शरीर क्रियाविज्ञान तथा खेल संबंधी चोटें- Physical Education Class 12th Chapter 7th

शरीर क्रियाविज्ञान तथा खेल संबंधी चोटें- Physical Education Class 12th Chapter 7th

शारीरिक पुष्टि के घटकों को निर्धारित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारक

1- शक्ति
2- गति
3- सहनक्षमता
4- लचक

शारीरिक पुष्टि को निर्धारित करने वाले घटक 

शक्ति

किसी भी व्यक्ति के शरीर में शक्ति को निर्धारित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारक निम्नलिखित हैं :-
( कारक )
1- body weight (भार) 
2- मांसपेशियों की बनावट 
3- मांसपेशियों का size  (आकार) 
4- गामक इकाई 

i)  body weight (भार) 
जिन लोगों के शरीर का भार ज्यादा होता है उन लोगो में कम भार वाले लोगों की तुलना में अधिक शक्ति पाई जाती है और ज्यादा भार वाले लोग अधिक शक्तिशाली होते हैं जैसे : एक कुश्ती का खिलाड़ी 
ii) मांसपेशियों की बनावट 
हमारे शरीर की मांसपेशियां श्वेत (white)  तथा लाल fibre  से मिलकर बनी होती है , जिस व्यक्ति की मांसपेशियों में white  fibre  ज्यादा होता है वह व्यक्ति लाल fibre  वाले व्यक्ति की तुलना में अधिक शक्तिशाली होता है |
iii) मांसपेशियों का size  (आकार) 
जिस व्यक्ति की मांसपेशियां size  में बड़ी होती हैं वः व्यक्ति ज्यादा शक्तिशाली होता है, महिलाओं की मांसपेशियां पुरुषों से छोटी होती हैं इसलिए पुरुष महिलाओं से ज्यादा शक्तिशाली होते हैं |
iv) गामक इकाई 
हमारी मांसपेशियां बहुत सारी गामक इकाईयों से मिलकर बनती हैं और हमारी शक्ति इन्ही गामक इकाईयों पर निर्भर करती है जिस व्यक्ति में गामक इकाईयों की संख्या ज्यादा होती है वह व्यक्ति उतना ही शक्तिशाली होता है 

गति  (SPEED )

किसी भी व्यक्ति के शरीर में गति को निर्धारित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारक निम्नलिखित हैं :-
( कारक )
लचक 
विस्फोटक शक्ति 
स्नायु संस्थान 
ऊर्जा 
मांसपेशियों की बनावट 
( i) लचक 
किसी भी व्यक्ति को अपने शरीर की गति (speed)  को बढ़ाने के लिए लचक को बढ़ाना बहुत जरूरी है क्योंकि लचक के द्वारा ही हमारी गति (speed)  बढ़ती है |
ii) विस्फोटक शक्ति  
किसी भी व्यक्ति को तेज़ शारीरिक activity  को करने के लिए विस्फोटक शक्ति की आवश्यकता होती है अगर किसी व्यक्ति के पास विस्फोटक शक्ति न हो तो वह किसी भी activity  को तेज़ी से नहीं कर सकता |
iii) स्नायु संस्थान  
स्नायु संस्थान (nervous system)  हमारे शरीर के अंगों की गति को निर्धारित करता है और हम training  के द्वारा स्नायु संसथान की गतिशीलता को बढ़ा सकते हैं |
कोई भी व्यक्ति जब कोई तेज़ी से activity  करता है तो उसकी मांसपेशियां तेज़ी से संकुचित होती है तथा शिथिल होती है इसी को स्नायु संस्थान की गतिशीलता कहा जाता है |
iv) ऊर्जा (Energy) 
किसी भी व्यक्ति को तेज़ गति (speed)  वाले व्यायाम करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है और यह ऊर्जा हमे मांसपेशियों में फास्फोरस तथा क्रिएटिन फास्फेट से मिलती है | अगर हम training  करें तो हम यह ऊर्जा बढ़ा सकते हैं | 
v) मांसपेशियों की बनावट 
हमारी मांसपेशियों की बनावट भी हमारे शरीर की गति को निर्धारित करती है , जिस व्यक्ति की मांसपेशियों में white  fibre  ज्यादा होता है तो वह मांसपेशियां जल्दी से सिकुड़ पाती हैं जिसके कारण उनसे हमें ज्यादा गति मिल पाती हैं तथा लाल fibre  वाली मांसपेशियां देरी से सिकुड़ती हैं |

सहन क्षमता  (ENDURANCE )

