Chapter- 3rd Class 10th धातु और अधातु (Metals and Non-Metals) Notes In Hindi

Chapter- 3rd Class 10th  धातु और अधातु  (Metals  and Non-Metals)  Notes In Hindi

वे छोटे से छोटा कण, जिससे पदार्थ बनता  है, तत्व कहलाता हैं। 
तत्वों को उनके गुणधर्मों के आधार पर धातु एवं अधातु में बांटा जाता है।

∆धातु (Metals)

1- वे तत्व, जो ऊष्मा तथा विद्युत का चालन करते हैं , धातु कहलाते हैं।
2- धातु वे तत्त्व होते हैं, जो इलेक्ट्रॉन देकर धनायन बनाते है।
3-  ये कमरे के ताप पर ठोस होती है, परन्तु मर्करी ( Hg ) कमरे के ताप पर द्रव अवस्था में होती है ।
उदाहरण- ऐलुमिनियम ( Al), कॉपर ( Cu ),आयरन (Fe)आदि।
तत्वों में धातुओं की संख्या सबसे ज़्यादा है ।
धातुओं के भौतिक गुण Physical Properties of Metals
घातुओं के प्रमुख भौतिक गुण निम्नलिखित है 
1.धात्विक चमक Metallic Lustre
मुक्त इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण शुद्ध धातुओं की सतह चमकदार होती है । धातुओं पर लेप या पॉलिश करके भी उनको सतह को चमकदार बनाया जा सकता है । उदाहरण - ताँबा ( Cu ), सोना ( Au ), चाँदी ( Ag ), आदि । 
धात्विक चमक के कारण ही इनका प्रयोग ज्वैलरी तथा सजावट की वस्तुएँ बनाने में किया जाता है । 
(2 )ऊष्मीय सुचालकता Thermal Conductivity 
धातु ऊष्मा के सुचालक होते है ।
सिल्वर एव कॉपर ऊष्मा के सबसे अच्छे चालक हैं लेकिन लेड तथा मर्करी ऊष्मा के कुचालक हैं।
(3)विद्युत की सुचालक(Electrical conductivity)
धातुएँ विद्युत  की सुचालक होती हैं।आसानी से विद्युत  को अपने अन्दर से प्रवाहित होने देती हैं, क्योकि इनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं । 
चाँदी ( Ag ) और ताँबा ( Cu ) विद्युत  के सबसे अच्छे सुचालक हैं ।
4.आघ्यतवर्ध्यनीयता (Malleability)
कुछ धातुओ को पीटकर धातु की पतली चादर ( Sheet ) बनाई जा सकती है। ( बिना टूटे ) धातुओं के चादर में बदलने  के गुण को धातु की आघातवर्ध्यनीयता कहते है ।
उदाहरण- चाँदी ( Ag ), सोना ( Au ), ऐलुमिनियम ( Al) व कॉपर ( Cu ) अत्यधिक आघातवर्धनीय धातुएं है ।
5.तन्यता Ductility 
कुछ धातुएँ, खींचकर पतले ( महीन ) तारों में बदला किया जा सकता है । धातुओं के इस  गुण को तन्यता कहते है।
उदाहरण -1 ग्राम सोने से 2 किमी लम्बी महीन तार खींची जा सकती है । चाँदी धातु, महीन तार में खींची जा सकते है।
टंगस्टन ( W ) के लगभग अदृश्य (बहुत पतले ) तार बनाये जा सकते है । टंगस्टन के तारों का प्रयोग विद्युत बल्ब के फिलामेन्ट ( तन्तु ) बनाने में किया जाता है ।
6.कठोरता Hardness 
आमतौर पर धातुएँ कठोर होती है । उदाहरण- ऐलुमिनियम ( A ), तांबा ( Cu ), लोहा ( Fe ), आदि । 
सोडियम ( Na ) तथा पोटैशियम ( K ) कोमल धातुएं होती है, इन्हें चाकू से काटा जा सकता है । 
7.गलनांक  Melting Point 
वह ताप जिस पर कोई धातु अपनी ठोस अवस्था से द्रव में बदल जाती है , उस धातु का गलनांक कहलाता है ।
धातुओं के गलनांक  बहुत अधिक होते है। 
उदाहरण -  कॉपर ( Cu ) धातु का गलनांक 1058° C होता है ।
8.भंगुरता Brittieness
धातुएँ सामान्यतया कठोर होती है , जिस कारण इनमें भंगुरता का गुण पाया जाता है । जैसे - जिक ( Zn ) |
ये हतोड़ा मारने से टूटती नही हैं।
9.ध्वनि Sound 
धातुओं को हथौड़े से पीटने पर एक आवाज़ निकलती है, जिसे धात्विक ध्वनि ( Metallic sound ) भी कहते हैं ।
उदाहरण- स्कूलों में लगी हुई घण्टी धातु की बनी होती है, जिसे लकड़ी या धातु के हथौड़े से  मारने पर तीव्र ध्वनि निकलती है ।

