गजल ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Class 12th -gazal Easy Explained

सन्दर्भ
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह-भाग -2’ में संकलित प्रसिद्ध शायर फ़िराक गोरखपुरी की ‘ग़ज़ल’ शीर्षक से लिया गया है |
प्रसंग
नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोले हैं
या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोले हैं।
व्याख्या
इस शेर में फ़िराक बताते हैं की कलियों की नई नई पंखुड़ियाँ खिलने लगी है तथा उनमे से रंग और सुगंध झरने लगे हैं |
नए रस से भरी कलियों की कोमल पंखुड़ियाँ अपनी गाँठे खोल रही हैं | उनसे जो सुगंध फ़ैल रही है , उसे देखकर यों लगता है मानो रंग और सुगंध दोनों आकाश में उड़ जाने के लिए अपने पंख फड़फड़ा रहे हैं |
आशय यह है की वातावरण में फूलों और कलियों की मनमोहक सुगंध फैली हुई है |
प्रसंग
तारे आँखें झपकावें हैं ज़र्रा-ज़र्रा सोये हैं
तुम भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं
व्याख्या
फ़िराक अपनी गज़ल के इन शेरों से अपनी प्रिय को याद करते हुए उसके वियोग से उत्पन्न मर्म को बयाँ करते हैं |
कवि कहता है ढलती हुई रात है | तारे भी आँखे झपका कर मानो सोना चाह रहे हैं | प्रकृति का कण-कण मौन है , मानो सो रहा है |
मुझे यह सन्नाटा मेरे प्रिय की याद दिला रहा है | मानो सन्नाटा मेरे साथ बोल रहा है | हे मित्रो ! क्या इस सन्नाटे की बात तुम सुन पा रहे हो ? (यह सन्नाटा उसी को कुछ कहता है जिसके सीने में प्रेम की वेदना होती है
प्रसंग
हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं।
व्याख्या
फ़िराक अपनी गज़ल के इन शेरों से अपनी प्रिय को याद करते हुए उसके वियोग से उत्पन्न मर्म को बयाँ करते हैं |
कवि कहता है – मैं और मेरी किस्मत दोनों एक जैसे हैं | दोनों अभाव और असफलता के कारण हमेशा रोते रहते हैं | दोनों को मानो एक ही काम मिला है – रोना | मेर किस्मत मेरी हालत देखकर मुझ पर रोती है | मैं अपनी बुरी किस्मत को देखकर रोता हूँ | मेरे जीवन में असफलता और निराशा के सिवा और कुछ नहीं है |
प्रसंग
जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं
व्याख्या
फ़िराक अपनी गज़ल के इन शेरों से अपनी प्रिय को याद करते हुए उसके वियोग से उत्पन्न मर्म को बयाँ करते हैं |
कवि कहता है – जो भी लोग मेरे प्रेम की निंदा कर के मुझे बदनाम कर रहे हैं, काश वे इतना समझ पाते की वे मेरी नहीं, अपनी पोल खोल रहे हैं |
मेरी निंदा करके उनकी ईर्ष्या प्रकट हो रही है |
प्रसंग
ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना) भी हो ले हैं
व्याख्या
फ़िराक अपनी गज़ल के इन शेरों से अपनी प्रिय को याद करते हुए उसके वियोग से उत्पन्न मर्म को बयाँ करते हैं |
कवि कहता है – हे प्रिय ! हम (मैं) पूरे होशो-हवास के साथ तुम्हारे प्रेम की कीमत दे रहे हैं | जो भी प्रेम में डूबता है, वह दीवाना हो जाता है |
आशय यह है की कवि पूरे विवेक के साथ अपनी प्रिया के प्रेम में दीवाना हुआ है |
प्रसंग
तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं
व्याख्या
फ़िराक अपनी गज़ल के इन शेरों से अपनी प्रिय को याद करते हुए उसके वियोग से उत्पन्न मर्म को बयाँ करते हैं |
