कवितावाली ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Class 12th kavitavali- Easy Explained
गोस्वामी तुलसीदास
-प्रथम कवित्त
-द्वितीय कवित्त
-सवैया
सन्दर्भ
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह-भाग -2’ में संकलित गोस्वामी तुलसीदास जी की कृति ‘कवितावली’ के ‘कलयुग वर्णन’ प्रसंग से लिया गया है |
प्रसंग
किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी, भाट,
चाकर, चपल नट, चोर, चार चेटकी।
पेटको
पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरि,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी।।
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही को
बेचत बेटा-बेटकी।
'तुलसी' बुझाइ एक राम घनस्याम ही
आगि बड़वागितें बड़ी है आगि पेटकी।।
व्याख्या
इस काव्यांश में लोगों पर कलयुग के प्रभाव का तुलसीदास विस्तार से वर्णन करते हैं ।
तुलसीदास कहते हैं की कलयुग के प्रभाव में आकर लोग ऐसे हो गए हैं की श्रमजीवी, किसान, व्यापारी, भिखारी, भाट, सेवक, चंचल नट, दूत और बाजीगर (करतब दिखने वाले) सब पेट की भूख शांत करने के लिए अनेक उपाय रचते हैं |
सब लोग पेट के लिए ही ऊंचे-नीचे कर्म तथा धर्म अधर्म करते हैं , लेकिन यह तो केवल राम-रूप घनश्याम द्वारा ही बुझाई जा सकती है |
वास्तव में, यहाँ तुलसीदास ने अपने समय की विषम आर्थिक परिस्थितियों का वर्णन किया है |
आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण लोग कोई भी बुरा से बुरा काम करने के लिए विवश हैं |
लोगों की यह विवशता गरीबी तथा बेकारी के कारण हो सकती है |
इस पेट की आग को बुझाने क लिए लोग अपने बेटे-बेटी तक को बेचने के लिए मजबूर होते हैं |
पेट की यह आग मनुष्य को धर्म –अधर्म करने पर मजबूर कर देती है |
तुलसीदास पर श्रीराम की कृपा है, इसलिए उन्हें भूखा नहीं रहना पड़ा |
प्रसंग
खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।
जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सों 'कहाँ जाई, का करी?'
बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे सबै पै, राम! रावरें कृपा करी।
दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु!
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी॥
व्याख्या
इस काव्यांश में तुलसीदास ने अपने युग की लाचारी , भुखमरी , बेरोजगारी का चित्रण किया है |
तुलसीदास अपने आराध्य श्री राम से उसे दूर करने की प्रार्थना करते हैं |
तुलसीदास अपने समय की भयंकर दुर्दशा कर वर्णन करते हुए कहते हैं – ऐसा बुरा समय आ गया है की किसान के पास खेती करने के साधन नहीं है |
भिखारी को भीख और दान नहीं मिलता है | बनियों का व्यापार मंदा है |
नौकरी के लिए लोग दर दर भटक रहे हैं | उन्हें काम नहीं मिल रहा |
तुलसी भगवान राम पर आस्था प्रकट करते हुए कहते है – हे राम ! वेदों और पुराणों में भी यही लिखा है |
आज के युग को देखकर भी मैं कह सकता हूँ की ऐसे संकट के समय में आप ही कृपा करते हैं तो संकट टलता है |
हे दीनदयालु ! आज दरिद्रता रुपी रावण ने सारी दुनिया को अपने चंगुल में फंसा लिया है |
चारों ओर पाप की आग जल रही है |
उसे देख कर सब ओर त्राहि त्राहि मच गई है |
सब हाय-हाय कर रहे हैं |
प्रसंग
धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ।
काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।
तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।
माँगि कै खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबको दोऊ।
व्याख्या
इस सवैये में गोस्वामी तुलसीदास ने भक्ति की रचनात्मक भूमिका को स्पष्ट करते हुए , राम की भक्ति के बल के भरोसे जाति-पांति एवं धर्म के आडम्बरों का खंडन करने का साहस दिखाया है |
तुलसीदास दुनिया को साफ़ साफ़ कहते हैं – चाहे मुझे मक्कार कहे, सन्यासी कहे, चाहे राजपूत वंश का कहे – मुझे इन नामों से कोई फर्क नहीं पड़ता | मुझे किसी की बेटी से अपना अपने बेटे का ब्याह तो करना नहीं है जिससे किसी की जाती में बिगाड़ पैदा हो |
मैं तो पूरे संसार में राम के दास के रूप में प्रसिद्ध हूँ | इसलिए जिसे भी मेरे बारे में जो कुछ कहना है बड़े शौक से वह कहे |
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता | मैं तो मांगकर खाता हूँ, मस्जिद में जाकर सो जाता हूँ | मुझे दुनिया से न कुछ लेना है न कुछ देना है | मैं अपनी ही धुन में मस्त हूँ |
विशेष
अवधि भाषा का सुन्दर प्रयोग किया गया है |
कवित्त छंद का सुन्दर प्रयोग किया गया है |
सवैया गीतिमय छंद हैं, इसलिए काव्यांश में गेयता का भी गुण है |
अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए कवि ने ‘लेना एक न देना दो’ मुहावरे का बहुत अच्छे से प्रयोग किया है |
अनुप्रास की छटा अत्यंत सहज है |
तुलसी की भक्ति में दास्य भावना है |
इस कवित्त को पढ़कर स्पष्ट होता है की बेरोजगारी कोई आज की समस्या नहीं है | यह युग – युग की समस्या है |
तुलसी के लिए श्रीराम दीनबंधु हैं, कृपालु हैं तथा संसार के स्वामी हैं |
तुलसी को अपने रामभक्त होने पर गर्व है