एक साम्राज्य की राजधानी विजयनगर- Class 12th History CHAPTER-7th Book-2nd- An imperial capital vijayanagara
विजयनगर - विजय का शहर
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना दो भाइयों हरिहर और बुक्का ने 1336 में की थी.
इस साम्राज्य में अलग-अलग भाषा बोलने वाले तथा अलग-अलग धार्मिक परंपराओं को मानने वाले लोग रहते थे.
यह साम्राज्य में उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर सुदूर दक्षिण तक फैला था.
1565 में इस पर आक्रमण किया गया और उसको लूटा गया
इसके बाद यह उजड़ गया
17-18 वीं शताब्दी तक यह पूरी तरह नष्ट हो चुका था
लेकिन फिर भी कृष्णा और तुगभद्रा दोआब क्षेत्र के निवासियों की यादों में यह जीवित रहा
उन्होंने इसे हम्पी नाम से याद रखा
हम्पी में यहां की स्थानीय मातृदेवी पंपादेवी के नाम से आया है.
जब विद्वानों ने इसकी खोज की तो मौखिक परंपरा तथा पुरातात्विक खोज.
स्थापत्य के नमूने, अभिलेख, दस्तावेज काफी सहायक सिद्ध हुए.
हम्पी की खोज
हम्पी के भग्नावशेष ( खंडहर ) 1800 ई में एक अभियंता तथा पुराविद्.
कर्नल कोलिन मैकेंजी द्वारा प्रकाश में लाए गए.
मैकेंजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी में कार्यरत थे.
मैकेंजी ने इस क्षेत्र का पहला सर्वेक्षण मानचित्र बनाया.
इनके द्वारा हासिल की गई जानकारी विरुपाक्ष मंदिर तथा पंपा देवी के पूजा स्थल के पुरोहितों की स्मृति पर आधारित थी.
1856 में छायाचित्रकार ने यहां के भवनों के चित्र संकलित करने आरंभ किए.
शोधकर्ताओं ने इन चित्रों का अध्ययन किया.
1836 अभिलेख कर्ताओं ने यहां और हम्पी के अन्य मंदिरों से कई दर्जन अभिलेख इकट्ठे किए.
इतिहासकारों ने विजयनगर साम्राज्य के इतिहास के पुनर्निर्माण के.
प्रयास में इन स्रोतों का.
विदेशी यात्रियों के वृत्तांतो एवं तेलुगु, कन्नड़, तमिल और संस्कृत.
में लिखे गए साहित्य से मिलान किया.
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना दो भाई हरिहर और बुक्का द्वारा 1336 में की गई.
विजयनगर साम्राज्य के शासकों का अपने समकालीन राजाओं.
जैसे- दक्कन के सुल्तान.
उड़ीसा के गजपति शासक से संघर्ष चलता रहता था.
संघर्ष - उर्वर नदी घाटी ऊपर अधिकार तथा.
विदेशी व्यापार से उत्पन्न संपदा पर अधिकार.
विजयनगर के शासकों ने भवन निर्माण की तकनीक को ग्रहण किया और इसे आगे विकसित किया.
इन्होंने तमिलनाडु के चोल सम्राट ,कर्नाटक के होयसल शासक के राज्यो का विकास देखा था.
इन क्षेत्रों के शासक वर्ग ने तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर तथा बेलूर के चन्नकेशव मंदिर को संरक्षण दिया था.
विजयनगर के शासकों ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया.
विजयनगर के शासक स्वयं को राय कहते थे.
(कॉलिन मैकेंजी)
कॉलिंग मैकेंजी का जन्म 1754 ई. मैं हुआ था.
या एक अभियंता, सर्वेक्षक, मानचित्र कार के रूप में प्रसिद्ध थे.
1815 में उन्हें भारत का पहला सर्वेयर जनरल बनाया गया और 1821 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रहे.