धातुओं के रासायनिक गुण Chemical Properties of Metals 

1.धातुओं की वायु से अभिक्रिया Reaction of Metals with Oxygen 
धातुओं का वायु में दहन करने पर, ऑक्सीजन से अभिक्रिया करके धातु ऑक्साइड  बनाती है।
धातु +ऑक्सीजन → धातु ऑक्साइड 
a)जब कॉपर को वायु में गर्म किया जाता है तो कॉपर, ऑक्सीजन के साथ क्रिया करके काले रंग का कॉपर ऑक्साइड बनाता है।
उदाहरण ;
2Cu+O2------->2CuO
कॉपर।              कॉपर ऑक्साइड
b)कुछ धातु ऑक्साइड जल मे घुल कर क्षार बनाते है।जैसे
सोडियम ऑक्साइड व पोटैशियम ऑक्साइड
Na2O+H2O----->2NaOH
K2O+H2O------->2KOH 
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★NOTE
सोडीयम व पोटैशियम धातुएं तेज़ी से अभिक्रिया  करती हैं की खुले में रखने पर आग पकड़ लेती हैं इसलिए इन्हें आग से रोकने के लिए किरोसिन तेल में डुबो कर रखा जाता है।
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c)उभयधर्मी ऑक्साइड; 
ऐलुमिनियम का वायु की उपस्थिति में दहन कराने पर ऐलुमिनियम ऑक्साइड (Al2O3) बनता है।जो की उभयधर्मी प्रकृति का होता है। क्योंकि यह धातु ऑक्साइड क्षारक व अम्ल दोनों से अभिक्रिया करके लवण तथा जल देते हैं 
Al2O3+6HCl------>2AlCl3+3H2O
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NOTE
एनोडिकरण(Anodising)
ऐलुमिनियम धातु  को वायु में खुला छोड़ने पर धातु वायु से क्रिया करके ऐलुमिनियम ऑक्साइड की पतली सी परत बनाता है जो इसे संक्षारण से बचाती है।
इस परत का विद्युत अपघटन करने की प्रक्रिया एनोडिकरण कहलाती है।
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2.धातुओ की जल से अभिक्रिया
(Reaction of Metals with Water
धातुएँ जल के साथ अभिक्रिया करके हाइड्रोजन गैस तथा धातु  ऑक्साइड या धातु हाइड्रॉक्साइड बनाती हैं । जो धातु ऑक्साइड जल में घुल  जाते है,वे जल में घुल कर धातु हैड्रॉक्साइड बनाती है।
धातु+जल----->धातु ऑक्साइड+हाइड्रोजन
धातु ऑक्साइड+जल---->धातु ऑक्साइड 
उदाहरण 
( a ) सोडियम ( Na ) तथा पोटैशियम ( K ) धातुएँ ठण्डे जल ( H2O ) के साथ तेज़ी से अभिक्रिया करती है ,
यह क्रिया इतनी तेज़ होती है कि निकली हुई ऊष्मीय ऊर्जा द्वारा निकली हाइड्रोजन गैस जलने लगती है ।
 2Na +2H2O------> 2NaOH + H2+ऊष्मीय ऊर्जा 
( b ) कैल्सियम ( Ca ) धातु की ठण्डे जल से अभिक्रिया थोड़ी धीमी होती है। इस अभिक्रिया में उत्सर्जित ऊष्मा इतनी नहीं होती कि हाइड्रोजन गैस को जला  कर सके । 
 Ca + 2H20 ----->Ca ( OH ) 2  + H2 
अभिक्रिया में हाइड्रोजन गैस के बुलबुले कैल्सियम ( Ca ) धातु की सतह पर चिपक जाते हैं , जिसके कारण यह जल की सतह पर तैरने लगती है । 
( c ) आयरन ( Fe), जिंक ( Zn ), ऐलुमिनियम ( AI ), मैग्नीशियम ( Mg ), आदि धातुएँ भाप से क्रिया करके उनके ऑक्साइड तथा हाइड्रोजन गैस ( H2) निर्मित करती हैं ।
