रुबाइयां ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Class 12th -Rubaiyan Easy Explained
परिचय
ये रुबाइयाँ वात्सल्य रस से युक्त हैं |
इनमे नन्हे शिशु की अठखेलियाँ, माँ-बेटे की कुछ मनमोहक अदाएँ तथा रक्षाबंधन का एक दृश्य प्रस्तुत किया गया है |
रुबाई उर्दू और फ़ारसी का एक छंद या लेखन शैली है, जिसमें चार पंक्तियाँ होती हैं। इसकी पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति में तुक (काफ़िया) मिलाया जाता है तथा तीसरी पंक्ति स्वच्छंद होती है।
प्रसंग
आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूंज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी
व्याख्या
इस रुबाई में फ़िराक गोरखपुरी ने एक छोटे बच्चे तथा उसकी माँ का वर्णन किया है |
शायर कहता है – एक माँ अपने प्यारे शिशु को गोद में लिए आँगन में खड़ी है | कभी वह उसे हाथों पर झुलाने लगती है | कभी उसे हवा में उछाल कर खुश करती है | शिशु माँ के हाथों से झूले खाकर खिलखिला उठता है | उस बच्चे की यह खिलखिलाती हंसी पूरे वातावरण में गूँज पड़ती है |
प्रसंग
नहला के छलके-छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े
व्याख्या
इस रुबाई में फ़िराक गोरखपुरी ने एक छोटे बच्चे तथा उसकी माँ का वर्णन किया है |
माँ ने पहले अपने शिशु को साफ़-स्वच्छ पानी में अपने हाथों से पानी छलका-छलका कर नहलाया | फिर उसने शिशु के उलझे बालों में कंघी की | जब वह अपने घुटनों मे लेकर बच्चे को कपड़े पहनती है, तो बच्चा बड़े प्यार से माँ के मुख की ओर निहारता है | ये दृश्य सबसे रोचक है |
प्रसंग
दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए
व्याख्या
इस रुबाई में शायर ने दीवाली के शाम का सुन्दर वर्णन किया है |
दीवाली की शाम है | घर पूरी तरह रंग-रोगन से पुता हुआ तथा सजा हुआ है | माँ अपने नन्हे बेटे को प्रसन्न करने के लिए चीनी मिट्टी के जगमगाते खिलौने लेकर आती है | उस सुन्दर माँ के मुख पर सौंदर्य की एक मधुर आभा है | वह बच्चों के खिलौनों के बीच एक दिया जलाती है जिससे बच्चा खुश हो उठता है |
प्रसंग
आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है
बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है
व्याख्या
इस रुबाई में शायर बच्चे की बाल-सुलभ जिद का वर्णन करते हुए माँ द्वारा उसे मनाने बहलाने का चित्रण करता है |
शायर कहता है – देखो, बच्चा अपने आँगन में झूठमूठ रो रहा है और मचल रहा है | वह बालक तो है ही, उसका मन चाँद लेने पर आ गया है | वह माँ से चाँद लाने की जिद पर अड़ गया है | माँ उसके हाथों में दर्पण देकर बहलाती हुई कहती है – देख बेटे ! चाँद इस दर्पण में आ गया है | दर्पण को हाथ में ले ले | अब यह तेरा हो गया है |
प्रसंग
रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी
व्याख्या
इस रुबाई में शायर ने राखी के दिन का सुन्दर वर्णन किया है |
शायर कहता है – आज रक्षाबंधन का दिन है | आकाश में काले बादलों की हलकी घटा छाई हुई है | नन्ही बालिका, जो रस की पुतली जैसी मधुर है, उमंग से भरपूर है | उसने पांवों में लच्छे पहने हुए हैं जो बिजली की तरह जगमगा रहे हैं और वह ख़ुशी से अपने भाई की कलाई पर राखी बाँध रही है |
विशेष
इस रुबाई में माँ के प्रेम तथा बच्चे के प्रति उसके स्नेह का सुन्दर चित्रण हुआ है |
काव्यांश का छंद ऊर्दू का प्रसिद्ध छंद ‘रुबाई’ है |
वात्सल्य रस की प्रधानता है |
चित्रात्मक शैली के साथ साथ बच्चे की गतिविधियों का स्वाभाविक वर्णन हुआ है |
नन्ही बालिका का नन्हे से भाई की कलाई पर राखी बंधना बहुत सुन्दर दृश्य है |
रुबाई छंद का सुंदर प्रयोग किया गया है |
नन्ही सी बालिका के लिए ‘रस की पुतली’ बहुत ही सार्थक शब्द प्रयोग है |