भारतीय संविधान में अधिकार- Class 11th Political Science - Chapter 2nd || Bhartiya sanvidhan mein Adhikar notes

भारतीय संविधान में अधिकार- Class 11th Political Science - Chapter 2nd ||  Bhartiya sanvidhan mein Adhikar notes

अधिकार ( Rights ) से क्या अभिप्राय है ?

  • मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वह समाज में रहता है और मनुष्य को अपना विकास करने के लिए कुछ अधिकारों की आवश्यकता होती है यह अधिकार हमें राज्य प्रदान करता है  भारतीय संविधान के द्वारा मनुष्य को विभिन्न प्रकार के मौलिक अधिकार दिए गए हैं 
  • यह अधिकार मनुष्य को समाज में अपना विकास करने के लिए योगदान देते हैं 
  • इन अधिकारों के बिना मनुष्य का विकास नहीं हो सकता इसलिए 
  • भारतीय संविधान मौलिक अधिकारों की गारंटी प्रदान करता है

हमें अधिकारों  की जरूरत क्यों है ?

  • मनुष्य को अपना विकास करने के लिए तथा समाज में एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए अधिकारों की आवश्यकता होती है 
  • यदि मनुष्य को अधिकार प्राप्त नहीं होंगे तो वह अपना विकास नहीं कर सकेगा  
  • 1982 के एशियाई खेलों से पहले निर्माण कार्य के लिए सरकार ने कुछ ठेकेदारों की सेवाएँ ली। 
  • अनेक फ्लाईओवरों और स्टेडियमों का निर्माण करना था और इसके लिए ठेकेदारों ने देश के विभिन्न भागों से बड़ी संख्या में गरीब मिस्त्री और मजदूरों की भर्ती की। 
  • लेकिन मजदूरों से कामकाज की दयनीय दशा में काम लिया गया। उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से भी कम मजदूरी दी गई। 
  • समाज वैज्ञानिकों की एक टीम ने उनकी स्थिति का अध्ययन कर सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की। 
  • उन्होंने दलील दी कि तय की गई न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देना 'बेगार' या 'बंधुआ मजदूरी' जैसा है 
  • और नागरिकों को प्राप्त 'शोषण के विरुद्ध' मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। 
  • न्यायालय ने इस दलील को स्वीकार कर लिया और सरकार को निर्देश दिया कि 
  • वह इन हजारों मजदूरों को उनके काम के लिए तयशुदा मजदूरी दिलाए।
  • मचल लालुंग को जब गिरफ़्तार किया गया तब वह 23 वर्ष का था। 
  • लालुंग असम  का रहने वाला था। उस पर आरोप था कि उसने किसी को गंभीर चोट पहुँचाई। 
  • मुकदमें की सुनवाई के दौरान उसे मानसिक रूप से काफी अस्वस्थ पाया गया और चिकित्सा के लिए तेजपुर के  अस्पताल' में एक कैदी के रूप में भर्ती करा दिया गया। वहाँ उसका सफलतापूर्वक इलाज किया गया। 
  • डॉक्टरों ने जेल अधिकारियों को दो बार (1967, 1996) चिट्ठी भेजी कि लालुंग स्वस्थ है और उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है। लेकिन किसी ने भी उस पर ध्यान नहीं दिया। 
  • लालुंग न्यायिक हिरासत में बना रहा। मचल लालुंग को जुलाई, 2005 में जेल से छोड़ा गया। 
  • उस समय वह 77 वर्ष का हो चुका था। वह 54 वर्ष तक हिरासत में रहा और इस दौरान उसके मुकदमे की एक बार भी सुनवाई नहीं हुई। 
  • जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा राज्य में बंदियों का निरीक्षण किया तब जाकर लालुंग को स्वतंत्र होने का अवसर मिला। 
  • मचल का पूरा जीवन ही व्यर्थ बीत गया क्योंकि उसके मुकदमे की सुनवाई ही नहीं हो सकी 
  • हमारा संविधान सभी नागरिकों को 'जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार' देता है।
  • इसका अर्थ है कि हर नागरिक को अपने मुक़दमे निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है। 

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार

  • भारतीय संविधान के भाग - 3 में अनुच्छेद 12 से लेकर 35 तक मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है
  • संविधान के भाग 3 को भारत का मैग्नाकार्टा के नाम से भी जाना जाता है   

