कृषि की विशेषताएं, समस्याएं और नीतियां- Class 12th Indian economy development Chapter 3rd ( 2nd Book ) Notes in hindi

कृषि की विशेषताएं, समस्याएं और नीतियां- Class 12th Indian economy development Chapter 3rd ( 2nd Book ) Notes in hindi

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व

1] सकल घरेलू उत्पाद में योगदान

ऋषि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान देता है
नियोजन की अवधि के दौरान कृषि क्षेत्र का GDP मैं योगदान अलग-अलग वर्षों में 51 से 17.4 प्रतिशत के बीच रहा।
समय के साथ इसमें गिरावट आई
2] 1950-51 मैं यह 51% था
3] 2017-18 यह 17.2 प्रतिशत रह गया।

2] रोजगार का स्रोत

भारत में कृषि रोजगार एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है
भारत में 50% से अधिक कार्यशील जनसंख्या कृषि क्षेत्र में लगी हुई है।
इसका तात्पर्य यह है कि भारत में लोगों के जीवन निर्वाह का महत्वपूर्ण स्रोत है (कृषि)

3] अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का योगदान

कृषि भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में महत्वपूर्ण योगदान देती है 
भारत चाय, जूट, काजू, तंबाकू, कॉफी और मसाले आदि का निर्यात करता है
यातायात उद्योग का समर्थन
भारत में कृषि यातायात उद्योग को महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान करती है 
भारत में रेल मार्ग तथा सड़क मार्ग दोनों अधिकांशत कृषि उत्पादों को ले जाते हैं 

भारतीय कृषि की विशेषताएं

1] निम्न उत्पादकता

उत्पादकता से अभिप्राय प्रति हेक्टेयर भूमि के उत्पादन से है विश्व के उन्नत देशों की तुलना में भारत की कृषि उत्पादकता बहुत ही निम्न है 

2] वर्षा पर निर्भरता

भारतीय कृषि वर्षा पर बहुत अधिक निर्भर होती है इसके फल स्वरुप फसल उत्पादन बहुत ही अनिश्चिता होती है
अच्छी वर्षा का अर्थ है अच्छी फसल तथा कम वर्षा का अर्थ है कम फसल 

3] निर्वाह खेती

निर्वाह खेती का अर्थ है कि किसान का प्राथमिक उद्देश्य अपने परिवार के जीवन निर्वाह के लिए उत्पादन करना होता है ना कि लाभ कमाने के लिए 

4] आधुनिक आगतो का अभाव

आधुनिका आगतो जैसे - रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक दवाइयों का उपयोग बहुत कम किया इसका मुख्य कारण भारत में अधिकतर किसानों का निर्धन होना है इससे उत्पादकता भी कम होती है और इस प्रकार पिछड़ापन आता है 


भारतीय कृषि की समस्याएं

भारतीय कृषि को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है
इन समस्याओं के कारण इनका पिछड़ापन तथा गतिहीनता जारी है 

1] वित्त का अभाव

भारतीय कृषि का एक अन्य बड़ी समस्या वित्त का अभाव है
अपने ज्यादातर वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए छोटे किसान गैर संस्थागत स्त्रोतो पर निर्भर हो जाते हैं
जैसे महाजन, साहूकार 
किसानों की जरूरतों की तुलना में संस्थागत वित्त बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा दिया जाने वाला वित्त की उपलब्धि बहुत कम होती है 

2] परंपरागत दृष्टिकोण

खेती संबंधी परंपरागत दृष्टिकोण भारतीय कृषि की एक और समस्या
नवीन फार्म तकनीकी के बावजूद भारतीय कृषक अभी भी पारंपरिक ज्ञान को अपनाए हुए हैं
उसके लिए खेती करना जीवन निर्वाह का एकमात्र साधन है यह कोई व्यापार नहीं है

3] सिंचाई के स्थाई साधनों का अभाव

भारत में फसल खेती अधिकांश रूप में वर्षा पर निर्भर है
सिंचाई के स्थाई साधनों का बहुत ज्यादा अभाव है अच्छी वर्षा होने से फसल भी अच्छी हो जाती है जबकि सूखे के कारण उत्पादन में काफी हानि होती है

कृषि संबंधी सुधार अथवा भारतीय कृषि में सुधार

1] तकनीकी सुधार

भारतीय कृषि में प्रौद्योगिकी के स्तर को ऊंचा करने के लिए सरकार का कदम 

2] अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग

सन 1965 से भारतीय कृषि में अधिक उपज देने वाले बीजों ने परंपरागत बीजों
का स्थान ले लिया 
गेहूं, बाजरा, चावल, मक्का, और कपास के लिए विशेष रूप से अधिक उपज देने वाले बीजों के प्रयोग से फसल के उत्पादन में वृद्धि हुई
आधे को पैसे देने वाले बीजों के विकास तथा वितरण के लिए राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना की गई 

