लोकतान्त्रिक पुनुरुथान - Class 12th Political Science 2nd Book CH- 6th (Democratic Resurgence)

 लोकतान्त्रिक पुनुरुथान - Class 12th Political Science 2nd Book CH- 6th (Democratic Resurgence)

( Jayaprakash Narayan And Total Revolution )

लोकनायक जयप्रकाश नारायण
(जेपी) (1902- 1979)

युवावस्था में मार्क्सवादी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक महासचिव 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के नायक नेहरू के उत्तराधिकारी के रूप में देखे गए.
नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल होने से इनकार किया 1955 के बाद सक्रिय राजनीतिक छोड़ी गांधीवादी बनने के बाद भूदान आंदोलन में सक्रिय रहे.
जय प्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को हुआ.
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, समाजसेवी, लोकनायक.
1922 में यह अमेरिका चले गए वहां यह मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित हुए.
प्रारंभ में ये मार्क्सवाद को मानते थे.
यह 1929 में भारत वापस आए.
1929 में नेहरू जी के कहने पर इन्होंने कांग्रेस ज्वॉइन की.
यह बाद में महात्मा गांधी से प्रभावित हुए.
सविनय अवज्ञा आंदोलन में जुड़े, जेल भी गए.
1932 में जेल से बाहर आए.
जेल से बाहर आने के बाद इन्होंने अपनी पार्टी बनाई.
Congress Socialist Party.
आचार्य नरेन्द्र देव, जय प्रकाश नारायण.
1942 में अग्रेजों के खिलाफ गांधीजी ने भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू किया.
जय प्रकाश नारायण इस आंदोलन में शामिल हुए.
इसके बाद इन्हें फिर से जेल में भेज दिया गया.
यह जेल से भाग गए.
1943 में इन्हें पकड़ लिया गया और फिर जेल में डाला.
1946 में जेल से बाहर आए जेल से आने के बाद.
जय प्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया नायक बन कर उभरे.
1999 में उन्हें भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित.

सर्वोदय

आचार्य विनोबा भावे ने जमीन दान मांगा.
इसे भूदान आंदोलन के नाम से जाना जाता है.
भूदान आंदोलन 1951 में संत विनोबा भावे द्वारा शुरू किया गया एक आंदोलन था.
संत विनोबा भावे ने गांव-गांव जाकर जमीदारों से अपनी भूमि का कम से कम छठा भाग भूमिहीन किसानों को दान करने की बात कही.
इसका असर बिहार और उत्तर प्रदेश में अधिक दिखा.

आर्थिक समस्या

1) 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने गरीबी हटाओ का नारा दिया.
2) लेकिन गरीबी नहीं हटी.
3) बांग्लादेश संकट से भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा.
4) 80 लाख शरणार्थी भारत आए .
5) पाकिस्तान से युद्ध हुआ .
6) युद्ध में अमरीकी सरकार ने भारत कि कोई मदद नहीं की.
7) तेल की कीमतें बढ़ी.
8) 1973 में 23% महंगाई बढ़ी.
9) 1974 में 30% महंगाई बढ़ी.
10) बेरोजगारी बढ़ने लगी.
11) सरकारी कर्मचारियों का वेतन रोका गया.
12) सरकारी कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी.
13) मॉनसून असफल रहा.
14) कृषि पैदावार में गिरावट हुई.
15) जनता का विरोध शुरू हुआ.
16) इस अवधि में ऐसे समूह जो संसदीय व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते थे .
17) उनकी सक्रियता बढ़ने लगी.
18) पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को हटाने के लिए हथियार उठा लिए गए.
19) यह समूह मार्क्सवादी / लेनिनवादी / माओवादी और नक्सलवादी कहलाए.
यह समूह पश्चिम बंगाल में ज्यादा सक्रिय थे.

