कैदी और कोकिला- Chapter - 12th Class- 9th Hindi -क्षितिज
( लेखक परिचय - माखनलाल चतुर्वेदी )
- माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म सन 1889 मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई गांव में हुआ था।
- मात्र 16 वर्ष की अवस्था में ये शिक्षक बने
- बाद में अध्यापन का काम छोड़कर सम्पादन का काम शुरू किया।
- वे एक कवि- कार्यकर्ता थे और स्वाधीनता आंदोलन के दौरान कई बार जेल गए।
- 1968 में इनका देहांत हो गया।
- क्या गाती हो ?
- क्यों रह जाती हो
- कोकिल बोलो तो !
- क्या लाती हो ?
- सन्देश किसका है ?
- कोकिल बोलो तो !
( भावार्थ )
- कवि कहते हैं कि कोयल !! तुम आधी रात में क्या गा रही हो। यह आजादी का तराना हैं
- या पराधीनता का दुःख व्यक्त कर रही हो और फिर गाते –गाते अचानक बीच में चुप क्यों हो जाती हो ?
- कोयल आखिर कुछ तो बोलो।
- क्या तुम किसी का संदेश लेकर आई हो। कोयल बोलो तो
- ऊँची काली दीवारों के घेरे में
- डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में
- जीने को देते नहीं पेट भर खाना
- जीवन पर अब दिन रात कड़ा पहरा है
- शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है ?
- हिमकर निराश कर चला रात भी काली
- इस समय कालिमामयी क्यूँ आली ?
( भावार्थ )
- इन पंक्तियों में कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी अपने मन की व्यथा को बता रहे हैं।
- ब्रिटिश शासन द्वारा स्वतन्त्रता सैनानियों पर किये गए अत्याचारों के बारे में बात करते हुए कवि कहते हैं
- कि अंग्रजों ने जेल की इन ऊंची-ऊंची दीवारों के अंदर इस अंधकारमय जगह पर हमें डाकू , चोर और लुटेरों के साथ रखा हैं।
- यहां पर हमें पेट भर खाने को भी नहीं मिलता है और हर समय हमारे ऊपर अंग्रेजी सरकार की कड़ी निगरानी रहती है ।
- कवि ने अंग्रेजों के शासन की तुलना अंधकार से की है क्योंकि वो भारतीयों पर अन्याय, अत्याचार करते थे और उनका शोषण करते थे।
- कवि आगे कहते हैं कि अब तो चाँद (हिमकर) भी हमें छोड़कर चला गया हैं यानि जो थोड़ी बहुत रोशनी चाँद से आ रही थी, अब वो भी खत्म हो गयी हैं जिससे रात और ज्यादा काली अंधेरी हो गई हैं
- लेकिन हे कालिमामयी (पूरी काली कोयल) सखी , तुम इस समय क्यों जाग रही हो ? कवि बहुत अधिक निराश और हताश है।
- क्यों हूक पड़ी ?
- वेदना बोझ वाली सी
- कोकिल बोलो तो क्या लुटा ?
- मृदुल वैभव की रखवाली सी
- कोकिल बोलो तो !
( भावार्थ )
- इन पंक्तियों में कवि कोयल से पूछते हैं कि तुम्हारी चीख दर्द भरी क्यों हैं। ऐसा लगता हैं
- जैसे तुम्हारे दिल में कोई गहरा दर्द या बेदना हैं। कोयल बताओ तुम्हें क्या दुःख हैं।
- कवि आगे कहते हैं कि कोयल तुमसे किसने क्या लूट लिया या तुम्हारा क्या लुट गया हैं।
- बहुत मीठे स्वर में गाने वाली कोयल , तुम्हारे स्वर में इतना दर्द क्यों हैं ?
- कोयल को बेहद सुरीला गाने वाली चिड़िया माना जाता हैं।
- क्या हुई बावली ?
- अर्ध रात्रि को चीखी कोकिल बोलो तो !
- किस दावानल की ज्वालायें हैं दीखी ?
- कोकिल बोलो तो !
( भावार्थ )
- इन पंक्तियों में कवि फिर कोयल से पूछते हैं कि हे कोयल !! तुम तो आधी रात में कभी भी नही बोलती थी।
- क्या तुम पागल हो गई हो , जो आधी रात में यहां आकर चिल्ला रही हो ?