■ लेड, कॉपर, सिल्वर एवं गोल्ड आदि धातुएँ जल के साथ बिलकुल अभिक्रिया नही करती हैं।
3.धातुओं की अम्लों से अभिक्रिया
Reaction of Metals with Dilute Acids 
सभी धातुएँ, तनु अम्लों से क्रिया करके हाइड्रोजन गैस तथा धातु लवण निर्मित करती हैं ।
धातु + तनु अम्ल → धातु लवण + हाइड्रोजन 
उदाहरण
( a ) धातुओं की तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ( HCI ) से अभिक्रिया ( Reaction of Metals with Dilute Hydrochloric Acid ) 
*जब धातुओं की क्रिया तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से होती है , तो धातु क्लोराइड तथा हाइड्रोजन गैस बनती हैं ।
  धातु + HCl------> धातु क्लोराइड + H2
  उदाहरण 
  2Na + 2HCl ----->2NaCl + H2
 -कॉपर ( Cu ), सिल्वर ( Ag ) तथा सोना ( Au ) की कम सक्रियता के कारण ये धातुएँ तनु अम्लों के साथ कोई क्रिया नहीं करती हैं । 
( b ) धातुओं की अति तनु नाइट्रिक अम्ल ( HNO3 ) से अभिक्रिया ( Reaction of Metals with Very Dilute Nitric Acid )* 
जब  मैग्नीशियम(Mg) व मैंगनीज(Mn) धातुओं की क्रिया नाइट्रिक अम्ल से होती है , तो धातु नाइट्रेट तथा हाइड्रोजन गैस बनती हैं । 
  उदाहरण-
Mg + 2HNO3------->Mg( NO3) 2+ H2 
__________
NOTE
अम्लराज या ऐक्वा - रेजिया सान्द्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ( HCI ) तथा सान्द्र नाइट्रिक अम्ल ( HNO3 ) का वह मिश्रण  होता है , अम्लराज ( Aqua - regia ) कहलाता है   यह भभकता द्रव होने के साथ प्रबल संक्षारक ( Corrosive) है। सोना ( Au ) तथा प्लेटिनम ( Pt ) को गलाने की क्षमता रखता है ।__________
4.धातुओं की लवण विलयनो के साथ अभिक्रिया
(Reaction of Metals with salt solutions)
अधिक अभिक्रियाशील धातु अपने से कम अभि-क्रियाशील धातु को उसके यौगिक के विलयन से विस्थापित कर देती है।
उदाहरण;
आयरन सल्फ़ेट FeSO4 के विलयन में Zn की छड़ डालने पर ज़िंक धातु आयरन सल्फ़ेट के विलयन से आयरन को विस्थापित करके ज़िंक सल्फेट (ZnSO4) बनाता है।
5.धातुओं की सक्रियता श्रेणी
Reactivity series of Metals
सक्रियता श्रेणी वह सूची है जिसमें धातुओं की क्रियाशीलता को अवरोही क्रम(घटते क्रम) में व्यवस्थित किया जाता है।
वे धातुएँ,जो हाइड्रोजन से ऊपर स्थित होती है,सक्रिय धातुए (K,Na,Ca) तथा वह धातुएँ जो हाइड्रोजन से नीचे स्थित होती है, अक्रिय धातुएँ कहलाती हैं।

 ( सबसे अधिक अभिक्रियाशील )

K       पोटेशियम 
Na      सोडियम
Ca      कैल्शियम
Mg      मैग्नीशियम
Al        एल्युमिनिय
Zn       जिंक
Fe         आयरन
Pb       लेड
H          हाइड्रोजन
Cu        कॉपर
Hg        मर्करी
Ag         सिल्वर
Au        गोल्ड