मौलिक अधिकार

  1. समता का अधिकार (14 - 18 )
  2. स्वतंत्रता का अधिकार (19 - 22 )
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार ( 23 - 24 )
  4. धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार (25 – 28 )
  5. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार ( 29 - 30 )
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (32)
  • अनुच्छेद 31 ( संपत्ति के अधिकार ) भी पहले मौलिक अधिकार था  
  • लेकिन इसे 44वें संविधान संशोधन के  तहत सन 1978 द्वारा 
  • मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया 
  • और इसे एक सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया गया   

समता का अधिकार ( 14 – 18 )

  • कानून के समक्ष समानता
  • कानूनों के समान संरक्षण 
  • धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध
  • दुकानों, होटलों, कुओं, तालाबों, स्नानघाटों , सड़कों आदि में प्रवेश की समानता 
  • रोजगार में अवसर की समानता
  • छूआछूत का अंत
  • उपाधियों का अंत

स्वतंत्रता का अधिकार (19 – 22 )

  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
  • भाषण और अभिव्यक्ति का अधिकार
  • शांतिपूर्ण ढंग से जमा होने और सभा करने का अधिकार
  • संगठित होने का अधिकार
  • भारत में कहीं भी आने-जाने का भारत के किसी भी हिस्से में बसने और रहने का अधिकार
  • कोई भी पेशा चुनने, व्यापार करने का अधिकार
  • जीवन की रक्षा और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार
  • शिक्षा का अधिकार
  • अभियुक्तों और सजा पाए लोगों के अधिकार

निवारक नज़रबंदी

  • सामान्यतः किसी व्यक्ति को तब गिरफ़्तार करते हैं जब उसने अपराध किया हो। पर इसके अपवाद भी हैं। 
  • कभी-कभी किसी व्यक्ति को इस आशंका पर भी गिरफ्तार किया जा सकता है कि वह कोई गैर-कानूनी कार्य करने वाला है और फिर उसे वर्णित प्रक्रिया का पालन किये बिना ही कुछ समय के लिए जेल भेजा जा सकता है। 
  • इसे ही निवारक नज़रबंदी कहते हैं।  इसका अर्थ यह हुआ कि यदि सरकार को लगे कि कोई व्यक्ति देश की कानून-व्यवस्था या शांति और सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है, तो वह उसे बंदी बना सकती है। लेकिन
  • निवारक नज़रबंदी अधिकतम 3 महीने के लिए ही हो सकती है। तीन महीने के बाद ऐसे मामले समीक्षा के लिए एक सलाहकार बोर्ड के समक्ष लाए जाते हैं।

शोषण के विरुद्ध अधिकार ( 23 – 24 )

  • मानव के दुर्व्यापार और बंधुआ मज़दूरी पर रोक
  • जोखिम वाले कामों में बच्चों से मजदूरी कराने पर रोक

धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार ( 25 – 28 )

  • आस्था और प्रार्थना की आज़ादी 
  • धार्मिक मामलों के प्रबंधन
  • किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए कर अदायगी की स्वतंत्रता 
  • कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या उपासना में उपस्थित होने की स्वतंत्रता

संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार ( 29 – 30 )

  • अल्पसंख्यकों की भाषा और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार 
  • अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार

संवैधानिक उपचारों का अधिकार ( 32)

  • मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए अदालत जाने का अधिकार
  • डॉ. अंबेडकर ने इस अधिकार को 'संविधान का हृदय और 'आत्मा’ कहा है 
  • इसके अनुसार प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार प्राप्त कि वह अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन किए जाने पर सीधे उच्च न्यायालय (HIGH court ) या सर्वोच्च न्यायालय (SUPREME court ) जा सकता है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सरकार को आदेश दे सकते हैं। 
  • न्यायालय कई प्रकार के विशेष आदेश जारी करते हैं जिन्हें प्रादेश या रिट कहते हैं। 

रिट

बंदी प्रत्यक्षीकरण – 

  • बंदी प्रत्यक्षीकरण के द्वारा अदालत किसी गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने का आदेश देता है। यदि गिरफ्तारी का तरीका या कारण गैरकानूनी या असंतोषजनक हो, 
  • ऐसे में न्यायालय गिरफ्तार व्यक्ति को छोड़ने का आदेश दे सकता है। 

परमादेश – 

  • यह आदेश तब जारी किया जाता है जब न्यायालय को लगता है कि कोई सरकारी पदाधिकारी अपने कानूनी और संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं कर रहा है 
  • और इससे किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है।

