History Class 12th Chapter- 13th Book-3rd (महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन )

History Class 12th Chapter- 13th Book-3rd (महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन )

अध्याय- महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन

[ गांधी जी की भारत वापसी ]

मोहनदास करमचंद गांधी :-
गाँधी जी विदेश में 2 दशक तक रहे और जनवरी 1915 में भारत वापस आ गए.
गांधी जी ने इन वर्षों का ज्यादातर हिस्सा अफ्रीका में गुज़ारा था.
वहां वे एक वकील के रूप में गए थे और बाद में वे उस क्षेत्र के भारतीय समुदाय के नेता बन गए.
दक्षिण अफ्रीका ने ही गाँधी जी को ‘महात्मा’ बनाया, और.
दक्षिण अफ्रीका में ही गाँधी जी ने पहली बार सत्याग्रह के रूप में जानी गई अहिंसात्मक विरोध की अपनी विशिष्ट तकनीक का इस्तेमाल किया.
उन्होंने विभिन्न धर्मों के बीच एकता को बढ़ाने का प्रयास किया.
उच्च जाति वाले भारतीयों को निम्न जाति वाले लोगो और महिलाओं के प्रति भेदभाव वाले व्यवहार के लिए चेतावनी दी.
1915 में जब गांधी जी भारत आए तो उस समय का भारत 1893 में जब वे गए थे तब के समय से अलग था.
भारत अभी भी ब्रिटिश उपनिवेश था.
लेकिन भारत राजनीतिक दृष्टि से काफी सक्रिय हो चुका था.
स्वदेशी आन्दोलन (1905-07) :-
कुछ प्रमुख नेता : बाल गंगाधर तिलक (महाराष्ट्र).
विपिन चन्द्र पाल (बंगाल).
लाला लाजपत राय (पंजाब).
लाल, बाल,पाल.
इन लोगो ने अंग्रेजी शासन के प्रति लड़ाकू विरोध का समर्थन किया.
गोपाल कृष्ण गोखले , मोहम्मद अली जिन्ना.
वहीं कुछ उदारवादी समूह जो लगातार प्रयास करते रहने का हिमायती था.
महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु - गोपाल कृष्ण गोखले थे.
इन्होंने गांधी जी को एक वर्ष तक ब्रिटिश भारत यात्रा करने की सलाह दी.
जिससे कि वह इस भूमि और यहां के लोगों को जान सकें.
यहां के लोगों की समस्याओं को समझ सकें.

[ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय उदघाटन समारोह ]

फरवरी 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में आमंत्रित व्यक्तियों में राजा और मानवप्रेमी थे.
जिनके द्वारा दिए गये दान से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना में योगदान दिया.
समारोह में एनी बेसेंट जैसे कांग्रेस के कुछ महत्वपूर्ण नेता भी उपस्थित थे.
जब गाँधी जी के बोलने की बारी आई तो उन्होंने मजदूर, गरीबों की ओर ध्यान न देने के कारण भारतीय विशिष्ट वर्ग को आड़े हाथो लिया.
उन्होंने कहा की बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना भले ही शानदार है.
किन्तु उन्होंने वहां धनी और अमीर लोगों को देखकर गरीब लोगों के लिए चिंता प्रकट की.
उन्होंने कहा की भारत के लिए मुक्ति तब तक संभव नहीं.
जब तक आप अपने आप को इन अलंकरणों से ,मुक्त न कर ले.
उन्होंने कहा की “हमारे लिए स्वशासन का तब तक कोई अभिप्राय नहीं है.
जबतक हम किसानों से उनके श्रम का लगभग सम्पूर्ण लाभ स्वयं तथा अन्य लोगों को ले लेने की अनुमति देते रहेगे”.
हमारी मुक्ति केवल किसानों के माध्यम से ही हो सकती है न तो वकील , न डॉक्टर और न ही जमींदार इसे सुरक्षित रख सकते हैं.
गाँधी जी ने स्वयं को बधाई देने के सुर में सुर मिलाने की अपेक्षा लोगों को उन किसानों और कामगारों की याद दिलाना चुना.
जो भारतीय जनसँख्या के अधिसंख्य हिस्से के निर्माण करने के बावजूद वहां श्रोताओं में अनुपस्थित थे.
1917 का वर्ष चंपारण में गांधीजी का किसानों को अपनी पसंद की फसल उगाने की आजादी दिलाने में बीता.
1918 में गांधीजी गुजरात में दो अभियानों में संलग्न रहे.
पहला - अहमदाबाद में कपड़े की मीलों में काम करने वालों के लिए काम करने की बेहतर स्थितियों की मांग की.
दूसरा - खेड़ा में फसल चौपट होने पर राज्य से किसानों का लगान माफ करने की मांग की.