(सबसे कम अभिक्रियाशील)

★NOTE
हाइड्रोजन में भी अधात्विक गुण होते हैं,परन्तु इसकी विद्युतधनात्मक होने के कारण इसे सक्रियता श्रेणी में रखा गया है।

∆अधातु

वे तत्व जो ऊष्मा तथा विद्युत का चालन नही करते, अधातु कहलाते हैं
अधातु वे तत्व होते है,जो इलेक्ट्रॉन लेकर ऋणायन बनाते हैं।
उदाहरण, कार्बन(C), नाइट्रोजन(N),सल्फर(S)
अधातुओं के भौतिक गुण Physical Properties of Non - Metals
अधातुओं के भौतिक गुण निम्नलिखित हैं
 ( 1 ) धात्विक चमक Metallic Lustre 
 अधातुओं में कोई विशेष चमक नहीं होती, इनकी सतह मलिन ( Dull ) होती है । उदाहरण - सल्फर ( S ) जैसे अधातुओं में कोई चमक नहीं पाई जाती है।
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 नोट - आयोडीन व ग्रेफाइट चमकीले होते । 
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( 2) विद्युत एवं ऊष्मीय अचालकता Electrical and Thermal Non - Conductivity
अधातुएँ विद्युत तथा ऊष्मीय की कुचालक होती है।
  उदाहरण - फॉस्फोरस ( P ) तथा सल्फर ( S ) दोनों अधातु हैं । दोनों के द्वारा ही विद्युत तथा ऊष्मीय चालन नहीं किया जाता । 
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नोट - कार्बन एक अधातु है।यर कई रूपों में पाई जाती है।जिसे अपररूप ( Allotrope )  कहते है। ग्रेफाइट विद्युत का सुचलक है।
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( 3) भंगुरता Brittleness
ठोस अधातुओं को पीटने पर ये चादर में नहीं बदलती, क्योंकि ये भंगुर ( Brittle ) होती है यानी  इनको हथौड़े से पीटने पर ये छोटे - छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं । 
उदाहरण - सल्फर ( S ) तथा फॉस्फोरस ( P ) अधातुएँ भंगुर होती हैं ।
(4) अतन्यता Non - Ductility
अधातुओं को खींचकर तारों में परिवर्तित नहीं किया जा सकता  इनमें तन्यता की कमी होती है । इनकी भंगुरता के कारण ये खींचने पर टूट जाती हैं । 
( 5 ) कठोरता Hardness
अधिकांश ठोस अधातुएँ जैसे- सल्फर ( S ) और फॉस्फोरस ( P ) कोमल होती हैं जबकि कुछ कठोर होती हैं 
उदाहरण- कार्बन का अपररूप हीरा सर्वाधिक कठोर पदार्थ है । 
(6) गलनांक Melting point
अधातुओं के गलनांक  कम होते है।
उदाहरण- गैलियम व सीजियम  धातुओ का गलनांक इतना कम होता ह के हथेली पर रखते ही पिघलने लगती हैं।
( 7) ध्वनि Sound
अधातुएँ अध्वनिक होती हैं अर्थात् इन्हें हथौड़े से पीटने पर कोई ध्वनि उत्पन्न नहीं होती है । 
धातुओं व अधातुओं के बीच अभिक्रिया
(Reactionbetween Metals and non metals)
उत्कृष्ट गैसे अक्रिय होती है। क्योंकि उनका अष्टक पूरा होता है।
अन्य तत्व भी अपने बाह्यतम कोश में 8 इलेक्ट्रॉन पूर्ण करने की कोशिश करते हैं ,  इसके लिए ये इलेक्ट्रॉन ग्रहण या त्यागते हैं ।
धातुओं की प्रवृत्ति इलेक्ट्रॉन देने की होती है जबकि अधातुओं की प्रवृत्ति इलेक्ट्रॉन लेने करने की होती है ।
जब धातु व अधातु एक दूसरे से अभिक्रिया करते हैं तथा दोनों ही इलेक्ट्रॉनों के लेन देन द्वारा अपना अष्टक पूर्ण करने की कोशिश करते है।
 उदाहरण - सोडियम - सोडियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ( जोकि एक धातु है । ) का प्रयास करते हैं ।
