हुई थी ओमान से प्राप्त हुई है।
  • मेसोपोटामिया के लेख में मगान शब्द था, मगान संभवत ओमान के लिए प्रयुक्त नाम था।
  • लंबी दूरी के संपर्क में अन्य पुरातात्विक खोज में हड़प्पा की मुहर ,बाट तथा मनके मिले हैं।

⊕ हड़प्पा सभ्यता में व्यापार  के प्रमाण  :- 

1. मुहर और मुद्रांकन Seal and sealings

  • मुहर और मुद्रांकन का प्रयोग लंबी दूरी के संपर्क को आसान बनाने के लिए होता था।
  • उदाहरण - किसी सामान से भरे थैले को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जब भेजा जाता था तो उसकी सुरक्षा का ध्यान रखा जाता था।
  • थैले के मुख को रस्सी से बांध दिया जाता था , उसके मुख पर थोड़ी सी गीली मिट्टी को जमा कर उस पर मुहर से दबाया जाता था जिससे उस गीली मिट्टी पर मुहर की छाप पड़ जाती थी।
  • थैला अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने से पहले उस पर बने मुहर के निशान को कोई नुकसान नहीं पहुंचा तो इसका अर्थ है थैले के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है।
  • मुद्रांकन से प्रेषक की पहचान का भी पता लगता है।

2. हड़प्पाई लिपि

  • हड़प्पाई लिपि चित्रात्मक लिपि थी।
  • इस लिपि में चिहनों की संख्या लगभग 375 से 400 के बीच है।
  • यह लिपि दाएं से बाएं और लिखी जाती थी।
  • हड़प्पा लिपि एक रहस्यमई लिपि इसलिए कहलाती है क्योंकि इसे आज तक पढ़ा नहीं जा सका।

3. बाट - Weight

  • बाट चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे।
  • छोटे बड़ों का प्रयोग आभूषण और मनको को तोलने के लिए किया जाता था।
  • धातु से बने तराजू के पलडे भी मिले हैं।
  • यह बाट देखने में बिल्कुल साधारण होते थे।
  • इनमें किसी प्रकार का कोई निशान नहीं बनाया जाता था।

⊕ हड़प्पा संस्कृति में शासन :-  "हड़प्पा सभ्यता में किस प्रकार के शासन था?" इसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। संभवत हड़प्पाई समाज में जिसका भी शासन रहा होगा उन्होंने जटिल फैसले लिए और उसको कार्यान्वित भी किया,  क्योंकि हड़प्पा की पूरावस्तुओं में एकरूपता दिखाई देती है। उदाहरण - मुहर , बाट , मनके , ईंट अलग अलग स्थान से मिली है लेकिन सब में एकरूपता दिखी है, संभवत ईट का उत्पादन केवल एक केंद्र पर नहीं होता था। हड़प्पा सभ्यता एक विशाल क्षेत्र में फैली सभ्यता थी। फिर भी जम्मू , गुजरात , पाकिस्तान अधिकतर स्थानों पर एक ही आकार की ईट प्राप्त हुई है।

हड़प्पाई शासक को लेकर पुरातत्वविदों में मतभेद

1.प्रासाद तथा शासक

  • मोहनजोदड़ो से एक विशाल भवन मिला है जिसे प्रासाद की संज्ञा दी गई है लेकिन यहां से कोई भव्य वस्तु नहीं मिली। एक पत्थर की मूर्ति को पुरोहित राजा का नाम दिया गया है। लेकिन इसके भी विश्वसनीय प्रमाण नहीं मिले हैं।

2. हड़प्पा समाज में प्रशासन को ले कर तीन मत है :-

  1. कुछ पुरातत्वविद कहते हैं कि हड़प्पा समाज में शासक नहीं थे, सभी की स्थिति समान थी।
  2. कुछ पुरातत्वविद कहते हैं की हड़प्पा सभ्यता में कोई एक शासक नहीं थे बल्कि यहां एक से अधिक शासक थे, जैसे - मोहनजोदड़ो , हड़प्पा आदि में अलग-अलग राजा होते थे।
  3. कुछ इतिहासकार यह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था क्योंकि हड़प्पा सभ्यता के विशाल क्षेत्रफल होने के बाद भी विभिन्न स्थलों से एक जैसी :
  • पुरावस्तुओं का मिलना।
  • नियोजित बस्ती के साक्ष्य।
  • ईटों के समान आकार आदि।

