कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियां और पुनर्स्थापना- Class 12th Political Science 2nd Book CH- 5th- Parties and the party system in India
इस अध्याय में हम 1960 के दशक में राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती, चौथा आम चुनाव 1967 ,कांग्रेस में विभाजन और 1971 का चुनाव और कांग्रेस की पुनर्स्थापना के बारे में अध्ययन करेंगे।

इस अध्याय में हम 1960 के दशक में राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती, चौथा आम चुनाव 1967 ,कांग्रेस में विभाजन और 1971 का चुनाव और कांग्रेस की पुनर्स्थापना के बारे में अध्ययन करेंगे ।
⊗ कांग्रेस प्रणाली
- भारत 1947 में आजाद हुआ।
- भारत में प्रथम आम चुनाव 1952 में हुए।
- भारत में एक लोकतांत्रिक देश है यंहा बहुदलीय व्यवस्था है।
- लेकिन भारत में आजादी के बाद से अब तक सत्ता में सबसे अधिक समय तक कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व रहा है।
- इससे कांग्रेस प्रणाली के नाम से भी जाना जाता है।
1. कांग्रेस के प्रभुत्व का कारण
- देश की सबसे बड़ी पार्टी तथा सबसे पुरानी पार्टी।
- सबसे मजबूत संगठन।
- सबसे लोकप्रिय नेता इसमें शामिल थे।
- आजादी की विरासत हासिल थी।
- सभी वर्गों का समर्थन।
- नेहरु जैसे करिश्माई नेता इसी में शामिल।
2. नेहरु जी की मौत के बाद उत्तराधिकार का संकट
- 1964 में नेहरू की मृत्यु हो गई।
- उनकी मृत्यु के बाद उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी को लेकर बहस तेज हो गई।
- ऐसी आशंका होने लगी कि देश टूट जाएगा।
- देश में सेना का शासन आ जाएगा।
- देश में लोकतंत्र खत्म हो जाएगा।
3. 1960 का दशक खतरानाक दशक
- गरीबी की समस्या।
- गैर बराबरी बढ़ रही था।
- साम्प्रदायिकता हिंसा।
- पाकिस्तान और चीन युद्ध हुए।
- खाद्यान संकट।
- क्षेत्रीय विभाजन।
4. नेहरू के बाद शास्त्री
- नेहरू जी के उत्तराधिकारी को बड़ी आसानी से चुन लिया गया।
- लाल बहादुर शास्त्री जी को प्रधानमंत्री बनाया गया।
- कांग्रेस अध्यक्ष के .कामराज ने पार्टी से सलाह मशविरा करके शास्त्री जी को प्रधानमंत्री बनवा दिया।
- शास्त्री जी नेहरू के मंत्रिमंडल में मंत्री भी रह चुके थे।
- एक बार रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इन्होंने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा भी दे दिया था।
- शास्त्री जी को इस समय देश में कई चुनोतियो को सामना करना पड़ा जैसे पाकिस्तान युद्ध और खाद्यान संकट साथ ही आर्थिक समस्या।
- इन समस्याओ से निपटने के लिए श्री. लाल बहादुर शास्त्री ने "जय जवान, जय किसान" का नारा दिया।
- 10 जनवरी 1966 को ताशकंद में शास्त्री जी का अचानक देहांत हो गया जिससे फिर उत्तराधिकारी समस्या उत्पन्न हो गयी।
5. शास्त्री जी के बाद इंदिरा गाँधी
- शास्त्री जी की मृत्यु से कांग्रेस में फिर से राजनीतिक उत्तराधिकारी पर बहस छिड गयी।
- मोरारजी देसाई और इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री पद की दोड़ में थे।
- मोरारजी देसाई महाराष्ट्र और गुजरात में मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्रिमंडल मंत्री पद रह चुके थे।
