Class 11th Geography Chapter- 6th Term- 2 ( मृदा ) Important question Book- 2nd

Class 11th Geography Chapter- 6th Term- 2 ( मृदा ) Important question Book- 2nd

मृदा अपरदन क्या है ? इसके प्रकार बताते हुए मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी कारक बताएं | 

[ मृदा अपरदन ]

  • प्राकृतिक तथा मानवीय कारणों से मृदा के आवरण का नष्ट होना मृदा अपरदन कहलाता है |
  • मृदा के आवरण का विनाश होना 
  • जनसँख्या बढ़ने के साथ भूमि की मांग भी बढ़ने लगती है, मानव बस्तियों, कृषि पशुचारण तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए वन तथा अन्य प्राकृतिक वनस्पति साफ़ कर दी जाती है | 
  • मृदा को हटाने और उसका परिवहन कर सकने के गुण के कारण पवन और जल मृदा अपरदन के दो शक्तिशाली कारक हैं |
  • पवन द्वारा अपरदन शुष्क और अर्धशुष्क प्रदेशों में महत्वपूर्ण होता है |
  • भारी वर्षा और खड़ी ढालों वाले प्रदेशों में बहते जल द्वारा किया गया अपरदन महत्वपूर्ण होता है |

मृदा अपरदन   

जल अपरदन – अधिक गंभीर

जल अपरदन 

(i) परत अपरदन  

(ii) अवनालिका  अपरदन  

परत अपरदन

  • तेज बारिश के बाद मृदा की परत हटना तथा नष्ट होना |

अवनालिका अपरदन

  • तीव्र ढालों पर बहते जल से गहरी नालियां बन जाती हैं | 

वनउन्मूलन  (मृदा अपरदन का एक प्रमुख कारण )

  • पौधों की जड़ें मृदा को बांधे रखकर अपरदन को रोकती है 
  • पत्तियां और टहनियां गिरकर वे मृदा में ह्यूमस की मात्रा बढ़ाते हैं |

अतिसिंचाई (भूमि लवणीय )

  1. रासायनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग 
  2. मानव द्वारा निर्माण कार्य 
  3. दोषपूर्ण कृषि पद्दति 
  4. अनियंत्रित चराई  

जलोढ़ मृदा की प्रमुख विशेषताएं बताएं |

  • उत्तर भारत का विशाल मैदान इसी मृदा से बना है |
  • जल + ओढ़ = जल अपने साथ कुछ कण लाएगा 
  • अवसाद + गाद + कंकड़ + बजरी + पत्थर + जैविक पदार्थ = जलोढ़ मृदा 
  • भारत में सबसे अधिक पाई जाती है 
  • यह मृदा नदियों द्वारा बहाकर लाए गए अवसादों से बनती है |
  • सबसे उपजाऊ 
  • नदी घाटियों , डेल्टाई क्षेत्रों तथा तटीय मैदानों में पाई जाती है |
  • इसमें पोटाश की मात्रा अधिक और फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है |
  • इस मृदा का रंग हलके धूसर से राख धूसर (Gray)  जैसा होता है |
  • यह भारत में गंगा - ब्रहमपुत्र मैदानों में पाई जाती है  

( खादर )

  • गंगा के ऊपरी और मध्यवर्ती मैदान में पाई जाती है |
  • खादर हर साल बाढ़ों के द्वारा निक्षेपित होने वाला नया जलओढ़क है |
  • यह महीन गाद होने के कारण मृदा की ऊर्वरता बढ़ा देता है | 
  • जैविक पदार्थ हर साल आते हैं , मिटटी की उत्पादकता अधिक होती है |

( बांगर )

  • बांगर पुराना जलओढ़क होता है |
  • इसका जमाव बाढ़कृत मैदानों से दूर होता है |
  • खादर और बांगर मृदाओं में कंकड़ पाए जाते हैं |
  • उत्तर के हिस्से में मिटटी काफी ऊंचाई पर है और प्राचीन है |
  • यहाँ की भूमि ऊंची होती है 
  • उर्वरता कम होती है 

काली मृदा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए | 

  • इसका निर्माण ज्वालामुखी क्रियाओं से प्राप्त लावा से होता है |
  • इसे रेगड़ मिटटी भी कहते हैं |
  • यह एक उपजाऊ मृदा है |
  • इसमें कपास की खेती होती है इसलिए इसे कपास मृदा भी कहा जाता है |
  • इसमें चूना, लौह, मैग्नीशियम तथा अल्यूमिना जैसे तत्व अधिक पाए जाते हैं तथा फॉस्फोरस , नाइट्रोजन तथा जैविक तत्वों की कमीं होती है |
  • क्षेत्र : दक्कन के पठार का अधिकतर भाग, महाराष्ट्र के कुछ भाग, गुजरात, आंध्रप्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भाग 
  • ये मृदा गीली होने पर फूल जाती है तथा चिपचिपी हो जाती है |