गुजरात और बिहार के आन्दोलन

गुजरात का छात्र आन्दोलन.
गुजरात और बिहार दोनों जगह कांग्रेस की सरकारें थी.
1974 के जनवरी माह में गुजरात के छात्रों ने खाद्यान्न, खाद्य तेल तथा .
अन्य वस्तुओं की बढ़ती कीमत तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया.
आंदोलन में बड़ी राजनीतिक पार्टी शामिल हुई.
गुजरात में राष्ट्रपति शासन लगा दिया.
विपक्षी दलों ने दोबारा चुनाव की मांग की.
मोरारजी देसाई ने कहा अगर चुनाव नहीं हुआ तो भूख हड़ताल करेंगे.
दबाव में 1975 में चुनाव कराए गए, कांग्रेस हार गई.
(बिहार का छात्र आन्दोलन)
मार्च 1974 में बिहार में छात्रों ने आंदोलन छेड़ दिया.
कारण.
बढ़ती कीमतें, बेरोजगारी, खाद्यान्न संकट, भ्रष्टाचार.
जयप्रकाश नारायण को निमंत्रण भेजा गया.
जयप्रकाश नारायण इस अवधि में समाजसेवी बन चुके थे और सक्रिय राजनीति छोड़ चुके थे.
जेपी ने निमंत्रण स्वीकार किया लेकिन.
इन्होंने एक शर्त रखी आंदोलन में हिंसा नहीं होगी तथा आंदोलन केवल बिहार तक सीमित नहीं रहेगा.
जीवन के हर क्षेत्र के लोग आंदोलन में शामिल हुए.
इसे “ संपूर्ण क्रांति “ के नाम से जाना जाता है

राम मनोहर लोहिया

राम मनोहर लोहिया और समाजवाद
जन्म – 23 march, 1910
मृत्यु – 12 October, 1967
विचारधारा - समाजवाद, समाजवादी चिंतक, गांधीवाद
समाजवाद को लोकतंत्र से संबंध करते हुए राम मनोहर लोहिया ने लोकतांत्रिक समाजवाद के विचार रखें
राम मनोहर लोहिया ने पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों का विरोध किया
उनके पिताजी गांधीजी के अनुयाई थे
भारत छोड़ो आन्दोलन में भूमिगत होकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

राम मनोहर लोहिया ने चार स्तंभ सिद्धांत दिया.
उन्होंने राजनीति तथा समाजवाद के चार स्तंभों का वर्णन किया जो एक दूसरे से संबंधित हैं.
चार स्तम्भ.
1) केंद्र.
2) क्षेत्र.
3) जिला.
4) ग्राम

पंडित दीनदयाल उपाध्यायऔर एकात्म मानववाद

जन्म – 25 sep, 1916.
मृत्यु – 11 feb, 1968.

दार्शनिक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ.
यह भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े.
सनातन तथा हिंदुत्व की विचारधारा को महत्वपूर्ण माना.
इनके अनुसार मानव विकास का केंद्र होता है.
व्यक्ति तथा समाज की आवश्यकता के बीच समन्वय स्थापित करते हुए.
प्रत्येक मानव के लिए एक गरिमामय जीवन सुनिश्चित करना एकात्म मानववाद का उद्देश्य है.
एकात्म मानववाद के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग किया जाना चाहिए.
जिससे उन संसाधनों को पुनः प्राप्त किया जा सके.
(एकात्म मानववाद का दर्शन 3 सिद्धांतों पर आधारित है).
1) समग्रता की प्रधानता.
2) धर्म की सर्वोच्चता.
3) समाज की स्वायत्तता.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय पूंजीवादी व्यक्तिवाद तथा मार्क्सवादी समाजवाद दोनों के विरोधी थे.
इनके अनुसार पूंजीवाद और समाजवाद विचारधारा केवल मानव शरीर और मस्तिष्क की आवश्यकता ऊपर ही बल देते हैं.
जबकि मानव के समग्र विकास के लिए आध्यात्मिक विकास भी उतना ही जरूरी है.
जो पूंजीवाद और समाजवाद दोनों में अनुपस्थित है.
आंतरिक चेतना, पवित्र मानवीय आत्मा पर आधारित अपने दर्शन से दीनदयाल उपाध्याय.
एक वर्ग विहीन, जाति विहीन, संघर्षमुक्त, सामाजिक व्यवस्था की परिकल्पना करते हैं.

जयप्रकाश नारायण

जयप्रकाश नारायण ने रेलवे के कर्मचारियों से राष्ट्रव्यापी हड़ताल में शामिल होने का आह्वान किया.
इससे रोजमर्रा के कामकाज ठप होने का खतरा पैदा हो गया.
1975 में जेपी ने जनता के संसद मार्च का नेतृत्व किया.
देश की राजधानी में यह अब तक की सबसे बड़ी रैली थी.