किसी भी व्यक्ति के शरीर में सहन क्षमता  को निर्धारित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारक निम्नलिखित हैं :- 
( कारक )
ऐरोबिक क्षमता (AEROBIC CAPACITY)
 LACTIC ACID सहनशीलता 
[ ऐरोबिक क्षमता (AEROBIC CAPACITY ]
गतिविधि को निरंतर रूप से करते रहने के लिए मांसपेशियों को निरंतर ऊर्जा की आवश्यकता होती है |
मांसपेशियों की ऊर्जा की इस आवश्यकता को केवल ऑक्सीजन की उपस्थिति में ही पूरा किया जा सकता है |
इसलिए व्यक्तियों की सहनक्षमता उनकी सांस लेना तथा छोड़ना क्षमता पर निर्भर करती है | 
[ LACTIC ACID -  सहनशीलता ]
तेज शारीरिक गतिविधियों के दौरान शरीर में लैक्टिक एसिड का निर्माण होता है |
लैक्टिक एसिड को सहन करने की क्षमता न हो तो शारीरिक एक्टिविटीज़ को लगातार तीव्रता से अधिक समय तक जारी नहीं  रखा जा सकता |

लचक (FLEXIBILITY  ) 
किसी भी व्यक्ति के शरीर में लचक को निर्धारित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारक निम्नलिखित हैं :-
( कारक )
1- आयु और लिंग 
2- चोट (injury)
3- अनुकूल वातावरण (environment)
4- मांसपेशियों की शक्ति 
5- व्यायाम  
i)  आयु और लिंग 
किसी भी व्यक्ति की आयु (age) उसके शरीर की लचक को निर्धारित करती है क्योंकि युवा लोगों के शरीर में लचक ज्यादा पाई जाती है और उम्र बढ़ने के साथ साथ शरीर में लचक कम होती जाती है , महिलाओं में उसी उम्र के पुरुषों की तुलना में अधिक लचक पाई जाती है |
ii) चोट (injury)
अगर किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की चोट लगी हो , जिसके कारण उसकी मांसपेशियों को हानि पहुंची हो तो उसके कारण उस व्यक्ति के शरीर में लचक कम हो जाती है| 
iii) अनुकूल वातावरण (environment)
ठंडी जगहों में रहने से व्यक्ति के शरीर में लचक कम हो जाती है और गर्म स्थानों पर रहने से तथा खेलने से व्यक्ति के शरीर में लचक बढ़ जाती है , इसलिए कोई भी खेल खेलने से पहले warm up  करना जरुरी होता है |
iv) मांसपेशियों की शक्ति 
किसी भी व्यक्ति की मांसपेशियां अगर कमज़ोर होती हैं तो उस व्यक्ति में लचक कम होती है तथा जिन लोगों की मांसपेशियों में शक्ति अधिक होती हैं उन लोगों में लचक भी ज्यादा होती है |
v) व्यायाम 
प्रतिदिन व्यायाम करने से हमारे शरीर की लचक बढ़ती है अगर कोई व्यक्ति नियमित रूप से व्यायाम नहीं करता तो उसकी मांसपेशियां छोटी होने लगती हैं , इसलिए व्यक्ति को लचक को बढ़ने के लिए खिंचाव (stretching) वाले व्यायाम करने चाहिए |

कार्डियो श्वसन संस्थान पर व्यायाम के प्रभाव 

( प्रभाव )
व्यायाम  की प्रबलता के अनुरूप ही हृदय की गति बढ़ जाती है |
लम्बी अवधि तक व्यायाम करने से सहन शक्ति में वृद्धि 
Blood Pressure Increase होता है 
व्यायाम करने से प्राणधार वायु की क्षमता में वृद्धि होती है (वायु की क्षमता में लगभग 3500 सीसी से बढ़कर 5500 सीसी हो जाती है |

मांसपेशिय संस्थान पर व्यायाम के प्रभाव 
( प्रभाव )
हमारी मांसपेशियों की आकृति मजबूत हो जाती है, तथा हमारी मांसपेशियां सुंदर तथा सुडौल दिखने लगती है |
हमारा मोटापा कम हो जाता है, तथा हमारे शरीर का Extra Fat  खत्म हो जाता है |
हमारी मांसपेशियों का आकार बड़ा होने लगता है तथा हमारी मांसपेशियां मजबूत हो जाती हैं |
हमारा Stamina  बढ़ जाता है

कोमल ऊतकों की चोटें 

1- रगड़ 
2- गुमचोट
3- चीरा
4- मोच / खिंचाव
5- विदारण

( रगड़ )
शारीरिक क्रिया करते समय जब त्वचा किसी खुरदुरी सतह के संपर्क में आजाए जिसके कारण त्वचा की ऊपरी सतह पर घर्षण हो जाता है   है |
( गुमचोट )
किसी खेल उपकरण से प्रत्यक्ष रूप से टकराने के कारण ये चोट लग सकती है |
मुक्केबाजी और कुश्ती आदि में यह चोट लगती रहती है |
( मोच )
अस्थि रज्जु में खिंचाव व फट जाने के कारण मोच लग जाती है | 
अस्थि रज्जु वे उत्तक होते जो हड्डियों को जोड़ों पर आपस में जोड़ें रखते हैं |
( खिंचाव )
कई बार खिंचाव के कारण पूरी मांसपेशी को नुकसान पहुँच सकता है |
असहनीय दर्द 
( चीरा )
तीखे कटाव वाली चोटें 
जो चाक़ू या टूटे शीशे से लग सकती हैं 
( विदारण )
त्वचा के ऊपर खुले घाव अथवा मांस के फट जाने या किसी तेजधार वस्तु के टकराने या किसी सतह से टकराने के कारण होती है |

