( घड़ी के पुर्जे )- सुमिरनी के मनके -[ पण्डित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ]- गद्य खण्ड- अंतरा- Summary
INTRODUCTION
घड़ी के पुर्जे निबंध के माध्यम से लेखक ने धर्म के रहस्यों को जानने पर धर्म उपदेशकों द्वारा लगाये गए
प्रतिबंधों को घड़ी के दृष्टान्तों द्वारा अत्यंत रोचक ढंग से पेश किया है
धर्म का रहस्य
धर्मोपदेशक उपदेश देते समय कहते हैं की बातों को गहराई से जानने की इच्छा हर व्यक्ति को नहीं करनी
चाहिए |
जो कुछ उपदेशक बताते हैं उसे चुपचाप सुन लेना चाहिए और स्वीकार कर लेना चाहिए |
और वे घड़ी का उदाहरण देते हुए बताते हैं की, यदि आपकों समय जानना हो तो जिसे घड़ी देखनी आती हो
उससे समय जानकर अपना काम चला लेना चाहिए |
लेकिन आप इतने से संतुष्ट नहीं होते तो स्वयं घड़ी देखना सीख सकते हैं।
किन्तु मन में यह इच्छा नहीं करनी चाहिए की घड़ी को खोलकर, इसके पुर्जे गिनकर, उन पुर्जी को यथा
स्थान लगाकर घड़ी बंद कर दें।
यह काम साधारण व्यक्ति का नहीं, विशेषज्ञ का है, इसी प्रकार धर्म के रहस्यों को जानना भी केवल
धर्माचार्यों का काम है।
लेखक की सोच
लेखक कहता है की घड़ी खोलकर ठीक करना कठिन काम नहीं है, साधारण लोगों में से ही बहुत से
लोग घड़ी को खोलकर ठीक करना सीखते भी हैं और दूसरों को सीखाते भी हैं।
इसी प्रकार धर्माचार्यों को आम आदमियों को भी धर्म के रहस्यों की जानकारी देनी चाहिए |
धर्म का ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद कोई व्यक्ति धर्म के विषय में मूर्ख नहीं बन सकता |
लेखक धर्माचार्यों से यह भी कहता है की यदि वे लोगों को धर्म के बारे में शिक्षित करेंगे तो इससे यह
भी पता चलता है की स्वयं धर्माचार्यों को कितनी जानकारी है |
लेखक स्वयं को धर्म का ठेकेदार समझने वाले धर्माचार्यों पर व्यंग्य करते हुए कहता है की ये लोग
दूसरों के धर्म का रहस्य जानने से रोकते हैं क्योंकि स्वयं उन्हें धर्म की पूरी जानकारी नहीं है |