निषेध आदेश – 

  • जब कोई निचली अदालत अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करके किसी मुकदमे की सुनवाई करती है तो ऊपर की अदालतें (उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय) उसे ऐसा करने से रोकने के लिए 'निषेध आदेश' जारी करती है।

अधिकार पृच्छा – 

  • जब अदालत को लगे कि कोई व्यक्ति ऐसे पद पर नियुक्त हो गया है 
  • जिस पर उसका कोई कानूनी हक नहीं है तब न्यायालय 'अधिकार पृच्छा आदेश' के द्वारा उसे उस पद पर कार्य करने से रोक देता है।

उत्प्रेषण रिट – 

  • जब कोई निचली अदालत या सरकारी अधिकारी बिना अधिकार के कोई कार्य करता है, तो न्यायालय उसके समक्ष विचाराधीन मामले को उससे लेकर उत्प्रेषण द्वारा उसे ऊपर की अदालत या अधिकारी को हस्तांतरित कर देता है। बाद में इन अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका के अलावा कुछ संरचना का निर्माण किया गया है 
  • जैसे – राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग , महिला आयोग आदि  

राज्य के नीति निर्देशक तत्व 

  • संविधान के निर्माण के समय , निर्माताओं को पता था कि स्वतंत्र भारत को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। 
  • ऐसे में सभी नागरिकों में समानता लाना और सभी का कल्याण करना सबसे बड़ी चुनौती थी। 
  • उन लोगों ने यह भी सोचा कि इन समस्याओं को हल करने के लिए कुछ नीतिगत निर्देश जरूरी हैं। 
  • लेकिन इसके साथ ही वे इन नीतियों को आने वाली सरकारों के लिए बाध्यकारी भी नहीं बनाना चाहते थे।
  • इसलिए संविधान निर्माताओं ने भारतीय संविधान में कुछ निर्देशक तत्वों का समावेश तो किया गया 
  • लेकिन उन्हें न्यायालय के माध्यम से लागू करवाने की व्यवस्था नहीं की गई।
  • इसका अर्थ यह हुआ कि यदि सरकार किसी निर्देश को लागू नहीं करती 
  • तो हम न्यायालय में जाकर यह माँग नहीं कर सकते कि उसे लागू कराने के लिए न्यायालय सरकार को आदेश दे। 
  • इसीलिए कहा जाता है कि नीति निर्देशक तत्व 'वाद योग्य नहीं हैं। 
  • अर्थ यह है कि यह संविधान का एक हिस्सा है 
  • जिसे न्यायपालिका द्वारा लागू नहीं कराया जा सकता। 

नीति निर्देशक तत्व क्या है - 

  • वे लक्ष्य और उद्देश्य जो एक समाज के रूप में हमें स्वीकार करने चाहिए
  • वे अधिकार जो नागरिकों को मौलिक अधिकारों के अलावा मिलने चाहिए 
  • वे नीतियाँ जिन्हें सरकार को स्वीकार करना चाहिए।
  • सरकारों ने समय-समय पर कुछ नीति-निर्देशक तत्वों को लागू करने का प्रयास किया। 
  • अनेक ज़मींदारी उन्मूलन कानून, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, फैक्ट्री-अधिनियम, कुटीर और लघु उद्योगों को प्रोत्साहन, न्यूनतम मज़दूरी निर्धारण तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के उन्नयन के लिए आरक्षण आदि इन प्रयासों को दर्शाते हैं। 
  • शिक्षा का अधिकार, पूरे देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू करना ,रोजगार की गारंटी , मिड-डे-मील योजना आदि

नीति-निर्देशक तत्वों और मौलिक अधिकारों में संबंध - 

  • मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्वों को एक-दूसरे के पूरक के रूप में देखा जा सकता है। 
  • जहाँ मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबंध लगाते हैं 
  • वहीं नीति-निर्देशक तत्व उसे कुछ कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं।
  • मौलिक अधिकार व्यक्ति के अधिकारों की बात करते है 
  • नीति निर्देशक तत्व पूरे समाज के अधिकारों की बात करते है 
  • कभी – कभी नीति-निर्देशक तत्वों को लागू करने में यह मौलिक अधिकारों से टकरा जाते है  

उदाहरण -

  • जब सरकार ने जमींदारी उन्मूलन कानून बनाने का प्रयास किया था तब समाज के कुछ लोगों ने इसका विरोध किया था 
  • यह कहा गया कि यह कानून मौलिक अधिकारों का हनन कर रहें है 
  • लेकिन सरकार ने समाज के हित को देखते हुए जमींदारी उन्मूलन कानून लागू किया था 

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