- इंदिरा गाँधी जवाहरलाल नेहरू की बेटी थी कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाल और चुकी थी वर्तमान समय में सूचना मंत्रालय के पद पर थी।
- पार्टी के बड़े नेताओं ने इंदिरा गाँधी को समर्थन दिया परन्तु सर्वसम्मति न होने पर कांग्रेस सांसदों द्वारा गुप्त मतदान हुआ जिसमे इंदिरा गाँधी को दो-तिहाई मत मिला।
- सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्ण ढंग से इंदिरा गाँधी के पास आ गया।
⊗ चौथा आम चुनाव 1967
1. चुनाव का संदर्भ
- दो प्रधानमंत्री की मौत से राजनातिक अस्थिरता आयी।
- दो युद्ध, सैन्य खर्चे में बढ़ोतरी से अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा।
- गंभीर आर्थिक संकट, मानसून की असफलता, सूखा खेती की पैदावार में गिरावट,खाद्यान्न की कमी, बेरोजगारी, बंद और हड़ताल।
- विदेशी मुद्रा की कमी, रुपए का अवमूल्यन, महंगाई बढ़ना।
- नए प्रधानमंत्री को कम अनुभवी माना गया जो समस्याओ का हल नहीं निकाल खोज पा रहे थे।
- साम्यवादी और समाजवादी पार्टी ने संघर्ष छेड़ दिया कम्युनिस्ट पार्टी ( M ) ने सशस्त्र कृषक विद्रोह छोड़ दिया किसानों को संगठित किया।
- हिंदू मुस्लिम दंगे सांप्रदायिक हिंसा का स्तर बढ़ा।
2. गैर कांग्रेसवाद
- देश में बिगड़ते माहौल को देखकर विपक्षी पार्टियां सक्रिय हो गई।
- इन दलों को लगा कि इंदिरा गांधी की अनुभव हीनता और कांग्रेस की अंदरूनी उठापटक से उन्हें कांग्रेस को सत्ता से हटाने का एक अवसर हाथ लग गया था।
- राम मनोहर लोहिया ने इसे गैर कांग्रेसवाद का नाम दिया।
- राम मनोहर लोहिया ने कहा कांग्रेस का शासन अलोकतांत्रिक और गरीबों के खिलाफ है।
- इसलिए जितनी भी गैर कांग्रेसी दल है सभी को एक साथ आ जाना चाहिए ताकि लोकतंत्र को वापस लाया जा सके।
3. चुनावी फैसला 1967
- फरवरी 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हुए।
- इस चुनाव में कांग्रेस को राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर गहरा धक्का लगा।
- कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने इसे राजनीतिक भूकंप की संज्ञा दी क्योंकि जैसे - तैसे कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत मिला लेकिन सीटें और वोट कम मिले।
- इतने कम वोट कांग्रेस को कभी नहीं मिले थे कांग्रेस के दिग्गज नेता भी चुनाव हार गए।
कहा से हारे | कांग्रेस के दिग्गज नेता |
तमिलनाडु | के. कामराज |
महाराष्ट्र | एस. के. पाटिल |
बंगाल | अतुल्य घोष |
बिहार | के. बी. सहाय |
4. बहुदलीय गठबंधन
गठबंधन:- देश में विभिन्न पार्टियां चुनाव लड़ती हैं लेकिन कभी कभी ऐसा हो जाता है कि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता ऐसे में एक से अधिक दल मिलकर सरकार बना लेते हैं इसे गठबंधन सरकार कहा जाता है।
- भारत में राज्यों में गठबंधन सरकार तथा केन्द्र में गठबंधन सरकार के कई उदाहरण है 1967 के विधानसभा के चुनाव गठबंधन।
- 1967 के विधानसभा के चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला इसके कारण गठबंधन की परिघटना सामने आई अनेक पार्टियों ने मिलकर संयुक्त विधायक दल बनाया और गैर कांग्रेसी सरकारों को समर्थन दिया।
- इन गठबंधनों में अलग-अलग विचारधाराओं के लोग शामिल थे उदाहरण :-