         KLM 
         2,8,1 
इसके अष्टक ( अर्थात बाह्यतम कोश में 8 इलेक्ट्रॉन ) को पूर्ण करने के लिए सोडियम अपने M कोश में 7 इलेक्ट्रॉन लेने  की अपेक्षा 1 इलेक्ट्रॉन दे  देता है । 
इस प्रकार यह M कोश से एक इलेक्ट्रॉन देकर धनात्मक आवेश(+) ग्रहण कर लेता है । अब इसके L कोश में 8 इलेक्ट्रॉन है तथा यह बाह्यतम कोश बन जाता है । धनात्मक आवेशित सोडियम धनायन या सोडियम आयन कहलाता है । 
इसे निम्न प्रकार प्रदर्शित करते हैं ।
 Na +( विन्यास 2,8 ) 
 Na―>[Na + ]+ [e-]
 2,8,1       2,8 
समान रूप से यदि क्लोरीन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास है, 2,8 , 7, जोकि एक अधातु है । क्लोरीन के लिए उसके M कोश में एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करना, 7 इलेक्ट्रॉन देने  की अपेक्षा सरल होता है । 
इस प्रकार यह अपने M कोश में एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करता है तथा ऋणावेशित हो जाता है , अब यह क्लोराइड आयन या ऋणायन कहलाता है, इसे Cl- विन्यास KLM 2,8,8 से  है । 
सोडियम तथा क्लोरीन आपस में आकर्षित होते है व मज़बूत बन्ध बनाकर सोडियम क्लोराइड Nacl के रूप में रहते है।
आयनिक बन्ध या विद्युत संयोजक बन्ध
(ionic bond or electrovalent bond)
धातु से अधातु में इलेक्ट्रॉन के लेन देन द्वारा बने यौगिकों को आयनिक योगिक या  विद्युत संयोजक यौगिक कहते है।
आयनिक यौगिकों के गुणधर्म
(characteristics of Electrovalent or ionic compounds)
आयनिक यौगिकों के निम्नलिखित सामान्य गुणधर्मों पर क्या आपने कभी ध्यान दिया है :
1. भौतिक प्रकृति :(crystalline nature) धन एवं ऋण आयनों के बीच मजबूत आकर्षण बल होने के कारण आयनिक यौगिक ठोस तथा कुछ कठोर होते हैं । आयनिक यौगिक प्रायः भंगुर होते हैं तथा दाब डालने पर टुकड़ों में टूट जाते हैं।
2. गलनांक एवं क्वथनांक : आयनिक यौगिकों के गलनांक एवं क्वथनांक बहुत अधिक होते हैं क्योंकि मजबूत अंतर- आयनिक आकर्षण को तोड़ने के लिए ऊर्जा की बहुत अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है । 
3. घुलनशीलता :  वैद्युत संयोजक यौगिक  जल में घुलनशील तथा किरोसिन, पेट्रोल आदि जैसे विलायकों में अघुलनशील होते हैं । 
4. विद्युत चालकता :(electrical conductivity)   आयनिक यौगिकों के जलीय विलयन में आयन विद्यमान होते हैं । जब विलयन में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो यह आयन विपरीत इलैक्ट्रोड की ओर चलने लगते हैं । ठोस अवस्था में आयनिक यौगिक विद्युत चालन नहीं कर सकते क्योंकि ठोस अवस्था में दृढ़ संरचना के कारण आयनों की गति संभव नहीं । परन्तु आयनिक यौगिक गलित अवस्था में विद्युत का चालन करते हैं क्योंकि गलित अवस्था में विपरीत आवेश वाले आयनों के बीच स्थिर वैद्युत आकर्षण बल ऊष्मा के प्रभाव से कमजोर हो जाता है । अत : आयन स्वतंत्र रूप से गमन कर सकते हैं अतः विद्युत का चालन करते हैं ।

धातुओं की प्राप्ति (occurance of metals)
पृथ्वी की भूपर्पटी धातुओं का मुख्य स्रोत है ।
समुद्री जल में भी सोडियम क्लोराइड , मैग्नीशियम क्लोराइड आदि जैसे कुछ विलेय लवण उपस्थित रहते हैं ।