सरकार और न्यायपालिका के बीच संघर्ष

विवाद के तीन प्रमुख तीन मुद्दे.
पहला मुद्दा- क्या संसद मौलिक अधिकारों में कटौती कर सकती है.
दूसरा मुद्दा- क्या संसद संविधान में संशोधन करके संपत्ति का अधिकार में काट छांट कर सकती है.
तीसरा मुद्दा- मुख्य न्यायाधीश बनाने का मुद्दा (1973).
तीन वरिष्ठ जजों की अनदेखी करके ए.एन.रे को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया.
इलाहाबद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने एक फैसला 12 जून 1975 को सुनाया.
फैसला यह था कि इंदिरा गांधी का निर्वाचन लोकसभा के लिए अवैधानिक करार दिया गया.
यह फैसला समाजवादी नेता राजनारायण द्वारा दायर चुनाव याचिका में लिया गया.
याचिका इस बात पर थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव प्रचार में सरकारी कर्मचारियों की सेवाओं का इस्तेमाल किया है.
इस फैसले का मतलब था इंदिरा अब सांसद नहीं रही.
6 महीने के अंदर दुबारा सांसद निर्वाचित अगर नहीं होती तो प्रधानमंत्री भी नहीं रह सकेंगी.
24 जून 1975 को सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले पर आंशिक रोक लगाया.
फैसला लिया जब तक इस अपील पर सुनवाई नहीं होती तब तक इंदिरा सांसद बनी रहेंगी.
लेकिन वह संसद के कार्यों में भाग नहीं ले सकेंगी.

संकट और सरकार

जयप्रकाश नारायण तथा अन्य विपक्षी दलों ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे के लिए दबाव बनाया.
सभी दलों ने मिलकर 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में विशाल प्रदर्शन किया.
आज तक दिल्ली में इतना बड़ा प्रदर्शन नहीं हुआ था.
जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी से इस्तीफे की मांग की.
पुलिस तथा सेना से भी आह्वान किया कि वह सरकार की बातों को ना माने.
सरकारी कर्मचारियों को भी कहा कि वह सरकार के खिलाफ आ जाए.
इससे सरकारी कामकाज ठप होने का अंदेशा पैदा होने लगा था.
सरकार ने इन घटनाओं को देखते हुए आपातकाल की घोषणा कर दी.
आपातकाल की घोषणा के बाद सारी शक्तियां केंद्र सरकार के हाथ में चली गई.
25 जून 1975 की रात में प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल लागू करने की घोषणा की.
राष्ट्रपति ने तुरंत उद्घोषणा कर दी.
25 जून 1975 को सरकार ने आपातकाल की घोषणा कर दी.
अनुच्छेद 352 देश में लागू हो गया.
आधी रात के बाद अखबारों के दफ्तर की बिजली काट दी गई.
सुबह मंत्रिमंडल को यह सूचना दी गई कि आपातकाल लग चुका है.
विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया.

आपातकाल के परिणाम

1) विरोध अचानक रुक गए.
2) विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया.
3) हड़ताल के ऊपर रोक लगा दी गई.
4) प्रेस की आजादी रोक दी गई.
5) निवारक नजरबंदी का बड़े पहने पर इस्तेमाल किया गया.
6) r.s.s. तथा जमात-ए-इस्लामी संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया.
7) मौलिक अधिकार निष्प्रभावी हो गए.
(आपातकाल का विरोध)
इंडियन एक्सप्रेस और स्टेटमैंन जैसे अखबार ने प्रेस सेंसरशिप का विरोध किया
सेमिनार और मेनस्ट्रीम जैसी मैगजीन बंद हो गई
लेखक शिवराम कारंत और फणीश्वरनाथ रेणु ने लोकतंत्र के
दमन के विरोध में अपनी पदवी लौटा दी
(आपातकाल के समय के विवाद)
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के लिए संविधान संशोधन में प्रावधान किया गया कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति पद को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती
आपातकाल के दौरान संविधान का 42 वा संशोधन हुआ
इस संशोधन के जरिए संविधान के अनेकों हिस्सों में बदलाव हुए
यह विवादित संशोधन है
इसी दौरान विधायिका के कार्यकाल को 5 साल से बढ़ाकर 6 साल कर दिया गया

