[ एक कम -विष्णु खरे ] - ( काव्य खण्ड हिंदी ) अंतरा- व्याख्या
( कविता- एक कम -विष्णु खरे )
[ Summary ]
- इस कविता में विष्णु खरे जी ने 1947 में मिली आजादी के बाद की भारत की जीवन शैली का वर्णन किया है !
- हमारे देश में आजादी के बाद कुछ लोग बहुत अमीर हो गए और कुछ लोग बहुत गरीब हो गए !
- अमीर बनने की होड़ में लोगों ने अपना स्वाभिमान तक बेच दिया !
- लोगों ने गलत तरीकों का इस्तेमाल करके पैसा कमाया !
1947 के बाद से
इतने लोगों को इतने तरीके से
आत्मनिर्भर मालामाल और गतिशील होते देखा है
कि आब जब आगे कोई हाथ फैलाता है
पच्चीस पैसे एक चाय या दो रोटी के लिए
तो जान लेता हूं
मेरे सामने एक ईमानदार आदमी, औरत या बच्चा खड़ा है।
व्याख्या- 1
- कवि कहते हैं की 1947 में आजादी मिलने के बाद उन्होंने बहुत से लोगों को गलत कामों का सहारा लेकर धन कमाते देखा है !
- कवि ऐसे लोगों की निंदा करता है जिन्होंने गलत तरीकों से पैसे कमाया है और फिर खुद को अमीर बोलते हैं !
- आज स्थिति ऐसी है कि जब भी कवि के सामने भीख मांगता हुआ कोई आता है तो कवि को वो व्यक्ति ईमानदार लगता है !
- अगर यह चाहता तो यह भी गलत तरीके से पैसे कमाकर अमीर बन सकता था पर यह 25 पैसे एक चाय एवं दो रोटी के लिए भी हाथ फैलाता है !
मानता हुआ कि हां मैं लाचार हूं कंगाल या कौड़ी
या मैं भला चंगा हूं और कमजोर और एक मामूली धोखेबाज
लेकिन पूरी तरह तुम्हारे संकोच लज्जा परेशानी या गुस्से पर आश्रित
तुम्हारे सामने बिल्कुल नंगा निर्लज्ज एवं निराकाक्षी
व्याख्या- 2
- यहां कवि विष्णु खरे खुद को लाचार, कमजोर और धोखेबाज बता रहे हैं और कहते हैं कि वह इन इमानदार लोगों की मदद नहीं कर पा रहा है और सब कुछ जानते हुए भी इन लोगों को अनदेखा कर रहा है !
- इस प्रकार कवि भ्रष्टाचारी लोगों के बीच जी रहे ईमानदार लोगों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट कर रहा है !
- कवि को बेहद दुख है कि वह कुछ कर नहीं पा रहा है यहां तक कि कवि अपने आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाते हुए खुद को नंगा और निर्लज कहता है !
मैंने अपने को हटा लिया है हर होड़ से
मैं तुम्हारा विरोधी प्रतिद्वंदी या हिस्सेदार नहीं
मुझे कुछ देकर या ना देकर भी तुम
कम से कम एक आदमी से तो निश्चिंत रह सकते हो
व्याख्या 3
- कवि कहते हैं मुझे शर्म आनी चाहिए मैं तुम्हारी मदद नहीं कर पा रहा !
- कवि कहता है मैं तुम्हारा विरोधी नहीं हूं न मैं तुम्हारा हिस्सा बांटना चाहता हूं कवि ईमानदार व्यक्ति के रास्ते में कोई बाधा उत्पन्न नहीं करना चाहता !
- इसलिए कवि कहता है "ईमानदार व्यक्ति उससे निश्चित होकर रह सकता है" !
( विशेष )
- इस कविता में कवि ने भ्रष्टाचारी लोगों की निंदा की हैं, एवं जिन लोगों ने धोखाधड़ी और गलत तरीकों से धन अर्जित किया है उनकी भी निंदा की है !
- इस कविता की भाषा सरल और सहज हैं !
- इस कविता में अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है !
- यह एक छंद मुक्त कविता है !
- इस कविता में "हाथ फैलाना" मुहावरे का प्रयोग किया गया है !