Class 11th Geography Chapter- 9th Term- 2 ( सौर विकिरण ऊष्मा संतुलन एवं तापमान ) Important question
1- वायु मंडल के गर्म और ठण्डा होने के अनेक तरीके हैं | तीन तरीकों को स्पष्ट करें |
( चालन )
- पृथ्वी के संपर्क में आने वाली वायु धीरे धीरे गर्म होती है , निचली परतों के सम्पर्क में आने वाली वायुमंडल की ऊपरी परतें भी गर्म हो जाती हैं |
- इस प्रक्रिया को चालन कहा जाता है |
( संवहन )
- पृथ्वी के संपर्क में आई वायु गर्म होकर धाराओं के रूप में लम्बवत उठती है और वायुमंडल में ताप का संचरण करती है |
- वायुमंडल के लम्बवत तापन की यह प्रक्रिया संवहन कहलाती है |
( अभिवहन )
- वायु के क्षैतिज संचलन से होने वाला ताप का स्थानान्तरण अभिवहन कहलाता है |
- मध्य अक्षांशों में दैनिक मौसम में आने वाली भिन्नताएँ केवल अभिवहन के कारण होती हैं, स्थानीय पवन “लू” भी इसी का परिणाम है |
2- सूर्यताप में होने वाली विभिन्नता के कारकों की चर्चा करों |
1) सूर्य की किरणों का झुकाव :- पृथ्वी का आकार गोलाकार होने केकारण सूर्य की किरणें पृथ्वी के धरातल पर पड़ते समय उनका झुकाव अलग-अलग होता है। लम्बवत् किरणें कम क्षेत्रफल पर गिरती है। इसलिए वह इस प्रदेश को अधिक गर्म करती हैं। जैसे-जैसे किरणों के झुकाव का कोण कम होता जाता है। वैसे-वैसे क्षेत्रफल बढ़ता है तथा वह भाग कम गर्म होता है।
2) सूर्यातप पर वायुमंडल का प्रभाव :- वायुमण्डल में मेघ, आर्द्रता तथा धूलकण आदि परिवर्तनशील दशाएँ सूर्य से आने वाले सूर्यातप को अवशोषित, परावर्तित तथा उसका प्रकीर्णन करती हैं। जिससे पृथ्वी पर पहुंचने वाले सूर्यातप में परिवर्तन आ जाता है।
(3) स्थल एवं जल का प्रभाव :- सूर्य की किरणों के प्रभाव से स्थलीय धरातल शीघ्रता से और अधिक गर्म होते हैं जबकि जलीय धरातल धीरे-धीरे तथा कम गर्म होते हैं।
(4) दिन की लम्बाई अथवा धूप की अवधि :- किसी स्थान पर प्राप्त सूर्यातप की मात्रा दिन की लम्बाई अथवा धूप की अवधि पर निर्भर करती है। ग्रीष्म ऋतु में दिन बड़े होते हैं और सूर्यातप अधिक प्राप्त होता है। इसके विपरीत, शीत ऋतु में दिन छोटे होते हैं और सूर्यातप कम प्राप्त होता है।
(5) भूमि की ढाल :- सूर्याभिमुखी ढाल होने पर अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है। जबकि विपरीत ढाल होने पर कम सूर्यातप प्राप्त होता है।
3- पृथ्वी के धरातल पर तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए |
तापमान - वितरण को नियंत्रित करने वाले कारक
i) अक्षांश
- किसी भी स्थान का तापमान उस स्थान द्वारा प्राप्त सूर्यतप पर निर्भर करता है |
- सूर्यतप की मात्रा में अक्षांश के अनुसार भिन्नता
ii) उत्तुंगता (ऊंचाई)
- तापमान ऊंचाई बढ़ने के साथ साथ घटता जाता है |
- उंचाई के बढ़ने के साथ तापमान के घटने की दर को सामान्य ह्रास दर कहा जाता है |
- सामन्य ह्रास दर : प्रति 1000 मीटर ऊंचाई पर 6 डिग्री सेल्सियस
iii) समुद्र से दूरी
- स्थल की तुलना में समुद्र धीरे धीरे गर्म एवं ठंडा होता है |
- स्थल जल्दी गर्म और जल्दी ठंडा होता है |
- इसलिए समुद्र के ऊपर स्थल की अपेक्षा तापमान में भिन्नता कम होती है |
iv) वायुसहंती तथा महासागरीय धाराएं
- कोष्ण वायुसहंती (warm) से प्रभावित होने वाले स्थानों का तापमान अधिक रहता है |
- शीत वायुसहंती (cold ) से प्रभावित स्थानों का तापमान कम रहता है |
- ठंडी महासागरीय धारा के प्रभाव में आने वाले तटों की अपेक्षा गर्म महासागरीय धारा के प्रभाव में आने वाले तटों का तापमान अधिक होता है |
4- तापमान का व्युत्क्रमण अथवा प्रतिलोम किसे कहते हैं ? व्युत्क्रमण के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएं कौन-सी हैं ?