खनिज (Minerals)
पृथ्वी की भूपर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले तत्वों या यौगिकों को खनिज कहते हैं । 

अयस्क (Ores)
कुछ स्थानों पर खनिजों में कोई विशेष धातु काफ़ी मात्रा में होती है जिसे निकालना लाभकारी होता है । इन खनिजों को अयस्क कहते हैं ।

धातुओ का निष्कर्षण (Extraction of Metals)

धातु यौगिकों से शुद्ध धातु की प्राप्ति धातु का निष्कर्षण कहलाती है । 
कुछ धातुएँ भू - पर्पटी में स्वतन्त्र अवस्था में पाई जाती हैं तथा कुछ धातुएँ अपने यौगिकों के रूप में मिलती हैं ।
सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुएँ सबसे कम अभिक्रियाशील होती हैं । अत : ये स्वतन्त्र अवस्था में पाई जाती हैं । उदाहरण - गोल्ड ( सोना ) , सिल्वर ( चाँदी ) , प्लेटिनम तथा कॉपर इत्यादि । 
कॉपर एवं सिल्वर , अपने सल्फाइड या ऑक्साइड के अयस्क के रूप में संयुक्त अवस्था में भी पाए जाते हैं ।
सक्रियता श्रेणी में सबसे ऊपर की धातुएँ ( K , Na , Ca , Mg तथा AI ) अत्यधिक क्रियाशील होने के कारण स्वतन्त्र अवस्था में नहीं पाई जाती हैं 
सक्रियता श्रेणी के मध्य की धातुओं ( Zn , Fe , Pb आदि ) की अभिक्रियाशीलता मध्यम होती है । ये प ऑक्साइड , सल्फाइड या कार्बोनेट के रूप में पाई जाती हैं 
अनेक धातुओं के अयस्क ऑक्साइड होते हैं । इसका कारण ऑक्सीजन की अत्यधिक अभिक्रियाशीलता तथा पृथ्वी पर इसका प्रचुर मात्रा में पाया जाना है । तत्वों के उनके अयस्कों से निष्कर्षण की प्रक्रिया धातुकर्म कहलाती है । 
 
इस प्रकार , अभिक्रियाशीलता के आधार पर हम धातुओं को निम्न तीन वर्गों में वर्गीकृत कर सकते हैं
( 1 ) निम्न अभिक्रियाशील धातुएँ 
( 2 ) मध्यम अभिक्रियाशील धातुएँ
 ( 3) उच्च अभिक्रियाशील धातुएँ 

धातुओं के निष्कर्षण के चरण Steps Involved in the Extraction of Metal

अयस्क से शुद्ध धातु का निष्कर्षण कई चरणों में होता है । 

1.अयस्को का समृधिकरण (enrichment ऑफ Ores)

पृथ्वी से निकले अयस्कों में मिट्टी , रेत जैसी कई अशुद्धियाँ होती हैं जिन्हें  गैंग ( gangue )  कहते हैं । धातुओं के निष्कर्षण से पूर्व अयस्क में अशुद्धियों को हटाना अति आवश्यक होता है । अयस्कों में से गैंग को हटाने के लिए जिन रासायनिक प्रक्रियाओं का प्रयोग होता है वे अयस्क तथा गैंग के भौतिक अथवा रासायनिक गुणधर्मों पर आधारित होती हैं । इस पृथकन के लिए अनेक तकनीक अपनायी जाती है ।

A)सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुओ का निष्कर्षण

कम अभिक्रियाशील होने के कारण धातुओं को मात्र गर्म करने पर ही धातु की प्राप्ति हो जाती है।
उदाहरण के लिए
1. सिनाबार(Hgs) ,मर्करी का एक अयस्क है।वायु की उपस्थिति में गर्म झरने पर ये सबसे पहले मर्क्युरिक ऑक्साइड बनाता है व अधिक गर्म करने पर मर्क्युरिकऑक्साइड मर्करी में बदल जाती है।
3HgS+3O2------>2HgO+2SO2
2HgO-------->2Hg+O2
इसी प्रकार Cu2S में विद्यमान ताँबे(कॉपर) को वायु में गर्म करके इसका अयस्क प्राप्त किया जा सकता है ।
2Cu2S+3O2------>2Cu2O+2SO2
2Cu2O+Cu2S---->6Cu+SO2