प्रेमी कवि अपनी प्रेमिका को कहता है – हे प्रिय ! मेरे मन में तेरे दुखों के प्रति पूरा सम्मान है | मुझे तेरा पूरा लिहाज़ है, तेरा फ़िक्र है, चिंता है | परन्तु साथ ही मुझे दुनियादारी की भी पूरी चिंता है | दुनिया मुझे तुम्हारे प्रेम में मग्न नहीं देख सकती | मैं औरों से अपने दर्द को छुपाता हूँ तथा छिप-छिप कर रो लेता हूँ |
प्रसंग
फ़ितरत का कायम है तवाजुन आलमे-हुस्नो-इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं
व्याख्या
फ़िराक अपनी गज़ल के इन शेरों से अपनी प्रिय को याद करते हुए उसके वियोग से उत्पन्न मर्म को बयाँ करते हैं |
कवि कहता है – प्रेम और सौन्दर्य के संसार में भी मनुष्य की प्रवृत्ति का महत्वपूर्ण स्थान है | इस क्षेत्र में भी लेन-देन का संतुलन बराबर बना रहता है | जो मनुष्य स्वयं को प्रेम में जितना अधिक समर्पित कर देता है, वह उतना ही प्रेम प्राप्त करता है | यहाँ स्वयं को खो देने से प्रेम प्राप्त होता है |
प्रसंग
आबो-ताब अश्आर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं
व्याख्या
फ़िराक अपनी गज़ल के इन शेरों से अपनी प्रिय को याद करते हुए उसके वियोग से उत्पन्न मर्म को बयाँ करते हैं |
कवि कहता है – तुम मेरी शायरी की चमक-दमक और कलाकारी पर फ़िदा न हो | मेरी शायरी का सौन्दर्य बनावटी-सजावटी नहीं है | इतना तो सब लोग समझ सकते हैं की मेरे शेरों में जो सौन्दर्य है , वह आँख के आंसुओं में से निकला हैं | मैंने आँखों से को आंसू बहाए हैं , उन्ही के कारण मेरी शायरी में चमक आई है |
प्रसंग
ऐसे में तू याद आए है अंजुमने-मय में रिंदों को
रात गए गर्दू पै फ़रिश्ते बाबे-गुनह जग खोले हैं
व्याख्या
फ़िराक अपनी गज़ल के इन शेरों से अपनी प्रिय को याद करते हुए उसके वियोग से उत्पन्न मर्म को बयाँ करते हैं |
रात गए जब आसमान में फ़रिश्ते दुनिया के पापों का लेखा जोखा देख रहे होते हैं , ऐसे में हम शराब की महफ़िल में अपना गम गलत करते हुए तुझे याद कर रहे होते हैं |
आशय यह है की घनी अँधेरी रातों में प्रेमिका की बहुत याद आती है |
प्रसंग
सदके फ़िराक एजाज़े-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज़
इन गज़लों के परदों में तो 'मीर' की गज़लें बोले हैं
व्याख्या
फ़िराक अपनी गज़ल के इन शेरों से अपनी प्रिय को याद करते हुए उसके वियोग से उत्पन्न मर्म को बयाँ करते हैं |
फ़िराक कहते हैं – लोग मेरी शायरी पर मुग्ध होकर अक्सर मुझे यह कहते हैं – फ़िराक ! हम तुम्हारी शायरी पर न्योछावर हैं | न जाने तुमने ऐसी बेहतरीन शायरी कहाँ से सीख ली | तुम्हारी गज़लों के शेरों में तो मेरे की गज़लों के बोल सुनाई पड़ते हैं | तुम्हारीं शायरी मीर की शायरी की तरह सुन्दर है |
विशेष
ऊर्दू काव्य होने के कारण भाषा और भावों दोनों में उर्दू के ही संस्कार प्रकट हो रहे हैं |
सन्नाटे का मानवीकरण किया गया है |
रात्री के एकांत मौन का यह चित्रण अत्यंत प्रभावी है |
यह शेर प्रेम की निराशा से भरपूर है, इसमें वियोग श्रृंगार है |
कीमत, अदा, सौदा, दीवाना आदि उर्दू शब्द हैं |
उर्दू की कठिन शब्दावली के कारण यह शेर कठिन बन पड़ा है |
उर्दू शब्दावली की प्रधानता है इसलिए हिंदी पाठकों के लिए यह शब्दावली थोड़ी कठिन है |
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