Class 12th Political Science Chapter- 2nd || एक दल के प्रभुत्व का दौर Notes In Hindi ( Book- 2 )

इस अध्याय में हम स्वतंत्र भारत के राष्ट्र निर्माण और भारत में लोकतान्त्रिक व्यवथा का अध्ययन करेंगे किस प्रकार आजादी के बाद भारत ने इस विविधता से भरे देश में एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था को अपनाया। इस अध्याय में हम कांग्रेस की भूमिका और उसके प्रभुत्व साथ ही विपक्षी पार्टियों के बारे में जानेगे 

Class 12th Political Science Chapter- 2nd  ||  एक दल के प्रभुत्व का दौर Notes In Hindi ( Book- 2  )

इस अध्याय में हम स्वतंत्र भारत के राष्ट्र निर्माण और भारत में लोकतान्त्रिक व्यवथा का अध्ययन करेंगे किस प्रकार आजादी के बाद भारत ने इस विविधता से भरे देश में एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था को अपनाया। इस अध्याय में हम कांग्रेस की भूमिका और उसके प्रभुत्व साथ ही विपक्षी पार्टियों के बारे में जानेगे 

⊗ भारत में लोकतंत्र के निर्माण की चुनौतीयां 

  • भारत देश को आजादी कठिन परिस्थितियों में मिली थी। 
  • स्वतंत्रता  के समय से ही देश के सामने  राष्ट्र-निर्माण की चुनौती थी
  • हमारे नेता लोकतंत्र में राजनीति की निर्णायक भूमिका को लेकर सचेत थे। वे राजनीति को समस्या के रूप में नहीं देखते थे वे राजनीति को समस्या के समाधान का उपाय मानते थे। 
  • हमारे देश के नेताओं ने लोकतंत्र को ही महत्व दिया और भारत में स्वतंत्रता के बाद से ही लोकतान्त्रिक व्यवस्था बनाई गयी
  • हमारा संविधान 26 नवम्बर 1949 को अंगीकृत किया गया और 24 जनवरी 1950 को इस पर हस्ताक्षर हुए।
  • उम्मीद की जा रही थी कि देश का पहला आम चुनाव 1950 में हो किसी वक्त हो जाएगा परन्तु उथल पुथल के दौर में क्षेत्रो का सीमांकन और मतदाता सूचि बनाना मुश्किल कम था 
भारत का संविधान बना  26 नवम्बर 1949 
भारत का संविधान लागू हुआ 26 जनवरी 1950
चुनाव आयोग बना 1950 में 
पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन
वर्तमान में मुख्य चुनाव आयुक्त श्री राजीव कुमार 

1. चुनाव आयोग के सामने समस्या 

  1. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाना।
  2. चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन करना ।
  3. मतदाता सूची बनाने के मार्ग में बाधाएँ ।
  4. अधिकारियों और चुनावकर्मियों को प्रशिक्षित करना।
  5. कम साक्षरता के चलते मतदान की विशेष पद्धति के बारे में सोचना।

2. प्रथम आम चुनाव- (1951-1952)

  1. अक्तूबर 1951 से फरवरी 1952 तक प्रथम आम चुनाव हुए।
  2. भारत ने सार्वभौम वयस्क मताधिकार के अनुसार चुनाव करने का फैसला लिया
  3. चुनावों को दो बार स्थगित करना पड़ा लेकिन आखिरकार 1951 के अक्तूबर से 1952 के फरवरी तक चुनाव हुए। 
  4. इस चुनाव को 1952 का चुनाव ही कहा जाता है क्योंकि देश के अधिकांश हिस्सों में मतदान 1952 में ही हुए 
  5. चुनाव अभियान, मतदान और मतगणना में कुल छह महीने लगे। 
  6. सार्वभौम मताधिकार के इस प्रयोग ने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया। 

