Class 12th ( Hindi Core ) Term- 2 पहलवान की ढोलक Easy Summary

Class 12th ( Hindi Core ) Term- 2 पहलवान की ढोलक Easy Summary

 ( परिचय )

  • 'पहलवान की ढोलक ' फणीश्वर नाथ रेणु की प्रतिनिधि कहानियों में से एक है । यह कहानी मुख्य रूप से लुट्टन नाम के एक पहलवान की जिजीविषा और हिम्मत का वर्णन करती है ।
  • महामारी की भयावह स्थिति - गाँव में हैजा और मलेरिया बुरी तरह फैला हुआ था । रात का अंधकार और भयानक सन्नाटा । आकाश में तारे चमक रहे थे । इसके अतिरिक्त प्रकाश का नाम नहीं था क्योंकि रात्रि अमावस्या की थी । जंगल से गीदड़ व उल्लुओं की डरावनी आवाज़ वातावरण की निस्तब्धता को यदा - कदा भंग कर देती थी । झोंपड़ियों में पड़े मरीज़ ' हरे राम ! हे भगवान ' की टेर लगा रहे थे । बच्चों के निर्बल कंठों से ' माँ - माँ ' की चीत्कार के साथ रोने की आवाजें आ रही थीं । कुत्ते जाड़े के कारण राख की ढेरी पर शरीर को सिकोड़कर पड़े थे । जब वे रोते थे तो वातावरण में दहशत फैल जाती थी ।

( लुट्टन पहलवान की ढोलक )

  • रात्रि के इस भयावह वातावरण में भी लुट्टन पहलवान की ढोलक निरंतर बजती रहती थी । दिन हो या रात ढोलक की आवाज़- “ चट् - धा, गिड़धा चट्धा, गिड़ - धा ' अर्थात् ' आ जा भिड़ जा, आ जा, बीच - बीच में चटाक् - चट - धा चट् - धा, चटाक् - चट् - धा, यानी उठाकर पटक दे । उठाकर पटक दे । " यह आवाज़ मृतक जैसे गाँव में संजीवनी शक्ति भरती थी । जिले भर के लोग लुट्टन पहलवान के नाम से परिचित थे ।

( लुट्टन का बचपन )

  • लुट्टन की शादी बचपन में ही हो गई थी । जब वह नौ वर्ष का था , तब माता - पिता की मृत्यु हो गई । अतः उसका लालन - पालन उसकी सास ने किया ।
  • बचपन में वह गाय चराता, धारोष्ण दूध पीता और कसरत किया करता था । गाँव वालों से सास को मिली तकलीफों का बदला लेने की आकांक्षा ने उसे पहलवान बना दिया । अब वह कुश्ती लड़ने लगा था ।

( श्याम नगर का दंगल )

एक बार लुट्टन श्याम नगर में होने वाले कुश्ती के दंगल को देखने गया । दंगल में पंजाब से अपने गुरु पहलवान बादल सिंह के साथ चाँद सिंह नाम का पहलवान भी आया था । उसने अपनी उम्र के सभी पहलवानों को पछाड़कर ‘ शेर के बच्चे ' की उपाधि प्राप्त की थी ।

चाँद सिंह से भिड़ने की हिम्मत किसी पहलवान की न थी । वह अजीब किलकारी भरता हुआ अखाड़े में लंगोट घुमाकर अपने अपराजित होने की घोषणा करता था । श्याम नगर के राजा चाँद सिंह को अपने दरबार में रखने की सोच ही रहे थे कि लुट्टन ने चाँद सिंह को चुनौती दे दी ।

दर्शकों ने लुट्टन को पागल समझा । कुश्ती प्रारंभ होते ही चाँद सिंह बाज की तरह उस पर टूट पड़ा । राजा साहब ने कुश्ती रुकवाकर लुट्टन को समझाया और कुश्ती से हटने को कहा किंतु लुट्टन ने राजा से लड़ने की इजाज़त माँगी । लुट्टन को मैनेजर से लेकर सिपाहियों तक ने समझाया किंतु लुट्टन ने राजा से कहा- सरकार, यदि आपकी आज्ञा न मिली , तो मैं पत्थर पर सिर मारकर मर जाऊँगा ।   भीड़ में अधीरता थी । पंजाबी पहलवानों का समूह लुट्टन को गाली दे रहा था । चाँद सिंह खड़ा मुसकुरा रहा था । कुछ लोग लुट्टन को लड़ने की अनुमति देना चाहते थे । विवश राजा साहब ने अनुमति दे दी । बाजे बजने लगे किंतु लुट्टन का ढोल भी अपनी धुन में बज रहा था । चाँद सिंह ने लुट्टन को कसकर दबा लिया वह गर्दन पर कोहनी डालकर चित्त करने की कोशिश कर रहा था । दर्शक व चाँद सिंह का गुरु बादल सिंह चाँद सिंह को 

