Class 12th ( Home science ) Chapter- 11th Term- 2 ( फैशन डिजाइन और व्यापार )

Class 12th ( Home science ) Chapter- 11th Term- 2 ( फैशन डिजाइन और व्यापार )

1- फैशन डिजाइन और व्यापार एक उत्साहवर्धक जीविका विकल्प है, जिसमें व्यक्ति की भौतिक आवश्यकताएँ व रचनात्मक इच्छा भी पूरी होती है।

2- वर्ष 1920 में 'पहनने के लिए तैयार' बस्त्रों के उत्पादन साथ 'फैशन परिधान' एक महत्त्वपूर्ण व्यवसाय के रूप में स्थापित हुआ है, जिसमें डिज़ाइन, निर्माण, वितरण, विपणन, विज्ञापन, प्रसार व परामर्श के क्षेत्र में लाखों लोग व्यवसाय प्राप्त कर रहे हैं।

Fact –  महिलाओं ने 1950 के दशक तक जीन्स पहननी आरम्भ नहीं की थी |

1920 से सिले सिलाए वस्त्रो का उत्पादन शुरू हुआ और बहुत जल्दी व्यापरियों को समझ आने लगा की इस प्रकार के वस्त्रों का व्यापार एक बड़ा व्यवसाय है |

महत्त्व 

  • फैशन व्यवसाय में कच्चे माल से लेकर परिधान और सहायक सामग्री का उत्पादन तथा तैयार माल बेचने वाली दुकानों आदि से जुड़े हुए सभी process का ज्ञान प्राप्त होता है |
  • इसमें हम वस्त्र निर्माण के बारे में भी सीखते हैं |
  • फैशन व्यापार की समझ के कारण ही कोई व्यक्ति यह समझ पाता है की क्यों और कब किसी विशेष शैली के वस्त्रों का trend एक fashion बन जाता है |

Fashion संबंधी शब्दावली  

1) फैशन -एक शैली या शैलियां हैं, जो किसी एक काल विधि में सबसे अधिक प्रचलन में रहती हैं।

2) शैली- परिधान अथवा सहायक सामग्री को विशेष दिखावटी विशिष्टता।

(3) फैड्स - अस्थाई फैशन जो कम समय के लिए होते हैं और जल्दी चले जाते हैं।

4) चिरसम्मत (क्लासिक): शैली जो कभी पूर्णत: अप्रचलित नहीं होती और एक लम्बे समय तक स्वीकृत रहती है  इनमें डिज़ाइन की सादगी की विशिष्टता होती है।

Fashion का केंद्र फ्रांस 

1) प्रचीनकालीन व मध्यकालीन शैलियां लगभग पूरी शताब्दी तक परिवर्तित नहीं होती थी। वैश्वीकरण के कारण पश्चिमी सभ्यता से फैशन परिवर्तन को बढ़ावा मिला।

2) फैशन का केंद्र फ्रांस

  • अंतरराष्ट्रीय फैशन में फ्रांस का प्रभुत्व 18वीं शताब्दी में आरम्भ हुआ।
  • सम्राट लुईस XIV एवं उनके कोर्ट के सदस्यों की शाही परिधान की शैली ने पेरिस को यूरोप को फॅशन राजधानी बना दिया।
  • सम्राट व दरबारियों की वस्तुओं के लिए रेशम, रिबन व लेस फ्रांस के विभिन्न शहरों से आते थं और परिधान व्यक्ति की नाप के अनुसार हाथ से सिले जाते थे।
  •  परिधान निर्माण की कला को कूटअर कहा जाता था। परिधान डिज़ाइनर करने वाले पुरुष को
  • कूटरियर व महिला को कटरियरे कहते थे।

(3) औद्योगिक क्रान्ति से वस्त्र निर्माण प्रौद्योगिक उन्नति का आरम्भ

  •  कातने वाले यंत्र  व मशीनी करवों  के आविष्कार के कारण कम समय में अधिक वस्तुओं का निर्माण होने लगा।
  • सिलाई मशीन के अविष्कार ने हस्तशिल्प को एक उद्योग में बदल दिया। 1859 में इस्साक सिंगर ने सिलाई मशीन को पैरों से चलाने के लिए पाँव चक्की विकसित की।
  • 1849 में 'लेवी स्ट्रॉस' ने टेंटो और माल डिब्बों के कवर के लिए बने कपड़ों के उपयांग से पेंटें बनाई, जिनमें औजार रखने के लिए जेबें लगाई गई। यह काफी लोकप्रिय हुई और

