रसखान के सवैये - Chapter - 11th Class- 9th Hindi -क्षितिज

रसखान के सवैये - Chapter - 11th  Class- 9th Hindi -क्षितिज

 ( कवि परिचय : रसखान )

  • इनका जन्म सन 1548 में हुआ माना जाता है। 
  • इनका मूल नाम सैय्यद इब्राहिम था और दिल्ली के आस-पास के रहने वाले थे। 
  • कृष्णभक्ति ने उन्हें ऐसा मुग्ध कर दिया की
  • इन्होने गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा ली और ब्रजभूमि में रहने लगे। 
  • सन 1628 के लगभग उनकी मृत्यु हो गयी।

  • मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
  • जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।
  • पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन ।
  • जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।

( अर्थ )

  • इन पंक्तियों द्वारा रसखान ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण की जन्मभूमि के प्रति लगाव को प्रदर्शित किया है। 
  • वे कहते हैं की अगर अगले जन्म में उन्हें मनुष्य योनि मिले 
  • तो वे गोकुल के ग्वालों के बीच रहने का सुयोग मिले।
  • अगर पशु योनि प्राप्त हो तो वे ब्रज में ही रहना चाहते हैं 
  • ताकि वे नन्द की गायों के साथ विचरण कर सकें। 
  • अगर पत्थर भी बन जाएँ तो भी उस पर्वत का जिसे हरि ने अपनी तर्जनी पर उठा ब्रज को इन्द्र के प्रकोप से बचाया था। 
  • अगर पक्षी बने तो यमुना किनारे कदम्ब की डालों में बसेरा डालें। 
  • वे हर हाल में श्रीकृष्ण का सान्निध्य चाहते हैं चाहे इसके लिए उन्हें कोई भी परेशानी का सामना करना पड़े।

  • या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
  • आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं।
  • रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौँ ।
  • कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौ।।

( अर्थ )

  • यहाँ रसखान कह रहे हैं की ग्वालों की लाठी और कम्बल के लिए अगर उन्हें तीनों लोको का राज त्यागना पड़ा तो भी वे त्याग देंगे।
  • वे इसके लिए आठों सिध्दि और नौ निधियों का भी सुख छोड़ने के लिए तैयार हैं। वे अपनी आँखों से ब्रज के वन, बागों और तालाब को जीवन भर निहारना चाहते हैं। 
  • वे ब्रज की कांटेंदार झाड़ियों के लिए भी सोने के सौ महल निछावर करने को तैयार हैं।

  • मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गूंज की माल गरें पहिरौंगी।
  • ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन गवरनि संग फिरौंगी।।
  • भावतो वोही मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
  • या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।

( अर्थ )

  • इन पंक्तियों में गोपियों की कृष्ण का प्रेम पाने की इच्छा और कोशिश का वर्णन किया गया है। 
  • कृष्ण गोपियों को इतने रास आते हैं की उनके लिए वे सारे स्वांग करने को तैयार हैं। 
  • गोपियाँ कहती हैं की वे सिर के ऊपर मोरपंख रखूँगी, 
  • गुंजों की माला पहनेंगी। पीले वस्त्र धारण कर वन में गायों और ग्वालों के संग वन में भ्रमण करेंगी। 
  • किन्तु वे मुरलीधर के होठों से लगी बांसुरी को अपने होठों से नही लगाएंगी।

  • काननि दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजै है।
  • मोहिनि तानन सों, अटा चढ़ि गोधुन गैहै पै गैहै॥
  • टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझै है।
  • माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहै, न जैहै, न जै है॥

( अर्थ )

  • इन पंक्तियों में गोपियाँ कृष्ण को रिझाने की कोशिश कर रही हैं। 
  • वे कहतीं हैं की जब कृष्ण की मुरली की मधुर धुन बजेगी तो हो सकता है
  • की धुन में मग्न होकर गायें भी अटारी पर चढ़कर गाने लगे 
  • परन्तु गोपियाँ अपने अपने कानों में अंगुली डाल लेंगी 
  • ताकि उन्हें वो मधुर संगीत न सुनाई पड़े। 
  • लेकिन गोपियों को यह भी डर है जिसे ब्रजवासी भी कह रहे हैं 
  • की जब कृष्ण की मुरली बजेगी तो उसकी धुन सुनकर, गोपियों की मुस्कान संभाले नही सम्भलेगी 
  • और उस मुस्कान से पता चल जाएगा की वे कृष्ण के प्रेम में कितनी डूबीं हैं।

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