- या फिर तुमने क्या किसी जंगल में लगी हुई भयानक आग को देख लिया है
- जो डर कर तुम इतना चिल्ला रही हो। कोयल बोलो तो !
- क्या ? देख न सकती जंजीरों का गहना ?
- हथकड़ियाँ क्यों ? ये ब्रिटिश राज का गहना।
- कोल्हू का चर्रक चूं जीवन की तान।
- गिट्टी पर अंगुलियों ने लिखे गान !
- हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ
- खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआ
- दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली
- इसलिए रात में गजब ढ़ा रही आली ?
( भावार्थ )
- इन पंक्तियों में कवि कोयल से कहते हैं कि हे कोयल !!
- क्या तुम मेरे हाथों में पड़ी इन लोहे की जंजीरे को नहीं देख पा रही हो।
- ये मेरे हाथों में बंधी जो जंजीरें है। ये वास्तव में कोई जंजीर नहीं हैं।
- ये तो ब्रिटिश राज के द्वारा मुझे पहनाये गए गहने हैं अर्थात स्वतंत्रता सेनानियों के लिए लोहे की जंजीरें किसी अमूल्य गहने से कम नही थी।
- यहां पर माखनलाल चतुर्वेदी जी जेल में अपनी दिनचर्या के बारे में बात कर रहे हैं।
- वो कहते हैं कि कोल्हू के चलने से जो आवाज आती है। अब वही हमारी जिंदगी का गीत बन गया है।
- बड़े –बड़े पत्थरों को तोड़ कर छोटी-छोटी गिट्टियों बनती हैं।
- कवि कहते हैं कि उन गिट्टियों पर हमारे अँगुलियों के निशान कुछ इस तरह से पड गए हैं
- मानों जैसे हमने इन गिट्टियों पर स्वतन्त्रता के गीत उकेर दिये हो।
- कवि आगे कहते हैं कि हम अपने पेट पर जुआ बांधकर मोट
- (चमड़े का एक थैला , जिससे कुँए में डाल कर पानी निकाला जाता हैं) से पानी निकाल कर ब्रिटिश राज की अकड़ का कुआं धीरे-धीरे खाली कर रहे हैं।
- यानि वो भले ही हम पर कितना अत्याचार क्यों न कर लें लेकिन हमें तोड़ नहीं सकते हैं
- और न ही हमारे अंदर की देशभक्ति की भावना को कम कर सकते हैं ।
- धीरे-धीरे ही सही लेकिन एक दिन हम ,इस अंग्रेजी शाशन को उखाड़ फेंकेंगे।
- कवि कोयल को अपना दोस्त मानते हुए कह रहे हैं कि हे सखी !!
- शायद तुम दिन में इसलिए नहीं गाती हो क्योंकि तुम्हें लगता हैं कि , कही तुम्हारी बेदना भरी चीख सुनकर हमारा दिल करुणा से न भर जाएँ या हम कमजोर न पड़ जाँय।
- इसीलिए तुम आधी रात में हमें ढांढस बधांने आयी हो ।
- इस शांत समय में ,अंधकार को बेध , रो रही हो क्यों ?
- कोकिल बोलो तो !
- चुप चाप मधुर विद्रोह बीज ,
- इस भाँति बो रही हो क्यों ?
- कोकिल बोलो तो !
( भावार्थ )
- कवि कोयल से पूछते हैं कि हे सखी !! इस सन्नाटे वाली काली अंधेरी रात के अंधकार को भेदकर (चीरना) तुम क्यों रो रही हो ?
- यानि तुम्हारा इस समय बोलना इस शांत अंधेरी रात के सन्नाटे को भेद रहा हैं।
- कोयल कहीं तुम ,इन सोए हुए लोगों को जगा कर, उनके मन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह के बीज़ तो नहीं बो रही हो है।
- कोयल कुछ तो बोलो।
- काली तू रजनी भी काली
- शासन की करनी भी काली
- काली लहर कल्पना काली
- मेरी काल कोठरी काली
- टोपी काली, कमली काली
- मेरी लौह श्रृंखला काली
- पहरे की हुंकृति की व्याली
- तिस पर है गाली ए आली !
