दिन जल्दी जल्दी ढलता है ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Class 12th Din jaldi jaldi dhalta Hai - Easy Explained

सन्दर्भ :-
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह-भाग -2’ में संकलित कवि हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित कृति ‘निशा निमंत्रण’ से लिया गया है |
प्रसंग :-
हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !
व्याख्या
इस काव्यांश में कवि ने यह बताना चाहा है की लक्ष्य को पाने के लिए बेचैन यात्री अपनी ललक में तेजी से चलता है और उसे ऐसा लगता है की मानो दिन अपनी स्वाभाविक गति से बहुत तेज़ चल रहा है |
कवि कहता है दिन भर चलकर अपनी मंजिल पर पहुँचने वाला यात्री देखता है की अब मंजिल पास आने वाली है |
वह अपने प्रिय के पास पहुँचने वाला है, उसे डर लगता है की कहीं चलते चलते रास्ते में रात न हो जाए | इसलिए वह प्रिय मिलन की कामना में जल्दी जल्दी कदम रखता है | इसलिए उसे ऐसा प्रतीत हो रहा है की दिन जल्दी जल्दी ढल रहा है |
प्रसंग :-
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !
व्याख्या
इस काव्यांश में कवि अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए चिड़िया का उदाहरण देता है | चिड़ियों के माध्यम से कवि ने मानव ममता का चित्रण किया है |
कवि कहता है एक चिड़िया जब आकाश में उड़कर अपने घोंसले की ओर वापस लौट रही होती है तो उसके मन में यह ख्याल आता है की मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे | वे घोंसले में बैठे बैठे बाहर झाँख रहे होंगे | उन्हें मेरी प्रतीक्षा होगी, जैसे ही चिड़िया को यह चिंता सताती है , उसके पंखों की गति बहुत तेज़ हो जाती है |
वह तेज़ी से घोंसले की तरफ बढ़ती है | तब उसे लगता है मानो दिन बहुत तेज़ गति से ढलने लगा है और वह और तेज़ हो जाती है |
प्रसंग :-
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !
व्याख्या
इस काव्यांश में कवि ने अपने जीवन में प्रेम की कमी के कारण विद्यमान शिथिलता और ह्रदय की व्याकुलता का वर्णन किया है |
कवि कहता है की इस दुनिया में मेरा कोई अपना नहीं है जो मुझसे मिलने के लिए व्याकुल हो | फिर मेरा चित्त किसके लिए चंचल हो ?
मेरे मन में किसके प्रति प्रेम तरंग जागे | यह प्रश्न मेरे कदमों को शिथिल कर देता है | प्रेम अभाव की बात सोचकर मैं ढीला पड़ जाता हूँ |
मेरे ह्रदय में निराशा और उदासी की भावना आने लगती है |
वह पुनः दोहराता है की दिन शीघ्रता से व्यतीत होता जा रहा है, ऐसे में उसमे भी अपनी मंजिल, अपने लक्ष्य तक पहुँचने की आतुरता होनी चाहिए |
विशेष :-
भाषा सरल एवं लयात्मक है |
‘कौन’ , ‘किसके’ आदि के प्रयोग के कारण प्रश्न-अलंकार है |
‘मुझसे मिलने’ में अनुप्रास अलंकार मौजूद है |
इसमें गेयता का गुण है |
नीड़ों से बच्चों का झाँखना बहुत मर्मस्पर्शी चित्र है |
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