भारत के अतीत को बेहतर ढंग से समझने और उपनिवेश के प्रशासन को आसान बनाने के लिए उन्होंने इतिहास से संबंधित स्थानीय परंपराओं का संकलन तथा ऐतिहासिक स्थलों का सर्वेक्षण करना शुरू कर दिया.
शासक तथा व्यापारी
इस काल में युद्धकला अश्वसेना पर निर्भर रहती थीं.
इसलिए राज्य अरब तथा मध्य एशिया से घोड़ों का आयात करते थे.
शुरु में यह व्यापार अरब के व्यपारियों द्वारा नियंत्रित था.
व्यापारियों के स्थानीय समूह कुदिरई चेट्टी या घोड़ों के व्यापारी कहा जाता था.
यह भी इन विनिमय में भाग लेते थे.
1498 में पुर्तगाली पश्चिमी तट पर आए और व्यापारिक तथा सामरिक केंद्र शासित करने का प्रयास करने लगे.
पुर्तगालियों की सामरिक तकनीक बेहतर थी.
इनके पास बंदूक थी.
जिसे यह महत्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरे.
विजयनगर मसालों, वस्त्रों, रत्नों के बाजार के लिए प्रसिद्ध था.
यहां की जनता समृद्ध थी.
यहां की जनता महंगी विदेशी वस्तुओं की मांग करती थी.
विशेष रत्नों और आभूषणों की.
व्यापार से राजस्व प्राप्त होता था.
जो कि राज्य की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देता था.
राज्य का चरमोत्कर्ष तथा पतन
राजनीति में सत्ता के दावेदारों में शासक वंश के सदस्य और सैनिक कमांडर शामिल थे
विजयनगर साम्राज्य में सबसे पहला राजवंश संगम वंश था
1) संगम वंश का शासन
2) सुलुव वंश का शासन
3) तुलुव वंश का शासन
4) अराविदू वंश शासन
पहले राजवंश संगम वंश को सुलुव ने उखाड़ फेंका.
सुलुव सैनिक कमांडर थे.
उसके बाद तुलुव ने इनको उखाड़ फेंका.
कृष्ण देव राय तुलुव वंश से संबंधित थे.
यह विजयनगर साम्राज्य के सबसे प्रतापी राजा थे
कृष्णदेवराय
कृष्णदेवराय ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया.
इन्होंने साम्राज्य को मजबूत बनाया.
इसी काल में तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच का क्षेत्र हासिल किया (1512).
1514 में उड़ीसा के शासकों का दमन किया गया तथा बीजापुर के सुल्तान को
बुरी तरह पराजित किया गया था.
राज्य हमेशा सामरिक रूप से तैयार रहता था.
राज्य अतुलनीय शांति और समृद्धि में फला फूला
कई मंदिरों निर्माण किया गया.
दक्षिण भारत के मंदिरों में भव्य गोपुरम को जोड़ने का श्रेय कृष्णदेव राय को ही जाता है.
उन्होंने अपने माताजी के नाम पर विजयनगर के पास ही नगलपुराम
नामक उपनगर की स्थापना की.
कृष्णदेवराय की मृत्यु 1529 में हुई.
उसके बाद शासन कमजोर होने लगा.
उनके उत्तराधकारियों को विद्रोही नायकों और सेनापतियो से चुनौती का सामना करना पड़ा.
1542 तक केंद्र पर शासन अराविदू के हाथो में चला गया.
(राक्षसी तांगडी का युद्ध तलीकोटा के युद्ध)
1565 में विजयनगर की सेना प्रधानमंत्री रामराय के नेतृत्व में
राक्षसी तांगडी का युद्ध हुआ.
इसे तलीकोटा के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है.
इस युद्ध में बीजापुर, अहमदनगर ,गोलकुंडा की संयुक्त सेना ने
विजयनगर पर धावा बोल दिया.
इसमें विजयनगर की सेना हार गई.
कुछ वर्षों के बाद यह शहर उजड़ने लगा.
विजयी सेना ने विजयनगर को खूब लूटा
यह शासन पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गया.
अब अराविदु राजवंश ने पेनुकोंडा से और बाद में चंदगिरी से शासन किया.
