संवदिया- फणीश्वर नाथ रेणु- ( Antra ) गद्य खण्ड- अंतरा- Summary

संवदिया- फणीश्वर नाथ रेणु- ( Antra )  गद्य खण्ड- अंतरा- Summary

Introduction

1- यह पाठ फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा रचित एक संवेदनशील कहानी है
2- यह एक संदेश वाहक की कहानी है
3- इसमें मानवीय संवेदनाओं की गहन अभिव्यक्ति हुई है

( संवदिया )

1- संवदिया का नाम : हरगोबिन
2- हरगोबिन एक संवदिया है अर्थात संदेशवाहक
3- एक दिन बड़ी हवेली से बड़ी बहुरिया का बुलावा आने पर हरगोबिन को आश्चर्य हुआ की आज जबकि सन्देश
भेजने के लिए गाँव गाँव में डाकघर खुल गए हैं, तो बड़ी बहुरिया ने उसे क्यों बुलवाया है ?
4- फिर हरगोबिन ने अंदाज़ा लगाया की अवश्य कोई गुप्त सन्देश ले जाना है |

( अतीत की यादों में खो जाना )


1- बड़ी हवेली पहुँचने पर हरगोबिन अतीत की यादों में खो गया, पहले बड़ी हवेली में नौकर
और नौकरानियां की भीड़ लगी रहती थी, और आज बड़ी बहुरिया अपने हाथ से सूपा
में
अनाज लेकर फटक रही हैं।
2- कभी बड़ी बहुरिया के इन कोमल हाथों में मेहँदी लगाकर ही गाँव की नाइन अपने परिवार
का पालन पोषण करती थी, जहाँ कल क़र्ज़ लेने वालो की पंक्ति लगती थी आज वहां
कर्ज़ मांगने वाले आते हैं।

( बड़ी बहुरिया का सन्देश )


1- बड़े भैया की मृत्यु के बाद तीनों भाइयों में आपस में लड़ाई होने लगी, और बड़ी बहुरिया अकेली पड़ गयी |
2- तीनों देवर लड़ाई झगड़ा करके तथा हवेली का बटवारा करके शहर में जा बसे |
3- उसके पास एक नौकर था वह भी भाग गया, उसको अब खाने तक के लाले पड़ गए |
4- उधार तथा कर्ज़ देने वालों ने उधार तथा कर्ज देना बंद कर दिया |
5- अब वह बेचारी केवल बथुए साग खाकर गुज़ारा कर रही थी |
6- इसलिए बड़ी बहुरिया अपने मायके सन्देश भेजना चाहती थी, ताकि उसके घरवाले आकर उसे ले जाएँ और
वह अपने मायके में अपना जीवन गुज़ार लेगी |

( बहुरिया की आँखे छलछला आई )

1- बड़ी बहुरिया अब हवेली में अकेली रह गयी थी, वह बथुआ साग खाकर अपना गुज़ारा कर रही थी |
2- मोदिआइन हवेली में प्रतिदिन उधार मांगने आती थी और कड़वी बाते सुनती थी परन्तु बहुरिया के पास देने
को कुछ न था |
3- अब वह अपने जीवन से हार चुकी थी, वह सोच रही थी की भाई और भाभियों की नौकरानी करके वह
अपना पेट पाल लेगी तथा बच्चो की जूठन खाकर कोने में पड़ी रहेगी |
4- ऐसा सोच कर उसे अपने पुराने दिनों की याद आने लगी, इसलिए संवाद सुनते वक़्त उसकी आँखे छलछला
आई।

5- बड़ी बहुरिया की दुर्दशा को देख कर उसका मन बहुत दुखी हुआ, बड़ी बहुरिया हरगोबिन के जाने का राहखर्च
मात्र पाँच रूपए जुटा पाई।
6- हरगोबिन ने यह कहकर इनकार करदिया की राहखर्च का इंतजाम वह स्वयं कर लेगा |
7- लोग संवदिया की बहुत खातिरदारी करते थे, उसे बहुत सम्मान देते थे क्योंकि वह लम्बी यात्रा करके उनके
प्रियजनों का सन्देश उन तक लाता था, उसे अच्छी तरह से भोजन कराया जाता था |
8- भरपेट भोजन करने के बाद संवदिया यात्रा की थकान उतारने के लिए गहरी नींद सोता था |
9- परन्तु बड़ी बहुरिया के मायके पहुंचने पर जब हरगोबिन के सामने कई प्रकार के व्यंजनों से भरी थानी आई
तो उसने खाना नहीं खाया, उसै बड़ी बहुरिया का ध्यान आ रहा था की वह बथुआ साग उबाल कर खा
रही होगी।

( सन्देश न सुना पाना )

1- हरगोबिन के मन में बड़ी बहुरिया के प्रति बहुत सम्मान था, वह बड़ी बहुरिया को गाँव की लक्ष्मी मानता था
वह सोच रहा था की यदि गाँव की लक्ष्मी ही गाँव छोडकर मायके चली जायगी तो गाँव मे क्या रह जाएगा ?
2- वह किस मुहं से यह संदेश दे की बड़ी बहुरिया उसके गांव में बथुआ साग खाकर गुज़ारा कर रही है,
कष्ट में है इसलिए उसे अपने पास बुला लो |
3- यह संवाद सुनकर लोग उसके गाँव के नाम पर थूकेंगे, अपने गाँव की बदनामी के भय से हरगोबिन बड़ी
बहुरिया का सन्देश न सुना सका |

4- जलालगढ़ पहुंचकर हरगोबिन ने बड़ी बहुरिया के पैर पकड़कर, संवाद न सुना पाने के कारण माफ़ी मांगी |
5- उसने कहा की वह बड़ी बहुरिया के बेटे के समान है बड़ी बहुरिया उसकी माँ के समान है, पूरे गाँव की माँ
के समान है।
6- वह उससे आग्रह करता है की अब वह निठल्ला नहीं बैठेगा, उसे कोई कष्ट नहीं होने देगा तथा उसके सब
काम करेगा |
- बड़ी बहुरिया स्वयं अपने मायके सन्देश भेजने के बाद से ही पछता रही थी |

( संवदिया की विशेषताएं )

1- एक स्थान से दूसरे स्थान पर संवाद पहुंचाने वाले व्यक्ति को संवदिया कहा जाता है।
2- वह वातावरण को सूंघकर ही संवाद का अनुमान लगा लेता है।
3- वह बहुत भावुक है।
4- वह संवेदनशील और समझदार है।
5- वह ईमानदार और दूसरों का मददगार है।
6- गांववालों के मन में संवदिया की यह अवधारणा है की वह निठल्ला, कामचोर और पेटू आदमी है और उसके
आगे पीछे कोई नहीं है।
7- बिना मजदूरी के वह संवाद पहुंचता है और वह औरतों का गुलाम है।

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