Ghar ki yad- ( घर की याद ) Class 11th- Hindi Chapter- 5th- Aroh- Easy Summary

- आज पानी गिर रहा है,
- बहुत पानी गिर रहा है,
- रात भर गिरता रहा है,
- प्राण मन घिरता रहा है,
- बहुत पानी गिर रहा है,
- घर नज़र में तिर रहा है,
- घर कि मुझसे दूर है जो,
- घर खुशी का पूर है जो,
( काव्यांश 1 )
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[ सन्दर्भ ]
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता घर की याद से ली गई हैं |
[ प्रसंग ]
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने कारावास में रहने के दौरान रातभर वर्षा होने के कारण घर की याद आने का सुंदर वर्णन किया है |
- आज पानी गिर रहा है,
- बहुत पानी गिर रहा है,
- रात भर गिरता रहा है.
- प्राण मन घिरता रहा है.
- बहुत पानी गिर रहा है.
- घर नज़र में तिर रहा है,
- घर कि मुझसे दूर है जो,
- घर खुशी का पूर है जो,
- कवि कह रहा है कि आज बाहर बहुत पानी बरस रहा है अर्थात बाहर मूसलाधार बारिश हो रही है रातभर हुई इस बारिश ने उसके मन की कोमल भावनाओं को जागृत कर दिया है ऐसी तेज बारिश में कवि की आंखों के सामने उसका घर तैरता हुआ नजर आने लगता है अर्थात कारावास में रहने के कारण उसे अपना घर और घर के सदस्य याद आने लगते हैं|
- वह घर जो उससे बहुत दूर है और खुशियों से भरा हुआ है कहने का भाव यह है कि उसके जेल प्रवास के समय भयंकर वर्षा होने के कारण उसे घर की याद आने लगती है|
( काव्यांश 2 )
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- घर कि घर में चार भाई,
- मायके में बहिन आई,
- बहिन आई बाप के घर,
- हाय रे परिताप के घर!
- घर कि घर में सब जुड़े हैं,
- सब कि इतने कब जुड़े हैं,
- चार भाई चार बहिन
- भुजा भाई प्यार बहिनें
[ सन्दर्भ ]
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता घर की याद से ली गई हैं |
[ प्रसंग ]
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि को अपने घर के सदस्यों की याद आ रही है |
- घर कि घर में चार भाई,
- मायके में बहिन आई,
- बहिन आई बाप के घर,
- हाय रे परिताप के घर!
- घर कि घर में सब जुड़े हैं,
- सब कि इतने कब जुड़े हैं,
- चार भाई चार चार बहिनें,
- भुजा भाई प्यार बहिनें
- कवि अपने परिवार के सदस्यों को याद करते हुए कहता है कि उसके घर में चार भाई हैं आज उसकी विवाहिता बहन भी मायके अर्थात अपने घर आई होगी और उसे ना पाकर वह बहुत दुखी हुई होगी।
- परिवार की वर्तमान स्थिति को देखकर ऐसा लगता है मानो उसकी बहन अपने पिता के घर ना आकर कष्ट और दुख के घर आ गई है कहने का भाव यह है कि उसके जेल जाने से घर में उदासी छा गई है कवि का घर वास्तव में एक सुखी घर है क्योंकि सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं अर्थात सभी का आपस में गहरा प्यार है चारों भाई चार भुजाओं के समान है और बहनें अपने भाइयों से अत्याधिक प्यार करती हैं
- और माँ बिन-पढ़ी मेरी,
- दुःख में वह गढ़ी मेरी
- माँ कि जिसकी गोद में सिर,
- रख लिया तो दुख नहीं फिर,
- माँ कि जिसकी स्नेह-धारा,
- का यहाँ तक भी पसारा,
- उसे लिखना नहीं आता,
- जो कि उसका पत्र पाता।
( काव्यांश 3 )
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[ सन्दर्भ ]
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता घर की याद से ली गई हैं |
[ प्रसंग ]
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि जेल में बैठकर अपनी माँ को याद कर रहा है |
- और माँ बिन-पढ़ी मेरी,
- दुःख में वह गढ़ी मेरी
- माँ कि जिसकी गोद में सिर,
- रख लिया तो दुख नहीं फिर,
- माँ कि जिसकी स्नेह-धारा,
- का यहाँ तक भी पसारा,
- उसे लिखना नहीं आता,
- जो कि उसका पत्र पाता।
