शीतयुद्ध का दौर Class 12th CH-1st Political Science [Cold War Era and Non–aligned Movement]

शीतयुद्ध का दौर Class 12th CH-1st Political Science [Cold War Era and Non–aligned Movement]

शीतयुद्ध

शीत युद्ध कोई वास्तविक युद्ध नहीं है.
बल्कि इसमें केवल युद्ध की संभावनाएं बनी रहती हैं.
इसमें संघर्ष एवं तनाव की स्थिति रहती है.
युद्ध का भय रहता है.
हमले की आशंका रहती है.
परंतु वास्तव में कोई रक्तरंजित युद्ध नहीं होता.
द्वितीय विश्व युद्ध समाप्ति के बाद से सोवियत संघ के विघटन तक.
अमेरिका तथा सोवियत संघ के बीच तनावपूर्ण स्थिति को शीतयुद्ध की संज्ञा दी गई.

IMPORTANT NOTES

महाशक्ति बनने की होड़
हथियारों की होड़
प्रतिस्पर्धा
विचारों की लड़ाई
वर्चस्व बनाने की होड़
पहला विश्वयुद्ध-1914 - 1918
दूसरा विश्वयुद्ध-1939 - 1945
मित्र राष्ट्र में यह शामिल -अमेरिका, फ़्रांस,
ब्रिटेन, सोवियत संघ

धुरी राष्ट्र में यह शामिल-जर्मनी, जापान,
इटली

पचिमी-जर्मनी- U.S.A
पूर्वी -जर्मनी-U.S.S.R

दो ध्रुवीय विश्व का आरंभ

दोनों महाशक्तियों ने विश्व के अलग-अलग हिस्सों पर अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया
यहीं से दो ध्रुवीयता की शुरुआत हो चुकी थी
दुनिया दो गुटों में बांटी जा रही थी
बटवारा यूरोप महाद्वीप से शुरू हुआ (बर्लिन की दीवार )
दो खेमे बन गए- पूर्वी खेमा और पश्चिमी खेमा ।
पूर्वी खेमा - सोवियत संघ (USSR )
पश्चिमी खेमा - अमेरिका ( USA )

छोटे देशो को महाशक्तियो में शामिल होने से क्या लाभ है

1) सुरक्षा का वायदा
2) आर्थिक मदद
3) सैन्य सहायता
4) हथियार

क्यूबा मिसाईल संकट

1) क्यूबा अमरीका के तट से लगा एक छोटा सा द्वीपीय देश था लेकिन क्यूबा की दोस्ती सोवियत संघ से थी.
2) सोवियत संघ उसे कूटनयिक तथा वित्तीय सहायता देता था.
3) सोवियत संघ के नेता निकिता खुस्च्रेव क्यूबा को अपना सैनिक अड्डा बनाना चाहते थे क्यूंकि क्यूबा अमरीका के निकट था और क्यूबा से अमरीका को अधिक हानि पहुचाई जा सकती थी.
4) 1962 में सोवियत संघ ने क्यूबा पर अपनी परमाणु मिसाईल तैनात कर दी.
5) इसकी खबर अमरीका को तीन हफ्ते के बाद पता लगी अमरीकी राष्ट्रपति जॉन ऍफ़ केनेडी ऐसा कुछ भी करने से हिचकिचा रहे थे जिससे दोनों के बीच युद्ध छिड़ जाये.
6) क्योकि अगर युद्ध होता तो ज्यादा हानि अमरीका को उठानी पड़ती.
7) अमरीकी राष्ट्रपति को इस बात पर विश्वास था की निकिता खुस्च्रेव वंहा से अपनी मिसाईल हटा लेंगे.
8) कैनेडी ने आदेश दिया की अमरीकी जंगी बेडो को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजो को रोका जाये.
9) ऐसे समय में यह लगा कि युद्ध होकर रहेगा यह कोई आम युद्ध नहीं होता.
10) लेकिन ऐसा नहीं हुआ दोनों ने युद्ध टालने का फैसला लिया और दुनिया ने चैन की सांस ली.
11) यह बहुत ही संवेदनशील समय था इस लिए क्यूबा मिसाईल संकट को शीतयुद्ध का चरमबिन्दु कहा जाता है.

