Class 12th Physical education chapter- 8th Term-2 ( शरीर क्रिया विज्ञान एवं खेलों में चोटें ) Important question

Class 12th Physical education chapter- 8th Term-2 ( शरीर क्रिया विज्ञान एवं खेलों में चोटें ) Important question

1- शक्ति को निर्धारित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारकों का वर्णन कीजिए ?

किसी भी व्यक्ति के शरीर में शक्ति को निर्धारित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारक निम्नलिखित हैं :-

( कारक )

  • body weight (भार) 
  • मांसपेशियों की बनावट 
  • मांसपेशियों का size  (आकार) 
  • गामक इकाई 

i)  body weight (भार) 

  • जिन लोगों के शरीर का भार ज्यादा होता है उन लोगो में कम भार वाले लोगों की तुलना में अधिक शक्ति पाई जाती है और ज्यादा भार वाले लोग अधिक शक्तिशाली होते हैं जैसे : एक कुश्ती का खिलाड़ी 

ii) मांसपेशियों की बनावट 

  • हमारे शरीर की मांसपेशियां श्वेत (white)  तथा लाल fibre  से मिलकर बनी होती है, जिस व्यक्ति की मांसपेशियों में white  fibre  ज्यादा होता है वह व्यक्ति लाल fibre  वाले व्यक्ति की तुलना में अधिक शक्तिशाली होता है |

iii) मांसपेशियों का size  (आकार) 

  • जिस व्यक्ति की मांसपेशियां size  में बड़ी होती हैं वः व्यक्ति ज्यादा शक्तिशाली होता है, महिलाओं की मांसपेशियां पुरुषों से छोटी होती हैं इसलिए पुरुष महिलाओं से ज्यादा शक्तिशाली होते हैं |

iv) गामक इकाई 

  • हमारी मांसपेशियां बहुत सारी गामक इकाईयों से मिलकर बनती हैं और हमारी शक्ति इन्ही गामक इकाईयों पर निर्भर करती है जिस व्यक्ति में गामक इकाईयों की संख्या ज्यादा होती है वह व्यक्ति उतना ही शक्तिशाली होता है | 

2- सहन क्षमता की प्रभावित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारक बताइए- ?

1. एरोबिक क्षमता 

  • ऑक्सीजन लेने तथा ग्रहण करना (Oxygen intake)
  • ऑक्सीजन परिवहन (Oxygen Transport)
  • ऑक्सीजन अंतः ग्रहण (Oxygen Uptake)
  • ऊर्जा भड़ार (Energy Reserves)

2. एनारोबिक क्षमता 

  • ATP और CP का शरीर में भडारण
  • बफ्फर क्षमता माँसपेशियों में अम्ल संचय को
  • प्रभावहीन बनाना।

लैक्टिक अम्ल की सहनशीलता

  • Vo, Max यह ऑक्सीजन की वह मात्र होती है जो
  • सक्रिय मांसपेशियाँ व्यायाम के दौरान एक मिनट में
  • प्रयोग में लाती है।

3-चक को निर्धारित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारकों का वर्णन कीजिए ?

किसी भी व्यक्ति के शरीर में लचक को निर्धारित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारक निम्नलिखित हैं :-

( कारक )

  1. आयु और लिंग 
  2. चोट (injury)
  3. अनुकूल वातावरण (environment)
  4. मांसपेशियों की शक्ति 
  5. व्यायाम 

i)  आयु और लिंग 

  • किसी भी व्यक्ति की आयु (age) उसके शरीर की लचक को निर्धारित करती है क्योंकि युवा लोगों के शरीर में लचक ज्यादा पाई जाती है और उम्र बढ़ने के साथ साथ शरीर में लचक कम होती जाती है , महिलाओं में उसी उम्र के पुरुषों की तुलना में अधिक लचक पाई जाती है |

ii) चोट (injury)

