Sociology- सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियां- Chapter- 6th Class 12th Notes In Hindi || Most Important Question Answer- Book 1st
विविधता से क्या अभिप्राय है ?
1- विविधता शब्द असमानता की जगह अंतरों पर बल देता है
2- भारत एक महान सांस्कृतिक विविधता वाला राष्ट्र है
3- इसका अर्थ यह है कि भारत में अनेक प्रकार के
4- सामाजिक समूह एवं समुदाय निवास करते हैं
भारत में सांस्कृतिक विविधता
भारत में विभिन्न प्रदेशों में भाषा, धर्म, जाति, रहन सहन, वेशभूषा
खान-पान, प्रथाएं, परंपरा, लोकगीत, विवाह प्रणाली, कला संगीत, नृत्य
सभी में अंतर देखने को मिलता है
जनसंख्या के मामले में भारत विश्व में दूसरा विशाल आबादी वाला देश है
यहां 80% से अधिक हिंदू
13 प्रतिशत से अधिक मुसलमान
2.3% ईसाई
1.9% सिक्ख
0.8 % बौद्ध
0.4 % जैन
आदि रहते है
सामुदायिक पहचान क्या होती है ?
सामुदायिक पहचान जन्म तथा अपनेपन पर आधारित होती है
ना की किसी उपलब्धि के आधार पर
हमारा समुदाय हमें भाषा और सांस्कृतिक मूल्य प्रदान करता है
जिनके माध्यम से हम विश्व को समझते हैं
सामुदायिक पहचान कैसे बनती है ?
किसी समुदाय में जन्म लेने के लिए हम कुछ नहीं करते है
वास्तव में किसी परिवार समुदाय या देश में जन्म लेने पर हमारा कोई वश नहीं होता
इस प्रकार कि पहचानो को प्रदत्त कहा जाता है
यह जन्म से निर्धारित होती हैं
हम ऐसे समुदाय के साथ अपनी पहचान मजबूती से कायम कर लेते हैं
जिस की पात्रता हासिल करने के लिए हम कोई प्रयास नहीं करते
अथवा कोई परीक्षा नहीं देते
उदाहरण के लिए
परिवार, नातेदारी, भाषा, क्षेत्र, धर्म हमें एक पहचान देते हैं कि हम कौन हैं
क्षेत्रवाद क्या होता है ? यह किन कारकों पर आधारित होता है ?
भारत में क्षेत्रवाद भारत की भाषाओं, संस्कृतियों, जनजातियों और धर्मो की
विविधता के कारण पाया जाता है इसे विशेष पहचान चिन्हकों के भौगोलिक
संकेद्रण के कारण भी प्रोत्साहन मिलता है ओर क्षेत्रीय वंचन का भाव अग्नि
में घी का काम करना है। भारतीय संघवाद इन क्षेत्रीय भावुकताओं को
समायोजित करने वाला एक साधन है।
क्षेत्रवाद भाषा पर आधारित है-जैसे पुराना बंबई राज्य मराठी, गुजराती, कन्नड़
एवं कोंकणी बोलने वाले लोगों का बहुभाषी राज्य था। मद्रास राज्य तमिल,
तेलुगु, कन्नड़, मलयालम बोलने वाले लोगों से बना था।
क्षेत्रवाद धर्म पर आधारित है।
क्षेत्रवाद जनजातीय पहचान पर भी आधारित था जैसे सन् 2000 में छत्तीसगढ़,
झारखंड, उत्तरांचल जनजातीय पहचान पर आधारित थे।
संप्रदायवाद या सांप्रदायिकता क्या है ?
यदि स्वयं के धर्म को अच्छा माना जाए पर अन्य धर्मों के प्रति घृणा और नफरत की जाए तो यह सांप्रदायिकता का ही एक प्रकार है
साधारण भाषा में संप्रदायवाद या सांप्रदायिकता का अर्थ धार्मिक पहचान पर आधारित उग्रवाद होता है
उग्रवाद एक ऐसी अभिवृत्ति है जो अपने समूह को श्रेष्ठ मानती है लेकिन दूसरे समूह को निम्न, अवैध और बेकार समझती है
सांप्रदायिकता एक आक्रामक राजनीतिक विचारधारा है
जो धर्म से जुड़ी होती है
सांप्रदायिकता कई बार दंगों का रूप ले लेती है जिसमें हजारों लोग मारे जाते हैं
धर्मनिरपेक्षता क्या है ?
धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा सिद्धांत है
जिसके द्वारा राज्य को धर्म से बिल्कुल अलग रखा जाता है
राज्य विभिन्न धर्मों के बीच भेदभाव नहीं करता है
सभी धर्मों को समान माना जाता है
व्यक्तियों को अपनी धार्मिक परंपराओं को मानने की आजादी होती है
अल्पसंख्यक का समाजशास्त्रीय अर्थ क्या होता है ?
ऐसे समूह जो धर्म जाति की दृष्टि से संख्या में कम होते हैं अल्पसंख्यक कहलाते हैं
जैसे - सिख, मुस्लिम, जैन, पारसी, बौद्ध
सत्तावादी राज्य से क्या अभिप्राय है ?
एक सत्तावादी राज्य लोकतंत्रात्मक राज्य का विपरीत होता है।
इसमें लोगों की आवाज नहीं सुनी जाती है। और जिनके पास शक्ति होती है वे
किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होते।
सत्तावादी राज्य अक्सर भाषा की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतन्त्रता, सत्ता के
दुरूपयोग से संरक्षण का अधिकार विधि (कानून) की अपेक्षित प्रक्रियाओं का
अधिकार जैसी अनेक प्रकार की नागरिक स्वतंत्रताओं को अक्सर सीमित या
समाप्त कर देते हैं।
भारतीय लोगों को सत्तावादी शासन का थोड़ा अनुभव आपातकाल के दौरान
हुआ जो 1975 से 1977 तक लागू रही थी।
संसद को निलंबित कर दिया गया था। नागरिक स्वतंत्रताएँ छीन ली गई और
राजनीतिक रूप सक्रिय लोग बड़ी संख्या में गिरफ्तार हुए। बिना मुकदमा चलाए
जेलों में डाल दिए गए।
जनसंचार के माध्यमों पर सेंसर व्यवस्था लागू कर दी गई थी।
सबसे कुख्यात कार्यक्रम नसबंदी अभियान था। लोगों की शल्यक्रिया के कारण
उत्पन्न हुई समस्याओं से मौत हुई।
1977 के प्रारंभ में चुनाव कराएँ गए तो लोगों ने बढ़-चढ़कर सत्ताधारी कांग्रेस
दल के विरोध में बोट डाले।
सूचना का अधिकार अधिनियम( 2005 ) के बारे में बताइए ?
सूचना अधिकार अधिनियम 2005 भारतीय संसद के द्वारा बनाया गया एक ऐसा कानून है
जिसके द्वारा भारतीयों को सरकारी अभिलेखों तक पहुंचने का अधिकार प्रदान किया गया है
इस अधिकार के तहत कोई भी व्यक्ति किसी सार्वजनिक प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने के लिए अनुरोध कर सकता
संबंधित अधिकारी से यह आशा की जाती है कि वह 30 दिन के अंदर उत्तर देगा
सूचना अधिकारअधिनियम संसद द्वारा 2005 को पारित किया गया
इसके तहत नागरिकों को
किसी भी सूचना के लिए अनुरोध करने का अधिकार है
दस्तावेजों की प्रतिलिपि लेने का अधिकार है
दस्तावेजों, कार्यों तथा अभिलेखों का निरीक्षण करने का अधिकार
अल्पसंख्यक वर्गों को राज्य से संरक्षण की जरूरत क्यों पड़ती है ?
अल्पसंख्यक वर्ग समाज में संख्या में कम होते हैं
राजनीतिक सत्ता में भी इनका वर्चस्व नहीं होता
ऐसे में इनके भीतर असमानता की स्थिति पैदा हो सकती है
हमारा संविधान अल्पसंख्यक के अधिकारों की रक्षा करता है
अल्पसंख्यकों एवं सांस्कृतिक विविधता पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद
[ अनुच्छेद 29: ]
(1) भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी
अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
(2) राज्य द्वारा पोषित या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक
को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।
[ अनुच्छेद 30: ]
(1) धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना
और प्रशासन का अधिकार होगा।
(2) शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं
करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक-वर्ग के प्रबंध में है।