क्यूबा मिसाईल संकट के समय यह नेता थे

1) क्यूबा- फिदेल कास्त्रो
2) सोवियत संघ-निकिता खुस्च्रेव
3) अमरीका-जॉन ऍफ़ कैनेडी

जापान पर परमाणु हमला

अमरीका ने जापान के दो शहरों पर परमाणु बम से हमला किया था.
1) 6 अगस्त 1945 = हिरोशिमा.
2) 9 अगस्त 1945 = नागासाकी.
इस घटना के बाद अमरीका की बहुत आलोचना हुई थी.
आलोचकों ने कहा कि जब जापान आत्म समर्पण करने वाला था तो ऐसे समय में परमाणु हमला उचित नहीं था.
अमरीका ने हमले के पक्ष में तर्क दिए.
अमरीका ने कहा कि अमरीका चाहता था दूसरा विश्वयुद्ध जल्दी समाप्त हो जाए और आगे होने वाली जनहानि को रोका जा सके इस लिए अमरीका ने जापान पर हमला किया.
अमरीका का इस हमले के पीछे उद्देश्य.
सोवियत संघ को अपनी ताकत और वर्चस्व दिखाने के लिए अमरीका ने ऐसा किया.

अपरोध से क्या अभिप्राय है ?

जब दोनों पक्ष बहुत ताकतवर हो और एक दूसरे को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हो ऐसे में कोई भी पक्ष युद्ध का खतरा मोल लेना नहीं चाहेगा.
अमेरिका और सो.संघ दोनों ही ताकतवर थे.
इसी के कारण दोनों के बीच युद्ध नहीं हुआ.
और विश्व तीसरे विश्व युद्ध से बचा रहा.

नाटो (NATO) के बारे में

नाटो का पूरा नाम.
North Atlantic Treaty Organisation.
उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन.
स्थापना-4 अप्रैल 1949 में.
उद्देश्य- सभी सदस्य मिल-जुलकर रहेंगे.
एक दुसरे की मदद करेंगे.
अगर एक पर हमला होगा तो उसे अपने ऊपर हमला मानेंगे और मिलकर मुकाबला करेंगे.

सीटो (SEATO) के बारे में

सीटो का पूरा नाम.
South East Asia Treaty Organisation.
दक्षिण-पूर्व एशियाई संधि-संगठन.
स्थापना-1954.
उद्देश्य -साम्यवादियो की विस्तारवादी नीतियों से दक्षिण पूर्व एशियाई देशो की रक्षा करना.

सेंटो (CENTO) के बारे

सेंटो का पूरा नाम.
Central Treaty Organisation.
केंद्रीय संधि-संगठन.
स्थापना-1955.
उद्देश्य -सोवियत संघ को मध्य पूर्व से दूर रखना.
साम्यवाद के प्रभाव को रोकना.

सोवियत संघ ने 1955 में कौन-सी संधि की ?

1) वारसा संधि.
2) इसका उद्देश्य नाटो में शामिल देशो का मुकाबला करना था.

महाशक्तियाँ छोटे देशो के साथ गठबंधन क्यों बनाती थी ?

1) महत्वपूर्ण संसाधन
2) भू - क्षेत्र
3) सैनिक ठिकाने
4) आर्थिक मदद

1960 के दशक में दोनों महाशक्तियो ने किन संधियों पर हस्ताक्षर किए ?

1) परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि.
2) परमाणु अप्रसार संधि.
3) परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन संधि.

शीतयुद्ध के दायरे

जब हम शीतयुद्ध के दायरों की बात करते हैं.
तो हमारा अर्थ ऐसे क्षेत्रों से होता है जहां विरोधी खेमों में बड़े देशों के बीच संकट के अवसर आए.
युद्ध हुए.
कई जगह युद्ध की संभावना बनी.
लेकिन बातें एक हद से ज्यादा नहीं बढ़ पाई.
कोरिया, वियतनाम और अफगानिस्तान जैसे कुछ क्षेत्रों में अधिक जनहानि हुई.
शीतयुद्ध के दौरान खूनी लड़ाई भी हुई.
लेकिन यह संकट तीसरे विश्व युद्ध के रूप में नहीं ले पाए.
दोनों महाशक्ति.
कोरिया (1950-53).
बर्लिन (1958-62).

कांगो (1960 के दशक के शुरुवात में ).
तथा अन्य जगहों पर सीधे-सीधे मुठभेड़ की स्थिति में हो चुकी थी.
लेकिन फिर भी तीसरा विश्वयुद्ध नहीं हुआ.
जवाहरलाल नेहरु ने उत्तरी और दक्षिणी कोरिया के बीच मध्यस्थता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
कांगो में संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने मध्यस्थता में भूमिका निभाई

दो ध्रुवीयता को चुनौती – गुटनिरपेक्षता

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दोनों महाशक्तियों ने दुनिया को दो खेमो में बाँट दिया था.
ऐसे में नवस्वतंत्र देशों के सामने फिर से गुलाम हो जाने का खतरा आ गया.
इस परिस्थिती में कुछ देशों ने दोनों खेमों / गुटों से अलग रहने का फैसला किया.
इसे गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के नाम से जाना जा सकता है.
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की नीव 1955 के बांडुंग सम्मलेन में पड़ चुकी थी

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक नेता

युगोस्लाविया- जोसेफ ब्रोज़ टीटो
भारत- पंडित जवाहरलाल नेहरु
मिस्र- गमाल अब्दुल नासिर
इंडोनेशिया- सुकर्णो
घाना- वामे एनेक्रुमा

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का पहला सम्मेलन

i) 1961 में बेलग्रेड में

ii) 25 सदस्य देश

NOTES

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का 14वां सम्मेलन

2006 में हवाना (क्यूबा) में

116 सदस्य देश

15 पर्यवेक्षक देश

NOTES

गुटनिरपेक्ष आंदोलन से भारत को क्या लाभ हुए ?