उत्साहित कर रहे थे । लुट्टन की आँखें बाहर निकल रही थीं , छाती फटने को हो रही थी । उसके साथ केवल ढोल की आवाज थी जिसकी ताल पर वह अपनी शक्ति, हिम्मत व दाँव - पेंच की परीक्षा ले रहा था । ढोल ने ‘ धाक - धिना ', तिरकट - तिना की आवाज़ दुहराई जिसका अर्थ लुट्टन ने लगाया - दाँव काट , बाहर हो जा । और लुट्टन ने नीचे से निकलकर चाँद सिंह की गर्दन कब्ज़ा ली । ढोल ने चटाक् धा ( उठा पटक दे ) कहा कि लुट्टन ने चाँद सिंह को ज़मीन पर दे मारा । ढोलक ने ' धिना - धिना, धिक धिना ' की आवाज़ निकाली कि चाँद सिंह को लुट्टन ने चारों खाने चित्त कर दिया । ढोलक ने ' धा - गिड - गिड ' ( वाह बहादुर ) की ध्वनि की तो जनता ने ' माँ दुर्गा की ', ' महावीर जी की ' , ' राजा श्यामनंद की जय - जयकार कर दी । लुट्टन ने श्रद्धापूर्वक ढोल को प्रणाम किया और राजा साहब को गोद में उठा लिया । राजा साहब ने लुट्टन को शाबाशी दी और लुट्टन को सदा के लिए अपने दरबार में रख लिया । पंजाबी पहलवान चाँद सिंह के आँसू पोंछ रहे थे और दूसरी ओर राज - पंडित व क्षत्रिय मैनेजर दबी ज़बान से उसकी नियुक्ति का विरोध कर रहे थे । उनका तर्क था कि लुट्टन क्षत्रिय नहीं है । राजा ने तर्कों को खारिज कर दिया और लुट्टन के लिए सारी व्यवस्था कर दी । लुट्टन ने भी कुछ ही दिनों में सभी पहलवानों को आसमान दिखा दिया जिनमें ' काला खाँ ' नाम का प्रसिद्ध पहलवान भी था ।

( राज दरबार के पंद्रह वर्ष )

  • क्षेत्र के सभी पहलवान लुट्टन से हार चुके थे । अतः अब लुट्टन दर्शनीय जीव बन गया था ।
  • वह मेलों में घुटने तक लंबा चोगा पहने , अस्त - व्यस्त पगड़ी बाँधकर मतवाले हाथी की तरह घूमता चलता था । हलवाई के आग्रह पर वह दो सेर रसगुल्ले खा जाता था ।
  • आठ दस पान एक बार में ही मुँह में रख लेता था । वह बच्चों जैसे शौक करता । यथा- आँखों पर रंगीन अबरख का चश्मा, हाथ में खिलौने को नचाता, मुख से पीतल की सीटी बजाता, हँसता हुआ लौटता ।
  • दंगल में उससे कोई लड़ने की हिम्मत नहीं करता था । यदि कोई लड़ना चाहता तो राजा साहब अनुमति नहीं देते थे । इस प्रकार पंद्रह वर्ष बीत गए । उधर पहलवान की सास व पत्नी दोनों मर चुकी थीं । लुट्टन के दो पुत्र थे । दोनों ही पहलवान । लड़कों को देखकर लोग कहते - वाह बाप से भी बढ़कर निकलेंगे । दोनों ही लड़के राज - दरबार के भावी पहलवान घोषित हो चुके थे । तीनों का भरण - पोषण दरबार से हो रहा था । लुट्टन ने लड़कों से कहा- मेरा गुरु कोई आदमी नहीं ढोल है । अतः अखाड़े में उतरने से पहले ढोल को प्रणाम करना । उसने लड़कों को पहलवानी के सब गुर सिखा दिए ।

( राजा की मृत्यु )

  • अचानक राजा का स्वर्गवास हो गया और नए राजकुमार ने विलायत से लौटकर राज - काज अपने हाथ में ले लिया । राजकुमार ने प्रशासन को चुस्त - दुरस्त करने की दृष्टि से तीनों पहलवानों की छुट्टी कर दी । अतः तीनों बाप - बेटे ढोल कंधे पर रखकर अपने गाँव लौट आए ।
  • गाँव वाले किसानों ने इनके लिए एक झोंपड़ी डाल दी जहाँ ये गाँव के नौजवानों व ग्वालों को कुश्ती सिखाने लगे । खाने - पीने के खर्च की ज़िम्मेदारी गाँव वालों ने ली थी । किंतु गाँव वालों की व्यवस्था भी ज्यादा दिन न चल सकी । अतः अब लुट्टन के पास सिखाने के लिए अपने दोनों पुत्र ही थे  

( लुट्टन का अंतिम समय )

  • गाँव पर भयानक संकट आया । पहले सूखा पड़ा जिससे अन्न की कमी हुई और फिर मलेरिया और हैज़े का आक्रमण हुआ । गाँव में घर के घर खाली हो गए । प्रतिदिन दो - तीन मौत होने लगीं । लोग एक - दूसरे को ढाढ़स बँधाते । सूर्यास्त होते ही वे घरों में घुस जाते । सब चुप रहते 
  • ऐसे में केवल पहलवान की ढोलक ही बजती थी । गाँव के अर्द्धमृत, औषधि उपचार - पथ्य विहीन प्राणियों में ढोलक की आवाज़ संजीवनी शक्ति भरती थी । - ऐसी स्थिति में एक दिन पहलवान के दोनों बेटे भी चल बसे । एक लंबी साँस लेकर लुट्टन ने कहा - ' दोनों बहादुर गिर पड़े ।
  • ' उस दिन लुट्टन ने राजा साहब द्वारा दी गई रेशमी जांघिया पहनी , शरीर में मिट्टी मलकर कसरत की और फिर दोनों पुत्रों को कंधे पर लादकर नदी में बहा आया । इस घटना से गाँव वालों की भी हिम्मत टूट गई ।  चार - पाँच दिन बाद जब एक दिन रात को ढोलक नहीं बोली, तब प्रातः जाकर शिष्यों ने देखा कि पहलवान की लाश ' चित्त ' पड़ी है । शिष्यों ने बताया कि उनके गुरु ने इच्छा प्रकट की थी कि उनके शरीर को चिता पर पेट के बल लिटाया जाए , चित्त नहीं । उनकी चिता को आग देते समय ढोल अवश्य बजाया जाए

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