- बिहार – एसएसपी, पीएसपी, वामपंथी, दक्षिणपंथी, जनसंघ (1967)
- पंजाब पोपुलर यूनाइटेड फ्रंट, अकाली दल और मास्टर ग्रुप (1967)
- सीपीआई ( एम् ) एसएसपी, रिपब्लिकन पार्ट्री, जनसंघ 1971 के लोकसभा के चुनाव।
5. दलबदल की राजनीती
- 1967 के चुनावों में पहली बार दल-बदल की प्रक्रिया देखने को मिला।
- इसमें जनप्रतिनिधि किसी खास दल के चुनाव चिह्न पर जीत कर इस दल को छोड़कर दूसरे दल में शामिल हो जाता था इस प्रक्रिया दल-बदल कहते थे।
- इसने राज्यों में सरकारों बनने-बिगड़ने में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
- 1967 के आम चुनावों में कांग्रेस विधायकों ने हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में इसी तरह गैर-कांग्रेसी सरकार बनवायी।
- इस अदल-बदल से आया राम-गया राम' जुमला मशहूर हुआ जब कांग्रेस विधायक गया लाल ने एक पखवाड़े के अंदर तीन दल बदल लिए थे।
⊗ कांग्रेस में विभाजन
1. इंदिरा बनाम सिंडीकेट
1. सिडिकेट :-कांग्रेसी नेताओं का एक समूह जो पार्टी के संगठन पर नियंत्रण रखता था उन्हें 'सिंडिकेट' कहते थे ।
- लालबहादुर शास्त्री और इंदिरा गाँधी सिंडिकेट के प्रभाव से प्रधानमंत्री के पद पर पहुँच पाए।
- एस गुट में के. कामराज, एस.के. पाटिल, एस. निजलिंगप्पा, एन. संजीव रेड्डी, अतुल्य घोष प्रमुख थे ।
2. इंदिरा और सिडिकेट विवाद
- इंदिरा गांधी को अपनी पार्टी में ही चुनौती 'सिंडिकेट' से मिली
- सिंडिकेट के नेताओं ने इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री का पद इस उम्मीद से दिलवाया था की उनकी सलाहों पर कम करेगी ।
- लेकिन इंदिरा गाँधी ने सरकार और पार्टी में खुद का मुकाम बनाया सलाहकारों और विश्वस्तों को पार्टी के बहार के लोगो को रखा ।
- इससे सिंडिकेट हाशिए पर आ गया
3. इंदिरा गाँधी का विचारधारात्मक संघर्ष
इंदिरा गाँधी ने 1967 चुनाव में हुए नुकसान की भरपाई के लिए बड़ी साहसिक रणनीति अपनायी और अपने लिए एक नया मुकाम बनाने की शुरुआत की ।
- दस सूत्री कार्यक्रम।
- बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण।
- आम बीमा के राष्ट्रीयकरण।
- शहरी संपदा और आय के परिसीमन।
- खाद्यान्न का सरकारी वितरण।
- भूमि सुधार तथा ग्रामीण गरीबों को आवासीय भूखंड देना।
2. राष्ट्रपति पद का चुनाव, 1969
- राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद राष्ट्रपति चुनाव होना था यहाँ सिंडिकेट और इंदिरा गाँधी की गुटबाजी भी देखने को मिली।
- सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष एन. संजीव रेड्डी को कांग्रेस पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जिनसे इंदिरा गाँधी की राजनीतिक अनबन थी।
- इंदिरा गाँधी ने भी तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरि समर्थन किया स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में।
- कांग्रेस अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा ने 'व्हिप जारी किया कि संजीव रेड्डी को 'वोट डालें साथ ही इंदिरा गाँधी ने वी.वी. गिरि के लिए खुलेआम अंतरात्मा की आवारा पर वोट डालने को कहा।
