( पद )- [कवि-विद्यापति]- (काव्य खण्ड हिंदी) अंतरा- व्याख्या
कविता- पद की व्याख्या
Summary (1)
- इसमें विद्यापति द्वारा रचित 3 पद लिए गए हैं !
- प्रथम पद में कवि ने नायक के वियोग में संतृप्त नायिका का वर्णन किया है !
- दूसरे पद में कवि ने ऐसी ऐसी नायिका का वर्णन किया है । जो जन्म जन्मांतर उसे अपने प्रियतम के रूप का पान करके भी स्वयं को अतृप्त ही अनुभव करती है !
- तीसरे पद में कवि ने नायक के वियोग में संतृप्त ऐसी विरणी का चित्रण किया है !
- जिसे नायक के वियोग में प्रकृति के आनंददायक दृश्य है भी कष्टदायक प्रतीत होते हैं !
के पतिआ लए जाएत रे मोरा पिअतम पास।
हिए नहि सहए असह दुख रे भेल साओन मास।।
एकसरि भवन पिआ बिनु रे मोहि रहलो न जाए।
सखि अनकर दुख दारुन रे जग के पतिआए।।
मोर मन हरि हर लए गेल रे अपनो मन गेल।
गोकुल तजि मधुपुर बस रे कन अपजस लेल।।
विद्यापति कवि गाओल रे धनि धरु मन आस |
आओत तोर मन भावन रे एहि कातिक मास।।
व्याख्या- 1
- इस पद में नायिका- राधा है, और नायक- कृष्णा है !
- कवि बताना चाहते हैं की वर्षा ऋतु आ गई है, और नायिका को अपने नायक की याद सताने लगी है और वह अपने नायक को अपना संदेशा भेजना चाहती है !
- नायिका अपनी सखी से पूछती है कि मेरा पत्र लेकर मेरे नायक के पास कौन जाएगा, क्या ऐसा कोई नहीं है जो मेरे इस पत्र को मेरे प्रियतम कृष्ण के पास पहुंचा दें !
- इस पावन के महीने में वीरह वेदना का असहनीय दुःख मेरा यह शरीर अब नहीं झेल पा रहा है !
- और इस बड़े भवन में मैं अपने प्रियतम के बिना नहीं रह पा रही हूं !
- है सबकी, मेरे इस कठोर दुःख को, संसार में ऐसा कौन मनुष्य है जो समझ पाएगा अर्थात मेरे इस असहनीय दुःख को इस दुनिया में कोई नहीं समझता !
- मेरा मन तो श्री कृष्ण अपने साथ ही लेकर चले गए, गोकुल छोड़ अब वह मथुरा जा बसे हैं और एक बार जाने के बाद अब वे लौटकर नहीं आ रहे हैं, इससे उनकी बदनामी भी होने लगी है !
- अब कवि विद्यापति कहते हैं कि,,,, हे, राधा तुम अपने मन में सब्र, धीरज और आशा रखो और विश्वास रखो कि तुम्हारे प्रियतम श्री कृष्ण कार्तिक के महीने तक जरूर वापस आ जाएंगे तुम्हारे पास !
विशेष (1)
- इस पद में नायिका की विरह वेदना का मार्मिक वर्णन किया गया है !
- इस पद में मैथिली भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है !
- इस पद में वियोग रस विद्यमान है !
- 'मोर- मन' में अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है !
- यह एक छंद -युक्त पद है !
- कवि की भाषा लयात्मक, काव्यात्मक एवं भावानुरुप है !
(Summary)- 2
दूसरे पद में कवि ने ऐसी ऐसी नायिका का वर्णन किया है जो जन्म जन्मांतर से अपने प्रियतम के रूप का पान करके भी स्वयं को अतृप्त ही अनुभव करती है !
सखि हे, कि पुछसि अनुभव मोए।
सेह पिरिति अनुराग बखानिअ तिल तिल नूतन होए।।
जनम अबधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल।।
सेहो मधुर बोल स्रवनहि सूनल स्रुति पथ परस न गेल।।
कत मधु-जामिनि रभस गमाओलि न बूझल कइसन केलि।।
लाख लाख जुग हिअ हिअ राखल तइओ हिअ जरनि न गेल।।
कत बिदगध जन रस अनुमोदए अनुभव काहु न पेख।।
विद्यापति कह प्रान जुड़ाइते लाखे न मीलल एक।।
व्याख्या- 2
- सखियां राधा से उसके अनुभवों के बारे में पूछने लगती है तो राधा कहती है हे सखी मुझसे उन सुंदर पलों का अनुभव क्या पूछती हो मैं तो जितनी बार उन पलों के बारे में बताऊंगी उतनी बार वह पल नए होते जाएंगे !
- अर्थात प्रेम को सिर्फ महसूस किया जाता है एवं प्रेम अनुभव की वस्तु है प्रेम का वर्णन कभी नहीं किया जा सकता !