- कवि कहता है कि उसकी मां पढ़ी-लिखी नहीं है मैं उसके जेल जाने के कारण दुखी है वह अपनी मां की ममता का उल्लेख करते हुए कहता है कि उनकी गोद में सिर रखने से उसके सारे कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं कवि आगे कहता है कि मां के प्यार की धारा का प्रसार बहुत दूर-दूर तक फैला हुआ है उसके स्नेह की धारा यहां जेल तक भी बह रही है |
- कवि कहता है कि उसकी मां पढ़ी-लिखी नहीं है जिस कारण है उसे पत्र भी नहीं लिख सकती इसलिए उसे अपनी मां का कोई पत्र भी प्राप्त नहीं होता
- पिता जी जिनको बुढ़ापा,
- एक क्षण भी नहीं व्यापा,
- जो अभी भी दौड़ जाएँ,
- जो अभी भी खिलखिलाएँ,
- मौत के आगे न हिचकें,
- शेर के आगे न बिचकें,
- बोल में बादल गरजता,
- काम में झंझा लरजता,
( काव्यांश 4 )
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[ सन्दर्भ ]
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता घर की याद से ली गई हैं |
[ प्रसंग ]
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपने पिता की विशेषताओं के बारे में बताते हैं |
- पिता जी जिनको बुढ़ापा,
- एक क्षण भी नहीं व्यापा,
- जो अभी भी दौड़ जाएँ,
- जो अभी भी खिलखिलाएँ,
- मौत के आगे न हिचकें,
- शेर के आगे न बिचकें,
- बोल में बादल गरजता,
- काम में झंझा लरजता,
- कवि कहता है कि घर पर मेरे पिताजी हैं वह बूढ़े हो चुके हैं परंतु बुढ़ापे का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा आज भी उनके हृदय में जवानों जैसा उत्साह और साहस है शरीर से भी इतने स्वस्थ हैं कि वे अभी भी दौड़ लगा सकते हैं वे अभी भी खिलखिला कर हंस सकते हैं पिताजी में अभी भी युवाओं जैसी चुस्ती फुर्ती है
- कहने का भाव है कि वे प्रसन्नता एवं उल्लास से भरे हुए हैं कभी कहता है कि उनमें इतना साफ है कि वह मौत के सामने भी डट कर खड़े हो सकते हैं तथा शेर के सामने आने पर भी वह नहीं डरते कभी के कहने का भाव यह है कि पिताजी की उम्र का प्रभाव उनके किसी भी कार्य पर नहीं पड़ा आज भी उनकी इच्छाशक्ति दृढ़ है
- आज गीता पाठ करके,
- दंड दो सौ साठ करके,
- खूब मुगदर हिला लेकर,
- मूठ उनकी मिला लेकर,
- जब कि नीचे आए होंगे,
- नैन जल से छाए होंगे,
- हाय, पानी गिर रहा है,
- घर नज़र में तिर रहा है,
( काव्यांश 5 )
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[ सन्दर्भ ]
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता घर की याद से ली गई हैं |
[ प्रसंग ]
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपनें पिता को याद करके उनकी आध्यात्मिक प्रवृति का वर्णन कर रहे हैं |
- आज गीता पाठ करके
- दंड दो सौ साठ करके,
- खूब मुगदर हिला लेकर,
- मूठ उनकी मिला लेकर,
- जब कि नीचे आए होंगे,
- नैन जल से छाए होंगे,
- हाय, पानी गिर रहा है,
- घर नज़र में तिर रहा है
- कभी अपने पिता को याद करते हुए कहता है कि पिताजी जब रोज की तरह श्रीमद भगवत गीता का पाठ करके तथा 260 दंड बैठक लगाकर मुझे याद करके उनकी आंखें भर आई होंगी
- मुझे अपने पास ना पाकर बहुत व्याकुल हुए होंगे इन सब बातों की स्मृति कभी को परेशान कर देती है तथा बरसते पानी में कवि को घर की याद सताने लगती है|
- चार भाई चार बहिनें,
- भुजा भाई प्यार बहिनें,
- खेलते या खड़े होंगे,
- नज़र उनको पड़े होंगे।
- पिता जी जिनको बुढ़ापा,
- एक क्षण भी नहीं व्यापा,
- रो पड़े होंगे बराबर,
- पाँचवें का नाम लेकर,
( काव्यांश 6 )
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[ सन्दर्भ ]
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता घर की याद से ली गई हैं |
[ प्रसंग ]
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपने पिता और सदस्यों को याद करके भावुक हो उठते हैं |
- चार भाई चार बहिनें,
- भुजा भाई प्यार बहिनें,
- खेलते या या खड़े होंगे,
- नज़र उनको पड़े होंगे।
- पिता जी जिनको बुढ़ापा,
- एक क्षण भी नहीं व्यापा.