लाल और पीली मृदा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए | 

  • इस मृदा का रंग लाल होता है |
  • यह मृदा अधिक उपजाऊ नहीं होती |
  • इसमें नाइट्रोजन , जैविक पदार्थ तथा फास्फोरिक एसिड की कमीं होती है |
  • जलयोजित होने के कारण यह पीली दिखाई देती है |
  • यह मृदा दक्षिणी पठार के पूर्वी भाग में पाई जाती है |
  • क्षेत्र : ओडिशा , छत्तीसगढ़ के कुछ भाग , मध्य गंगा के मैदान
  • महीन कणों वाली लाल और पीली मृदा उर्वर होती हैं | 
  • मोटे कणों वाली उच्च भूमि की मृदाएँ अनुर्वर होती हैं |

लैटराइट मृदा की प्रुमख विशेषताएं बताओ |

  • लैटेराइट एक लैटिन शब्द ‘लेटर’ से बना है |
  • शाब्दिक अर्थ – ईंट 
  • क्षेत्र : उच्च तापमान और भारी वर्षा के क्षेत्र 
  • इसका निर्माण मानसूनी जलवायु में शुष्क तथा आद्र मौसम के क्रमिक परिवर्तन के कारण होने वाली निक्षालन प्रक्रिया से हुआ है |
  • यह मृदा उपजाऊ नहीं होती |
  • इसमें नाइट्रोजन, चूना, फॉस्फोरस तथा मैग्नीशियम की मात्रा कम होती है | 
  • यह मृदा पश्चिमी तट, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, असम के पर्वतीय क्षेत्र तथा राजमहल की पहाड़ियों में मिलती है |
  • मकान बनाने के लिए लैटेराइट मृदाओं का प्रयोग ईंटे बनाने में किया जाता है | 

मृदा संरक्षण के उपायों का वर्णन कीजिए |

मृदा संरक्षण के उपाय:-

1) वृक्षारोपण :- पेड़-पौधे, झाडियाँ और घास मृदा अपरदन को रोकने में सहायता करते है।

2) समोच्च रेखीय जुताई व मेडबंदी- तीव्र ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के अनुसार जुताई व मेड़ बनाने से पानी के बहाव में रुकावट आती है तथा मृदा पानी के साथ नहीं बहती ।

3) पशुचारण पर नियंत्रण- भारत में पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण ये खाली खेतों में आजाद घूमते हैं । इनकी चराई प्रक्रिया को रोककर या नियंत्रित करके मृदा के अपरदन को रोका जा सकता है |

4) कृषि के सही तरीके-  कृषि के सही तरीके अपनाकर मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

मृदा क्या है ? इसका निर्माण किस प्रकार होता है ?

  • मृदा भूपृष्ठ का वह ऊपरी भाग है जो चट्टानों के टूटे फूटे बारीख कणों तथा वनस्पति के सड़े गले अंशों से बनती है |
  • मृदा निर्माण की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है | 

1. जनक सामग्री अथवा मूल पदार्थ-  मृदा का निर्माण करने वाला मूल पदार्थ चट्टानों से प्राप्त होते हैं। चट्टानों के टूटने-पफूटने से ही मृदा का निर्माण होता है।

2. उच्चावच-  मृदा निर्माण की प्रक्रिया में उच्चावच का महत्वपूर्ण स्थान है। तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में जल प्रवाह की गति तेज होती है और मृदा के निर्माण में बाधा आती है। कम उच्चावच वाले क्षेत्रों में निक्षेप अधिक होता है। और मृदा की परत मोटी हो जाती है।

3. जलवायु- जलवायु के विभिन्न तत्व विशेषकर तापमान तथा वर्षा में पाए जाने वाले विशाल प्रादेशिक अन्तर के कारण विभिन्न प्रकार की मृदाओं का जन्म हुआ है।

4. प्राकृतिक वनस्पति - किसी भी प्रदेश में मृदा निर्माण की वास्तविक प्रक्रिया तथा इसका विकास वनस्पति की वृद्धि के साथ ही आरंभ होता है।

5. समय- मृदा की छोटी सी परत के निर्माण में कई हजार वर्ष लग जाते हैं।

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