राय तथा नायक
राय - विजयनगर के शासक
नायक – सेना प्रमुख
सेना प्रमुख नायक कहलाते थे
यह साम्राज्य में शक्ति का प्रयोग करते थे
नायक किलो पर नियंत्रण रखते थे
इनके पास सशस्त्र समर्थक होते थे
यह आमतौर पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ब्राह्मण सील रहते थे
नायक कई बार बसने के लिए उपजाऊ भूमि की तलाश में जाते थे
किसान भी इनका साथ देते थे
यह आमतौर पर तेलुगु या कन्नड़ भाषा बोलते थे
कई नायको ने विजयनगर शासक की प्रभुसत्ता के आगे समर्पण किया था
यह अक्सर विद्रोह कर देते थे
इन्हें सैनिक कार्यवाही के द्वारा ही वश में किया जाता था
अमर नायक प्रणाली
अमर नायक प्रणाली विजयनगर साम्राज्य के प्रमुख राजनीतिक खोज थी.
यह प्रणाली दिल्ली सल्तनत की इक्ता प्रणाली जैसे ही थी.
अमर नायक सैनिक कमांडर थे.
इनको राय द्वारा प्रशासन के लिए क्षेत्र दिए जाते थे.
अमर नायक उन क्षेत्रों में किसानों, शिल्पकर्मियों और व्यापारियों से भू राजस्व तथा अन्य कर वसूल करते थे.
अमर नायक राजस्व का कुछ भाग अपने व्यक्तिगत उपयोग में.
तथा घोड़ों और हाथियों के दल के रखरखाव के लिए अपने पास रख लेते थे.
यह दल विजय नगर शासक को एक प्रभावी सैनिक शक्ति प्रदान करने में सहायक होते थे.
इनकी मदद से इन्होंने दक्षिण भारत पर नियंत्रण किया.
राजस्व का कुछ हिस्सा मंदिर और सिंचाई के साधन के रखरखाव के लिए खर्च किया जाता था.
अमर नायक राजा को वर्ष में एक बार भेंट भेजा करते थे.
और अपनी स्वामी भक्ति प्रकट करने के लिए दरबार में उपहारों के साथ खुद उपस्थित होते थे.
राजा कभी कभी इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करते थे.
17 वी शताब्दी में इनमें से कई नायकों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए.
जल संपदा
विजयनगर की जल आवश्यकता को किस प्रकार पूरा किया जाता था ?
विजय नगर की भौगोलिक स्थिति सबसे अधिक चौंकाने वाला तथ्य
तुंगभद्रा नदी से निर्मित एक प्राकृतिक कुंड है.
यह नदी उत्तर पूर्व दिशा में बहती है.
आसपास का भू दृश्य ग्रेनाइट की पहाड़ियों से घिरा हुआ है.
यह पहाड़ियां शहर के चारों ओर करधनी का निर्माण करती है.
इन पहाड़ियों से कई जलधाराएं आकर नदी से मिल जाती हैं.
लगभग सभी धाराओं के साथ-साथ बांध बनाकर अलग-अलग आकार के हौज बनाए गए.
यह क्षेत्र शुष्क क्षेत्र था.
इसलिए यहां पानी का संचयन तथा इसके प्रबंधन की आवश्यकता भी थी.
इसलिए एक महत्वपूर्ण हौज का निर्माण 15वी शताब्दी के आरंभिक वर्षों में हुआ.
जिसे आज कमलपुरम जलाशय कहा जाता है.
इस हौज के पानी से आसपास के खेतों की सिंचाई की जाती थी.
और एक नहर के माध्यम से राजकीय केंद्र तक पानी भी ले जाया जाता था.
एक और महत्वपूर्ण जल संरचना हिरिया नहर के साक्ष्य भी मिले हैं.
इस नहर को आज भी भग्नावेशों के बीच देखा जा सकता है.
इस नहर में तुंगभद्रा पर बने बांध से पानी लाया जाता था.