भारत अन्तराष्ट्रीय फैसले स्वतंत्र होकर अपने हित में ले पाया.
भारत दुबारा से गुलाम होने से बच पाया.
भारत हमेशा ऐसी स्थिति में रहा अगर कोई एक महाशक्ति उसके खिलाफ हो जाये तो वह दूसरी महाशक्ति के करीब जा सकता था.
अपनी संप्रभुत्ता को बरकरार रख सका.

भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की आलोचना ?

आलोचकों का मानना है कि भारत की गुटनिरपेक्ष नीति सिद्धांत विहीन है.
भारत अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के लिए महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय फैसले लेने से बचता है.
भारत का व्यवहार स्थिर नहीं है.
आलोचक कहते हैं कि भारत ने 1971 में सोवियत संघ से मित्रता की संधि की.
जो कि गुटनिरपेक्षता की नीति के खिलाफ है.
कुछ ने तो यहां तक कह दिया कि भारत सोवियत संघ में शामिल था और गुटनिरपेक्षता का ढोंग करता है.

नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में शामिल अधिकतर देशों को अल्पविकसित देशों का दर्जा मिला था.
यह देश गरीब और पिछड़े हुए थे.

इनके सामने मुख्य चुनौती आर्थिक विकास करना, अपनी जनता को गरीबी से निकालना था.
बिना आर्थिक विकास के इनके सामने फिर से गुलाम हो जाने का खतरा था.
इन देशों की सहायता के लिए नव अन्तराष्ट्रीय व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ था.
1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार और विकास.
से सम्बंधित सम्मेलन ( UNCTAD ).
UNCTAD – United Nations Conference On Trade And Development.
संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार और विकास सम्मेलन.
“Towards A New Trade Policy For Development” नामक रिपोर्ट छपी.
इस रिपोर्ट में निम्नलिखित बाते सुझाई गई :
व्यापार प्रणाली में सुधार का प्रस्ताव.

1) अल्प विकसित देशों का उनके प्राकृतिक संसाधनों पर पूरा नियंत्रण होगा.
2) इन देशों की पहुंच पश्चिमी देशों के बाजारों तक होगी.
3) पश्चिमी देशों से मंगाई जा रही प्रौद्योगिकी ( टेक्नोलॉजी ) की लागत कम होगी.
4) अल्प विकसित देशों की अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं में भूमिका बढ़ाई जाएगी.

गुटनिरपेक्षता ना तो पृथकवाद है और ना ही तटस्थता ?

पृथकवाद का मतलब है अपने को अंतरराष्ट्रीय मामलों से काटकर रखना.
सन् 1787 में अमेरिका में स्वतंत्रता की लड़ाई हुई थी.
1787 से 1914 तक अमेरिका ने अपने को अंतरराष्ट्रीय मामलों से अलग रखा.
अमेरिका ने पृथकवाद की विदेश नीति अपनाई थी.
इसे पृथकवाद के नीति कहते हैं जबकि गुटनिरपेक्ष देशों ने कभी भी पृथकवाद की नीति को नहीं अपनाया.
गुटनिरपेक्ष देशों ने हमेशा शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रतिद्वंदी गुटों के बीच में मध्यस्था कराने में सक्रिय भूमिका निभाई है.
तटस्थता का अर्थ - मुख्यत युद्ध में शामिल ना होने की नीति.
जो देश तटस्थता की नीति का पालन करते हैं उनके लिए यह जरूरी नहीं है.
कि वह युद्ध को समाप्त करने में कोई मदद करें.
ऐसे देश ना तो युद्ध में शामिल होते हैं और ना ही युद्ध के सही या गलत होने पर अपना कोई पक्ष देते हैं.
परंतु गुटनिरपेक्ष देशों ने तटस्थता का पालन नहीं किया.
इन देशों ने युद्ध को टालने का प्रयास किया.
विभिन्न दुश्मन देशों के बीच समझौता कराने का भी प्रयास किया.
जिनके बीच युद्ध हो रहा हो उसे भी खत्म करने का प्रयास किया.

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