- रो पड़े होंगे बराबर,
- पाँचवें का नाम लेकर,
- कवि अपने भाई-बहनों को याद करते हुए कहते हैं कि और बहने हैं उसके भाई भुजा के समान सहयोगी और कर्मठ है और बहने प्रेम का प्रतीक है
- इस समय जब उसके घर में उसके भाई-बहन खेल रहे होंगे या खड़े होंगे तो उसके पिताजी के नजर उन पर आवश्यक ही होगी और वे उन्हें देखकर प्रसन्न हो रहे होंगे लेकिन मुझे याद कर रहे होंगे और आंसू बहा रहे होंगे
- पाँचवाँ मैं हूँ अभागा,
- जिसे सोने पर सुहागा,
- पिता जी कहते रहे हैं.
- प्यार में बहते रहे हैं.
- आज उनके स्वर्ण बेटे,
- लगे होंगे उन्हें हेटे,
- क्योंकि मैं उनपर सुहागा
- बँधा बैठा हूँ अभागा,
( काव्यांश 7 )
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[ सन्दर्भ ]
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता घर की याद से ली गई हैं
[ प्रसंग ]
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपने आप को अभागा समझता है और भावुक होता है ||
- पाँचवाँ मैं हूँ अभागा,
- जिसे सोने पर सुहागा,
- पिता जी कहते रहे हैं,
- प्यार में बहते रहे हैं,
- आज उनके स्वर्ण बेटे,
- लगे होंगे उन्हें हेटे,
- क्योंकि मैं उनपर सुहागा
- बँधा बैठा हूँ अभागा,
- कवि अपने पिता को याद करते हुए कहता है कि मैं अपने पिता का पांचवां पुत्र हूं मुझे वह सदैव ही अपने पुत्रों में सोने पर सुहागा अर्थात अन्य पुत्रों से श्रेष्ठ मानते थे ऐसा कहते हुए उन्हें हमेशा ही अत्यधिक प्रसन्नता की अनुभूति होती थी आज मेरे जेल में बंदी होने के कारण उन्हें अपने चारों सोने के समान गुणों वाले पुत्र भी तुच्छ लग रहे होंगे क्योंकि वह तो मुझे उनसे श्रेष्ठ समझा करते थे आज में भाग्यहीन जेल में होने के कारण उन्हें कष्ट पहुंचा रहा हूं
- और माँ ने कहा होगा,
- दुःख कितना बहा होगा.
- आँख में किस लिए पानी
- वहाँ अच्छा है भवानी
- वह तुम्हारा मन समझकर,
- और अपनापन समझकर,
- गया है सो ठीक ही है,
- यह तुम्हारी लीक ही है
( काव्यांश 8 )
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[ सन्दर्भ ]
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता घर की याद से ली गई हैं |
[ प्रसंग ]
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपने पिता और माता के मन की व्यथा का खुद अनुभव कर रहा है |
- और माँ ने कहा होगा,
- दुःख कितना बहा होगा.