'डंनिम्स' के नाम से जानी गई।

  • 1880 के दशक से महिलाओं द्वारा स्कर्ट ब्लाऊज का प्रचलन शुरू हुआ जो महिलाओं के लिए 'पहनने को तैयार कपड़ों' के निर्माण की ओर पहला कदम था।
  •  मेलों और बाजारों के माध्यम से 19वीं शताब्दी में लोगों को उनकी आर्थिक स्थिति के अनुसार मोलभाव करके वस्त्र खरीदने में सहायता मिली।
  • शहरों में अधिक संख्या में लोगों के बसने के कारण अस्थाई दुकानें स्थापित की जाने लगी व विविध प्रकार की वस्तुओं की बढ़ती मांग के कारण खुदरा दुकानें खुलने लगी।
  • फैशन चक्र को उन चरणों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिनमें कोई फैशन आता है और बदल जाता है 
  • सरल शब्दों में कहें तो जीस तरीके से फैशन बदलता है उसे सामान्यता फैशन चक्र के रूप में जाना जाता है |
  • एक फैशन चक्र पांच चरणों में पूरा होता है |

शैली की प्रस्तुति – डिजाइनर अपने रचनात्मक विचारों के आधार पर नए नए डिजाइन एवं शैली के परिधान बनाकर लोगों के समक्ष पेश करते हैं |

लोकप्रियता में वृद्धि – जब कोई नया फैशन बहुत से लोगों द्वारा खरीदा पहना और देखा जाता है तो उस फैशन तथा शैली की लोकप्रियता बढ़नी शुरू होती है |

लोकप्रियता की पराकाष्ठा (शिखर) – जब कोई फैशन लोकप्रियता के शिखर पर होता है तो उसकी मांग इतनी अधिक हो जाती है कि बहुत से निर्माता उसकी नकल करते हैं और कम दाम में उसका उत्पादन शुरू कर देते हैं |

लोकप्रियता में कमी होना – जब किसी प्रचलित फैशन तथा शैली के परिधानों का विभिन्न निर्माताओं द्वारा भारी संख्या में उत्पादन एवं विक्रय शुरू कर दिया जाता है तो फैशन प्रिवेंटिव शैली में ऊब जाते हैं या बोर हो जाते हैं और फिर वो कुछ नया ढूंढना शुरू करते हैं |

शैली का परित्याग – फैशन चक्र के अंतिम पड़ाव में पहले वाले मिशन की सामग्री की मांग तथा बिक्री लगभग खत्म हो रेशन प्रेमी नए फैशन को अपनाने लगते हैं |

[ Fashion व्यापार  ]

ल्पना को डिज़ाइन में बदलकर उपभोक्ताओं की आवश्यकता और मांगों के लिए उत्पादों का नियोजन, उत्पादन, संवर्धन और वितरण करता है, फैशन व्यापारी कहलाता है।

फैशन व्यापारी की भूमिका

  1. विनिर्माण
  2. क्रय 
  3. सम्वर्धन
  4. विक्रय

(i) विनिर्माण (manufacturing)

  1. किसी भी परिधान को बनाने में फैशन व्यापारी को वस्त्र सम्बन्धी कुछ तथ्य व प्रक्रियाओं पर ध्यान देना आवश्यक है।
  2. वस्त्र की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक सूझबूझ
  3. वस्त्र निर्माण की प्रक्रिया
  4. शैली उत्पादन का सर्वश्रेष्ठ तरीका
  5. मूल्य व लक्षित बाजार

ii) क्रय (Buying)

  • फ़ैशन व्यापारी फैंशन की सामग्री अपनी दुकान में रखने के लिए खरीदता है। उसे लक्षित बाजार को जानकारी होनी चाहिए।
  • उसे फैशन की प्रवृत्ति व पूर्व अनुमान लगाने में निपुण होना चाहिए जिससे वह ठीक खरीददारी कर सके अथवा सामान का आर्डर दे।

iii) सम्वर्धन (Promoting)

  • जब एक फॅशन व्यापारी डिज़ाइनर के लिए कार्य करता है तब उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी होती है कि वह डिज़ाइनर के उत्पादों को उन दुकानों तक पहुंचाए जहां उसका अधिक विक्रय हो।
  • इसके लिए उसमें संरचनात्मक, व्यापारिक कौशल व उत्पादन कौशल का ज्ञान होना आवश्यक है
  • डिज़ाइनर के उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए फैशन व्यापारी फैशन प्रदर्शनियों में भाग लेता है और उत्पादों के लिए लक्षित बाजार ढूँढता है।

iv) विक्रय (Selling)

