नैदानिक पोषण और आहारिकी- Clinical Nutrition and Dietetics Chapter 2nd Home Science

नैदानिक पोषण और आहारिकी- Clinical Nutrition and Dietetics Chapter 2nd Home Science

INTRODUCTION

1- परिचय
2- पोषण 
3- नैदानिक पोषण 
4-  महत्व 
5- मूलभूत संकल्पनाएँ - आहार चिकित्सा  

भोजन (Food)

वे सभी तरल या ठोस पदार्थ जिन्हें मनुष्य  खाता है,
और अपनी पाचन क्रिया द्वारा अवशोषित करके विभिन्न शारिरिक कार्यो के लिए प्रयोग करता है,
भोजन  कहलाता है।

NUTRITION  (पोषण)

पोषण एक प्रक्रिया होती है, जिसमे आहार (खाने की चीज़) को ग्रहण कर उन्हें पचाया जाता है |
इस प्रक्रिया में भोजन के अन्दर जो भी पौष्टिक पदार्थ होते हैं उन्हें सोख लिया जाता है और फिर उन्हें शरीर के दूसरे अंगों तक पहुँचाया जाता है | 
1- NUTRITION 
2- DIGESTED   
3- NUTRITIOUS 

Role of nutrition

यदि शरीर को आवश्यकतानुसार पोषक तत्वों की प्राप्ति न हो तो , ऐसी स्थिति में व्यक्ति की रोगप्रतिरोधक क्षमता में कमी आती है ।
घावों को भरने में अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है ।
दवाईयों का प्रभाव कम होता है तथा विभिन्न अंगों को सुचारू रूप से कार्य करने में कठिनाई होती है |

नैदानिक पोषण (clinical nutrition )

अस्वस्थता और बीमारी मिलकर शरीर में,
पोषक असंतुलन उत्पन्न कर देती है, ऐसा उस व्यक्ति में भी हो सकता है, जिसकी पोषण स्थिति पहले अच्छी थी । 
पोषण का विशिष्ट क्षेत्र, जो बीमारी के समय के पोषण से संबंधित है, "नैदानिक पोषण कहलाता है” |

Significance of clinical nutrition

मरीज की बीमारी के अनुसार उसके पोषण का प्रबंधन
Trained clinical nutritionist
मरीज की पोषण संबंधी देखभाल के लिए व्यवस्थित विधि के अनुरूप काम करते हैं 
मरीज की आवश्यकता के अनुसार  
विभिन्न बीमारियों के प्रबंधन के लिए चिकित्सीय आहार सुझाने के अतिरिक्त
बीमारियों की रोकथाम के लिए SUGGESTION 
मोटापा, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और मधुमेह (आधुनिक जीवन शैली से सम्बंधित बीमारियाँ )

आधुनिक जीवनशैली से सम्बंधित बीमारियाँ

1- Diabetic 
2- heart attack
3- Obesity ( Fat )

नैदानिक पोषण और आहारिकी संबंधी मूलभूत संकल्पनाएँ

नैदानिक पोषण चिकित्सक का प्रमुख कार्य किसी रोगी को पोषण संबंधी सलाह देना, 
उसे आहार संबंधी दिशा - निर्देश देना होता है।
वह शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति को भी
भविष्य के लिए अच्छी पोषण स्थिति बनाए रखने
और स्वस्थ्य रहने के लिए मदद भी करते हैं ।

आहार चिकित्सा ( diet therapy )

आहार संबंधी शाखा है जो खाद्य पदार्थों के उपयोग के साथ संबंधित है। 
यह स्वास्थ्य में सुधार के लिए एक चिकित्सक द्वारा निर्धारित खाने की विधि है।
आहार चिकित्सा में आमतौर पर स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए एक जीवन शैली का संशोधन शामिल है। 
( उद्देश्य (Objectives )
मरीज को भोजन संबंधी आदतों  ( food habits ) को ध्यान में रखते हुए आहार सूची तैयार करना ।
बीमारी की स्थिति को सुधारने या उसे नियंत्रण में रखने के लिए वर्तमान आहार में परिवर्तन करना।
पोषणहीनता की स्थिति में पोषणयुक्त आहार निर्धारित करना ।
दीर्घकालिक बीमारियों की स्थिति में आहारीय उपचार द्वारा अल्पकालिक और दीर्घकालिक समस्याओं को रोकने में मदद करना ।
मरीज को निर्धारित आहार का ईमानदारी से अनुसरण करने के लिए शिक्षित एवं प्रोत्साहित करना । 

डॉक्टरी पोषण और आहारिकी ( clinical nutrition and dietetics ) का अध्ययन व्यावसायियों ( professionals ) को निम्नलिखित के लिए सक्षम बनाता है :-

जीवन चक्र के सभी स्तरों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं के लिए सही आहार योजना बनाना 
खिलाड़ियों, सैनिकों, मजदूरों आदि के लिए उनकी पोषण संबंधी आवश्यकता के अनुरूप आहार योजना  बनाना 


1- परिचय
2- पोषण 
3- नैदानिक पोषण 
4-  महत्व 
5- मूलभूत संकल्पनाएँ - आहार चिकित्सा  
6- आहार के प्रकार  (नियमित आहार , संशोधित आहार )
7- भोजन की सघनता में परिवर्तन 
8- भोजन देने के तरीके 