- आँख में किस लिए पानी
- "वहाँ अच्छा है भवानी
- वह तुम्हारा मन समझकर,
- और अपनापन समझकर,
- गया है सो ठीक ही है,
- यह तुम्हारी लीक ही है,
- कवि अपने पिता की स्थिति का अनुमान लगाकर कहता है कि उसके पिताजी की आंखों में आंसू देख कर मां का हृदय दुखी हो रहा होगा और वे उन्हें ढांढस बढ़ाते हुए कहती होंगी कि हमारा छोटा बेटा भवानी अच्छी तरह से होगा आप अपना मन क्यों छोटा कर रहे हैं क्यों आंसू बहा रहे हैं वह उन्हें समझाते हुए कहती है कि वह आपके मन की बात समझ कर और आपसे अपनत्व का भाव दर्शाने के कारण ही जेल गया है वह आपके द्वारा बताए गए रास्ते पर ही तो चल रहा है अर्थात वह तो आपके द्वारा बनाई गई परंपरा का ही पालन कर रहा है
- पाँव जो पीछे हटाता,
- कोख को मेरी लजाता,
- इस तरह होओ न कच्चे,
- रो पड़ेंगे और बच्चे,
- पिता जी ने कहा होगा,
- हाय, कितना सहा होगा,
- कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
- धीर मैं खोता, कहाँ हूँ,
( काव्यांश 9 )
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[ सन्दर्भ ]
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता घर की याद से ली गई हैं |
[ प्रसंग ]
प्रस्तुत काव्यांश में कवि की माँ उसके पिताजी को हृदय दृढ करने और धैर्य रखने के लिए समझा रही है |
- पाँव जो पीछे हटाता,
- कोख को मेरी लजाता,
- इस तरह होओ न कच्चे,
- रो पड़ेंगे और बच्चे,
- पिता जी ने कहा होगा,
- हाय, कितना सहा होगा,
- कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
- धीर मैं खोता, कहाँ
- कवि की मां कवि के पिता को समझाती हुई कह रही है कि जिस रास्ते पर उनका बेटा चल रहा है वह संघर्ष का रास्ता है उसके कर्तव्य का रास्ता है यदि वह उस पर चलने से अपना पांव पीछे हटा लेता तो इससे मेरी कोख ही लज्जित हो जाती अर्थात यदि वह अपने देश के प्रति कर्तव्य से मुँह मोड़ लेता तो उसकी वीर जननी को ही लज्जा आती। ऐसे समय में तुम अपनी आंखों से आंसू बहा कर उसे कायर मत बनाओ मां पिताजी को हिम्मत देते हुए कहती है कि आप मन को कमजोर ना करें आप धैर्य बनाए रखें अन्यथा आपके बच्चों का साहस भी टूटेगा और वे रो पड़ेंगे|
- पाँव जो पीछे हटाता,
- कोख को मेरी लजाता,
- इस तरह होओ न कच्चे,
- रो पड़ेंगे और बच्चे,
- पिता जी ने कहा होगा,
- हाय, कितना सहा होगा,
- कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
- धीर मैं खोता, कहाँ हूँ,
- कवि कहता है कि तब पिताजी ने अपने आंसुओं को छुपाते हुए कहा होगा कि मैं कहां रो रहा हूं मैं अपना धैर्य नहीं को रहा कवि यह सोचकर करुणा से भर गया है कि अपने हृदय में भेजना छिपाना उनके लिए कितना मुश्किल हो रहा होगा
- हे सजीले हरे सावन,
- हे कि मेरे पुण्य पावन,
- तुम बरस लो वे न बरसें,
- पाँचवें को वे न तरसें,
- मैं मज़े में हूँ सही है,
- घर नहीं हूँ बस यही है,
- किंतु यह बस बड़ा बस है,
- इसी बस से सब विरस है,
( काव्यांश 10 )
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[ सन्दर्भ ]
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता घर की याद से ली गई हैं |
[ प्रसंग ]