असहयोग आन्दोलन की शुरुआत

चंपारण अहमदाबाद और खेड़ा में की गई पहल से गांधी जी एक ऐसे राष्ट्रवादी के रूप में उभरे जिनमे गरीबों के लिए गहरी सहानुभूति थी.
1914-18 के महान युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया और बिना जांच के कारावास की अनुमति दे दी.
अब ‘सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली एक समिति की संस्तुतियों के आधार पर इन कठोर उपायों को जारी रखा गया.
उत्तरी और पश्चिमी भारत में चारो तरफ बंद का समर्थन किया गया.
स्कूल और दुकान के बंद होने के कारण जीवन ठहर सा गया.
गाँधी जी ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ पूरे देश में अभियान चलाया.
पंजाब में विशेष रूप से भारी विरोध हुआ.
पंजाब के बहुत से लोगों ने युद्ध में अंग्रेजों के पक्ष में सेवा की थी.
यह लोग अपनी सेवा के बदले इनाम की अपेक्षा कर रहे थे.
लेकिन अंग्रेजों ने इन्हें इनाम की जगह रॉलेक्ट एक्ट दे दिया.
पंजाब जाते समय गांधी जी को कैद कर लिया गया.
स्थानीय कांग्रेस नेताओं को भी गिरफ्तार किया गया.
स्थिति धीरे-धीरे तनावपूर्ण हो गई.
अप्रैल 1919 में अमृतसर में खून खराबा अपने चरम पर पहुंच गया.
यहां एक अंग्रेज ब्रिगेडियर ने एक राष्ट्रवादी सभा पर गोली चलाने का हुक्म दिया.
इस जलियांवाला बाग हत्याकांड में 400 से अधिक लोग मारे गए.
रोल्ट सत्याग्रह से ही गांधी जी एक सच्चे राष्ट्रीय नेता बन गए.
उसके बाद उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ ‘असहयोग अभियान’ की मांग कर दी.
भारतीयों से आग्रह किया गया की स्कूल ,कॉलेज और न्यायलय न जाएं तथा कर न चुकाएं.
गांधीजी ने कहा अगर असहयोग का सही तरह से पालन हुआ तो एक साल में भारत स्वराज प्राप्त कर लेगा.
अपने संघर्ष का विस्तार करते हुए गांधी जी ने खिलाफत आन्दोलन के साथ हाथ मिला लिए.
गाँधी जी को ये उम्मीद थी कि असहयोग आन्दोलन और हिन्दू मुस्लिम एकता इसे अंग्रेजी शासन का अंत हो जाएगा.
विद्यार्थियों द्वारा स्कूल / कॉलेजों का बहिष्कार.
वकीलों द्वारा अदालतों का बहिष्का.
( श्रमिकों द्वारा हडतालें ).
किसानों ने कर चुकाना बंद कर दिया.
1921 में 396 हड़तालें हुई, जिसमें 6 लाख मजदूर शामिल थे.
उत्तरी आंध्र की पहाड़ियों में जनजातियों ने वन्य कानून मानने से मना किया.
अवध के किसानों ने कर नहीं चुकाए.
कुमाऊं के किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढोने से मना किया.
( 1857 के विद्रोह के बाद )
पहली बार असहयोग आंदोलन से अंग्रेजी राज की नींव हिल गई.
( चौरी चौरा ).
फरवरी 1922 में किसानों के एक समूह ने संयुक्त प्रांत के चौरी चौरा पुरवा में एक पुलिस स्टेशन पर आक्रमण करके उसमे आग लगा दी.