3. आलोचकों की प्रतिक्रया 

  • मतदान से पहले 
  1. एक हिन्दुस्तानी संपादक ने इसे "इतिहास का सबसे बड़ा जुआ" माना । 'आर्गनाइजर' नाम की पत्रिका में लिखा कि जवाहरलाल नेहरू "अपने जीवित रहते ही यह देख लेंगे और पछताएंगे कि भारत में सार्वभौम मताधिकार असफल रहा।" 
  2. इंडियन सिविल सर्विस के एक अंग्रेज नुमाइंदे का दावा था कि "आने वाला वक्त और अब से कहीं ज्यादा जानकार दौर बड़े विस्मय से लाखों अनपढ़ लोगों के मतदान की यह बेहूदी नौटंकी देखेगा।"
  • मतदान के बाद 
  1. टाइम्स ऑफ इंडिया ने माना कि इन चुनावों ने "उन सभी आलोचकों के संदेहों पर पानी फेर दिया है जो सार्वभौम मताधिकार को इस शुरुआत को इस देश के लिए जोखिम का सौदा मान रहे थे।"  देश से बाहर के पर्यवेक्षक भी हैरान थे।
  2. हिंदुस्तान टाइम्स – "यह बात हर जगह मानी जा रही है कि भारतीय जनता ने विश्व के इतिहास में लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रयोग को बखूबी अंजाम दिया।" 1952 का आम चुनाव पूरी दुनिया में लोकतंत्र के इतिहास के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। अब यह दलील दे पाना संभव नहीं रहा कि लोकतांत्रिक चुनाव गरीबी अथवा अशिक्षा के माहौल में नहीं कराए जा सकते। यह बात साबित हो गई कि दुनिया में कहीं भी लोकतंत्र पर अमल किया जा सकता है।

⊗ प्रथम तीन आम चुनाव 

1. पहले तीन आम चुनाव में कांग्रेस 

पहला आम चुनाव

1952  

दूसरा आम चुनाव 

1957   

तीसरा  आम चुनाव 

1962  

कांग्रेस 365 सीट जीती  कांग्रेस 371 सीट जीती  कांग्रेस 361  सीट जीती 

प्रथम आम तीन चुनाव में कांग्रेस के प्रभुत्व के कारण

  • देश की सबसे बड़ी पार्टी तथा सबसे पुरानी पार्टी
  • सबसे मजबूत संगठन 
  • सबसे लोकप्रिय नेता इसमें शामिल थे 
  • आजादी की विरासत हासिल थी 
  • सभी वर्गों का समर्थन 
  • नेहरु जैसे करिश्माई नेता इसमें शामिल  
  • सबको साथ लेकर चलने की प्रकृति 

2. पहले तीन आम चुनाव में विपक्ष  

  1. पहले आम चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी 16 सीट जीतकर दूसरे स्थान पर रही 
  2. केरल में 1957 में जो चुनाव हुए इसमें कांग्रेस हार गई कम्युनिस्ट पार्टी 126 सीटों में से 60 सीटें जीती
  3. 1957 के चुनाव में केरल राज्य में कम्युनिस्ट पार्टी ने गठबंधन की सरकार बनायीं ई. एम. एस. नंबूरीपाद वहां के सीएम बने
  4. लेकिन केंद्र सरकार ने 1959 में अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग किया कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार को बर्खास्त कर दिया जिसका विरोध वहां के नेताओं के द्वारा किया गया था

⊗ कांग्रेस के प्रभुत्व की प्रकृति  

1. कांग्रेस के एक दल के प्रभुत्व की विशेषता 

  • भारत ही एकमात्र ऐसा देश नहीं है जो एक पार्टी के प्रभुत्व के दौर से गुजरा हो। 
  • दुनिया के कई देशों में एक पार्टी के प्रभुत्व के बहुत से उदाहरण मिलेंगे। 
  • बाकी मुल्कों में एक पार्टी के प्रभुत्व और भारत में एक पार्टी के प्रभुत्व के बीच अंतर है। 
  • बाकी मुल्कों में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतंत्र की कीमत पर कायम हुआ। 
  • कुछ देशों मसलन चीन, क्यूबा और सीरिया के संविधान में सिर्फ एक ही पार्टी को देश के शासन की अनुमति दी गई है। 
  • म्यांमार, बेलारूस और इरीट्रिया में एक पार्टी का प्रभुत्व कानूनी और सैन्य उपायों के चलते कायम हुआ है। 
  • अब से कुछ साल पहले तक मैक्सिको, दक्षिण कोरिया और ताईवान भी एक पार्टी के प्रभुत्व वाले देश थे। 
  • भारत में कायम एक पार्टी का प्रभुत्व इन उदाहरणों से कहीं अलग है। यहाँ एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतांत्रिक स्थितियों में कायम हुआ। 
  • अनेक पार्टियों ने मुक्त और निष्पक्ष चुनाव के माहौल में एक-दूसरे से होड़ की और तब भी कांग्रेस पार्टी एक के बाद एक चुनाव जीतती गई। 


