( बारहमासा )- मलिक मोहम्मद जायसी- (काव्य खण्ड हिंदी ) अंतरा- व्याख्या

( बारहमासा )- मलिक मोहम्मद जायसी- (काव्य खण्ड हिंदी ) अंतरा- व्याख्या

(बारहमासा) कविता की व्याख्या

(Summary)

  • 'बारहमासा' मालिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य "पद्मावत" के "नागमती वियोग खंड" का एक अंश है !
  • इस खंड में राजा रत्नसेन के वियोग में संतृप्त रानी नागमती की विरह व्यथा का वर्णन किया गया है !
  • इस पूरे अंश में साल के विभिन्न महीनों में नागमती की स्थिति का वर्णन किया गया है !
  • चार महीनों का वर्णन इस अंश में किया गया है : अगहन (वर्ष का 9वां महीना), पूस (अगहन के बाद का), माघ, फागुन !

अगहन देवस घटा निसि बाढ़ी। दूभर दुख सो जाइ किमि काढ़ी।।
अब धनि देवस बिरह भा राती। जरै बिरह ज्यों दीपक बाती।
काँपा हिया  जनावा सीऊ। तौ पै जाइ होइ सँग पीऊ।।
घर घर चीर रचा सब काहूँ। मोर रूप रंग लै गा नाहू।
पलटि न बहुरा गा जो बिछोई। अबहूँ फिरै फिरै रंग सोई।।
सियरि अगिनि बिरहिनि हिय जारा। सुलगि सुलगि दगधै भै छारा।।
यह दुख दगध न जानै कंतू। जोबन
भसमंतू।।
पिय सौं कहेहु सँदेसरा ऐ भँवरा ऐ काग।
सो धनि बिरहें जरि गई तेहिक धुआँ हम लाग।।

व्याख्या- 1

  • अगहन महीने के आते ही दिन घट जाते हैं और रातें लंबी हो जाती है और यह बिछड़ने का दु:ख और ज्यादा असहनीय हो जाता है !
  • अब पति के वियोग में दिन भी रात की तरह ही कष्टदायी होने लगा है, और जो विरह की अग्नि है वह नागमती को एक दिये की बात की तरह जला रही है !
  • इस दर्द भरी सर्दी में नागमती का हृदय भी पति के वियोग में कांपने लगा है, और यह सर्दी उनपर असर नहीं करती जो अपने प्रियतम के साथ है यां जिनके जीवन साथी उनके साथ है !
  • पूरे घर में सर्दी से बचने के लिए कपड़े तैयार किए जा रहे हैं, लेकिन नागमती कहती है कि मेरा रूप सौंदर्य तो मेरे प्रिय अपने साथ ले गए हैं !
  • एक बार जब से वो गए हैं उसके बाद में पलट कर नहीं आए, अगर मेरी किस्मत अच्छी हुई या सौभाग्य से वे वापस आते हैं तो मेरा रंग रूप मुझे वापस मिल जाएगा !
  • जगह जगह सर्दी से बचने के लिए आग लगे जा रही है, लेकिन उसके मन और उसके तन को तो विरह की अग्नि जला रही हैं, और यह अग्नि उसके तन मन को राख बना रही है !
  • शायद मेरा यह दु:ख मेरा प्रियतम नहीं जानता शायद तभी तो इस अग्नि में मेरा रंग रूप और यौवन सब भस्म हो रहा है !
  • हे भंवरे हे काग (कौवा) मेरे प्रिय को यह संदेशा दो कि तुम्हारी विरह की अग्नि में तुम्हारी पत्नी जल चुकी है और उसकी अग्नि के धुएं से ही हम काले हो गए हैं !

( विशेष- 1 )

  1. इस काव्यांश में रानी नागमती की वेदना का वर्णन किया गया है !
  2. इस काव्यांश की भाषा अवधि है !
  3. इस काव्यांश की शैली उदाहरण और चित्रात्मक है !
  4. इस काव्यांश में वियोग रस है !
  5. इस कविता में कवि की भाषा काव्यात्मक, लयात्मक, तथा भावानूरूप है !
  6. इस कविता में सजीवता है !

पूस जाड़ थरथर तन काँपा। सुरुज जड़ाइ लंक दिसि तापा।।
बिरह बाढ़ि भा दारुन सीऊ। कॅपि कॅपि मरौं लेहि हरि जीऊ।।
कंत कहाँ हौं लागौं हियरें। पंथ अपार सूझ नहिं नियरें।।
सौर सुपेती आवै जूड़ी। जानहुँ सेज हिवंचल बूढ़ी।।
चकई निसि बिछुरै दिन मिला। हौं निसि बासर बिरह कोकिला।।
रैनि अकेलि साथ नहिं सखी। कैसें जिऔं बिछोही पँखी।।
बिरह सैचान भँवै तन चाँड़ा। जीयत खाइ मुएँ नहिं छाँड़ा।।
रकत ढरा माँसू गरा हाड़ भए सब संख।
धनि सारस होइ ररि मुई आइ समेटहु पंख।।