इस अग्निकांड में कई पुलिस वालों की जान चली गई, हिंसा की इस कार्यवाही से गांधी जी को यह आन्दोलन वापस लेना पड़ा.
असहयोग आंदोलन के दौरान हज़ारों भारतीयों को जेल में डाल दिया गया.
गांधी जी को भी मार्च 1922, में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.
(जज जस्टिस सी.एन ब्रूमफील्ड) ने सजा सुनाते समय एक महत्वपूर्ण भाषण दिया.
इस तथ्य को नकारना असंभव होगा कि मैंने आज तक जिनकी जांच की है अथवा करूंगा उनसे भिन्न श्रेणी के हैं आपके लाखो देशवासियों की दृष्टि में आप एक महान देशभक्त और नेता है क्योंकि गांधी जी ने कान की अवहेलना की थी उस न्याय पीठ के लिए गांधीजी को 6 वर्षों की जेल की सजा सुनाया जाना आवश्यक था लेकिन जज ब्रूमफील्ड ने कहा कि यदि भारत में घट रही घटनाओं की वजह से सरकार के लिए सजा के इन वर्षों में कमी और आप को मुक्त करना संभव हुआ तो इससे मुझसे ज्यादा कोई प्रश्न नहीं होगा.
जन नेता के रूप में गांधी जी .
गांधी जी ने आन्दोलन में आम जनता को भी शामिल किया.
अब आन्दोलन में केवल अमीर लोग नहीं थे .
बल्कि आन्दोलन में आम लोगों की भी हिस्सेदारी थी.
जैसे :किसान, श्रमिक तथा अन्य कारीगर .
1922 तक गांधी जी ने भारतीय राष्ट्रवाद को बिल्कुल बदल कर रख दिया.
1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में जो उन्होंने भाषण दिया था.
उस भाषण में किए गए वायदे को उन्होंने पूरा किया.
अब यह आंदोलन केवल अमीर व्यवसायिकों ,बुद्धिजीवियों का ही नहीं था.
अब इसमें गांधी जी ने आम जनता को भी शामिल किया.
हजारों की संख्या में किसान, श्रमिक और कारीगर आंदोलन में भाग लेने लगे.
इनमें से कई गांधीजी के प्रति आदर व्यक्त करते हुए उन्हें महात्मा कहने लगे.
सामान्य जन के साथ इस तरह की पहचान उनके वस्त्रों में विशेष रूप से देखी जा सकती थी.
जहाँ अन्य नेता पश्चिमी शैली के सूट तथा औपचारिक वस्त्र पहनते थे .
वहीँ गाँधी जी एक साधारण धोती पहना करते थे.
गाँधी जी जहाँ भी गए वहीँ उनकी चामत्कारिक शक्तियों की अफवाहें फ़ैल गई .
कुछ स्थानों गांधी जी को गांधी बाबा तथा महात्मा गाँधी कहकर पुकारा जाने लगा .
तथा गांधी महाराज जैसे शब्द भी उनके लिए प्रयोग किए जाने लगे.
जन नेता के रूप में गांधी जी
गाँधी जी हमेशा से ही गरीब किसानों के साथ खड़े रहे तथा गांधी जी गरीब किसानो के हमदर्द तथा मसीहा के रूप में देखे जाने लगे.
गांधी जी ने आन्दोलन का प्रचार प्रसार मातृभाषा में किया.
महात्मा गांधी जी ने हिन्दू मुस्लिम की एकता पर बल देने का प्रयास किया जिससे आन्दोलन का स्वरूप बदलने लगा.
रजवाड़ों को समझाने हेतु प्रजामंडल का गठन किया गया.
गाँधी जी के आकर्षक व्यक्तित्व के कारण बड़े बड़े नेता उनसे आकर जुड़ने लगे.
गांधी जी ने चरखे का प्रचार एवं प्रसार किया.