2. कांग्रेस एक सामाजिक और वैचारिक गठबंधन के रूप में 

1. सामाजिक गठबंधन 

  • कांग्रेस 1885 में A.O.HUME द्बवारा बनाई गयी थी । 
  • उस वक्त यह नवशिक्षित, कामकाजी और व्यापारिक वर्गों का एक हित-समूह भर थी, लेकिन 20वीं सदी में इसने जनआंदोलन का रूप ले लिया। 
  • इस वजह से कांग्रेस ने एक जनव्यापी राजनीतिक पार्टी का रूप लिया और राजनीतिक व्यवस्था में इसका दबदबा कायम हुआ। 
  • शुरू-शुरू में कांग्रेस में अंग्रेजीदाँ, अगड़ी जाति, ऊँचले मध्यवर्ग और शहरी अभिजन का बोलबाला था।
  • कांग्रेस ने जब सविनय अवज्ञा जैसे आंदोलन चलाए तब उसका सामाजिक आधार बढ़ा कांग्रेस ने परस्पर विरोधी हितों के कई समूहों को एक साथ जोड़ा। 
  • कांग्रेस में किसान और उद्योगपति, शहर के बाशिंदे और गाँव के निवासी मजदूर और मालिक एवं मध्य निम्न और उच्च वर्ग तथा जाति सबको जगह मिली धीरे-धीरे कांग्रेस का नेतृवर्ग  भी विस्तृत हुआ।
  • इसका नेतृत्व अब उच्च वर्ग या जाति के पेशेवर लोगों तक ही सीमित नहीं रहा। इसमें खेती-किसानी की बुनियाद वाले तथा गाँव गिरान की तरफ रुझान रखने वाले नेता भी उमरे। 
  • आजादी के समय तक कांग्रेस एक सतरंगे सामाजिक गठबंधन की शक्ल अख्तियार कर चुकी थी और वर्ग, जाति, धर्म, भाषा तथा अन्य हितों के आधार पर इस सामाजिक गठबंधन से भारत की विविधता की नुमाइंदगी हो रही थी।
  • कई बार यह भी हुआ कि किसी समूह ने अपनी पहचान को कांग्रेस के साथ एकसार नहीं किया और अपने-अपने विश्वासों को मानते हुए बतौर एक व्यक्ति या समूह के कांग्रेस के भीतर बने रहे। 

2. वैचारिक गठबंधन

  • कांग्रेस एक विचारधारात्मक गठबंधन भी थी। 
  • कांग्रेस ने अपने अंदर क्रांतिकारी और शांतिवादी, कंजरवेटिव और रेडिकल, गरमपंथी और नरमपंथी, दक्षिणपंथी, वामपंथी और हर धारा के मध्यमार्गियों को समाहित किया। 
  • कांग्रेस एक मंच की तरह थी, जिस पर अनेक समूह, हित और राजनीतिक दल तक आ जुटते थे और राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते थे। 
  • आजादी से पहले के वक्त में अनेक संगठन और पार्टियों को कांग्रेस में रहने की इजाजत थी।

3. गुटों में तालमेल और सहनशीलता 

  • कांग्रेस सभी को अपने संगठन में शामिल कर लेती थी इस रणनीति की वजह से विपक्ष कठिनाई में पड़ गया था 
  • विपक्ष कोई बात कहता तो कांग्रेस में उस विचार को जगह मिल जाती इससे पार्टी में विवाद भी होते तथा सहनशीलता भी होती 
  • अगर कोई पार्टी सत्ता में हिस्सा पाने से नाखुश होता तो भी वह पार्टी में ही बना रहता था 
  • कांग्रेस पार्टी के भीतर विभिन्न समूह गुट कहे जाते थे और कांग्रेस अपने गठबंधन के स्वभाव के कारण सहनशील थी 