इस जल का प्रयोग सिंचाई में भी किया जाता था.
संभवत इसका निर्माण संगम वंश के राजाओं ने कराया होगा.
किलेबंदी और सड़कें
विजयनगर साम्राज्य में किलेबंदी का काफी महत्व था.
किलेबंदी के बारे में जानकारी हमें फारस से आए दूत अब्दुर रज्जाक के विवरण से प्राप्त होती है.
अब्दुर रज्जाक 15 वी शताब्दी में कालीकट आया था.
वह यहां की किलेबंदी को देखकर हैरान हो गया.
विजयनगर में ना केवल शहर की किलेबंदी की गई थी.
बल्कि यहां खेतों और जंगलों की भी किलेबंदी की गई थी.
सबसे बाहरी दीवार शहर के चारों ओर बनी पहाड़ियों को आपस में जोड़ती थी.
पत्थर के टुकड़े फानाकार थे.
इसलिए एक दूसरे पर टिक जाते थे.
इन्हें जोड़ने के लिए गारे का प्रयोग नहीं किया गया था.
अब्दुल रज्जाक लिखता है कि.
पहली, दूसरी ओर तीसरी दीवारों के बीच जुते खेत, बगीचे, आवास थे.
पेस लिखता है कि.
जहां वो धान उगाते थे.
वहां कई उद्यान और जल था.
जल दो झीलों से लाया जाता था.
खेतो को क्यों किलेबंद किया गया ?
खेतो को किलेबंद इसलिए किया जाता था ताकि शत्रु से अनाज एवम् खाद्य सामग्री की रक्षा की जा सके
अन्नागार भी इसीलिए बनाए गए थे.
ताकि लंबे समय तक अनाज , खाद्य सामग्री को सुरक्षित रख सकें.
विजयनगर शासक ने साम्राज्य को तथा कृषि भूभाग को बचाने के लिए अधिक महंगी एवम् व्यापक नीति अपनाई थी.
दूसरी किलेबंदी नगरीय केंद्र के आंतरिक भाग के चारों ओर बनी हुई थी.
तीसरी किलेबंदी से शासकीय केंद्र को घेरा गया था.
दुर्ग में प्रवेश के लिए अच्छी तरह से.
सुरक्षित प्रवेश द्वार बनाए गए थे.
ये प्रवेशद्वार शहर को मुख्य सड़कों से जोड़ते थे.
प्रवेश द्वार विशिष्ट स्थापत्य के नमूने थे.
किलेबंद बस्ती में बने प्रवेश द्वार पर मेहराब और
साथ ही द्वार के ऊपर बनी गुंबद तुर्की सुल्तानों द्वारा प्रवर्तित स्थापत्य के तत्व माने जाते थे.
कला इतिहासकार इस शैली को indo-islamic कहते हैं.
पुरात्विदो ने शहर के अंदर की और वहां से बाहर जाने वाली सड़क का अध्ययन किया.
सड़कें ज्यादातर पहाड़ी भूभाग से बचकर घाटियों से होकर ही इधर-उधर घूमती थी.
सबसे महत्वपूर्ण सड़कों में से कई मंदिर के प्रवेश द्वारों से आगे बढ़ी हुई थी.
इनके दोनों और बाजार भी लगते थे.
शहरी केंद्र
शहरी केंद्र की ओर जाने वाली सड़कों पर सामान्य लोगों के आवास के कम साक्ष्य मिले हैं
पुरातत्वविदों को कुछ स्थान पर परिष्कृत चीनी मिट्टी मिली है
ऐसा अनुमान लगाया गया है कि इन स्थानों पर धनी व्यापारी लोग रहते थे
यह मुस्लिम रिहाईसी मोहल्ला भी था
यहां कुछ मस्जिदें और मकबरे भी मिले हैं
इनका स्थापत्य हंपी में मिले मंदिरों के मंडप के स्थापत्य से मिलता जुलता है
पुर्तगाली यात्री बरबोसा का वर्णन लोगों के अन्य आवास छप्पर के है.