अफवाहें

कुछ स्थानों पर यह कहा गया कि उन्हें.
राजा के द्वारा किसानों के दुख तकलीफों में सुधार के लिए भेजा गया है.
उनके पास सभी स्थानीय अधिकारियों के निर्देशों को अस्वीकृत करने की शक्ति है.
गांधी जी की शक्ति अंग्रेज बादशाह से अधिक है.
उनके आने से औपनिवेशिक शासक जिले से भाग जाएंगे.
( गांधी जी की आलोचना करने वाले गांव के लोगों के घर रहस्यात्मक रूप से गिर गए और उनकी फसल भी चौपट हो गई.)
1) बस्ती गांव के सिकंदर साहू ने 15 फरवरी को कहा कि वह महात्मा जी में तब विश्वास करेगा जब उसके कारखाने ( जहां गुड़ का उत्पादन होता है) में गन्ने के रस से भरा कड़हा (उबलता हुआ) दो भागों में टूट जाएगा तुरंत ही कड़हा वास्तव में बीच में से दो हिस्सों में टूट गया.
2) आजमगढ़ के किसान ने कहा कि वह महात्मा जी की प्रमाणिकता मैं तो विश्वास करेगा जब उसके खेत में लगाए गए गेहूं तिल में बदल जाएंगे अगले दिन उस खेत का सहारा गेहूं तिल में बदल गया.
महात्मा गांधी जाति से एक व्यापारी तथा पेशे से वकील थे.
लेकिन उनका सादगी भरा जीवन तथा उनकी जीवनशैली और हाथों से काम करने के प्रति उनके लगाव की वजह से गरीब मजदूरों के प्रति बहुत अधिक सहानुभूति रखते थे.
कांग्रेस की कई नई शाखाएं खोली गई.
रजवाड़ा में राष्ट्रवादी सिद्धांत को बढ़ावा देने के लिए प्रजामंडल की श्रंखला स्थापित की जा रही थी.
महात्मा गांधी ने राष्ट्रवादी संदेश अंग्रेजी भाषा की जगह मातृभाषा में करने को प्रोत्साहित किया.
गांधी के प्रशंसकों में गरीब किसान और धनी उद्योगपति दोनों ही थे
1917 से 1922 के बीच भारतीयों के बहुत ही प्रतिभाशाली वर्ग ने स्वयं को गांधी से जोड़ लिया
इनमें महादेव देसाई, वल्लभ भाई पटेल, जे.बी कृपलानी, सुभाष चंद्र बोस,
अबुल कलाम आजाद, जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, गोविंद बल्लभ पंत
तथा सी. राजगोपालाचारी शामिल थे
महात्मा गांधी को 1924 में जेल से रिहा कर दिया गया.

अब उन्होंने अपना ध्यान घर में बने कपड़े (खादी) को बढ़ावा देने तथा छुआछूत समाप्त करने पर लगाया .
गांधीजी केवल राजनीतिक नेता नहीं.
बल्कि एक समाजसेवी, समाज सुधारक भी थे.
उनका मानना था कि भारतीयों को बाल विवाह और छुआछूत जैसी सामाजिक.
बुराइयों से मुक्त करना होगा.