कठोर ऊतक चोटें

विस्थापन, अस्थिभंग : कच्चा अस्थिभंग, बहुखंड अस्थिभंग . पच्चड़ी, अनुप्रस्थ अस्थिभंग, तिरछा अस्थिभंग, तनाव अस्थिभंग (कारण/ बचाव) 

अस्थिभंग / fracture 

जब किसी गहरे आघात के कारण हड्डी टूट जाती है तो उस दशा को fracture या अस्थिभंग कहा जाता है |

कारण

1. खेलों में खिलाड़ियों आपस में जोरदार टक्कर या खिलाड़ी का किसे भारी उपकरण व सुविधा से टकराना

2. जोरदार व अप्राकृतिक गतिविधियां
3. लंबी दूरी/ अवधी की दौड़ या पैदल चाल
4. सख्त सतह पर अनायास ही गिरना
5. शरीर में कैल्शियम की कमी ( bone osteoporosis )

( निचले जबड़े का विस्थापन )
यह तब होता है जब ठोड़ी किसी वस्तु से टकरा जाए | 
( कंधे के जोड़ का विस्थापन )
अचानक झटके या कठोर सतह पर गिरने से यह हो सकता है |
( कच्चा अस्थिभंग )
बच्चों में अधिक
दबाव पड़ने मात्र से अस्थियाँ मुड़ जाती हैं 
बच्चों की हड्डियाँ कोमल  
( उपचार )
Pain killer 
स्थिरीकरण की आवश्यकता (plaster) 
ठीक होने में 7 से 8 हफ्ते 
( बहुखंड अस्थिभंग )
ऐसा अस्थिभंग जिसमे हड्डी के टुकड़े टुकड़े हो जाते हैं |
Motor Cycle race में ऐसा हो सकता है |
( उपचार )
Plasters 
Pain killers 
Anti-biotics  
( पच्चड़ी अस्थिभंग )
ऐसा अस्थिभंग जिसमे हड्डी का एक टुकड़ा दूसरे में धंस जाता है |
गंभीर स्थिति में operation एकमात्र विकल्प |
( Transverse fracture )
ऐसा अस्थिभंग जिसमे अस्थिभंग रेखा हड्डी के लम्बे अक्ष के समकोण पर होती है | 
अस्थि के ऊपरी, मध्य भागों और पीठ के नीचे भाग में 
( उपचार )
ज्यादा चोट न लगी हो तो हॉस्पिटल की जरूरत नहीं
Pain killer 
Rest 
रीढ़ की हड्डी के जटिल अस्थिभंग में मेरुरज्जु को नुक्सान पहुंच सकता है जिसके लिए operation  
( ऑब्लिक fracture )
ऐसा अस्थिभंग जिसमे अस्थिभंग रेखा हड्डी के लम्बे अक्ष को तिरछा करती है |
(उपचार )
नुकसान की मात्र पर निर्भर करेगा 
कम नुकसान – प्लास्टर 
अधिक नुकसान – surgery 
( दबाव अस्थिभंग )
एक अस्थि में चटक 
बास्केटबॉल आदि खेलों में लगना सामान्य 
दर्दनाक 
( उपचार )
Pain killer 
24 से 48 घंटे तक बर्फ का प्रयोग 
अंग को उठाकर रखें तथा तब तक आराम करें जब तक अस्थि खुद ठीक न हो जाए 

( First Aid )

किसी भी दुर्घटना में किसी मरीज़ को doctor  के पास ले जाने से पहले सबसे पहले उसकी देखभाल करना ताकि उसकी जान बचाई जा सके “प्राथमिक उपचार” कहलाता है |
( लक्ष्य और उद्देश्य )
प्राथमिक उपचार का लक्ष्य तथा उद्देश्य यह होता है की मरीज़ को doctor  के पास ले जाने से पहले उसकी जान को बचाया जाये |
प्राथमिक उपचार का लक्ष्य होता है की जल्द से जल्द दुर्घटना की स्थिति में उस व्यक्ति के दर्द को कम करना |
प्राथमिक उपचार का लक्ष्य होता है की किसी भी व्यक्ति के साथ कोई दुर्घटना होती है तो उस लगने वाली चोट के प्रभाव को कम करना जिससे नुकसान ज्यादा न हो |

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