लेकिन फिर भी सुदृढ़ ( मजबूत ) है और व्यवसाय के आधार पर
कई खुले स्थान वाली लंबी गलियों में व्यवस्थित है.
क्षेत्र के सर्वेक्षण से पता लगा कि इस क्षेत्र में बहुत से
पूजा स्थल और छोटे मंदिर थे.
यंहा कई जलाशय भी मिले हैं.
राजकीय केंद्र
राजकीय केंद्र बस्ती के दक्षिण पश्चिम भाग में स्थित थे.
यहां 60 से अधिक मंदिर सम्मिलित थे.
शासक मंदिर और संप्रदाय को संरक्षण देते थे.
लगभग 30 संरचनाओं की पहचान महल के रूप में की गई है.
यह काफी बड़ी संरचनाएं हैं जिनका संबंध अनुष्ठानिक कार्यों से नहीं है.
इस क्षेत्र कई कुछ विशिष्ट संरचना का नामकरण भवनों के आकार तथा उनके कार्यों के आधार पर किया गया था.
इस क्षेत्र ने एक विशाल संरचना पाई गई है.
इसका नाम राजा का भवन है.
परंतु ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले की यह राजा का आवास था.
इसके दो प्रभावशाली मंच थे.
जिन्हें सभा मंडप तथा महनवमी डिब्बा कहा जाता है
सभा मंडप
पूरा क्षेत्र ऊंची दोहरी दीवारों से घिरा है और इनके बीच में एक गली है.
सभा मंडप एक ऊंचा मंच है.
जिसमें पास-पास तथा निश्चित दूरी पर लकड़ी के स्तंभों के लिए छेद बने हुए हैं.
इसकी दूसरी मंजिल जो इन स्तंभों पर टिकी थी.
दूसरी मंजिल तक जाने के लिए सीढ़ियां बनाई हुई थी.
स्तंभों के एक दूसरे से बहुत पास पास होने से बहुत कम खुला स्थान
बचता होगा.
इसलिए यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि यह मंडप किस कार्य के
लिए बनाया गया था.
महानवमी डिब्बा
शहर के सबसे ऊंचे स्थानों पर स्थित महानवमी डिब्बा एक विशालकाय मंच है.
यह लगभग 11000 वर्ग फीट के आधार से 40 फीट की ऊंचाई तक जाता है.
इस पर एक लकड़ी की संरचना बनी थी.
मंच का आधार पर.
कुछ चित्र मिले हैं.
इस संरचना से जुड़े अनुष्ठान सितंबर और अक्टूबर के शरद मास में मनाए जाने वाले
10 दिन के हिंदू त्यौहार जिसे दशहरा ( उत्तर भारत ) , दुर्गा पूजा ( बंगाल )
तथा नवरात्रि या महनावमी नाम से जाना जाता है.
इस अवसर पर विजयनगर के शासक अपने रुतबे ताकत का प्रदर्शन करते थे.
इस अवसर पर धर्म अनुष्ठान में मूर्ति की पूजा, राज्य के अश्व की पूजा की जाती थी .
भैंस और अन्य जानवर की बलि दी जाती थी.
नृत्य ,कुश्ती प्रतिस्पर्धा तथा घोड़े, हाथी और रथो तथा सैनिकों की शोभयात्रा.
और साथ ही प्रमुख नायकों और अधीनस्थ राजाओं द्वारा.
राजा और उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेंट.
इस अवसर का मुख्य आकर्षण थी.
त्यौहार के अंतिम दिन में राजा अपने नायकों की सेना का खुले मैदान में
आयोजित समारोह में निरीक्षण करता था.