- राष्ट्रपति पद के चुनाव वी.वी. गिरि ही विजयी हुए जीव रेड्डी कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार हर गए जिससे पार्टी का टूटना तय हो गया।
3. कांग्रेस में विभाजन
- कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चुनाव में हर के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को पार्टी से निष्कासित कर दिया।
- इंदिरा गाँधी ने कहा कि उनकी पार्टी ही असली कांग्रेस है और कांग्रेस दो खेमो में बाँट गयी।
- सिंडिकेट की अगुवाई वाले कांग्रेसी खेमे को कांग्रेस (ऑर्गनाइजेशन)
- इंदिरा गाँधी की अगुवाई वाले कांग्रेसी खेमे को कांग्रेस (रिक्विजिनिस्ट)
⊗ 1971 का चुनाव और कांग्रेस
1. चुनावी मुकाबला - 1971
- चुनावी मुकाबला कॉग्रेस (आर ) के विपरीत लग रहा था क्योंकि नई कॉग्रेस जर्जर हो रही थी।
- सबको विश्वास था कि कॉग्रेस पार्टी की असली ताकत कांग्रेस ( ओ ) के नियंत्रण में है।
- सभी बड़ी गैर- साम्यवादी और गैर- कोंग्रेसी विपक्षी पार्टी ने चुनावी गठबंधन बना लिया इसे ग्रैंड अलायन्स कहा गया।
- इससे इंदिरा के लिए स्थिति और कठिन हो गई SSP, PSP, भारतीय जनसंघ, भारतीय क्रांति दल तथा अन्य पार्टियां सभी एक छतरी के नीचे आ गई।
- नई कांग्रेस के पास जो मुद्दा था जो कांग्रेस ( ओ ) के पास नहीं था।
- इंदिरा जहां भी देशभर में जाती हमेशा यही कहती थी कि विपक्षी गठबंधन के पास बस एक ही मुद्दा है “ इंदिरा हटाओ ” और इंदिरा ने हमेशा यही कहा “ गरीबी हटाओ “।
इसके अलावा इंदिरा गांधी ने अन्य कदम भी उठाए।
- सार्वजनिक क्षेत्र की समृद्धि।
- भू स्वामित्व तथा शहरी संपदा का परिसीमन।
- आय तथा रोजगार के अवसर।
- पृवी पर्स की समाप्ति।
2. 1971 के नाटकीय चुनाव परिणाम
- 1971 के चुनाव के परिणाम ने कांग्रेस ( आर ) और सी. पी. आई . गठबंधन को 375 सीटें मिली जितनी पिछले आम चुनावों में नहीं मिल पायी थी।
- कांग्रेस ( आर ) को 352 सीटें मिली साथ ही 44 प्रतिशत वोट भी मिले ।
- कांग्रेस ( ओ ) को केवल - 16 सीट मिली।
- महागठबंधन ग्रैंड अलायंस को कुल - 40 सीट मिली।
3. 1971 लोकसभा चुनाव के बाद इंदिरा गाँधी
- 1971 लोकसभा चुनाव के बाद बांग्लादेश संकट हो गया भारत-पाक युद्ध हुआ।
- भारत जीता और बांग्लादेश नामक स्वतंत्र देश पूर्वी पाक को बनवा दिया।
- इसके बाद इंदिरा गांधी की लोकप्रियता को चार चांद लगे।
- विपक्ष के नेताओं तक ने इन की प्रशंसा की।
- 1972 में विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस (R) चुनाव में जीती।
- इंदिरा को गरीबों और वंचितों के रक्षक के रूप में देखा गया।
- कांग्रेस (R) ने भारत में अपना दबदबा बना लिया।
4. कांग्रेस की पुनर्स्थापना
- इंदिरा गाँधी ने पुरानी कांग्रेस को पुनर्जीवित न करके तर्ज़ पर बनाया।
- लोकप्रियता के लिहाज से तो शुरुआती दौर की कांग्रेस थी लेकिन बदलाव के साथ।
- यह पार्टी सर्वोच्च नेता की लोकप्रियता के आधार के साथ आगे बढ़ी ।
- सांगठनिक ढाँचा कमजोर था पार्टी के भीतर कोई गुट नहीं था ।
- यह पार्टी कुछ सामाजिक वर्गों पर ज़्यादा निर्भर थी जैसे गरीब, महिला, दलित, आदिवासी।
- इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस प्रणाली को पुनर्स्थापित किया लेकिन प्रकृति को बदलकर।
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