1- नियमित आहार  (Regular Diet)   
ऐसा आहार जिसमें पौष्टिक तत्व उचित मात्रा व उचित अनुपात में हों
तथा वे शरीर की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करे,
संतुलित नियमित आहार कहलाता है। 
2- संशोधित आहार  (Modified Diet)   
जो रोगी की चिकित्सिय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विशेष रूप से समायोजित किया जाता है । 
संशोधित आहार कहलाता है ।
3- आहार में संशोधन :-
रोगी को दिए जाने वाले आहार की मात्रा में परिवर्तन करके क्योंकि रोगग्रस्त होने पर रोगी सामान्य रूप से नहीं खा सकता ।
विभिन्न पोषक तत्वों की मात्रा में परिवर्तन करके ।
ऑपरेशन के उपरांत रोगी को अधिक प्रोटीन देना जवकि गुदा खराब हो जाने पर कम प्रोटीन देना ।
उच्च रक्तचाप की स्थिति में सोडियम ( नमक ) के उपभोग को कम करने की सलाह दी जाती है,
जबकि निम्न रक्तचाप की स्थिति में सोडियम युक्त खाद्य पदार्थो के सेवन को प्राथमिकता देने के लिए कहा जाता है ।

भोजन की सघनता में परिवर्तन - Changes in consistency of food 

1- तरल आहार  (Liquid Diet ):-
Operation के बाद 
अतिसार की स्थिति में 
High Fever
जो normaly चबा नहीं पाते  
निम्बू पानी 
उबली सब्जियों का पानी 
फटे दूध का पानी 
2- अर्ध तरल आहार  (Semi Liquid Diet ):-
पाचन संबंधी रोग  में 
चबाने की जरूरत नहीं 
जैसे – सूप, घुटी हुई दाल 
आधा उबला अंडा  
3- कोमल आहार  (Soft  Diet ):-
जब रोगी ठोस आहार न पचा सके
जैसे सूजी की खीर 
उबले मसले आलू 
केला 
इनको रोगी आसानी से पचा पाता  है  
4- सामान्य  आहार  (Normal  Diet ):-
रोगी के पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद
बिना तला
सादा / बिना मिर्च मसाला   

भोजन देने के तरीके- Feeding Routes 

कई बार रोगी भोजन चबा या निगल नहीं पाता 
बेहोशी में 
या आहार नाली में दिक्कत होने पर ऐसा होता है 
तब भोजन देने के अलग अलग तरीको का इस्तेमाल किया जाता है 
नली द्वारा भोजन देना, अंत: शिरा से भोजन देना 

नली द्वारा भोजन देना :-

( पोषण युक्त सम्पूर्ण भोजन दिया जाता है )
यह विधि तब अपनाई जाती है जब रोगी का gastrointestinal tract ठीक से काम करता हो 
तथा जो भी नली से खिलाया जाए उसे वह पचा ले 
( अंत: शिरा से भोजन देना :- )
अंत : शितः संभरण  में रोगी को पोषण विशेष विलयनों के रूप में दिया जाता है ,
जिन्हें रोगी की नसों में ड्रिप के माध्यम द्वारा पहुँचाया जाता है ।

चिरकालिक रोगों की रोकथाम- PREVENTION OF CHRONIC DISEASES
उचित आहार, अच्छे पोषण तथा स्वस्थ जीवनशैली से 
आजकल  खाद्य पदार्थों में बहुत से ऐसे पदार्थ मिलाए जाते हैं,  जिनमें अत्यधिक वसा और / या शक्कर होती है ।
हम ऐसे खाद्य पदार्थों को पसंद कर रहे हैं 
जिनमे FIBRE तथा आवश्यक विटामिन न के बराबर होते हैं 
इनके नकारात्मक परिणाम : मोटापा, कोलन का कैंसर, मधुमेह, हृदयरोग और उच्च रक्तचाप इत्यादि
नैदानिक पोषण विशेषज्ञ इस प्रकार की समस्याओं को उत्पन्न होने को रोकने के लिए या इनकी व्यवस्था में समाज के विभिन्न समूहों, जैसे कि – school, college, इत्यादि में उचित आहार परामर्श और मार्गदर्शन दे सकते हैं ।

Preparing for a Career in Clinical Nutrition and Dietetics

यदि कोई आहार विशेषज्ञ बनना चाहता हैं, तो उसे कम- से - कम आहारिकी में ( post graduated diploma in dietitian)  पास करना होगा |
Internship 
जिनके पास जीवन विज्ञान, ( biochemistry), ( Microbiology) या (Biotechnology) में B.sc की डिग्री है 
वे इस क्षेत्र में स्नातकोत्तर डिप्लोमा स्तर (postgraduate diploma level)  पर प्रवेश पा सकते हैं ।
खाद्य विज्ञान और पोषण अथवा आहारिकी में (M.S.C) किसी भी व्यक्ति को इस क्षेत्र में विशेषज्ञता प्रदान करती है
और ऐसे व्यक्ति को कई स्थानों पर नौकरी में वरीयता दी जाती है ।
एक आहार विशेषज्ञ अपनी विश्वविद्यालीय शिक्षा पूरी करने के बाद आगे अध्ययन करके (qualification  of Registered dietitian)   की योग्यता का certificate प्राप्त कर सकता है ।

Scope- कार्यक्षेत्र

Preparing for a Career in Clinical Nutrition and Dietetics
1- Gym  में सलाहकार 
2- Dietitian 
3- Hospital, schools  (diet specialist)
4- शैक्षिक संस्थानों में कार्य 
5- इससे सम्बंधित लेखन कार्य

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