B)सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुओ का निष्कर्षण

प्रकृति में ये धातुएँ प्रायः सल्फाइड या कार्बोनेट के रूप में पाई जाती हैं । सल्फाइड या काबोंनेट की तुलना में धातु को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करना अधिक सरल है ।
सल्फाइड को भर्जन द्वारा ऑक्साइड में बदलते हैं तथा काबोंनेट को निस्तापन द्वारा ऑक्साइड में परिवर्तित करते हैं । इसके पश्चात् कार्बन जैसे उपयुक्त अपचायक का उपयोग कर धातु ऑक्साइड से धातु को प्राप्त किया जाता हैं ।
जिंक के निष्कर्षण के समय निम्न रासायनिक अभिक्रिया होती हैं 

( a ) भर्जन ( Roasting )  सल्फाइड अयस्क को वायु की उपस्थिति में गलनांक बिन्दु से निम्न ताप पर गर्म करने पर यह ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है । इस प्रक्रिया को भर्जन कहते हैं । भर्जन उदाहरण - 
2ZnS + 3O2 → 2ZnO+ 2SO2 

( b ) निस्तापन ( Calcination )  वायु की अनुपस्थिति में सान्द्रित अयस्क को उसके गलनांक से नीचे परन्तु उच्च ताप पर गर्म करके ऑक्साइड में परिवर्तित करने का प्रक्रम निस्तापन कहलाता है । उदाहरण- 
ZnCO3------>ZnO + CO2

( c ) अयस्क ऑक्साइड का अपचयन ( Reduction of Oxide Ore )  यह धातु ऑक्साइड अयस्क के धातु में बदलने की प्रक्रिया है । यह ऑक्साइड को गर्म करके की जा सकती है । 
*ZnO + C → Zn  + CO 
कभी - कभी विस्थापन अभिक्रियाओं को धातु ऑक्साइड के अपचयन में प्रयोग किया जाता है । उच्च क्रियाशील धातुएँ जैसे - सोडियम , कैल्सियम , ऐलुमिनियम  का प्रयोग अपचायक के रूप में होता है , क्योंकि ये निम्न अभिक्रियाशीलता वाली धातुओं को उनके यौगिकों से विस्थापित करती है । 
उदाहरण - मैगनीज डाइऑक्साइड की ऐलुमिनियम चूर्ण के साथ अभिक्रिया 
3MnO2+ 4Al  —> 3Mn + 2Al2O3 + Heat 
ये विस्थापन अभिक्रियाएँ उच्च ऊष्माक्षेपी होती हैं , अत : उत्पन्न ऊष्मा की मात्रा उच्च होती है , जो धातुओं की द्रवित अवस्था में उत्पन्न होती है । आयरन ( III ) ऑक्साइड ( FeO ) के साथ एलुमिनियम की क्रिया द्वारा उत्पन्न आयरन का प्रयोग रेलवे पटरियों या मशीनी पुजों की दरारों को जोड़ने में करते हैं । ऊष्मा एलुमिनियम चूर्ण के अपचायक के रूप में प्रयोग द्वारा धातु ऑक्साइड की अभिक्रिया से धातु का निर्माण थर्मिट अभिक्रिया कहलाती है ।
Fe2O3 + 2AI→ 2Fe + AI2O3+ heat

( iii ) सक्रियता श्रेणी में सबसे ऊपर स्थित धातुओं का निष्कर्षण ( उच्च अभिक्रियाशील ) 
  ये धात्विक यौगिक कार्बन या अन्य अपचायकों से अधिक बन्धुता के कारण अपचयित नहीं किए जा सकते हैं , अत : विद्युत अपघटनी अपचयन प्रयोग इन धातुओं के लिए होता  है , जैसे Na , Mg , Ca इत्यादि ।


