[ देवसेना का गीत] - जयशंकर प्रसाद- ( काव्य खण्ड हिंदी )- अंतरा व्याख्या

[ देवसेना का गीत] - जयशंकर प्रसाद-  ( काव्य खण्ड हिंदी )- अंतरा व्याख्या

( कविता- देवसेना का गीत )

    जयशंकर प्रसाद

( परिचय )

  • यह गीत जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित नाटक स्कंदगुप्त से लिया गया है !
  • देवसेना मालवा के राजा बन्धु वर्मा `की बहन थी, हूणों के आक्रमण से उसका सारा परिवार मारा गया एवं देवसेना बच गई !
  • देवसेना स्कंदगुप्त से प्यार करती थी, परन्तु स्कंदगुप्त किसी और को चाहता था !
  • जीवन के अंतिम दिनों में स्कंदगुप्त उससे विवाह करना चाहता है !
  • देवसेना उसे मना कर देती है और अपनी भावनाओं को दबाकर यह गीत पीड़ा में गाती है !

आह । वेदना मिली विदाई।
मैंने भ्रम- वश जीवन संचित,
मधुकरियो की भीख लुटाई।

छलछल थे संध्या के श्रमकण
आंसू-से गिरते थे प्रतिक्षण
मेरी यात्रा पर लेती थी-
नीरवता अनंत अंगड़ाई ।

व्याख्या- 1

  • आज जीवन के इस अंतिम समय में प्रेम निवेदन ठुकराना बहुत कष्ट देने वाला है !
  • प्रेम के भ्रम में उसने अपनी जीवन भर की अभिलाषाओं को लुटा दिया है (स्कंदगुप्त को मन करके
  • वह कहती है की उसके दुःख से दुखी होकर यह शाम भी आंसू बहा रही है यानी की वह जीवन के दुखों से लड़ते लड़ते थक गई है !
  • वह कहती है उसकी पूरी जीवन यात्रा में सिर्फ उसका अकेलापन ही उसका एकमात्र साथी था !

श्रमित स्वप्न की मधुमाया में
गहन- विपिन की तरू- छाया में
पथिक उनीदी श्रुति में किसने
यह विहाग की तान उठाई।

लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी,
रही बचाए फिरती कबकी।
मेरी आशा आह। बावली,
तूने खो दी शकल कमाई।

व्याख्या- 2

  • देवसेना अपने बीते पलों को याद करती है और सोचती है जब उसने अपने प्रेम को पाने के लिए अनेक प्रयत्न किए परन्तु सफल नहीं हुई !
  • आज वही प्रेम निवेदन कर रहा है , जीवन के दुखों से दुखी देवसेना को यह प्रेम निवेदन बिलकुल भी पसंद नहीं आता !
  • वह खुद को दूसरों की नजरों से बचाए रखती थी , वह अपनी आशाओं को बावली कहती है और कहती है की जब मुझे स्कंदगुप्त की ज़रूरत थी तब उसने इनकार किया !
  • अगर अब मैंने प्रेमनिवेदन को मान लिया तो मैं अपने जीवन की तपस्या रुपी कमाई को खो दूंगी

चढ़कर मेरे जीवन- रथ पर,
प्रलय चल रहा अपने पथ पर।
मैंने निज दुर्बल पद- बल पर,
उससे हारी- होड़ लगाई।

लौटा लो यह अपनी जाती
मेरी करूणा हा हा खाती
विश्व । ना संभलेगी यह मुझसे
इससे मन की लाज गंवाई।

व्याख्या- 3

  • देवसेना का जीवन दुखों में डूबा हुआ है वह जानती है वह कमज़ोर है लेकिन उसने हार नहीं मानी बल्कि संघर्ष कर रही है !
    अंत में संसार को संबोधित करते हुए वह कहती है की ,,,, हे ! संसार इस प्रेम को वापस लेलो मैं इसे नहीं संभाल सकती और मैं मन ही मन लज्जित हूँ !

[ विशेष ]

1) कविता में देवसेना की वेदना का मार्मिक वर्णन किया गया है !
2) छंद मुक्त कविता है !
3) खड़ी बोली का सुन्दर प्रयोग किया गया है !
4) अनुप्रास एवं मानवीकरण अलंकारों का सुन्दर प्रयोग किया गया है !
5) इस कविता में लयात्मकता और संगीतात्मकता है !

VIDEO WATCH

ANY PROBLEM CLICK HERE

What's Your Reaction?

like
394
dislike
51
love
147
funny
51
angry
47
sad
74
wow
109