मेरे बचपन के दिन- Chapter - 7th Class- 9th Hindi -क्षितिज

मेरे बचपन के दिन- Chapter - 7th  Class- 9th Hindi -क्षितिज

 ( लेखिका परिचय )

  • इनका जन्म सन 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद शहर में हुआ था। इनकी शिक्षा दीक्षा प्रयाग में हुई। ये एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं
  • जिन्होंने साहित्य के गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में अद्वितीय सफलता प्राप्त की है।
  • प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राचार्या पद पर रहते हुए इन्होने लड़कियों की शिक्षा के लिए काफी प्रयत्न कियें।  
  • सन 1987 में इनका देहांत हो गया।

( कहानी की शुरुआत करते हुए लेखिका कहती हैं )

  • कि उनके परिवार में 200 वर्ष बाद किसी लड़की ने जन्म लिया। 
  • और उस लड़की को प्राप्त करने के लिए उनके दादाजी ने माता दुर्गा की पूजा आराधना की थी। 
  • उनके पिताजी बहुत ही खुले विचारों के व्यक्ति थे। 
  • वो चाहते थे कि उनकी पुत्री पढ़ लिखकर विदुषी बने।

  • उनके पिता अंग्रेजी जानते थे 
  • और घर में उर्दू और फारसी सभी लोग जानते थे। 
  • उनकी माताजी जबलपुर की थी जो हिंदी और संस्कृत जानती थी। 
  • हिंदी और संस्कृत पढ़ना उन्होंने अपनी माता से सीखा। 
  • लेखिका की माता ने उन्हें पंचतंत्र की कहानियां पढ़ने की प्रेरणा दी। 
  • पंचतंत्र की कहानियां नैतिक शिक्षा की प्रेरणा देती हैं।

  • लेखिका की उर्दू , फारसी में बिल्कुल भी रुचि नहीं थी। 
  • इसलिए उन्होंने उर्दू , फारसी पढ़ने से मना कर दिया। 
  • उनकी मां बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी।
  • वह मीरा के पदों को बहुत सुंदर तरीके से गाती थी 
  • तथा गीता का पाठ भी करती थी।

  • लेखिका ने अपनी मां से बहुत कुछ सीखा।
  • अब लेखिका को स्कूल भेजने का समय आ गया था। 
  • इनको मिशनरी स्कूल में भेजा गया। 
  • वहां का वातावरण बिल्कुल ही अलग था। 
  • इसीलिए वहां उनका मन बिल्कुल नहीं लगा और उन्होंने स्कूल जाना बंद कर दिया।

  • फिर उनके पिता ने उन्हें क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में भेजा। 
  • जहां उन्हें सीधे पांचवी क्लास में प्रवेश मिला। 
  • यहां का माहौल लेखिका के घर के जैसा ही था। 
  • वहां पर एक मैस भी थी जहां बिना लहसुन प्याज का खाना मिलता था। 
  • यहां लेखिका का मन पढ़ाई में लगने लगा। 
  • वो छात्रावास में रहती थी। 
  • जहां एक कमरे पर चार लड़कियां एक साथ रहती थी। 

  • छात्रावास में उनकी पहली सहेली सुभद्रा कुमारी चौहान बनी , 
  • जो उस समय सातवीं कक्षा में पढ़ती थी। 
  • छात्रावास में सब सुभद्रा कुमारी चौहान को “कवयित्री” के नाम से जानते थे। यहां लेखिका भी अब कविताएं लिखने लगी थी। 
  • लेकिन वह किसी को इस बारे में बताती नहीं थी। 
  • लेकिन एक दिन सुभद्रा कुमारी चौहान जी को इस बारे में पता चल गया। 
  • तब उन्होंने छात्रावास के सभी लोगों को इस बारे में जानकारी दी।

  • इसके बाद उन दोनों की गहरी दोस्ती हो गई। 
  • अब दोनों मिल बैठ कर कविताओं की तुकबंदी करती थी। 
  • उन दिनों हिंदी का बहुत प्रचार प्रसार हुआ करता था। 
  • लेखिका अपनी कविताएं छपवाने के लिए  “स्त्री दर्पण” पत्रिका में भेजने लगी। 
  • जब भी उस पत्रिका में उनकी कविताएं छपती। वो बहुत खुश हो जाती थी।

  • उसी वक्त गांधी जी ने भी असहयोग आंदोलन शुरू किया था 
  • और आनंद भवन इस असहयोग आंदोलन का केंद्र था। 
  • जहां पर खूब हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार होता था। 
  • वहां पर अक्सर कवि सम्मेलन होते रहते थे और उन कवि सम्मेलनों में लेखिका भी भाग लेती थी। 
  • इन कवि सम्मेलनों के अध्यक्ष अयोध्या सिंह हरिओध, रत्नाकर, श्रीधर पाठक जी होते थे।

  • कवि सम्मेलनों में वो हमेशा ही प्रथम आती थी। 
  • लेखिका कहती कि उन्होंने 100 से अधिक मेडल जीते थे।
  • गांधीजी अक्सर आनंद भवन आया करते थे 
  • और उनके छात्रावास की लड़कियां भी एक आना, दो आना बचा कर गांधीजी के असहयोग आंदोलन कोष में दान देती थी । 
  • जब लेखिका ने गांधीजी को वह चांदी का कटोरा दिखाया तो, गांधीजी ने उनसे वो कटोरा मांग लिया।

  • वापस घर आकर जब उन्होंने यह बात सुभद्रा कुमारी चौहान जी को बतायी , 
  • तो सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने कहा कि खीर तो तुम्हें मुझे खिलानी ही पड़ेगी , 
  • चाहे तुम पीतल की कटोरी में खिलाओ या फूल की। 
  • इसके कुछ समय बाद सुभद्रा कुमारी चौहान उनके हॉस्टल से चली गई।

  • इसके बाद लेखिका अपने पड़ोसी जवारा के नवाब साहब के बारे में बताती है 
  • जिनकी नवाबी अंग्रेजों ने छीन ली थी और वो उनके पड़ोस में आकर रहने लगे।
  • नवाब साहब की बीवी को लेखिका ताई कहती थी और उनके बच्चे लेखिका की माँ को चाची जान कहते थे।

  • दोनों परिवारों के बीच बहुत अच्छा खासा मेलजोल था। 
  • दोनों परिवार सभी त्यौहार आपस में मिलकर जुलकर मनाते थे। 
  • लेखिका के छोटे भाई का नाम भी“मनमोहन” नवाब साहेब की बीवी ने ही रखा था। 
  • जो आगे चलकर जम्मू और गोरखपुर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर बने। 

  • अंत में लेखिका कहती है 
  • कि उस समय लोगों के बीच अपनापन व प्रेम था। 
  • समाज में सौहार्द व एकता का वातावरण था। लोग मिलजुल कर रहते थे। 
  • और एक दूसरे के तीज-त्यौहार मनाते थे। 
  • अब तो ऐसा लगता है जैसे यह सब एक सपना था। 
  • लेखिका कहती हैं कि काश अगर आज भी वही माहौल होता ,
  • तो आज भारत की कहानी कुछ और ही होती।

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