बाजार दर्शन ( आरोह- Aroh ) Class 12th Bajar Darshan- Easy Summary In Hindi and Explanation
परिचय
- प्रस्तुत निबंध में बाजार के उपयोग सदुपयोग और दुरुपयोग पर सूक्ष्म चिंतन प्रकट किया गया है |
- लेखक ने यह बताया है कि बाजार मनुष्य की आवश्यकता पूर्ति का साधन है शोषण, दिखावे और अहं पूर्ति का नहीं
- लेखक ने उपभोक्तावाद को उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया है
उपभोक्तावाद
- लेखक के एक मित्र बाजार में मामूली सी चीज़ लेने गए थे किंतु बाजार की जगमगाहट देखकर वे अनेक चीजें ले आए और सारा दोष अपनी पत्नी पर लगा दिया |
- लेखक के अनुसार ये सारा दोष केवल पैसों की गर्मी का है |
- पैसा पावर है उसका प्रदर्शन करने के लिए लोग अपने आसपास सामान बंगला कोठी आदि इकट्ठा किए रहते हैं
- लेकिन कुछ लोग पैसे को पावर मानकर उसे जोड़ने में ही लगे रहते हैं वे पैसों को जुड़ा हुआ देखकर खुश रहते है |
बाज़ार का आकर्षण
- फालतू खरीद का एक अन्य कारण बाजार का आकर्षण है
- जो लोग इस चकाचौंध के शिकार हो जाते है, वे बुरी तरह फंसकर अपना ही नुक्सान कर बैठते हैं |
- इसका दूसरा उदाहरण यह है की लेखक का एक मित्र बाज़ार की चमक धमक में इस प्रकार फंसा की दिनभर घूमने के बाद भी बाज़ार से कोई वस्तु खरीद ही नहीं पाया |
- इसका कारण उसने लेखक को यह बताया की बाज़ार में सभी कुछ उसे पसंद आया , पर वह कोई एक दो वस्तु ही लाता तो बाकी वस्तुओं को उसे छोड़ना पड़ता और वह कुछ भी छोड़ना नहीं चाहता था |
- इसलिए वह कुछ भी नहीं खरीद पाया | इसका लेखक ने यह अर्थ निकाला की यदि हमे अपनी आवश्यकता का पता नहीं हो , तो हम यह निर्णय नहीं ले पाएंगे की हमे क्या खरीदना है और क्या नहीं
- और इसका परिणाम भी अच्छा नहीं होगा |
बाज़ार का जादू
- लेखक के अनुसार बाज़ार का जादू खाली और भरी जेब दोनों पर चलता है |
- अगर जेब खाली है और मन भरा हुआ नहीं है, तब भी बाज़ार अपनी तरफ खींचता है और अगर जेब भरी है तो खरीदारी तो आप खूब करेंगे लेकिन फ़िज़ूल की |
- परन्तु यह जादू उतरने पर पता चलता है की ये वस्तुएं आराम पहुंचाने की बजाए आलस्य को बढ़ाती हैं,
- जादू को रोकने का उपाय यह है की बाज़ार आने से पहले मन खाली न हो, मन में लक्ष्य होना चाहिए, इससे व्यक्ति बाज़ार की चकाचौंध से अपने आप को बचा पाएगा और खरीदी गई वस्तु भी आनंद प्रदान करेगी
भगत जी का किस्सा
- लेखक के पड़ोस में एक भगतजी रहते हैं, वे चूरन बेचते हैं उनका नियम है कि वे प्रतिदिन छह आने से अधिक नहीं कमाते
- इसलिए वे अपना चूरन थोक व्यापारी को यां ऑर्डर को नहीं देते
- निश्चित समय पर वे अपनी पेटी उठाकर चूरन बेचने निकलते हैं हाथों हाथ बिक जाता है कुछ लोग तो भगतजी के प्रति अपनी सद्भावना प्रकट करने के लिए चूरन खरीदते हैं |
- जैसे ही छ: आने की कमाई पूरी होती है वे बचा हुआ चूर्ण बालकों में मुफ्त बांट देते हैं
- वे हमेशा सवस्थ बने रहते हैं लेखक का विश्वास है कि ऐसे भगतजी पर बाजार का जादू नहीं चल सकता
- वह भगत शायद निरक्षर है अनपढ़ है बड़ी बड़ी बाते भी नहीं जानते परंतु बाजार का जादू उसके सामने विवश हो जाता है |
- पैसा भीख मांगता है कि मुझे लो परंतु इस निर्मम व्यक्ति के मन में पैसे पर ज़रा भी दया नहीं आती |
- कई बार यदि कोई मोटर धूल उड़ाती हुई जाती है तो हम सोचते हैं कि काश हम भी किसी अमीर व्यक्ति की तरह होते हम भी कार में जाते किंतु भगत जी ऐसा नहीं सोचते |
बाज़ार की सार्थकता
- लेखक के अनुसार बाजार को सार्थकता वही व्यक्ति ने पाता है जिससे यह पता होता है कि उसे कब क्या और कितना खरीदना
- अनावश्यक वस्तुएं खरीदने वाला व्यक्ति परचेजिंग पावर के गर्व में बाजार की शैतानी शक्ति और व्यंग्य शक्ति को बढ़ावा देता है
- लेखक ने अपने दो मित्रों के उदाहरण दिए हैं : वे बताते हैं कि जो अर्थशास्त्र केवल बाजार का पोषण करता है अनीतिशास्त्र है यह उपभोक्ताओं को दुख गरीबी तथा ईर्ष्या देता है
- ऐसे बाजारवाद को लेकर गलत मानता है ऐसे में लोगों की आवश्यकताओं का आदान प्रदान नहीं हो पाता अपितु शोषण और कपट को बढ़ावा मिलता है |