  • अगर किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की चोट लगी हो , जिसके कारण उसकी मांसपेशियों को हानि पहुंची हो तो उसके कारण उस व्यक्ति के शरीर में लचक कम हो जाती है| 

iii) अनुकूल वातावरण (environment)

  • ठंडी जगहों में रहने से व्यक्ति के शरीर में लचक कम हो जाती है और गर्म स्थानों पर रहने से तथा खेलने से व्यक्ति के शरीर में लचक बढ़ जाती है , इसलिए कोई भी खेल खेलने से पहले warm up  करना जरुरी होता है |

iv) मांसपेशियों की शक्ति 

  • किसी भी व्यक्ति की मांसपेशियां अगर कमज़ोर होती हैं तो उस व्यक्ति में लचक कम होती है तथा जिन लोगों की मांसपेशियों में शक्ति अधिक होती हैं उन लोगों में लचक भी ज्यादा होती है |

v) व्यायाम 

  • प्रतिदिन व्यायाम करने से हमारे शरीर की लचक बढ़ती है अगर कोई व्यक्ति नियमित रूप से व्यायाम नहीं करता तो उसकी मांसपेशियां छोटी होने लगती हैं , इसलिए व्यक्ति को लचक को बढ़ने के लिए खिंचाव (stretching)   वाले व्यायाम करने चाहिए |

4- गति को निर्धारित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारकों का वर्णन कीजिए ?

किसी भी व्यक्ति के शरीर में गति को निर्धारित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारक निम्नलिखित हैं :-

( कारक )

  1. लचक 
  2. विस्फोटक शक्ति 
  3. स्नायु संस्थान 
  4. ऊर्जा 
  5. मांसपेशियों की बनावट 

i) लचक 

  • किसी भी व्यक्ति को अपने शरीर की गति (speed)  को बढ़ाने के लिए लचक को बढ़ाना बहुत जरूरी है क्योंकि लचक के द्वारा ही हमारी गति (speed)  बढ़ती है |

ii) विस्फोटक शक्ति  

  • किसी भी व्यक्ति को तेज़ शारीरिक activity  को करने के लिए विस्फोटक शक्ति की आवश्यकता होती है अगर किसी व्यक्ति के पास विस्फोटक शक्ति न हो तो वह किसी भी activity  को तेज़ी से नहीं कर सकता |

iii) स्नायु संस्थान  

  • स्नायु संस्थान (nervous system)  हमारे शरीर के अंगों की गति को निर्धारित करता है और हम training  के द्वारा स्नायु संसथान की गतिशीलता को बढ़ा सकते हैं कोई भी व्यक्ति जब कोई तेज़ी से activity  करता है तो उसकी मांसपेशियां तेज़ी से संकुचित होती है तथा शिथिल होती है इसी को स्नायु संस्थान की गतिशीलता कहा जाता है |

iv) ऊर्जा (Energy) 

  • किसी भी व्यक्ति को तेज़ गति (speed)  वाले व्यायाम करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है और यह ऊर्जा हमे मांसपेशियों में फास्फोरस तथा क्रिएटिन फास्फेट से मिलती है | अगर हम training  करें तो हम यह ऊर्जा बढ़ा सकते हैं | 

v) मांसपेशियों की बनावट 

  • हमारी मांसपेशियों की बनावट भी हमारे शरीर की गति को निर्धारित करती है , जिस व्यक्ति की मांसपेशियों में white  fibre  ज्यादा होता है तो वह मांसपेशियां जल्दी से सिकुड़ पाती हैं जिसके कारण उनसे हमें ज्यादा गति मिल पाती हैं तथा लाल fibre  वाली मांसपेशियां देरी से सिकुड़ती हैं |

5- कॉर्डियोश्वसन संस्थान पर व्यायामों से होने वाले पाँच प्रभावों को विस्तार पूर्वक बताइये ?

