Class 11th- Hindi ( ज्योतिबा फूले ) Chapter- 5th Jyotiba Phule- Easy summary

Class 11th- Hindi ( ज्योतिबा फूले ) Chapter- 5th  Jyotiba Phule- Easy summary
( पाठ- परिचय )
  • प्रस्तुत पाठ 'ज्योतिबा फुले' में ज्योतिबा और उनकी पत्नी 'सावित्रीबाई फुले' के प्रेरक जीवन चरित्र को दर्शाया गया है।
  • शिक्षा का सभी जाति, वर्ग, वर्ण पर समान अधिकार है और उसके लिए फुले दम्पत्ति ने जो संघर्ष किया है उसे बताने का प्रयास किया गया है।
  • फुले दम्पत्ति ने अछूतों, शोषितों, महिलाओं, विधवाओं आदि के उद्वार का प्रण लिया और उसके लिए संघर्ष भी किया।
  • इन दोनों ने उस समय में प्रचलित सामाजिक विषमताओं, रूढ़ियों का विरोध किया और समाज के निचले वर्ग के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।
  • उन्होंने ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी मानसिकता के विरूद्ध आवाज उठाई।
  • उनका मानना था कि शिक्षा पर केवल उच्चवर्ग का ही एकाधिकार नहीं है।
  • केवल किसी वर्ग विशेष के लिए शिक्षा व्यवस्था हो वह किसी काम की नहीं है।
  • उन्होंने शिक्षा पर सभी का हक है और शिक्षा ही समाज में सभी को समानता व शोषण से मुक्ति दिला सकती है इस बात पर बल दिया।
  • उनका मुख्य रूप से इस बात पर बल रहा है कि समाज में स्त्री व पुरुष बराबर हैं और पुरुषों की भांति ही स्त्रियों को भी शिक्षा प्राप्त करने का बराबर का अधिकार हैं
  • इस बात के लिए दोनों दम्पत्ति को समाज का तिरस्कार व विरोध भी सहना पड़ा है। यह पाठ उनके इसी संघर्ष, समाज सुधार के मार्ग में आने वाली बाधाओं और उससे लड़ने की कहानी बताता है।
( समाज सुधारक )
  • ज्योतिबा फुले ने भारत के सामाजिक विकास और बदलाव के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई, परंतु जिन पाँच समाज - सुधारकों के नाम इतिहास में लिए जाते हैं
  • उनमें उनका नाम नहीं लिया जात, क्योंकि इस सूची को बनाने वाले उच्चवर्गीय समाज के प्रतिनिधि हैं ।
  • उन्होंने पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता का खुलकर विरोध किया, जिसके प्रमाण हैं - उनके द्वारा स्थापित ' सत्यशोधक समाज ' और उनका क्रांतिकारी साहित्य |
( वर्ण व्यवस्था का विरोध )
  • महात्मा ज्योतिबा फुले ने वर्ण, जाति और वर्ग व्यवस्था में निहित शोषण प्रक्रिया को एक - दूसरे का पूरक बताया ।
  • उनका कहना था कि राजसत्ता और ब्राह्मण आधिपत्य के तहत धर्मवादी सत्ता आपस में साँठ - गाँठ कर इस सामाजिक व्यवस्था और मशीनरी का उपयोग करती है । 
  • उनका कहना था कि इस शोषण व्यवस्था के खिलाफ़ दलितों के अलावा स्त्रियों को भी आंदोलन करना चाहिए ।
  • फुले के मौलिक विचार ' गुलामगिरी ' , ' शेतकर्यांचा आसूड ' ( किसानों का प्रतिशोध ) , ' सार्वजनिक सत्यधर्म ' आदि पुस्तकों में संगृहीत हैं ।
  1. ब्राह्मण 
  2. क्षत्रिय 
  3. वैश्य 
  4. शुद्र 
 