व्याख्या- 2

  • पुस के महीने में सर्दी इतनी अधिक बढ़ गई की और सूरज के दूर हो जाने से सर्दी और अधिक बढ़ चुकी है और ताप में कमी आ गई है और ऐसे में शरीर कांप रहा है और ऐसी भयंकर सर्दी नागमती के विरह अग्नि को बढ़ा रही हैं और इस सर्दी से अब उसे ऐसा लगने लगा है कि उसके प्राण ही निकलने वाले हैं !
  • हे प्रिय, तुम कहां हो मुझे आकर एक बार अपने हृदय से लगा लो अर्थात अपने आलिंगन मैं लेलो ताकि यह सर्दी कम हो जाए, आप तक पहुंचने का मार्ग तो बहुत लंबा मैं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा मैं करूं तो क्या करूं !
  • जब मैं लेट कर रजाई ओढ़ती हुं, तो वह भी बहुत ठंडी लगती है और कष्ट देती है ऐसा लगता है मानो पूरा बिस्तर ही बर्फ में डूबकर बड़ी हिमालय की तरह ठंडा और बर्फीला हो गया हो। (इस सर्दी से बचने का एकमात्र उपाय प्रिय से मिलन है ) !
  • चकवा और चकई तो केवल रात को ही बिछड़ते हैं उनकी स्थिति तो मुझसे बहुत अच्छी है वे कम से कम दिन में तो मिलते हैं !
  • रात होते ही मेरी सखियां भी अपने अपने घर को चली जाती है और फिर रानी नागमती अकेले हो जाती है, और इस अकेलेपन में इस भयंकर सर्दी के समय इस रात में मेरा हाल ऐसा हो गया है जैसा एक कबूतरी का अपने प्रिय से अलग होने पर होता है इस अकेलेपन में जीना उसके लिए बहुत कठिन होता जा रहा है !
  • ऐसी ऋतु में विरह रूपी बाज मुझे अकेली कबूतरी का शिकार कर रहा है और ना मुझे जीने देता है और ना ही मरने देता है !
  • इस अग्नि में जलते जलते नागमती का हाल बुरा हो चुका है !
  • इस जुदाई की आग में जलते जलते मेरे शरीर का सारा रक्त आंसू बनकर बह गया और मांस गल गया है और हड्डियां शंख की तरह कोकली हो गई है, मेरा हाल उस मादा सारस की तरह हो गया है जो रो रो कर मर जाती है और केवल पंख ही बच जाते हैं !

( विशेष- 2 )

  1. इस काव्यांश में रानी नागमती की वेदना का वर्णन किया गया है !
  2. इस काव्यांश की भाषा अवधी है !
  3. उपमा तथा अनुप्रास अलंकारों का समुंद्र प्रयोग किया गया है !
  4. इस काव्यांश की शैली उदाहरण और चित्रात्मक है !
  5. इसका काव्यांश में वियोग रस है !
  6. इस कविता में कवि की भाषा काव्यात्मक, लयात्मक तथा भावानुरूप है !
  7. इस कविता में सजीवता है !

लागेउ माँह परै अब पाला। बिरहा काल भएउ जड़काला।।
पहल पहल तन रुई जो झाँपै। हहलि हहलि अधिकौ हिय काँपै।।
आई सूर होइ तपु रे नाहाँ। तेहि बिनु जाड़ न छूटै माहाँ।।
एहि मास उपजै  रस मूलू। बिरह पवन होइ मारै झोला।।
नैन चुवहिं जस माँहुट नीरू। गियँ नहिं हार रही होइ डोरा।।
टूटहिं बुंद परहिं जस ओला। तेहि जल अंग लाग सर चीरू॥
केहिक सिंगार को पहिर पटोरा। तूं सो भँवर मोर जोबन फूलू।।
तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई तन तिनुवर भा डोल।
तेहि पर बिरह जराइ कै चहै उड़ावा झोल।।

व्याख्या- 3

  • माघ महीने के लगते हैं पाला पड़ने लगता है और सुबह-सुबह ओस पड़ने लगती है, एवं ठंड और ज्यादा बढ़ जाती है, पति से अलग होने के बाद नागमती कोई है कड़ाकेदार सर्दी मौत के सामान लग रही है इस भयंकर सर्दी के कारण नागमती का तन रुई की तरह कांप रहा है और उसका उदय भी पति से अलग होकर इस ठंड में कांप रहा है !
  • इस भयंकर सर्दी से बचने का एकमात्र उपाय मेरे प्रिय से मेरा मिलन है और प्रिय से अगर मैं मिलती हूं तो वह इस भयंकर सर्दी में सूरज के ताप के समान होगा !
  • इस माघ के महीने में फूलों में रस आ जाता है और उसी प्रकार मेरा हृदय भी भावनाओं से भर गया है और वह अपने पति को भवर बन कर आने को कहती है और उसका हृदय उसके बाद फूल की तरह खिल जाएगा !
  • पति से बिछड़ने के बाद उसकी आंखों में आंसू इस प्रकार बह रहा है जैसे बादलों से बरसात होती है और यह आंसू नागमती द्वारा पहने गए वस्त्रों को गिला कर रहे हैं और ये गीले वस्त्र उसे तीर की तरह चुभ रहे हैं !
  • आंखों से गिरने वाली बूंदे ओले की तरह गिर रही है, और इस भीषण सर्दी में जो उनकी आंखों से आंसू गिर रहे हैं उनकी बूंदे वो ओले के सामान लग रही है और जब हवा चलती है तो यह विरह की अग्नि और बढ़ जाती है !
  • पति से बिछड़ने के बाद से नागमती ना तो श्रृंगार करती है और ना ही किसी प्रकार का आभूषण पहनती है !
  • प्रिया के बिना नागमती का शरीर जुदाई के दुःख से कमजोर और दुर्बल हो गया है और तिनके की तरह हल्का हो गया है, इस जुदाई की आग ने उसके शरीर को जलाकर राख कर दिया है और अब उसे राख की तरह उड़ना चाहती है !