नमक सत्याग्रह

असहयोग आन्दोलन समाप्त होने के कई वर्ष बाद तक.
महात्मा गाँधी ने अपने को समाज सुधार के कार्यो पर केन्द्रित रखा.
1928 में उन्होंने पुनः राजनीति में प्रवेश करने का सोची.
( साइमन कमीशन )
1919 में भारत सरकार अधिनियम लाया गया था.
इसे मोंटेक्यू चेम्सफोर्ड सुधार के नाम से भी जाना जाता है.
इसमें यह कहा गया था को दस वर्ष बाद इन सुधारो की जांच की जायेगी.
भारतीय जनता तथा कांग्रेस भी इसकी मांग कर रहे थे.
क्युकी भारतीय इस सुधार से संतुष्ट नहीं थे.
( साइमन कमीशन का विरोध )
साइमन कमीशन का गठन - 1927.
साइमन कमीशन भारत आया – 1928.
साइमन आयोग का अध्यक्ष - जॉन साइमन था.
इसमें सात सदस्य थे.
सभी सदस्य अंग्रेज थे.
इसका भारतीयों ने विरोध किया.
विरोध- बंबई तथा कलकत्ता में विरोध हुआ, साइमन वापस जाओ.
सुभाष चंद्र बोस ने कलकत्ता में विरोध किया.
लखनऊ में- जवाहरलाल नेहरू, जीबी पंत ने विरोध किया.
लाहौर - भगत सिंह ( नौजवान भारत सभा ), नेतृत्व - लाला लाजपत राय.
पुलिस ने लाला लाजपत राय पर लाठी से हमला किया.
लाला लाजपत राय जी की मृत्यु हो गई.
मुस्लिम लीग ने जिन्ना के नेतृत्व में साइमन कमीशन का विरोध किया.
1929 में कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन हुआ.
जवाहरलाल नेहरू को अध्यक्ष चुना गया.
पूर्ण स्वराज की घोषणा.
26 जनवरी 1930 को अलग-अलग स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया.
और देशभक्ति के गीत गाकर स्वतंत्रता दिवस मनाया गया.

[ नमक सत्याग्रह (दांडी) ]

स्वतंत्रता दिवस मनाये जाने के तुरंत बाद गाँधी जी ने घोषणा की.
कि वे ब्रिटिशों द्वारा बनाये गये कानून जिसने नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य को एकाधिकार दे दिया है.
तोड़ने के लिए एक यात्रा का नेतृत्व करेगे.
गाँधी जी का मानना था की हर घर में नमक का उपयोग अपरिहार्य था और अंग्रेज ऊंचे दामों में खरीदने के लिए लोगों को बाध्य कर रहे थे.
इसी को निशाना बनाते हुए गाँधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ कदम उठाया.
स्वतंत्रता दिवस मनाये जाने के तुरंत बाद गाँधी जी ने घोषणा की.
कि वे ब्रिटिशों द्वारा बनाये गये कानून जिसने नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य को एकाधिकार दे दिया है.
तोड़ने के लिए एक यात्रा का नेतृत्व करेगे.
गाँधी जी का मानना था की हर घर में नमक का उपयोग अपरिहार्य था और अंग्रेज ऊंचे दामों में खरीदने के लिए लोगों को बाध्य कर रहे थे.
इसी को निशाना बनाते हुए गाँधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ कदम उठाया.
नमक सत्याग्रह में लोग गांधी जी के साथ हो गए.
आंदोलन को बड़ा देख अंग्रेजों ने लगभग 60,000 लोगों को गिरफ्तार किया.
महात्मा गांधी को भी गिरफ्तार कर लिया गया.
समुद्र तट की ओर गांधी जी की यात्रा की प्रगति की जानकारी उन पर नजर रखने वाले पुलिस अफसरों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट से पता लगती है.
इन रिपोर्ट में गांधी जी द्वारा दिए गए भाषण भी शामिल है.
जिसमें उन्होंने स्थानीय अधिकारियों से भी आंदोलन में जुड़ने की बात कही है.
वसना नामक गांव में गांधीजी ने ऊंची जाति वालों को संबोधित करते हुए.
कहा कि.
“ यदि आप स्वराज के हक में आवाज उठाते हैं तो आपको अछूतों की सेवा करनी पड़ेगी, सिर्फ नमक कर या अन्य करो कि खत्म हो जाने से आपको स्वराज नहीं मिल पाएगा I स्वराज के लिए आपको अपनी उन गलतियों का प्रायश्चित करना होगा.
जो अछूतों के साथ की है.
स्वराज के लिए हिंदू, मुस्लिम, पारसी, सिख सब को एकजुट होना पड़ेगा.
एक साथ आना पड़ेगा यह स्वराज की सीढ़ियां हैं “
गांधीजी के आंदोलन में तथा उनकी सभाओं में तमाम जातियों की औरत , मर्द शामिल हो रहे थे.
हजारों वॉलिंटियर राष्ट्रवादी उद्देश्य के लिए सामने आ रहे थे.
कई सरकारी अफसरों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया.
एक अमेरिकी समाचार पत्रिका टाइम को गांधीजी के कद काठी पर हंसी आती थी.
पत्रिका ने उनका मजाक उड़ाया पत्रिका ने कहा तकुए जैसे शरीर और मकड़ी जैसे पेडू का खूब मजाक उड़ाया था.
इस यात्रा के बारे में अपनी पहली रिपोर्ट में ही टाइम ने नमक यात्रा के मंजिल तक पहुंचने पर शक जाहिर किया .
उनका दावा था कि दूसरे दिन पैदल चलने के बाद गांधीजी जमीन पर पसर गए थे.
पत्रिका को इस बात पर विश्वास नहीं था कि मरियल साधु के शरीर में और आगे जाने की ताकत बची है.
एक हफ्ते में ही पत्रिका की सोच बदल गई.
टाइम ने लिखा कि इस यात्रा को जो भारी जनसमर्थन मिल रहा है.
उसने अंग्रेज शासकों को गहरे तौर पर बेचैन कर दिया है.
अब वे भी गांधीजी को ऐसा साधु और राजनेता कह कर सलामी देने लगे.
जो ईसाई के खिलाफ ईसाई तरीकों का ही हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है.