( आदर्श परिवार )
  • फुले एक ऐसे आदर्श - परिवार की परिकल्पना करते हैं, जिसमें पिता बौद्ध, माता ईसाई, बेटी मुसलमान और बेटा सत्यधर्मी हो ।
  • उनका मानना था कि समाज में यदि इस प्रकार की धार्मिक एकजुटता आ जाए, तो लोगों की संकीर्णता नष्ट हो जाएगी और विचारों के सामंजस्य द्वारा सांप्रदायिक दंगों को जड़ से नष्ट किया जा सकेगा । 
( स्त्री समानता )
  • ज्योतिबा फुले स्त्रियों को शिक्षा के क्षेत्र में पुरुषों के समान अधिकार दिलवाना चाहते थे , ताकि पुरुषों की तरह वे भी मानवीय अधिकारों को समझ सकें ।
  • वे पुरुषों के लिए अलग नियम और महिलाओं के लिए अलग नियम को पक्षपात मानते थे । 
  • उन्होंने स्त्री - समानता को प्रतिष्ठित करने वाली नई विवाह - विधि की रचना की ।
  • पूरी विवाह - विधि से उन्होंने ब्राह्मण का स्थान ही हटा दिया । उन्होंने नए मंगलाष्टक ( विवाह के अवसर पर पढ़े जाने वाले मंत्र ) तैयार किए ।
  • वे चाहते थे कि विवाह - विधि में पुरुष प्रधान संस्कृति के समर्थक और स्त्री की गुलामगिरी सिद्ध करने वाले जितने मंत्र हैं , वे सारे निकाल दिए जाएँ ।
  • उनके स्थान पर ऐसे मंत्र हों , जिन्हें वर - वधू आसानी से समझ सकें । ज्योतिबा फुले ने जिन मंगलाष्टकों की रचना की , उनमें वधू वर से कहती है — ‘ ‘ स्वतंत्रता का अनुभव हम स्त्रियों को है ही नहीं ।
  • इस बात की आज शपथ लो कि स्त्री को उसका अधिकार दोगे और उसे अपनी स्वतंत्रता का अनुभव करने दोगे । " यह आकांक्षा सिर्फ़ वधू की ही नहीं , गुलामी से मुक्ति चाहने वाली हर स्त्री की थी ।
  • स्त्री के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए ज्योतिबा फुले ने हर संभव प्रयास किए ।
( महात्मा )
  • ज्योतिबा फुले को उनके त्याग और समाज के उत्थान से जुड़े उनके लोक कल्याणकारी कार्यों के लिए 1888 ई . में ' महात्मा ' की उपाधि प्रदान की गई , किंतु वे आजीवन एक आम आदमी बनकर ही समाज सेवा के महान् कार्यों से जुड़े रहे ।
  • ' महात्मा ' उपाधि दिए जाने पर उन्होंने कहा था- " मुझे महात्मा कहकर मेरे संघर्ष को पूर्णविराम मत दीजिए ।
  •  " उनका मानना था कि मठाधीश के पद पर आसीन व्यक्ति आमजन की तरह संघर्ष नहीं कर सकता ।
( सावित्रीबाई )
  • फुले की कथनी और करनी एक थी अर्थात् वे जो बोलते थे उसे करके दिखाते थे ।
  • इसका सबसे बड़ा प्रमाण है- उनके द्वारा पत्नी सावित्री बाई को शिक्षित करना ।
  • उनकी मदद से सावित्रीबाई ने न सिर्फ़ मराठी भाषा सीखी , बल्कि अंग्रेज़ी लिखना - पढ़ना भी सीख लिया ।
  • सावित्रीबाई को बचपन से ही शिक्षा में रुचि थी ।
  • एक बार की बात है - बालिका सावित्री शिखल गाँव के हाट में कुछ खरीदकर खा रही थी ।
  • यह देख एक लाट साहब ( अंग्रेज़ ) ने उसे समझाया कि इस तरह रास्ते में खाते हुए घूमना अच्छा नहीं है ।
  • फिर उसने उसे ईसाई मिशन से जुड़ी एक पुस्तक दी , ताकि वह घर जाकर उसे पढ़ सके अथवा पढ़ना न आने पर उसके चित्र देख सके ।
  • सावित्री ने उस पुस्तक को सँभालकर रखा और 1840 ई . में ज्योतिबा फुले के साथ प्रणय सूत्र में बँधने और उसके उपरांत उनके द्वारा शिक्षित किए जाने के पश्चात् उन्होंने वह पुस्तक पढ़ी ।
( सामाजिक कार्य )
  • अपनी पत्नी के सहयोग से फुले ने 14 जनवरी, 1848 को पुणे के बुधवार पेठ निवासी भिड़े के बाड़े में देश की पहली बालिका पाठशाला की स्थापना की ।
  • तत्पश्चात् उन दोनों ने मिलकर दलित बालिकाओं के लिए बारी - बारी से कई पाठशालाएँ खोलीं । 
  • परंपरा के विरुद्ध किए जा रहे इन कार्यों से उपजे सामाजिक विरोध के कारण उन्हें अपना घर भी छोड़ना पड़ा , पाठशाला जाने के क्रम में उनकी पत्नी को लोगों की गालियाँ और पत्थर भी खाने पड़े , पर इन सबसे इन दोनों पति - पत्नी का हौसला कम न हुआ और 1890 ई . तक दोनों ने एक प्राण बनकर अपने पवित्र अभियान को पूरा किया ।
  • ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी ने न सिर्फ किसानों तथा अछूतों के घर घर जाकर बच्चियों को पाठशाला भेजने का आग्रह किया बल्कि अनाथ बच्चों व विधवाओं हेतु बालहत्या प्रतिबंधक गृह के द्वार खोले और सभी जातियों के लिए अपने घर का हौज भी खोल दिया।

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