  • फैशन व्यापारी दुकानों को फैशन की वस्तुएं बेचने के लिए उत्तरदाई होता है और दुकानें वह माल ग्राहकों को बेचती हैं।
  • इसके लिए बाजारों की प्रवृत्ति का ज्ञान होना चाहिए ताकि वह पूर्वानुमान कर उत्पादन की अनुशंसा (सिफारिंश) कर सके। एक खुदरा दुकान में कार्य करने वाले व्यापारी पर फ़ैशन की
  • वस्तुओं की दुकान (स्टोर) में सजावट की जिम्मेदारी होती है।

फैशन का खुदरा संगठन

  • फैशन उद्योग में संगठन प्रणाली को विभिन्न प्रकार की व्यापार सामग्रो, व्यापार के आकार और लक्षित ग्राहक के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।

Fashion का खुदरा व्यापार

  1. छोटा एकल ईकाई स्टोर
  2. विभागीय
  3. स्टोर श्रृंखला

1) छोटा एकल- इकाई (Small single unit) स्टोर: पड़ोस की या स्थानीय दुकान जो एक व्यक्ति या उसके परिवार द्वारा चलाई जाती है।

2) विभागीय स्टोर (Departmmental store): इसमें अलग अलग विभाग होते हैं जैसे कपड़े, खेल का सामान, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इत्यादि। 

3)  स्टोर श्रृंखला (Chain of Store): एक ही ब्रांड और केंद्रीय प्रबंधन की फुटकर दुकाने। इनकी मानकीकृत व्यावसायिक विधियां और पद्धतियां होती हैं।

जीविका के लिए तैयारी

  • आवश्यक कौशल जो फैशन डिज़ाइनर व व्यापारी में होना चाहिए :

i) पूर्वानुमान योग्यता - फॅशन की प्रवृत्ति के सम्बन्ध में पूर्वानुमान की योग्यता, इस जीविका का आवश्यक भाग है। वह विगत एवं वर्तमान फ़ैशन प्रवृत्ति के आधार पर भावी फ़ैशन प्रवृत्ति का अनुमान लगा सकता है।

ii) विश्लेषणात्मक योग्यता उसे सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की जानकारी होनी चाहिए व अपनी विशिष्ट कंपनी की अर्थव्यवस्था की भी जानकारी हो और समझ हो कि किस प्रकार कुछ शैलियां उपभोक्ता के बजट में समा सकेंगी। जिससे वह अपनी पूँजो निवेश से उचित लाभ

प्राप्त कर सके।

(iii) सम्प्रेषण योग्यता - उसमें निर्माता के साथ मूल्यों को तय करने के लिए बातचीत करने की योग्यता हो और जन साधारण का उत्पाद बेच सकने की संप्रेषण योग्यता हो (विज्ञापन, समाचार पत्र इत्यादि द्वारा)।

(iv) शैली एवं व्यापार बोध का ज्ञान होना भी आवश्यक हैं।

व्यवसायिक (शैक्षिक) योग्यता

(1) फॅशन व्यापार में सर्टिफिकेट (प्रमाण पत्र) या डिप्लोमा, डिग्री कार्यक्रम ( 6 माह से 1 वर्ष तक का)

2) फैशन व्यापार से सम्बन्धित 2 वर्षीय स्नातकोत्तर कार्यक्रम।

3) फॅशन डिज़ाइन अथवा फैशन व्यापार में 4 वर्षीय स्नातक उपाधि कार्यक्रम।

1) कार्यक्षेत्र ( फैशन डिज़ाइन के क्षेत्र में जीविकाएं )

(1) दृश्य व्यापार डिज़ाइनरः यह निम्न कार्यों के लिए उत्तरदाई होते हैं:

i) शो केस में प्रदर्शन

ii) दुकानों में सामान व्यवस्था

iii) आकर्षक प्रचार वाक्यों की रचना

iv) पुतलों को आकर्षक ढंग से सजाने और प्रदर्शन का कार्य

v) विज्ञापन अभियानों का नेतृत्व

2) फैशन डिजाइनर के रूप में कार्य:

i) कपड़ों और परिधानों की रचना का विशिष्ट कार्य

ii) लोकप्रिय डिज़ाइनरों के साथ काम करना

iii) अपना स्वयं का फैशन कार्य करना

(iii) सेट डिज़ाइनर के रूप में निम्न कार्य कर सकते हैं:

चलचित्र, टी. वी., नाटक की सेट के डिज़ाइन तैयार करना

व्यापार प्रदर्शनों और संग्रहालयों के लिए डिजाइन तैयार करना

(3) आंतरिक डिजाइनर के रूप में कार्य: 

डिज़ाइन का कार्यात्मक रूप प्रदान करना

किसी विशेष स्थल या क्षेत्र को ऐसा आंतरिक रुप देना जो उसके सौंदर्य, सुरक्षा और क्रियाशीलता में वृद्धि करें, जैसे खुदरा दुकानें, घर, दफ्तर, होटल आदि।

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