तापमान का व्युत्क्रमण
- सामान्य रूप से तापमान ऊंचाई के साथ घटता है जिसे हम सामान्य ह्रास दर भी कहते हैं |
- कई बार स्थिति बदल जाती है और ऊंचाई के साथ तापमान घटने के स्थान पर बढ़ने लगता है जिसे तापमान का व्युत्क्रमण कहा जाता है |
1- लम्बी रातें – पृथ्वी दिन के समय ताप ग्रहण करती है तथा रात के समय है ताप छोड़ती है । रात्रि के समय ताप छोड़ने से पृथ्वी ठण्डी हो जाती है तथा उसके ऊपर की वायु अपेक्षाकृत गर्म होती है ।
2- स्वच्छ आकाश- भौमिक विकिरण द्वारा पृथ्वी के ठण्डा होने के लिए स्वच्छ - अथवा मेघरहित का होना अति आवश्यक है । मेघ , विकिरण में बाधा डालते है तथा पृथ्वी एवं उसके साथ लगने वाली वायु को ठण्डा होने से रोकते हैं ।
3- शान्त वायु – वायु के चलने से निकटवर्ती क्षेत्रों के बीच ऊष्मा का आदान प्रदान होता है । जिससे नीचे की वायु ठण्डी नहीं हो पाती और तापमान का व्युत्क्रमण नहीं हो पाता ।
4- शुष्क वायु- शुष्क वायु में ऊष्मा के ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है । जिससे तापमान की झस दर में कोई परिवर्तन नहीं होता , परन्तु शुष्क - वायु भौमिक विकिरण को शोषित नहीं कर सकती । अतः ठण्डी होकर तापमान की स्थिति पैदा करती है ।
5- हिमाच्छादन – हिम सौर विकिरण के अधिकांश भाग को परावर्तित कर देती है । जिससे वायु की निचली परत ठंडी रहती है और तापमान का व्युत्क्रमण होता है । पर्वतीय क्षेत्रों में साल भर व्युत्क्रमण होता है ।
साइबेरिया के मैदानी भाग समुद्र से काफी दूर हैं और समुद्र से दूर वाले क्षेत्रों में विषम जलवायु पाई जाती है | साइबेरिया के मैदानी भागों में शीतऋतु में तापमान -18 डिग्री से -48 डिग्री सेंटीग्रेड रहता है | लेकिन ग्रीष्म ऋतु का तापमान -20 डिग्री सेल्सियस तक पाया जाता है |
इस तरह साइबेरिया के मैदानी भागों का वार्षिक तापान्तर -68 डिग्री सेंटीग्रेड तक होता है जोकि बहुत अधिक है |
इसका मुख्य कारण कोष्ण महासागरीय धाराएं गल्फ स्ट्रीम तथा उत्तरी अंध महासागरीय ड्रिफ्ट की उपस्थिति से उत्तरी उत्तरी अंधमहासागर अधिक गर्म होता है |
5- पृथ्वी के ऊष्मा बजट का वर्णन कीजिए ?
- इसके वापस जाने से वायुमंडल गर्म
- पृथ्वी का तापमान नियमित रहता है (अगर ऐसा न होता तो मनुष्य गर्मी से मर जाता )
- ऊष्मा को इस्तेमाल करने के बाद पृथ्वी वापस उसे अन्तरिक्ष में भेज देती है |
- इस प्रकार एक संतुलन बना रहता है
पृथ्वी एक निश्चित मात्रा में सूर्यातप (लघु तरंगें) प्राप्त करती है और स्थलीय विकिरण (दीर्घ तरंगों) के माध्यम से अंतरिक्ष में पुनः ऊष्मा छोड़ देती है। ऊष्मा के इस प्रवाह के माध्यम से पृथ्वी अपने तापमान को संतुलित रखती है। इसी प्रक्रिया को पृथ्वी का ऊष्मा बजट कहा जाता है
6- सूर्यातप का विकिरण :- सौर विकिरण की परावर्तित मात्रा को एल्बिड़ा (Albedo) कहा जाता है।
[ 33+16 = 49 इकाईयाँ ]
1) 16% धूल कण और वाष्प कणों द्वारा अवशोषित होता है।
2) 3% बादलों द्वारा अवशोषित होता है।
3) 6% वायु द्वारा परावर्तित हो जाता है।
4) 20% बादलों द्वारा परावर्तित हो जाता है।
5) 4% जल और स्थल द्वारा परावर्तित हो जाता है।
6) 51% सूर्यातप पृथ्वी पर जल और स्थल द्वारा अवशोषित होता है।
पार्थिव विकिरण:-51% इकाइयों में से-
[ 17+6+9+19 = 51 इकाईयाँ ]
1) 17% इकाईयाँ सीधे अंतरिक्ष में चली जाती हैं।
2) 6% वायुमंडल द्वारा अवशोषित होती हैं।
3) 9% संवहन के जरिए अवशोषित होता है।
4) 19% संघनन की गुप्त उष्मा के रूप में |