शाह जांच आयोग

जनता पार्टी की सरकार ने (MAY – 1977) में शाह जांच आयोग का गठन किया.
जे . सी . शाह – सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश.
25 जून 1975 के आपातकाल में हुई अति, कदाचार, सत्ता का दुरुपयोग.
आयोग ने विभिन्न साक्ष्यों की जांच की.
हजारों गवाहों के बयान दर्ज किए.
इंदिरा गांधी का बयान लेने का प्रयास किया पर इंदिरा ने कोई बयान नहीं दिया.

आपातकाल के दौरान क्या - क्या गलत हुआ ?

1) सत्ता का दुरुपयोग किया गया.
2) लोगों के साथ ज्यादतियां हुई.
3) 676 नेताओं की गिरफ्तारी की गई.
4) जबरन नसबंदी कराई गई.
5) दिल्ली में झुग्गियां उजाड़ी गई .
6) 1,11000 लोगों को गिरफ्तार किया गया.
अखबारों के दफ्तरों की बिजली काटी गई.
संजय गांधी ने सरकारी काम में दखलअंदाजी की.
प्रेस सेंसरशिप लगाई गई.
निवारक नजरबंदी का इस्तेमाल किया गया .
लोगों को अदालत का दरवाजा खटखटाने की भी इजाजत नहीं थी.

आपातकाल के सबक

1) भारत से लोकतंत्र को विदा कर पाना कठिन है.
2) आपातकाल अब अंदरूनी गड़बड़ी बताकर नहीं लगाया जा सकता.
3) केवल सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में आपातकाल लगाया जा सकता है.
4) आपातकाल की घोषणा की सलाह मंत्रीपरिषद राष्ट्रपति को लिखित में दें.
5) नागरिक अब अपने अधिकारों के प्रति ज्यादा सचेत हो गए हैं.
6) आपातकाल के बाद कई संगठन बने थे.

लोकसभा के चुनाव -1977

जनवरी 1977 में चुनाव कराने का फैसला किया गया.
सभी नेताओं को जेल से रिहा कर दिया गया.
1977 के मार्च में चुनाव हुए.
विपक्ष को तैयारी करने का बहुत कम समय मिला.
चुनाव से पहले विपक्षी पार्टी एक साथ मिल गई और जनता पार्टी बनाई.
नई पार्टी ने जयप्रकाश नारायण को नेतृत्व सौंपा.
कांग्रेस के कुछ नेता जो आपातकाल के खिलाफ थे, जनता पार्टी में शामिल हो गए.
जगजीवन राम ने एक नई पार्टी बनाई, कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी लेकिन बाद में वह भी जनता पार्टी में शामिल हो गए.
पार्टी ने चुनाव प्रचार में आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों को जनता के सामने पेश किया.
जनता ने कांग्रेस को वोट नहीं दिया, जनता पार्टी जीत गई.
(1977 के चुनाव परिणाम )
आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस चुनाव हार गई.
लोकसभा- 154 सीटें
वोट- 35%
जनता पार्टी सहयोगी के साथ 330 सीट.
अकेले जनता पार्टी को 295 सीट मिली.
उत्तर भारत में कांग्रेस का बुरा हाल था.
बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मे एक भी सीट कांग्रेस को नहीं मिली.
कांग्रेस को राजस्थान और मध्य प्रदेश में केवल 1 सीट मिली.
इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गई.
संजय गांधी अमेठी से चुनाव हार गए.
महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा में कांग्रेस कई सीटें जीती.
उत्तर भारत का मध्य वर्ग कांग्रेस से दूर जाने लगा.
आपातकाल की हिंसा का नतीजा था 1977 चुनाव परिणाम.
जनता पार्टी ने सरकार बनाई , पहली बार केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार आई.