हृदय गति का बढ़ना

  • (Increase Heart Rate) जब कोई व्यक्ति व्यायाम करना प्रारम्भ करता है तो व्यायाम की प्रबलता के अनुरूप ही हृदय की गति बढ़ जाती है।

स्ट्रोक आयतन में वृद्वि-

  •  व्यायाम की तीव्रता तथा अवधि के बढ़ने के अनुरूप ही के प्रत्येक धड़कन पर हृदय के बाएँ निलय से निकलने वाले रक्त की मात्र (Stroke Volume) में वृद्धि होती है।

रक्त का आयतन:-

  •  व्यायाम की तीव्रता तथा अवधि के अनुरूप ही हृदय द्वारा प्रति मिनट पम्प किए गए रक्त के आयतन (Cardiac Volume) में भी वृद्धि होती है।

ऊतकों को रक्त की आपूर्ति बढ़ाना (More Blood Supply to Tissues)

  • ऑक्सीजन की तत्काल आवश्यकता होती है तो हृदयवाहिनी संस्थान उन ऊतकों में रक्त के बहाव को बढ़ा देती है व जिनमें कम आवश्यकता होती है उनमें कम कर देता है।
  • रक्त चाप में वृद्धि (Blood Pressure Increase) रक्त की आपूर्ति के कारण, रक्तचाप में वृद्धि होती है।

प्राणाधार वायु की क्षमता में वृद्धि (Increase in vitalair capacity)

  •  व्यायाम करने से व्यक्ति में आक्सीजन (वायु की क्षमता में लगभग 3500 सीसी से बढ़कर 5500 सीसी हो जाती है।

सहन क्षमता में वृद्वि (Increase in endurance) 

  • यदि लंबी अवधि तक व्यायाम किया जाए तो व्यक्ति की सहन शक्ति में वृद्धि हो जाती है, कोई भी कार्य बिना थके लंबे समय तक किया जा सकता है।

6- नियमित व्यायाम करने से माँयपेशियों पर पड़ने वाले प्रभावों की सूची बनाइये। व किन्हीं चार को विस्तार से बताओ ?

मांसपेशीय अतिवृद्वि (Muscle Hypertrophy)-

  • लगातार व्यायाम करने से पेशीय आकार में वृद्धि होती है।

कोशिका नलिकाओं का निर्माण (Capillarisation)

  • प्रशिक्षण के कारण पेशियों में कोशिका नलिकाओं की संख्या में वृद्वि हो जाती है। जिसके कारण पेशियों का रंग गहरा लाल हो जाता है।

अतिरिक्त वसा पर नियंत्रण-  

  • नियमित व्यायाम करने अतिरिक्त वसा पर नियंत्रण होता
  • है। व्यायाम कैलोरीज घटाने में मदद करते है। जो वसा के रूप में जमा हो जाती है।

थकान में देरी (Delay fatigue)- 

  • नियमित व्यायाम थकान में देरी करते है। यह
  • थकान कार्बन डाइ आक्साइड, लैक्तिक एसिड और फास्फेट एसिड के कारण होती है।

आसन (Posture)

  • नियमित व्यायाम आसन तथा आसन संबंधी विकृतयों में सुधार करता है

शक्ति तथा गति (Strength and speed )

  • नियमित व्यायाम शक्ति तथा गति प्रदान करने वाली कोशिकाओं में सुधार करता है।

7- अस्थि भंग के प्रकार लिखें तथा किन्हीं तीन के बारे में संक्षेप में लिखें।

अस्थियों की चोटों के विभिन्न प्रकार निम्न हैं-

1. साधारण अस्थिभंग (Simple fracture)
2. मिश्रित अस्थिभंग (Compound Fracture)
3- जटिल अस्थिभंग (Complicated Fracture)
4- कच्ची अस्थिभंग (Green stick Fracture)
5- बहुखंड अस्थिभंग (Comminuted Fracture)
6- पच्चड़ी अस्थिभंग (Impacted Fracture)
7- दबाव अस्थियभंग (Stress fractuse)