3] रासायनिक खादों का प्रयोग

कृषि की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए रसायनिक खाद का अधिक प्रयोग किया जाने लगा है 
रासायनिक खाद के प्रयोग में समय के साथ काफी वृद्धि होने लगी है 
2016-17 मैं लगभग 259.5 लाख टन रासायनिक खाद का उपयोग किया गया।

4] फसल संरक्षण के लिए कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग

फसलों को बीमारी तथा कीड़ों-मकोडो से बचाने के लिए कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करने के लिए उचित कदम उठाए गए 
इसके लिए 14 केंद्रीय पौधा संरक्षण केंद्र Central plant protection centres
स्थापित किए गए 


संस्थागत सुधार अथवा भूमि सुधार

1] लगान का नियमन

किसानों से अत्याधिक और गैर कानूनी जबरदस्ती वसूली को समाप्त करने के लिए लगान निश्चित कर दिए गए इनकी लगान राशि फसल के मूल्य 1/3 से अधिक नहीं है 

2] चकबंदी

विखंडन की समस्या को कम करने के लिए चकबंदी कार्यक्रम चलाएं
चकबंदी वह अभ्यास है जिसमें किसान को उसकी इधर-उधर बिखरी हुई भूमिया खेतों की बजाए एक ही स्थान पर भूमि आवंटित की जाती है 

3] सामान्य सुधार

सिंचाई सुविधाओं का विस्तार

कृषि में उत्पादकता को प्रोत्साहित करने के लिए सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया गया
देश के अलग-अलग भागों में कई बड़ी तथा छोटी परियोजनाएं शुरू की गई 
1951 में केवल 17% भूमि पर सिंचाई स्थाई साधन थे
वर्तमान समय में 47% है

साख का प्रावधान

कम ब्याज दर पर किसानों को साख उपलब्ध कराने के लिए सहकारी समितियों की स्थापना की गई 
किसानों की बढ़ती साख जरूरतों को पूरा करने के लिए ग्रामीण विकास बैंक स्थापित किए गए हैं 
सन 1982 में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) की स्थापना की गई

कृषि संबंधी सुधारों की उपलब्धियां (हरित क्रांति)

कृषि संबंधी सुधारों के फल स्वरुप भारतीय कृषि में पर्याप्त सुधार हुआ है
अर्थव्यवस्था गतिहीन से विकासशील क्षेत्र के रूप में उभरे यह उपलब्धियां इतनी पर्याप्त है कि इसे हरित क्रांति के नाम से जाना गया
भारत में यह वर्ष 1967-68 मैं शुरू हुई वर्ष 1967-68 मैं ही खाद्यान्न के उत्पादन में लगभग 25% वृद्धि हुई
भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया

विशेषताएं

1] किसानों के दृष्टिकोण में परिवर्तन

कैसे के व्यापारीकरण के कारण किसानों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है 
खेती को केवल जीवन निर्वाह के रूप में नहीं देखा गया है
इसे एक व्यापारिक कार्य के रूप में भी देखा जाने लगा

2] फसल उत्पादकता में तेजी

फसल उत्पादकता में पर्याप्त वृद्धि हुई है
उदाहरण के लिए
गेहूं की उत्पादकता 1951 में 660 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
2017-18 मैं 3371 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी
चावल के उत्पादकता 1951 मैं 665 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी 
2017-18 मैं 2578 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी 
उत्पादकता में तेजी आने से भारतीय कृषि में संरचनात्मक बदलाव आया 

3] हरित क्रांति की सीमाएं

हरित क्रांति के कारण फसल उत्पादन में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है
परंतु यह केवल हमारे अपने पिछले रिकार्डो के संबंध में थी 
विकसित देशों की तुलना में यह कम थी 
गेहूं के मामले में भारत प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 3.1 टन थी लेकिन चीन तथा यूके मैं यह आंकड़ा 6.5 टन तथा 9 टन था (2014) में
चावल के मामले में भारत में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 3.6 टन थी जबकि चीन में यह 6.8 टन थी (वर्ष 2014) में

I] सीमित फसले

हरित क्रांति के कारण उत्पादन में बहुत वृद्धि हुई केवल अनाज गेहूं एवं चावल तक ही सीमित था दाल एवं व्यापारिक फसलों कपास,चाय आदि के उत्पादन में ऐसी कोई वृद्धि नहीं हुई 

II] असमान प्रसार

हरित क्रांति का विस्तार सभी क्षेत्रों में एक समान नहीं रहा है हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, तमिलनाडु
जैसे राज्यों में इसका बहुत प्रभाव पड़ा है लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और उड़ीसा जैसे राज्यों में इसका कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा

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