( विशेष- 3 )

  1. इस काव्यांश में रानी नागमती की वेदना का वर्णन किया गया है !
  2. इस काव्यांश की भाषा अवधि है !
  3. उपमा तथा अनुप्रास अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया गया है !
  4. इस काव्यांश की शैली उदाहरण और चित्रात्मक है !
  5. इसका व्यास में वियोग रस है !
  6. इस कविता में कवि की भाषा काव्यात्मक, लयात्मक तथा भावानुरूप हैं !
  7. इस कविता में सजीवता है !

फागुन पवन झंकोरै  बहा। चौगुन सीउ जाइ किमि सहा।।
तन जस पियर पात भा मोरा। बिरह न रहे पवन होइ झोरा।।
तरिवर झरै झरै बन ढाँखा। भइ अनपत्त फूल फर साखा।।
करिन्ह बनाफति कीन्ह हुलासू। मो कहँ भा जग दून उदासू।।
फाग करहि सब चाँचरि जोरी। मोहिं जिय लाइ दीन्हि जसि होरी।।
जौं पै पियहि जरत अस भावा। जरत मरत मोहि रोस न आवा।।
रातिहु देवस इहै | मन मोरें। लागौं कंत छार? जेऊँ तोरें।।
यह तन जारौं छार कै कहौं कि पवन उड़ाउ।
मकु तेहि मारग होइ परौं कत धरै जहँ पाउ।।

व्याख्या- 4

  • नागमती कहती है कि फागुन के महीने में जब हवा बहुत तेजी से बहने लगती है तो हवा के झोंके से ठंड होने वाला कष्ट और भी बढ़ जाता है और यह ठंड असहनीय है !
  • नागमती कहती है कि उसका शरीर विरह वेदना के कारण पीले पत्ते की तरह पीला पड़ गया है, जिस तरह तेज हवाओं के कारण पेड़ों के पीले पत्ते हिलते रहते हैं वैसे भी उसी प्रकार उसका शरीर विरह के कारण कांप रहा है !
  • नागमती कहती है कि पतझड़ के बाद पेड़ों में नई-नई कोंपले आती है और नए नए पत्ते और फल आते हैं और सभी पेड़ आनंद में झूमते दिखाई पड़ते हैं लेकिन उसके मन को यह सब पसंद नहीं आता और यह सब उसके दुख और उदासी को दोगुना कर देता है !
  • गांव में सभी स्त्रियां मिलजुल कर नाचती गाती है एवं होली का उत्सव मानती है, और नागमती को ऐसा लगता है कि यह होली की आप उसके हृदय में जल रही है जो उसके तन मन को भी जला रही है !
  • अभी इस अंतिम समय में मेरे प्रिय वापस आ जायें और इस समय में मरनासन अवस्था में है परंतु इस समय भी मुझे इस विरह अग्नि में इस वेदना से जलने में कोई क्लेश नहीं होगा क्योंकि उनके दर्शन से मैं धन्य हो जाऊंगी !
  • रात दिन में अपने मन में यह सोचती हूं की मेरा यह शरीर किसी भी प्रकार मेरे प्रिय के काम आ जाए !
  • नागमती पवन से अनुरोध कर रही है कि मेरे शरीर की इस राख को उड़ाकर मेरे प्रिय के मार्ग में बिछा देना ताकि राख पर चलने से मुझे उनके चरणों का स्पर्श अनुभव हो !

( विशेष- 4 )

  1. इसका काव्यांश में रानी नागमती की वेदना का वर्णन किया गया है !
  2. इसका काव्यांश में फागुन महीने मैं रानी नागमती की विरह वेदना का वर्णन किया गया है !
  3. इस काव्यांश की भाषा अवधि है !
  4. उपमा तथा अनुप्रास अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया गया है !
  5. इसका काव्यांश की शैली उदाहरण और चित्रात्मक है !
  6. इसका काव्यांश में वियोग रस है !
  7. इस कविता में कवि की भाषा काव्यात्मक, लयात्मक तथा भावानू्रूप है !
  8. इस कविता में सजीवता है !

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