1- साधारण अस्थिभंग

जब किसी भी प्रकार के घाव के बिना अस्थिभंग हो जाती है,उसे साधारण अस्थिभंग कहा जाता है।

2- मिश्रित अस्थिभंग

विवृत अस्थिभंग वह अस्थिभंग होता है, जिसमें अस्थि के टूटने के साथ-साथ त्वचा और मांसपेशियों को भी हानि या नुकसान होता है। सामान्यतया, इस प्रकार के अस्थिभंग में टूटी हुई अस्थि त्वचा को फाड़कर बाहर आ जाती है।

3- जटिल अस्थिभंग

जटिल अस्थिभंग में टूटी हुई अस्थि आंतरिक अंग या अंगों को भी हानि पहुँचा देती है। ये अंग ऊतक, तन्तु या तन्त्रिका या फिर धमनी भी हो सकती है। इस प्रकार के अस्थिभंग प्रायः बहुत जटिल व खतरनाक होते हैं। इस प्रकार के अस्थिभंग ऊँची-कूद तथा बाँस कूद वाले खिलाड़ियों को हो सकते है।

8- जोड़ों के विस्थापन से आप क्या समझते हैं ? किन्ही दो प्रकार के विस्थापनों का वर्णन करिए |

जोड़ों का विस्थापन एक मुख्य चोट है | यह जुडी हुई हड्डियों के जोड़ की सतहों का विस्थापन है |

निचले जबड़े का विस्थापन 

  • यह तब हो जाता है, जब ठोड़ी किसी वस्तु से टकरा जाए |
  • ज्यादा मुह खोलने से भी निचले जबड़े का विस्थापन हो सकता है |

कंधे के जोड़ का विस्थापन 

  • कंधे के जोड़ का विस्थापन अचानक झटके या कठोर सतह पर गिरने से हो सकता है |

9- कोमल ऊतक की चोटों का वर्गीकरण कीजिए तथा उनके कारणों और निवारकों का वर्णन कीजिए ?

खेलों में कोमल ऊतक मांसपेशिय तंतु , त्वचा , रक्त वाहिनी आदि पर लगने वाली चोटों को कोमल ऊतक की चोटें कहते हैं |

( कोमल ऊतक की चोटें )

  1. रगड़ 
  2. गुमचोट 
  3. चीरा 
  4. मोच 
  5. खिंचाव 

रगड़ 

  • शारीरिक क्रिया करते समय जब त्वचा किसी खुरदुरी सतह के संपर्क में आजाए जिसके कारण त्वचा की ऊपरी सतह पर घर्षण हो जाता है |
  • जिसे रगड़ कहा जाता है |

गुमचोट 

  • किसी खेल उपकरण से प्रत्यक्ष रूप से टकराने के कारण ये चोट लग सकती है | मुक्केबाजी और कुश्ती आदि में यह चोट लगती रहती है | 

चीरा  

  • तीखे कटाव वाली चोटें  
  • जो चाक़ू या टूटे शीशे से लग सकती हैं | 

मोच 

  • अस्थि रज्जु में खिंचाव व फट जाने के कारण मोच लग जाती है | 
  • अस्थि रज्जु वे उत्तक होते जो हड्डियों को जोड़ों पर आपस में जोड़ें रखते हैं | 

खिंचाव 

  • कई बार खिंचाव के कारण पूरी मांसपेशी को नुकसान पहुँच सकता है |
  • खिंचाव के कारण  असहनीय दर्द होता है |

10- खेल चोटों से किस प्रकार बचा जा सकता है ?