प्रस्तुत काव्यांश में कवि अपनी मानसिक स्थिति का वर्णन कर रहा है |
- हे सजीले हरे सावन,
- हे कि मेरे पुण्य पावन,
- तुम बरस लो वे न बरसें,
- पाँचवें को वे न तरसें,
- मैं मज़े में हूँ सही है,
- घर नहीं हूँ बस यही है,
- किंतु यह बस बड़ा बस है,
- इसी बस से सब विरस है,
- कभी सावन को संबोधित करते हुए कहता है कि है सुंदर आकर्षक व लोगों को खुशियां प्रदान करने वाले सावन थे शुभ वर्जन का मंगल करने वाले सावन तुम अवश्य बरसों तुम्हारे बरसने से जगत का उद्धार होता है लेकिन मेरे पिताजी की आंखों को ना बरसने दो कवि को सावन का बरसना अच्छा लगता है पर अपने पिता की आंखों से आंसू का बरसना नहीं
- हे सजीले हरे सावन,
- हे कि मेरे पुण्य पावन,
- तुम बरस लो वे न बरसें,
- पाँचवें को वे न तरसें,
- मैं मज़े में हूँ सही है,
- घर नहीं हूँ बस यही है,
- किंतु यह बस बड़ा बस है,
- इसी बस से सब विरस है,
- कवि आगे कहता है कि मेरा संदेश देते हुए उन्हें कहना कि मैं यहां पर बहुत आनंद में हूं सुख से रह रहा हूं बस कमी है तो इस बात की कि मैं घर पर नहीं हूं कवि के बस कहने में ही उसका सारा दर्द छुपा है।कवि स्वयं को ही संबोधित करते हुए कहता है कि मैंने उन्हें ढांढस बताने के लिए तो यह कह दिया कि बस घर में नहीं हूं परंतु घर से अलग होकर रहना बहुत कठिन है इसी दुख से मेरा जीवन दुखी है मैं वियोग लोग भुगत रहा हूं जो नीरस से और नरक के समान है
- किंतु उनसे यह न कहना
- उन्हें देते धीर रहना,
- उन्हें कहना लिख रहा
- उन्हें कहना पढ़ रहा
- काम करता हूँ कि कहना,
- नाम करता हूँ कि कहना,
- चाहते हैं लोग कहना,
- मत करो कुछ शोक कहना,
( काव्यांश 11 )
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[ सन्दर्भ ]
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता घर की याद से ली गई हैं |
[ प्रसंग ]
प्रस्तुत काव्यांश में कवि सावन को अपना दूत बताकर अपना सन्देश अपने माता पिता तक पहुंचाने के लिए कहता है |
- किंतु उनसे यह न कहना,
- उन्हें देते धीर रहना,
- उन्हें कहना लिख रहा
- उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ,
- काम करता हूँ कि कहना,
- नाम करता हूँ कि कहना,
- चाहते हैं लोग कहना,
- मत करो कुछ शोक कहना,
- कवि संदेशवाहक सावन से कहता है कि यह सुंदर सजीले सावन तुम घर जाकर मेरे पिता को यह मत कहना कि मैं दुखी हूं उनके सामने निराशा की बातें मत करना उन्हें कहना कि मैं आनंद से हूं और मस्ती में हूं मैं साहित्य का अध्ययन व कविताएं लिखकर नाम भी कर रहा हूं मैं हर समय व्यस्त रहता हूं यहां मुझे किसी प्रकार का कोई दुख नहीं है तुमने कहना कि जेल के लोग भी उसे बहुत चाहते हैं इसलिए वह दुख ना करें
- और कहना मस्त हूँ मैं,
- कातने में व्यस्त हूँ मैं,
- वज़न सत्तर सेर मेरा,
- और भोजन ढेर मेरा,
- कूदता हूँ, खेलता हूँ,
- दुःख डट कर ठेलता हूँ,
- और कहना मस्त हूँ, में
- यों न कहना अस्त हूँ मैं
( काव्यांश 12 )
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[ सन्दर्भ ]
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता घर की याद से ली गई हैं |