[ संवाद ]

( नमक यात्रा तीन कारण से उल्लेखनीय है
1 ) इस यात्रा से गाँधी दुनिया की नज़र में आ गए.
इस यात्रा को यूरोप और अमेरिकी प्रेस ने व्यापक कवरेज दी.
2 ) ( इसके द्वारा औरतों की हिस्सेदारी बढ़ी.)
यह पहली राष्ट्रवादी गतिविधि थी.
जिसमें महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.
एक समाजवादी कार्यकर्ता कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने गांधीजी को समझाया.
कि वह अपने आंदोलन को पुरुषों तक ही सीमित ना रखें.
3 ) ( अंग्रेजो में डर )
इस नमक यात्रा के कारण अंग्रेजों का एहसास हुआ
कि अब उनका राज बहुत दिनों तक नहीं टिक सकेगा
उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा

गोल मेज सम्मेलन

( पहला गोल मेज सम्मेलन - 1930.)
इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने लन्दन में गोलमेज सम्मेलनों का आयोजन करना शुरू किया.
पहला गोलमेज सम्मेलन नवम्बर 1930 (इसमें देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं थे ).
जनवरी 1931 (गांधी जी जेल से रिहा).
अगले महीने वायसराय से उनकी बैठक हुई जिसके बाद गांधी-इरविन समझौते पर सहमती बनी.
( जिसकी शर्तों में )
सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस लेना.
सारे कैदियों की रिहाई.
तटीय इलाकों में नमक उत्पादन की अनुमति देना शामिल था .
लेकिन इस समझौते का रेडिकल राष्ट्रवादी होने विरोध किया.
क्योंकि गांधीजी वायसराय से भारतीयों के लिए राजनीतिक स्वतंत्रता का.
आश्वासन हासिल नहीं कर पाए थे.