( भावार्थ )
- यहां पर कवि कोयल के कालेपन की तुलना जेल की अन्य चीजों से करते हुए कह रहे हैं कि हे
- कोयल !!जिस तरह तुम काली हो उसी तरह ये रात, अंग्रेजी शासन के कामकाज, उनकी सोच व कल्पना भी काली हैं और मैं जिस काल कोठरी में बंद हूं।
- वह कालकोठरी भी काली हैं।यहां पर जो टोपी और कंबल मुझे पहनने को मिला है
- वह भी काला हैं और मेरे हाथों पर पड़ी लोहे की जंजीर भी काली ही है।
- कवि आगे कोयल से कहते हैं कि हे सखी !! इस अँधेरी काली रात में, काली सर्पनी (काला सांप) की फुंकार जैसी जेल के पहरेदार की जो हुंकार (आवाज) हैं ,
- वो भी मुझे गाली जैसी ही लग रही हैं।
- यानि बार-बार पहरेदार की आवाज ( जागते रहो) सुनकर उन्हें याद आता हैं कि वो कैद में हैं।
- काले रंग को यहाँ पर अपमान, निराशा व दुःख का प्रतीक माना गया हैं।
- इस काले संकट सागर पर
- मरने की, मदमाती !
- कोकिल बोलो तो !
- अपने चमकीले गीतों को
- क्योंकर हो तैराती !
- कोकिल बोलो तो !
( भावार्थ )
- इन पंक्तियों में कवि कोयल से कहते हैं कि हे सखी !! तुम मदहोशी में, इस काले संकट रूपी सागर में (जहाँ की हर चीज काली हैं)
- मरने क्यों आयी हो यानि इस काले संकट रूपी सागर (जेल) में मरने को क्यों उतावली हो ?
- कोयल तुम तो बहुत सुरीला गाती हो लेकिन तुम अपने उन चमकीले, सुरीले गीतों को इस संकट रूपी सागर में क्यों तैरा रही हो यानि तुम यहाँ क्यों अपने सुरीले गीत गा रही हो।
- तुझे मिली हरियाली डाली
- मुझे मिली कोठरी काली !
- तेरा नभ भर में संचार
- मेरा दस फुट का संसार !
- तेरे गीत कहावें वाह
- रोना भी है मुझे गुनाह !
- देख विषमता तेरी मेरी
- बजा रही तिस पर रणभेरी !
( भावार्थ )
- कवि कोयल से कहते हैं कि हे सखी !!
- तेरी और मेरी परिस्थितियां बिल्कुल अलग अलग हैं।
- तुम हरे भरे पेड़ों की एक डाली से दूसरी डाली घूम फिर सकती हो
- और मैं इस काल कोठरी में बंद हूं।
- तुम्हारे लिए तो पूरा आकाश खुला है, और मेरे पास तो सिर्फ एक 10 X 10 फीट की छोटी सी एक अंधेरी कालकोठरी है
- कोयल जब तू गीत गाती है तो लोग वाह-वाह करते हैं लेकिन यहां पर मेरा रोना भी गुनाह माना जाता है।
- तेरे-मेरे जीवन में इतनी विषमताएं होने के बावजूद भी, तू यहां आकर रणभेरी (युद्ध की ललकार) का विगुल क्यों बजा रही हो।
- इस हुंकृति पर
- अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ ?
- कोकिल बोलो तो ! मोहन के व्रत पर
- प्राणों का आसव किसमें भर दूँ ?
- कोकिल बोलो तो !
( भावार्थ )
- कवि कोयल से कहते हैं कि हे सखी !!
- तुम्हारी इस पुकार पर, मैं अपनी इस रचना (कविता) में और क्या- क्या लिखूँ कि लोगों में अंदर स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए जोश व देशभक्ति की भावना पैदा हो सके।
- कवि आगे कहते हैं, कि मोहनदास करमचंद्र गांधी जी ने जो भारत माता को स्वतंत्र करने का व्रत लिया हैं
- उसके लिये मैं अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों के अंदर ऐसा जोश भर सकूं कि वो, इस आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हो जाये।
- जैसे अमृत पीकर लोग अमर हो जाते हैं उसी प्रकार शहीद होकर भी लोग अमर हो जाते हैं।