धातुओं का परिष्करण Refining of Metals

यह अपचयन के पश्चात् प्राप्त धातुओं के शुद्धिकरण की प्रक्रिया है । 
परिष्करण के लिए अनेक विधियाँ प्रयोग में ली जाती हैं , परन्तु सबसे सामान्य विद्युत अपघटनी परिष्करण है । 
कॉपर टिन , निकल , सिल्वर , गोल्ड आदि अनेक धातुओं का परिष्करण विद्युत अपघटन द्वारा किया जाता है।

विद्युत अपघटनी परिष्करण :  

इस प्रकम में , अशुद्ध धातु को ऐनोड तथा शुद्ध धातु की पतली परत को कैथोड बनाया जाता है । 
धातु के लवण विलयन का उपयोग विद्युत अपघट्य के रूप में होता है । 
विद्युत अपघट्य से जब धारा प्रवाहित की जाती है तब ऐनोड पर स्थित अशुद्ध धातु विद्युत अपघट्य में घुल जाती है । विलेय अशुद्धियाँ विलयन में चली जाती हैं तथा अविलेय अशुद्धियाँ ऐनोड की तली पर निक्षेपित हो जाती हैं जिसे ऐनोड पंक  कहते हैं ।

धातुओं का संक्षारण Corrosion of Metals

नम वायु के सम्पर्क में आने पर सतह की धातु का क्षरण , संक्षारण कहलाता है । यह एक ऑक्सीकारक प्रक्रम है ।
उदाहरण
1.लोहे पर जंग लगना 
2.चाँदी का बदरंग होना 
3.ताँबे तथा काँसा पर हरी परत का निर्माण आदि संक्षारण के उदाहरण हैं । 

संक्षारण की रोकथाम Prevention of Corrosion 

पेंट करके , तेल लगाकर , ग्रीस लगाकर , यशदलेपन , क्रोमियम लेपन , ऐनोडीकरण या मिश्रधातु बनाकर लोहे को जंग लगने से बचाया जा सकता है । कुछ विधियों का वर्णन निम्न हैं

(1) यशदलेपन ( Galvanisation )

लोहे एवं इस्पात की वस्तुओं पर जस्ते ( जिंक ) की पतली परत चढ़ाने की प्रक्रिया यशदलेपन कहलाती है । 
इसे प्रक्रिया में वस्तु को द्रवित जिंक में डुबोकर किया जाता है । 
( 2) धातुओं को मिश्रधातु में बदलना धातु के गुणों में सुधार की विधि है । जिसमें दो या दो से अधिक धातुओं को मिलाते हैं । जैसे पीतल - तांबा व कॉपर के मिश्रण से बनता है।
( 3) रंगाई करके धातु की सतह को किसी अम्ल अवरोधक रंग ( Paint ) से रंगाई करके धातु , वायु या किसी विलयन के प्रभाव से बच जाती है । 
( 4) जब ग्रीस या तेल को लौहे की वस्तु की सतह पर लगा देते हैं , तो नमी इसके सम्पर्क में नहीं आ पाती है , जिससे वह जंग से सुरक्षित हो जाती है । 
उदाहरण - लोहे के पुर्जे तथा मशीनों को ग्रीस से पोत ( Smeared ) देते हैं । लोहे को अनेक धातु के साथ मिलाकर विभिन्न मिश्रधातुएँ बनाई जाती हैं ।

 मिश्रधातु (metalloids)

दो या दो से अधिक धातुओं के समांगी मिश्रण को मिश्रधातु कहते है।
मिश्रधातु को बनाने के लिए पहले मूल धातु को गलित अवस्था में लाया जाता है तथा इसके बाद दूसरे तत्वों को एक निश्चित अनुपात में मिलाया जाता है।फिर इसे कमरे के तापमान पर ठंडा किया जाता है।
यदि मिश्रधातु में कोई  एक धातु पारद है तो  मिश्रधातु को अमलगम कहते हैं। शुद्ध धातु की तुलना में उसके मिश्रधातु की विद्युत चालकता तथा गलनांक कम होता है।
उदाहरण सीसा(Pb) तथा टिन(Sn)का मिश्रधातु का नाम सोल्डर है जिसका गलनांक बहुत कम होता है।सोल्डर का उपयोग विद्युत तारों की परस्पर वैल्डिंग के लिये किया जाता है।

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