राजकीय केंद्र में स्थित अन्य भवन
राजकीय केंद्र के सबसे सुंदर भवनों में एक कमल महल है
इसका नामकरण 19वीं शताब्दी में अंग्रेज यात्रियों ने किया
यह नहीं पता लग पाया कि यह भवन किस कार्य के लिए बना था
मैकेंजी ने एक मानचित्र बनाया उसमें यह सुझाव दिया गया है
कि यह परिषदीय सदन था
यहां पर राजा अपने परामर्शदाताओं से मिलता था
ज्यादातर मंदिर धार्मिक केंद्र में स्थित है
लेकिन कुछ मंदिर राजकीय केंद्र में भी मिले हैं
इनमें एक अत्यंत दर्शनीय को हजार राम मंदिर कहा जाता है
संभवत इसका प्रयोग केवल राजा या उनके परिवार के द्वारा किया जाता था
दीवारों पर कुछ मूर्तियां बनाई गई थी
अंदरूनी दीवारों पर रामायण के कुछ चित्र मिल जाते हैं
जब इस शहर पर आक्रमण हुआ तो कई संरचनाएं नष्ट हो गई
धार्मिक केंद्र
स्थानीय मान्यता है -
कि तुंगभद्रा नदी के तट से लगे चट्टानी भाग तथा पहाड़ियों का उल्लेख रामायण में बाली और सुग्रीव के वानर राज्य की रक्षा करती थीं
एक स्थानीय मान्यता यह भी है -
कि यहां की स्थानीय मातृदेवी पंपादेवी ने इन पहाड़ियों में भगवान विरुपाक्ष से विवाह के लिए तपस्या की थी
विरुपाक्ष राज्य के संरक्षक देवता एवं शिव का ही रूप माने जाते हैं
आज भी यह विवाह विरुपाक्ष मंदिर में हर साल धूमधाम से आयोजित किया जाता है
इन पहाड़ियों में विजयनगर साम्राज्य से पहले के जैन मंदिर भी मिले है
यह क्षेत्र कई धार्मिक मान्यताओं से संबंधित है
क्षेत्र में मंदिर निर्माण का एक लंबा इतिहास रहा है
पल्लव शासक, चालुक्य शासक, होयसाल तथा चोल वंश तक के शासकों ने मंदिर के निर्माण कराए है
आमतौर पर शासक अपने आप को ईश्वर से जोड़ने के लिए
मंदिर निर्माण को प्रोत्साहन देते थे
मंदिर शिक्षा के केंद्रों के रूप में कार्य करते थे
शासन तथा अन्य लोग, मंदिर के रखरखाव के लिए भूमि तथा संपत्ति दान में देते थे
विजयनगर के शासक विरुपाक्ष भगवान की ओर से शासन करने का दावा करते थे
सभी राजकीय आदेशों पर कन्नड़ में श्री विरूपाक्ष शब्द अंकित होता था
विजयनगर शासकों ने पूर्वकालिक परंपराओं को अपनाया
तथा उसमें कुछ नवीनता भी लाए
और उन्हें आगे विकसित किया
गोपुरम और मंडप
गोपुरम बहुत ऊंचे होते थे
गोपुरम मंदिर के प्रवेशद्वार थे
गोपुरम लंबी दूरी से ही मंदिर होने का संकेत देते थे
केंद्रीय देवालय की मीनार इनके सामने छोटी थीं
इससे शासक की ताकत का पता लगता है
की शासक ने इतनी ऊंची मीनार के निर्माण के लिए आवश्यक साधन तकनीक और कौशल जुटाया है
अन्य विशिष्ट स्थापत्य के नमूने मंडप तथा लंबे स्तंभ वाले गलियारे थे
जो अक्सर मंदिर परिसर में स्थित देव स्थलों के चारों ओर बने थे
विरूपाक्ष तथा विटठल मंदिर
विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण कई शताब्दियों में हुआ था
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के बाद इससे अधिक बड़ा किया गया
मुख्य मंदिर के सामने बना मंडप कृष्णदेव राय ने अपने राज्यरोहण के
उपलक्ष में बनवाया था
पूर्वी गोपुरम के निर्माण का श्रेय भी कृष्णदेव राय को ही दिया जाता है