- मैंने अपने पूरे जीवन में अपने प्रिय श्री कृष्ण का रूप निहारा है उन्हें जीवन भर निहारती रही परंतु मेरी आंखों की प्यास कभी न बुझ सकी अर्थात जो सच्चा प्रेम होता है उसमें व्यक्ति कभी तृप्त नहीं होता हमेशा नवीन रहता है !
- श्री कृष्ण की मीठी मीठी मधुर वाणी को सुनने के लिए मेरे कान उत्सुक रहते हैं श्री कृष्ण के मुख से निकले मधुर बोल मैं अपने कानो से सुनती रहती हूं पर मेरे कानों को कभी तृप्ति नहीं मिलती !
- ना जाने कितनी मिलन की राते मैने श्री कृष्ण के बाद आनंद मे व्यतीत कर दी परंतु आज तक न जा सके यह सब कैसे हुआ !
- लाखों युगो तक मैंने प्रिय को हृदय में बसाकर रखा परंतु फिर भी हृदय में से प्रेम की अनुभूति की आग नहीं बुझी !
- प्रेम रस को पीने वाले कितने सारे व्यक्ति हैं जिन्होंने इसका अनुभव किया है परंतु सच्चा और पूरा अनुभव कोई भी नहीं कर पाया !
- कवि विद्यापति कहते हैं कि लाखों अपनी व्यक्तियों में एक भी व्यक्ति उन्हें ऐसा नहीं मिला जिसका प्रेम का अनुभव सच्चा हो और वह तृप्त हो !
विशेष- 2
- इस पद में नायिका की विरह वेदना का मार्मिक वर्णन किया गया है !
- इस पद में मैथिली भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है !
- 'पथ रस' में अनुप्रास अलंकार है 'स्वनाही सुनल' में अनुप्रास अलंकार हैं !
- इस पद में वियोग रस विद्यमान है !
- अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है !
- यह एक छंद युक्त पद है !
- कबीर की भाषा लयात्मक काव्यात्मक एवं भावनुरूप है !
(Summary)- 3
- तीसरे पद में कवि ने नायक के वियोग में संतृप्त ऐसी विहरी का चित्रण किया है !
- जिसे नायक के वियोग में प्राकृती के आनंददायक दृश्य भी कष्टदायक प्रतीत होते हैं !
कुसुमित कानन हेरि कमलमुखि,
मूदि रहए दु नयान।
कोकिल-कलरव, मधुकर-धुनि सुनि,
कर देइ झाँपइ कान।।
माधब, सुन-सुन बचन हमारा।
तुअ गुन सुंदरि अति भेल दूबरि-
गुनि-गुनि प्रेम तोहारा।।
धरनी धरि धनि कत बेरि बइसइ,
पुनि तहि उठइ न पारा।
कातर दिठि करि, चौदिस हेरि हेरि
नयन गरए जल-धारा।।
तोहर बिरह दिन छन-छन तनु छिन-
चौदसि-चाँद-समान।
भनइ विद्यापति सिबसिंह नर-पति
लखिमादेइ-रमान।।
व्याख्या- 3
- राधा की सहेली कृष्ण के सामने राधा की विरह अवस्था का वर्णन कर रही है !
- कमल के जैसी मुख वाली सुंदर राधा जब खिले हुए फूलों को देखती है तो वह अपनी आंखें बंद कर लेती है !
- और कोयल की आवाज को सुनकर और भवरे की गूंज को सुनकर राधा अपने कान ढक लेती है !
- अर्थात ये सब जो मिलन के प्रतीक है इन सब को देखकर राधा का दुःख और बढ़ जाता है !
- हे श्रीकृष्ण, तुम हमारी बात सुनो, तुम्हारे प्रेम में तुम्हें याद कर कर के राधा की हालत बहुत खराब हो चुकी है और राधा बहुत कमजोर हो गई है और इतनी कमजोर हो गई है कि यदि वह एक बार धरती पर बैठ जाती है तो उससे उठा भी नहीं जाता !
- और वह अपने दुःख से चारों ओर देखती है, कि शायद तुम कहीं से आ जाओ लेकिन जब वह तुम्हें कहीं नहीं पाती तो वह निराश होकर रोने लगती है !
- तुमसे दूर होकर वह हर पल इतनी कमजोर होती जा रही है जैसा की चौदस का चांद होता है !
- राजा शिवसिंह विरह के प्रभाव को जानते हैं और वह अपनी पत्नी लक्ष्मीदेवी को वीरह का कष्ट नहीं देना चाहते तो इसीलिए वे अपनी पत्नी के साथ भ्रमण करते हैं !
विशेष- 3
- इस पद में नायिका की विरह वेदना का मार्मिक वर्णन किया गया है !
- इस पद में मैथिली भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है !
- "धरनी धरी धनी" मे अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है !
- इस पद में वियोग रस विद्यमान है !
- अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है !
- यह एक छंद-युक्त पद है !
- कवि की भाषा लयात्मक, काव्यात्मक, एवं भावानुरूप है !