पहली गैर - कांग्रेसी सरकार

1977 का चुनाव जनता पार्टी जीत गई लेकिन उस में तालमेल नहीं था.
प्रधानमंत्री पद के लिए होड़ मच गई मोरारजी देसाई, चरण सिंह, जगजीवन राम तीनों प्रधानमंत्री बनना चाहते थे.
इनके बीच विवाद हुआ लेकिन अंत में मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बना दिया गया.
मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बन गए , पर पार्टी में खींचतान बना रहा.
पार्टी के आलोचकों ने कहा कि जनता पार्टी के पास किसी दिशा, नेतृत्व, कार्यक्रम का अभाव है.
जनता पार्टी कुछ समय बाद बिखर गई.
मोरारजी देसाई की सरकार केवल 18 महीने में गिर गई.
दूसरी सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया.
लेकिन कांग्रेस ने बाद में समर्थन वापस लिया.
मात्र 4 महीने में चरण सिंह की सरकार गिर गई.
1980 के जनवरी में लोकसभा के चुनाव कराए गए.
इस चुनाव में जनता पार्टी बुरी तरीके से हार गई.
कांग्रेस ने 353 सीटें जीती.
सरकार अगर अस्थिर हो उसके भीतर कलह हो , तो मतदाता ऐसी सरकार को भारी दंड देते हैं.
1977 के बाद पिछड़े वर्गों की भलाई का मुद्दा भारतीय राजनीति पर हावी होने लगा था.
बिहार में ओबीसी आरक्षण पर शोर मचा.
इसके बाद जनता पार्टी की सरकार ने मंडल आयोग की नियुक्ति की.
(मण्डल आयोग)
अध्यक्ष – बिन्देश्वरी प्रशाद मण्डल.
कार्य – आयोग को पिछड़ी जाति के बारे में कार्य दिए.

लोकतांत्रिक  अभ्युत्थान

देश की लोकतांत्रिक राजनीति में जनता की बढ़ती सहभागिता को.
लोकतांत्रिक अभ्युत्थान के रूप में जाना जाता है.
भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ.
जब से अभी तक के समय में तीन लोकतांत्रिक अभ्युत्थान है.
पहला- 1950 के दशक से 1970 का दशक.
दूसरा– 1980 का दशक.
तीसरा– 1990 के दशक में.

[ पहला- 1950 के दशक से 1970 का दशक ]

एक हिंदुस्तानी संपादक ने इसे "इतिहास का सबसे बड़ा जुआ" करार दिया.
"ऑर्गेनाइजर" नाम की पत्रिका ने लिखा कि जवाहरलाल नेहरू "अपने जीवित रहते ही यह देख लेंगे और पछताएंगे कि भारत में सार्वभौम मताधिकार असफल रहा".
आलोचकों के संदेह पर पानी फेर दिया है जो सार्वभौम मताधिकार की शुरुआत को इस देश के लिए जोखिम का सौदा मान रहे थे" देश से बाहर के पर्यवेक्षक भी हैरान थे.
इस समय केंद्र और राज्य दोनों की लोकतांत्रिक राजनीति में.
वयस्क मतदाताओं की बढ़ती सहभागिता दिखी.
पश्चिमी देशों ने भारत के सार्वभौम वयस्क मताधिकार का मजाक उड़ाया और यह कहा कि भारत बहुत अधिक दिनों तक लोकतांत्रिक देश नहीं रह पाएगा.
भारत में यह चुनाव व्यवस्था सफल नहीं होगी.
पश्चिमी देश ऐसा मानते हैं की एक सफल लोकतंत्र आधुनिकीकरण,
नगरीकरण, शिक्षा तथा मीडिया पहुंच पर आधारित होता है.
लेकिन भारत में पहला आम चुनाव सफल रहा और इससे विदेशी.
पर्यवेक्षक भी अचंभित हुए.

1980 का दशक

इस दशक में समाज के निम्न वर्ग तथा.
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग.
की बढ़ती राजनीतिक सहभागिता को योगेंद्र यादव द्वारा.
द्वितीय लोकतांत्रिक अभ्युत्थान के रूप में व्याख्यायित किया गया.

1990 का दशक

1990 के दशक में नई आर्थिक नीतियों को अपनाया गया.
उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण को अपनाया.
इस काल में प्रतिस्पर्धी बाजार को महत्व दिया गया तथा संरक्षणवाद की नीति को खत्म करके, विदेशी व्यापार को बढ़ावा दिया गया.
सरकार ने अपनी व्यापार नीतियों को उदार बनाया.
जिससे विदेशी कंपनियां भी भारत में निवेश एवं व्यापार कर सकें.

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