केंद्रीय देवालय पूरे परिसर के एक छोटे भाग तक सीमित रह गया था
मंदिर के सभागारों का प्रयोग विविध प्रकार के कार्यों के लिए होता था
जैसे –
देवताओं की मूर्तियां, संगीत, नृत्य और नाटक के कार्यक्रम को देखने के लिए रखी जाती थी
अन्य सभागारों का प्रयोग देवी देवताओं के विवाह के उत्सव पर आनंद मनाने
और कुछ अन्य का प्रयोग देवी देवताओं को झूला झुलाने के लिए भी किया जाता था
इन अवसरों पर विशेष मूर्तियों का इस्तेमाल होता था
छोटे केंद्रीय देवालय में स्थापित मूर्तियों से यह मूर्तियां अलग होती थी
विट्ठल मंदिर
यहां के प्रमुख देवता विट्ठल थे
इन्हें महाराष्ट्र क्षेत्र में पूजे जाने वाले विष्णु के रूप हैं
इस देवता की पूजा को कर्नाटक में भी आरंभ किया गया
इससे पता लगता है कि विजयनगर के शासकों ने अलग-अलग परंपराओं को आत्मसात किया
अन्य मंदिरों की तरह इसमें भी कई सभागार थे
इसमें रथ के आकार का एक अनूठा मंदिर भी है
मंदिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियां है
जो मंदिर के गोपुरम में सीधी रेखा में जाती हैं
इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था
इनके दोनों तरफ स्तंभ वाले मंडप थे
जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे
महलों, मंदिरों तथा बाजारों का अंकन
बीसवीं शताब्दी में इस स्थान का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण तथा कर्नाटक पुरातात्विक एवं संग्रहालय विभाग द्वारा किया गया
1976 में हम्पी को राष्ट्रीय महत्व के स्थल के रूप में मान्यता मिली
उसके उपरांत 1980 के दशक के आरंभ में अलग-अलग प्रकार के अभिलेखन प्रयोग से, सर्वेक्षणों के माध्यम से विजयनगर से मिले अवशेषों का सूक्ष्म अध्ययन की महत्वपूर्ण योजना शुरू की गई
लगभग 20 साल के काल में पूरी दुनिया के दर्जनों विद्वानों ने इस जानकारी को इकट्ठा किया और संरक्षित करने का कार्य किया
इस विस्तृत प्रक्रिया के सिर्फ एक हिस्से को बारीकी से देखते है यह है –
मानचित्र निर्माण
इसका पहला चरण था
पूरे क्षेत्र को 25 वर्गाकार भागों में बांटा गया
हर वर्ग को वर्णमाला के 1 अक्षर का नाम दिया गया
फिर छोटे वर्गों को दोबारा और भी छोटे समूह में बांटा गया
आगे फिर छोटे वर्गों को और छोटी इकाईयों में बांटा गया
यह गहन सर्वेक्षण बहुत मेहनत से किए गए और हजारों संरचनाओं के अंशों
छोटे देवस्थल और आवासों से लेकर
बड़े-बड़े मंदिरों तक को
पुनः उजागर किया गया
जॉन एम. फ्रीटस जॉर्ज मिशेल तथा एम. एस. नागराज राव जिन्होंने इस स्थान पर वर्षों तक कार्य किया, ने जो लिखा वह याद रखना महत्वपूर्ण है " विजयनगर के स्मारकों के अपने अध्ययन में हमें नष्ट हो चुकी लकड़ी की वस्तुएं- टैंक, धरन, भीतरी छत लटकते हुए छज्जो के अंदरूनी भाग तथा मीनारों की एक पूरी श्रेणी की कल्पना करनी पड़ती है जो प्लास्टर से सजाए और संवत: चटकीले रंगों से चित्रित थे
हालांकि लकड़ी की संरचनाएं अब नहीं है और केवल पत्थर की संरचनाएं अस्तित्व में है यात्रियों द्वारा पीछे छोड़े गए विवरण उस समय के स्पंदन से पूर्ण जीवन के कुछ आयामों को पूर्ण निर्मित करने में सहायक होती है