अतीत में दबे पांव - Class 12th Hindi Chapter 3rd- ( वितान ) Vitan- Best Notes
परिचय
- अखंड भारत में 20 वीं शताब्दी के तीसरे दशक में प्राचीन सभ्यता की खोज में दो स्थानों पर खुदाई का कार्य किया गया था |
- वर्तमान में ये दोनो स्थान पाकिस्तान के अंतर्गत है पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मोहनजोदड़ो और पंजाब प्रांत में हड़प्पा नाम के दो नगरों को पुरातत्विक क्षेत्र के विद्वानों ने खुदाई के बाद सिंधु घाटी सभ्यता का पता लगाया |
मोहनजोदड़ो का परिचय
- मोहन जोदड़ो और हड़प्पा संसार के प्राचिनतम नियोजित शहर माने जाते हैं
- मोहनजोदड़ो का अर्थ मुर्दो का टीला है
- इस नगर की सभ्यता के नष्ट होने के बाद इसे यह नाम मिला
- यह सिंधु घाटी सभ्यता के परिपक्व दौर का सबसे उत्कृष्ट नगर है |
- खुदाई के बाद इस नगर में बड़ी तादाद में इमारतें, सड़कें, धातु पत्थर की मूर्तियां, चाक पर बने चित्रित भांडे, मुहरें, साजो सामान और खिलौने आदि मिले हैं
- मोहन जोदड़ो अपने दौर में सभ्यता का केंद्र था यह इस क्षेत्र की राजधानी था
- यह शहर 200 हेक्टेयर में फैला था, 5000 साल पहले यह एक महानगर था इस नगर से सैकड़ों मील दूर हड़प्पा नामक नगर था जिसके साक्ष्य रेल लाइन बिछने के समय नष्ट हो गए थे |
नगर रचना
- यह नगर मैदान में नहीं है अपितु टीले पर बसा था ये टीले प्राकृतिक नहीं अपितु मानव निर्मित है |
- इनमें कच्ची पक्की ईंटों धरती की सतह को ऊंचा उठाया गया है |
- यह कार्य सिंधु के पानी से बचाव के लिए किया गया था
- यह नगर भले ही आज खंडहरों में बदल गया है किंतु इसके स्वरूप का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है |
- इसकी गलियां, सड़कें, कमरे, रसोई, खिड़की, चबूतरे, आंगन, सीढियां आदि इस नगर के सुंदर नियोजन की कहानी खुद ही बता देते हैं |
- यहाँ की सभी सड़कें सीढ़ी हैं या फिर आड़ी , आज के वास्तुकार इसे ‘ग्रीड प्लान’ कहते हैं |
Grid Pattern
- कुंड के पानी को बाहर निकालने के लिए नालियां है ये नालियां पक्की ईंटों से ही बनी है और उनसे ही ढकी है पानी निकासी की ऐसी सुव्यवस्थित व्यवस्था इससे पहले के इतिहास में नहीं मिलतीं |
- कुण्ड के दूसरी तरफ विशाल कोठार है यहाँ कर रूप में आया अनाज रखा जाता था |
- उत्तर में गली है जिसके माध्यम से बैलगाड़ी में अन्न आता होगा इसी प्रकार का एक ऐसा ही कोठार हड़प्पा में भी मिलता है |
बोद्ध स्तूप
- मोहन जोदड़ो सभ्यता के बिखरने के बाद एक जीर्ण शीर्ण टीले के सबसे ऊंचे चबूतरे पर बड़ा बौद्ध स्तूप है,
- यह स्तूप 25 फुट ऊंचे चबूतरे पर है इसका निर्माण कार्य लगभग 2600 वर्ष पूर्व का है |
- चबूतरे पर भिक्षुओं के कमरे भी हैं |
- यह बोद्ध स्तूप भारत का सबसे पुराना लैंडस्केप है, इस स्तूप को देखकर दर्शक रोमांचित हो उठता है इतना प्राचीन स्तूप न जाने कितनी सभ्यताओं का साक्षी है |