दूसरा गोल मेज सम्मेलन - 1931

दूसरा गोलमेज सम्मेलन 1931 के आखिर में लन्दन में आयोजित किया गया.
जिसमे गांधी जी कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे.
गांधी जी का कहना था की उनकी पार्टी पूरे भारत का नेतृत्व करती है.
पर इस दावे को 3 पार्टियों ने चुनौती दी (मुस्लिम लीग, रजवाड़े, अम्बेडकर )
इस सम्मेलन का कोई नतीजा नहीं निकला और गाँधी जी को खाली हाथ वापस लौटना पड़ा.
भारत लौटने पर उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू कर दिया.
नए वायसराय लार्ड विलिंग्डन को गांधी जी से बिलकुल हमदर्दी नहीं थी.
अपनी बहन को लिखे एक निजी खत में विलिंगडन ने लिखा था कि.
अगर गांधी ना होता तो यह दुनिया वाकई बहुत खूबसूरत होती.
सितंबर 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया.
महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू दोनों ही हिटलर और नात्सियों के कट्टर आलोचक रहे हैं.
उन्होंने फैसला किया कि अगर अंग्रेज युद्ध समाप्त होने के बाद भारत.
को आजादी दे, तो कांग्रेस उनके युद्ध प्रयासों में सहायता दे सकती है.
सरकार ने उनका प्रस्ताव खारिज कर दिया.
इसके विरोध में कांग्रेस मंत्रिमंडल ने अक्टूबर 1939 में इस्तीफा दे दिया.
मार्च 1940 में मुस्लिम लीग ने मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए कुछ स्वायत्ता की मांग का प्रस्ताव पेश किया.
अब यह संघर्ष तीन धुरियों का हो गया (कांग्रेस, मुस्लिम लीग, ब्रिटिश सरकार ).
1942 में चर्चिल ने गांधी जी और कांग्रेस के साथ समझौते का रास्ता निकालने के लिए अपने एक मंत्री स्टेफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा.
इसी समय ब्रिटेन में एक सर्वदलीय सरकार सत्ता में थी.
जिसमे शामिल लेबर पार्टी के सदस्य भारतीयों के प्रति हमदर्दी रखते थे.
लेकिन सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल एक कट्टर साम्राज्यवादी थे.
1942 में चर्चिल ने गांधी और कांग्रेस के साथ समझौते का रास्ता.
निकालने के लिए अपने एक मंत्री स्टेफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा.
क्रिप्स के साथ बात करते हुए कांग्रेस ने इस बात पर जोर दिया की अगर.
धुरी शक्तियों से भारत की रक्षा के लिए.
ब्रिटिश शासन कांग्रेस का समर्थन चाहता है.
तो वायसराय को सबसे पहले अपने कार्यकारी परिषद् में किसी भारतीय को एक रक्षा सदस्य के रूप में नियुक्त करना चाहिए.
पर इसी बात पर वार्ता टूट गयी.

भारत छोड़ो आन्दोलन

क्रिप्स मिशन के सफल न होने के बाद गाँधी जी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आन्दोलन छेड़ने का फैसला लिया.
अगस्त 1942 में शुरू हुए इस आन्दोलन को “अंग्रेजों भारत छोडो” का नाम दिया गया.
गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों तथा तोड़फोड़ करते रहे.
कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य सबसे ज्यादा सक्रीय थे.
पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार की स्थापना कर दी गई.
अंग्रेजों ने आन्दोलन के प्रति सख्त रवैया अपनाया फिर भी इस विद्रोह को दबाने में साल भर का समय लग गया.
इस आन्दोलन में लाखों आम हिन्दुस्तानी शामिल थे इस आन्दोलन में युवाओं ने कॉलेज को छोड़ कर जेल का रास्ता अपनाया.
जिस समय कांग्रेस के नेता जेल में गए उसी समय जिन्ना तथा मुस्लिम लीग ने अपना प्रभाव फ़ैलाने की कोशिश की.
जब विश्वयुद्ध समाप्त होने वाला था तो गाँधी जी को रिहा कर दिया गया जेल से निकलने के बाद उन्होंने कांग्रेस और जिन्ना के साथ बहुत बातें की.
गाँधी जी द्वारा हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रयास किया गया.
1945 में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी.
यह सरकार भारत को स्वतंत्रता देने के पक्ष में थी.
इस समय वायसराय लॉर्ड वेवेल ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के.
प्रतिनिधियों के बीच मीटिंग का आयोजन किया.
1946 की शुरुआत में प्रांतीय विधान मंडलों के लिए नए सिरे से चुनाव कराए गए.
कांग्रेस को सामान्य श्रेणी में भारी सफलता मिली.
मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम लीग को बहुमत प्राप्त हुआ.
राजनीतिक ध्रुवीकरण हो चुका था.
1946 में कैबिनेट मिशन भारत आया.