विपक्षी पार्टियों का उद्भव

1. राजनीति भूमिका

  • भारत में विपक्षी पार्टियाँ तो थीं लेकिन उन्हें कांग्रेस जैसा बहुमत नहीं मिलता था इनमें से कई पार्टियाँ 1952 के आम चुनावों से कहीं पहले बन चुकी थीं। 
  • इनमें से कुछ ने 'साठ' और 'सत्तर' के दशक में देश की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। 
  • आज की लगभग सभी गैर-कांग्रेसी पार्टियों की जड़ें 1950 के दशक की किसी न किसी विपक्षी पार्टी में खोजी जा सकती हैं।
  • 1950 के दशक में इन सभी विपक्षी दलों को लोकसभा अथवा विधानसभा में कहने भर को प्रतिनिधित्व मिल पाया फिर भी, इन दलों की मौजूदगी ने हमारी शासन व्यवस्था के लोकतांत्रिक चरित्र को बनाए रखने में निर्णायक भूमिका निभायी।

2. विपक्ष की भूमिका 

  • इन दलों ने कांग्रेस पार्टी की नीतियों और व्यवहारों की आलोचना की।
  • विपक्षी दलों ने शासक दल पर अंकुश रखा और इन दलों के कारण कांग्रेस पार्टी के भीतर शक्ति-संतुलन बदला। 
  • इन दलों ने लोकतांत्रिक राजनीतिक विकल्प की संभावना को जीवित रखा। 
    इन दलों ने ऐसे नेता तैयार किए जिन्होंने आगे के समय में हमारे देश की तस्वीर को संवारने में अहम भूमिका निभायी।
  • शुरुआती सालों में कांग्रेस और विपक्षी दलों के नेताओं के बीच पारस्परिक सम्मान का गहरा भाव था ।

3. महत्वपूर्ण विपक्षी नेता 

  • स्वतंत्रता के बाद अंतरिम सरकार ने देश का शासन सँभाला था। इसके मंत्रिमंडल में डॉ. अंबेडकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे विपक्षी नेता शामिल थे। 
  • जवाहरलाल नेहरू अकसर सोशलिस्ट पार्टी के प्रति अपने प्यार का इजहार करते थे। उन्होंने जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी नेताओं को सरकार में शामिल होने का न्यौता दिया। 
  • अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी से इस किस्म का निजी रिश्ता और उसके प्रति सम्मान का भाव दलगत प्रतिस्पर्धा के तेज होने के बाद लगातार कम होता गया।

 प्रमुख विपक्षी पार्टीयां 

1. सोशलिस्ट पार्टी 

  • 1934 में सोशलिस्ट पार्टी का गठन कांग्रेस के भीतर युवा नेताओं ने किया था 
  • 1948 में कांग्रेस ने अपनी पार्टी के संविधान में बदलाव किया और दोहरी सदस्यता खत्म कर दी 
  • इसलिए समाजवादियों ने 1948 में सोशलिस्ट पार्टी बनाई 
  • चुनाव में इस पार्टी को ज्यादा सफलता नहीं मिली
  • इसके संस्थापक आचार्य नरेंद्रदेव थे 

विचारधारा 

  • समाजवाद में विश्वास 
  • कांग्रेस की आलोचना की 
  • यह कहा की कांग्रेस अमीरों की पार्टी है पूंजीपतियों की पार्टी है
  • कांग्रेस गरीबों की भलाई के लिए काम नही कर रही है  

2. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया 

  • भारत में 1920 में कई साम्यवादी समूह उभरे थे 
  • यह रूस की क्रांति से प्रभावित थे 
  • देश की समस्या का हल साम्यवाद की राह द्वारा करना चाहते थे 
  • सन 1935 तक कांग्रेस के दायरे में रहकर उन्होंने काम किया 
  • 1941 दिसंबर में यह कांग्रेस से अलग हो गए 


विचारधारा 

  • 1947 की आजादी सच्ची आजादी नहीं है 
  • इस पार्टी ने तेलंगाना में हिंसक विद्रोह को बढ़ावा दिया 
  • सरकार को सेना द्वारा इनका आंदोलन दबाना पड़ा 
  • 1951 में इन्होंने हिंसक क्रांति का रास्ता छोड़ा 
  • पहले चुनाव में 16 सीटें जीती 
  • समर्थित राज्य -  आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, केरल

3. स्वतंत्र पार्टी 

4. भारतीय जनसंघ पार्टी 

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