- यह स्तूप वाला चबूतरा मोहनजोदड़ो के सबसे खास हिस्से के एक सिरे पर स्थित है इस भाग को पुरातत्व के विद्वान गढ़ कहते हैं |
खेती और व्यापार
- सिंधु घाटी में व्यापार के साथ उन्नत खेती भी होती थी |
- यहाँ ज्वार बाजरा और रागी की उपज होती थी |
- खजूर खरबूजे और अंगूर भी उगते थे |
- कपास की खेती भी होती थी |
- मोहन जोदड़ो में सूत की कताई बुनाई के साथ रंगाई भी होती थी |
- यहाँ रबी की फसल कपास गेहूं जौ सरसों और चने की उपज के तो पुख्ता प्रमाण मिले हैं |
जल संस्कृति
- पानी की निकासी के उचित प्रबंधन के कारण किसी भी रूप में बीमारी का प्रकोप अधिक नहीं हो सकता था क्योंकि नालियां आदि उचित रूप में ढकी हुई थी |
- घरों के भीतर से पानी या मैल की नालियां बाहर हौदी तक आती है और फिर अन्य नालियों के साथ जुड़ जाती है ये नालियां अधिकतर बंद है यहाँ पर कुओं का प्रबंध आवश्यकता के अनुसार उचित रूप में किया गया था
अन्य विशेषताएं
- यहाँ घरों की दीवारें ऊंची और मोटी है शायद यहाँ दो मंजिले मकान रहे हो |
- सभी घर एक 1 : 2 : 4 की भट्टी की पक्की ईंटों से बने हैं |
- यहाँ पत्थर का प्रयोग ना के बराबर है छोटे बड़े सब घर एक पंक्ति में है, घरों की खिड़कियाँ और दरवाजों पर छज्जे नहीं हैं |
जॉन मार्शल की पुस्तक
- जॉन मार्शल ने मोहनजोदड़ो पर तीन खंडों का एक बहुत बड़ा प्रबंध छपवाया है |
- उसमें सिंधु घाटी में 100 वर्ष पहले प्रयोग होने तथा खुदाई में मिली ठोस पहियों वाली गाडी दोनों के चित्र हैं |
मोहनजोदड़ो का अजायबघर
- खंडहरों के मध्य एक साबूत इमारत में अजायबघर है यह किसी कस्बाई स्कूल की छोटी इमारत जैसा है है सामान भी ज्यादा नहीं है |
- अजायब घर छोटा है सामान भी ज्यादा नहीं है, अहम चीज़े कराची लाहौर दिल्ली और लंदन में हैं यो अकेले मोहनजोदड़ो की खुदाई में निकली पंजीकृत चीजों की संख्या 50,000 से ज्यादा है मगर जो मुट्ठी भर चीज़ें यहाँ प्रदर्शित है पहुंची हुई सिंधु सभ्यता की झलक दिखाने को काफी है |
- काला पड़ गया गेहूं, तांबे और कांसे के बर्तन, मोहरे चाक पर बने विशाल मृदभांड उनपर काले भूरे चित्र, माप तौल पत्थर, तांबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने रंग बिरंगे पत्थरों के मनकें आर और पत्थर के औजार |
- सुइयों के अलावा हाथी दांत और तांबे के सुए नर्तकी तथा दुशाला ओढ़े दाढ़ी वाले नरेश की मूर्ति भी मिली है लेकिन इसका प्रमाण मिलना अब मुश्किल है
- क्योंकि सिंधु नदी के पानी से खुदाई के स्थान पर दलदल की समस्या उत्पन्न हो गई है जिससे खुदाई को बंद करना पड़ा है |
- लेखक ने सभ्यता के इतिहास को इतने सुंदर रूप में वर्णित किया है जैसे मोहनजोदड़ो सभ्यता उसकी जानी पहचानी सी हो |