इस मिशन में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौता कराने का प्रयास किया.
लेकिन कैबिनेट मिशन इस प्रयास में सफल नहीं हो पाया.
वार्ता टूट जाने के बाद जिन्ना ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए लीग के मांग के समर्थन में एक प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस का आह्वान किया.
इसके लिए 16 अगस्त 1946 का दिन तय किया गया था.
उसी दिन कोलकाता में खूनी संघर्ष शुरू हो गए.
यह हिंसा कोलकाता से शुरू होकर ग्रामीण बंगाल, बिहार और संयुक्त प्रांत व पंजाब में फैल गई.
जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग में एक “प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस” का फैसला किया, उसी दिन कोलकाता में बहुत खून खराबा हुआ.
फरवरी 1947 में वावेल की जगह लार्ड माउंटबेटन को वायसराय बनाया गया.
तब उन्होंने ऐलान किया की ब्रिटिश भारत को स्वतंत्रता दे दी जाएगी.
लेकिन उसका विभाजन भी होगा.
15 अगस्त 1947 को राजधानी में हो रहे उत्सवों में महात्मा गाँधी ने हिस्सा नहीं लिया.
उस समय वो कलकत्ता में थे.
लेकिन उन्होंने वहां भी न तो किसी कार्यक्रम में हिस्सा लिया और न ही कहीं झंडा फहराया.
गाँधी जी उस दिन 24 घंटे के उपवास पर थे.
उन्होंने इतने दिन तक जिस स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया वो बेकार हो गया.
क्योंकि हिन्दू और मुस्लिम एक दूसरे को मार रहे थे.
उनका राष्ट्र अब विभाजित हो चुका था.
30 जनवरी की शाम को गांधी जी की दैनिक प्रार्थना सभा में एक युवक ने उनको गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया.
उनके हत्यारे ने कुछ समय बाद आत्मसमर्पण कर लिया.
वह नाथूराम गोडसे था, वह एक चरमपंथी हिंदुत्ववादी अखबार का संपादक था और वह गांधी जी को मुसलामानों का खुशामदी कहकर उनकी निंदा करता था.

[ महात्मा गांधी को जानने के स्त्रोत ]

निजी लेखन / भाषण :
• हरिजन अखबार में गांधी उन पत्रों को शामिल करते हैं जिन लोगों से उन्हें मिलते थे तथा भाषणों से भी हमें गांधी जी के बारे में पता चलता है.
• (नेहरू संकलन - Bunch Of Old Letters )
विभिन्न समाचार पत्र :
• अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में छपने वाले अखबार भी राष्ट्रीय आंदोलन का एक स्त्रोत थे तथा ये अखबार गांधी जी की प्रत्येक गतिविधियों पर नजर रखते थे.
सरकारी रिकॉर्ड :
• औपनिवेशिक शासक ऐसे तत्वो पर सदा कड़ी नजर रखते थे जिन्हें वे अपने विरुद्ध मानते थे तथा पुलिस रिपोर्टों में भी हमें गांधी जी के संदर्भ में जानकारियां मिलती है.
आत्मकथाएं :
• आत्मकथाएं उस अतीत का ब्यौरा देते हैं जो समृद्ध होता है यह कथाएं स्मृति के आधार पर लिखी जाती है जिनसे पता चलता है कि लिखने वाले को क्या याद रहा एवं क्या महत्वपूर्ण लगा तथा हमें पढ़ते समय यह ध्यान रखना चाहिए यह लेखक ने क्या नहीं लिखा.

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