 

⊕ हड़प्पा सभ्यता के अंत को लेकर इतिहासकारों  के अनेक मत है। 

  • सिंधु नदी  में बाढ़ आना।
  • सिंधु नदी का मार्ग बदलना।
  • भूकंप के कारण।
  • जलवायु परिवर्तन।
  • आर्यों का आक्रमण।
  • वनों की कटाई।

 प्रमुख  पुरातत्वविद और उनका हड़प्पा सभ्यता में योगदान 

1. कनिंघम 

  • कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के  पहले  डायरेक्टर जनरल थे ।
  • अलेक्जेंडर कनिंघम को भारतीय पुरातत्व का जनक भी कहा जाता है|
  • कनिंघम ने 19वीं शताब्दी के मध्य में पुरातात्विक खनन आरंभ किया।
  • यह लिखित स्रोतों का प्रयोग अधिक पसंद करते थे।

कनिंघम  का भ्रम!

  • अलेक्जेंडर कनिंघम को एक अंग्रेज अधिकारी ने जब हड़प्पाई मुहर दिखाई तो कनिंघम यह नहीं समझ पाए कि वह मुहर कितनी पुरानी थी। कनिंघम ने उस मुहर को उस कालखंड से जोड़कर बताया जिसके बारे में उन्हें जानकारी थी। वे मुहर के  महत्व को समझ ही नहीं पाए कि वह मुहर कितनी प्राचीन थी। कनिंघम ने यह सोचा कि यह मुहर भारतीय इतिहास का प्रारंभ गंगा घाटी में पनपे पहले शहरों से संबंधित है जबकि यह मुहर गंगा घाटी के शहरों से भी पहले की थी।

उत्खनन तकनीक :- 

  • सामान्य तौर पर सबसे नीचे के स्तर पर मिली वस्तुएं प्राचीनतम मानी जाती हैं और सबसे ऊपरी स्तर पर मिली वस्तुएं नवीनतम मानी जाती है।
  • इसी के आधार पर पुरावस्तुओं का कालखंड निर्धारित किया जा सकता है।

 

2. जॉन मार्शल

  • जॉन मार्शल को भी कनिंघम की तरह आकर्षक खोज में दिलचस्पी थी यह रोजमर्रा की ज़िंदगी के बारे में जानने में उत्सुक थे। जॉन मार्शल पुरास्थल के स्तर विन्यास को पूरी तरह अनदेखा करते थे । जॉन मार्शल का मानना था यदि पूरे टीले में समान परिणाम वाली नियमित क्षैतिज इकाइयों के साथ-साथ उत्खनन किया जाए।

3. आर.इ.ऍम व्हीलर R.E.M. Wheeler

  • व्हीलर 1944 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल बने थे। इन्होंने उत्खनन की समस्या का निदान किया। इन्होंने एक समान क्षैतिज इकाइयों के आधार पर खुदाई की बजाय टीले के स्तर विन्यास का अनुसरण करना को अधिक महत्व दिया।

हड़प्पा सभ्यता में धार्मिक मान्यता :- हड़प्पा सभ्यता में धर्म के बारे में जानकारी कुछ स्रोतों पर आधारित है जिसका को स्पष्ट प्रमाण नहीं है, तथ्यों पर आधारित है जैसे 

  • आभूषण से लदी हुई नारी की मूर्ति मिली है, इन्हें मात्रदेवी की संज्ञा दी गई है।
  • विशाल स्नानागार तथा कालीबंगन और लोथल से मिली, वेदियाँ तथा संरचनाओं को अनुष्ठानिक महत्व दिया गया।
  • कुछ मुहरों में अनुष्ठान के दृश्य बने हैं, कुछ मोहरों पर पेड़ पौधे उत्कीर्ण थे, ऐसा माना जाता है कि हड़प्पा के लोग प्रकृति की पूजा करते थे।
  • कुछ मुहर में एक व्यक्ति योगी की मुद्रा में बैठा दिखाया गया है, कभी-कभी इन्हें जानवरों से घिरा दर्शाया गया। संभवत यह शिव अर्थात हिंदू धर्म के प्रमुख देवता पशुपतिनाथ रहे होंगे। पत्थर के शंकु आकार वस्तुओं को शिवलिंग के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

 

 

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