  • खिलाड़ियों का जीवन बहुमूल्य होता है। खिलाड़ी को कई बार इस प्रकार की चोट लग जाती है कि वह दोबारा कभी नहीं खेल सकता। उसका खेल-जीवन समाप्त हो जाता है। हालांकि बहुत-सी खेल-चोटों का उपचार हो सकता है, लेकिन फिर भी यह एक कटु सत्य है कि “इलाज से परहेज बेहतर है" (Prevention is better then cure) इसीलिए एथलीट्स या खिलाड़ी, खेल-चोटों के खतरों को कम या समाप्त करना चाहते हैं, विशेषकर जब वे प्रशिक्षण या खेल प्रतियोगिता में भाग ले रहे हों। खेल चोंट के कारण कई बार एक खिलाड़ी जीवन भर खेल में भाग नहीं ले पाता।

1. उचित वार्मिंग-अप (Proper Warming-up):

  •  किसी भी खेल प्रतियोगिता या खेल प्रशिक्षण आरंभ करने से पहले उचित ढंग से वार्मिंग अप करना अत्यंत आवश्यक है। वार्मिंग अप से खेल-चोटों के खतरों को काफी सीमा तक कम किया जा सकता है, क्योंकि उचित वार्मिंग अप करने के बाद हमारे शरीर की मांसपेशियां अर्धतनाव की स्थिति में आ जाती है। जो शरीर को शारीरिक क्रिया करने के लिए तैयार कर लेती है।

2. उचित अनुकूलन (Proper conditioning): 

  • बहुत-सी चोटें शरीर की कमजोर मांसपेशियों के कारण लग जाती है, जो आपके खेल में माँग की पूर्ति के लिए तैयार नहीं होती, इसलिए उचित मांसपेशियाँ शक्ति के लिए शरीर का उचित अनुकूलन आवश्यक है। भार व परिधि प्रशिक्षण विधियां उचित अनुकूलन की महत्वपूर्ण विधियां है।

3. संतुलित आहार (Balanced Diet): 

  • कमजोर अस्थियाँ खेल में चोटों का कारण बन जाती है। अतः संतुलित आहार कुछ सीमा तक खेल-चोटों से बचाव करने में सहायक होता है।

4. सुरक्षात्मक उपकरणों का प्रयोग (Use of Protective Equipments):

  • खेल चोटों से बचाव करने का यह एक आसान तथा सबसे अच्छा तरीका है। केवल इसी कारण खेल-कूद के क्षेत्र में सुरक्षात्मक उपकरणों का प्रयोग आवश्यक है। ये सुरक्षात्मक उपकरण चोटों के लगने से खिलाड़ियों को सुरक्षा प्रदान करते है। इनकी भूमिका को और अच्छा बनाने हेतु सुरक्षात्मक उपकरणों की गुणवत्ता पर विशेष बल दिया जाना चाहिए।

5. खेल नियमों का पालन करना (Obeying the sports Rules): 

  • खेल अभ्यास या प्रतियोगिता के दौरान यदि खिलाड़ी खेल के नियमों का उचित ढंग से पालन करता है तो कुछ हद तक खेल चोटों से बचाव किया जा सकता है। यदि वे खेल के नियमों का उचित ढंग से पालन नहीं करते है तो उन्हें खेलों में चोट लगने का खतरा अधिक होता है।

11- प्राथमिक चिकित्सा किसे कहते है इस का लक्ष्य लिखों?

  • प्राथमिक चिकित्सा (पितेज-पक) ऐसी चिक्तिसा है जो रोगी या घायल व्यक्ति को आपातलकीन व दुर्घटना के समय डॉक्टर के आने से पहले, बीमार रोगी या घायल को दर्द से आराम देने के लिए दी जाती है। 

प्राथमिक चिकित्सा का लक्ष्य

1. जान बचाना (to Prevent life)

2. बीमारी और दर्द से आराम दिलवाना (To alleviate pain & suffering)

3. घायल और बीमार व्यक्ति को संभालने की कोशिश करना (To prevent the condition from worsening of sick or accident person.)

4. पुनः शक्ति प्राप्ति की कोशिश करना (To promote Recoveny)

5. तेजी से चिकित्सा उपलब्ध करवाना (To provide medical aids)

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