[ प्रसंग ]
प्रस्तुत काव्यांश में कवि सावन के माध्यम से अपना सन्देश भेज रहा है |
- और कहना मस्त हूँ मैं,
- कातने में व्यस्त हूँ मैं,
- वज़न सत्तर सेर मेरा,
- और भोजन ढेर मेरा,
- कूदता हूँ, खेलता हूँ,
- दुःख डट कर ठेलता हूँ,
- और कहना मस्त हूँ, में
- यों न कहना अस्त हूँ मैं
- कवि सावन से कहता है कि यह सावन तुम मेरे माता पिता से कहना कि मैं यहां गांधीजी के निर्देश पर सूत कातता हूँ। मैं यहां खूब खाता पीता हूं मेरा वजन 70 सेर हो गया है कहने का भाव यह है कि मैं हर प्रकार से यहां पर खुश हूं और मजे में हूं। आगे कवि कहते हैं कि यह सावन तुम पिताजी से यह भी कहना कि मैं यहां पर खूब खेलता कूदता और दुखों को अपने से दूर रखता हूं तुम उनसे कहना कि मैं हमेशा मस्त और निश्चिंत रहता हूं लेकिन तुम उनसे यह कभी मत कहना कि मैं उदास तोता निराश हूं|
- हाय रे ऐसा न कहना,
- है कि जो वैसा न कहना,
- कह न देना जागता हूँ,
- आदमी से भागता हूँ
- कह न देना मौन हँ मैं
- खुद न समझँ कौन हूँ मैं,
- देखना कुछ बक न देना,
- उन्हें कोई शक न देना,
- हे सजीले हरे सावन,
- हे कि मेरे पुण्य पावन,
- तुम बरस लो वे न बरसें,
- पाँचवें को वे न तरसें।
( काव्यांश 13 )
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[ सन्दर्भ ]
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता घर की याद से ली गई हैं |
[ प्रसंग ]
प्रस्तुत काव्यांश में कवि सावन के माध्यम से अपना सन्देश भेज रहा है क्योंकि उसे जेल में अपने घर की याद आ रही है |
- हाय रे ऐसा न कहना,
- है कि जो वैसा न कहना,
- कह न देना जागता हूँ,
- आदमी से भागता हूँ
- कह न देना मौन हँ मैं
- खुद न समझँ कौन हूँ मैं,
- देखना कुछ बक न देना,
- उन्हें कोई शक न देना,
- हे सजीले हरे सावन,
- हे कि मेरे पुण्य पावन,
- तुम बरस लो वे न बरसें,
- पाँचवें को वे न तरसें।
- कवि सावन को निर्देश देते हुए कहता है कि तुम उनसे यह मत कहना कि मैं एकदम चुप चाप रहता हूं जैसा मैं तुम्हें दिख रहा हूं अर्थात मेरे पिता के सामने मेरे दुखों का बयान ना करना तुम उनसे यह मत कह देना कि मुझे नींद नहीं आती मुझे आदमियों को देखकर भय लगता है।यह सावन देखो मेरे पिताजी के सामने बहुत सोच समझकर बोलना उनसे कोई व्यर्थ की बात ना कहना जिससे उन्हें दुख हो ऐसा बोलना जिससे मैं तुम्हारी बातों पर विश्वास करें
- हाय रे ऐसा न कहना,
- है कि जो वैसा न कहना,
- कह न देना जागता हूँ,
- आदमी से भागता हूँ
- कह न देना मौन हँ मैं
- खुद न समझँ कौन हूँ मैं,
- देखना कुछ बक न देना,
- उन्हें कोई शक न देना,
- हे सजीले हरे सावन,
- हे कि मेरे पुण्य पावन,
- तुम बरस लो वे न बरसें,
- पाँचवें को वे न तरसें।
- तुम उन्हें मेरे कष्टों के बारे में मत बताना मेरे हरे-भरे सुंदर सावन मेरे मंगल की कामना करने वाले मित्र तुम जितना चाहो उतना बरस लो पर मेरे पिता की आंखों से आंसू नहीं बरसने चाहिए। कवि की याद में उसके माता पिता तो चिंतित है ही कवि भी उनकी स्थिति की कल्पना करके दुखी हो रहा है।
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