आओ मिलकर बचाएं- Class 11th Hindi Core Chapter- 10 Easy Explained

आओ मिलकर बचाएं- Class 11th Hindi Core Chapter- 10 Easy Explained

 ( काव्यांश 1 )

  • अपनी बस्तियों को
  • नंगी होने से
  • शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे
  • बचाएँ डूबने से
  • पूरी की पूरी बस्ती को
  • हड़िया में

( प्रसंग )

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित  कविता  आओ मिलकर बचाएं से ली गयी है |

( सन्दर्भ )

  • प्रस्तुत  पंक्तियों में कवयित्री आदिवासी जीवन शैली को शहरी जीवनशैली से बचाने की बात कर रही है |
  • प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवित्री कहती है कि हमारी बस्तियां शहरी वातावरण की उच्च श्रृंखला के कारण शर्म हया को तिलांजलि देकर नंगी होती जा रही हैं।
  • इन बस्तियों को बचाने के लिए हमें इन्हें शहरी परिवेश एवं प्रभाव से बचाना होगा यहां तन को ढकने की अपेक्षा तन को दिखाने की होड़ लग रही है लोगों के तन की तरह धरती भी नंगी होती जा रही है
  • शहरी आबोहवा के कारण ही नशे की लत इन बस्तियों में भी जोर पकड़ती जा रही है  
  • झारखंड की धरती के निवासी नशे की लत के अत्याधिक शिकार होकर मादक पेय पदार्थ हड़िया में डूबते जा रहे हैं
  • हमें उनके नशे की इस बढ़ती प्रवृत्ति को रोकना होगा कभी इतनी आग्रह करती है
  • कि शर्म या लग जा को बचाने के साथ-साथ हमें लोगों को नशे की बढ़ती लगते भी बचाना होगा अन्यथा शहरी संस्कृति से प्रभावित होकर यहां का वातावरण दूषित हो जाएगा

( काव्यांश 2 )

  • अपने चेहरे पर
  • सन्थाल परगना की माटी का रंग
  • भाषा में झारखंडीपन
  • ठंडी होती दिनचर्या में
  • जीवन की गर्माहट
  • मन का हरापन
  • भोलापन दिल का
  • अक्खड़पन, जुझारूपन भी

( सन्दर्भ )

  • प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री कहती हैं की लोगो को शहरी संस्कृति के प्रभाव से स्वयं को बचाना चाहिए |
  • कवयित्री चाहती है कि झारखंड के लोगों के चेहरों पर शहरी संस्कृति का प्रभाव न हो, बल्कि संथाल परगना की मिट्टी का स्वाभाविक रंग हो ।
  • आशय यह है कि लोगों के व्यवहार में प्रादेशिक गुण बने रहें । 
  • उनकी भाषा का झारखंडी स्वभाव नष्ट न हो अर्थात् उनकी भाषा में किसी भी प्रकार का शहरी बनावटीपन न आए ।
  • वे अपनी बोली में ही बोलें । शहरी संस्कृति के प्रभाव में आकर यहाँ के लोगों की दिनचर्या में ठहराव आ गया है ।
  • उनके जीवन का उत्साह नष्ट हो गया है ।  
  • कवयित्री चाहती है कि यहाँ के लोगों के जीवन में वह उत्साह फिर से लौट आए ।
  • मन में फिर से सरसता और मधुरता आ जाए ।
  • उनके दिलों में चालाकी और समझदारी की अपेक्षा वही पहले जैसा भोलापन आ जाए । 
  • उनके स्वभाव का अक्खड़पन, उनका बात - बात पर गर्म होकर तन जाना और संघर्ष करने के लिए सदैव तत्पर रहने जैसे सभी गुण वापस लौट आएँ ।
  • ऐसे में ही वह अपने चरित्र को बनाए रख पाने में सक्षम हो सकेंगे ।

( काव्यांश 3 )

  • भीतर की आग
  • धनुष की डोरी
  • तीर का नुकीलापन
  • कुल्हाड़ी की धार
  • जंगल की ताज़ा हवा
  • नदियों की निर्मलता
  • पहाड़ों का मौन
  • गीतों की धुन
  • मिट्टी का सोंधापन
  • फसलों की लहलहाहट

( सन्दर्भ )

  • कवयित्री कहती है कि संथाली समाज को संघर्ष करने की अपनी प्रवृत्ति, परिश्रम करने की अपनी आदत, अपने पारंपरिक हथियार धनुष व उसकी डोरी, तीरों के नुकीलेपन तथा कुल्हाड़ी की धार आदि को बचाना चाहिए, क्योंकि यह सभी प्रवृत्तियाँ ही उनके समाज की पहचान हैं । वह इस समाज से कहती है कि हमें अपने जंगलों को कटने से बचाना चाहिए, ताकि ताज़ी हवा हमें मिलती रहे ।
  • नदियों को दूषित न करके उनकी स्वच्छता को बचाए रखें ।  
  • पहाड़ों पर शोर को रोककर शांति बनाए रखनी चाहिए । हमें अपने गीतों की धुन को बचाना है, क्योंकि यह हमारी संस्कृति की पहचान है । 
  • हमें मिट्टी की सुगंध तथा लहलहाती फसलों को बचाना है । ये सब हमारी संस्कृति के परिचायक हैं । 
  • हमें अपनी जीवन शैली को छोड़कर शहरी जीवन - शैली को नहीं अपनाना चाहिए । 
  • कवयित्री चाहती है कि यहाँ का वातावरण अपने इसी रूप में विद्यमान रहे तथा यह समाज शहरी जीवन एवं परिवेश से प्रभावित न हो ।

( काव्यांश 4 )

  • नाचने के लिए खुला आँगन
  • गाने के लिए गीत
  • हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
  • रोने के लिए मुट्ठी भर एकान्त
  • बच्चों के लिए मैदान
  • पशुओं के लिए हरी-हरी घास
  • बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शान्ति

( सन्दर्भ )

  • कवयित्री कहती है कि इस समाज की संस्कृति व परिवेश के स्वरूप में अंतर आ चुका है । 
  • आबादी व विकास के कारण घर छोटे होते जा रहे हैं । 
  • यदि नाचने के लिए व मौज - मस्ती करने के लिए आँगन चाहिए , तो आबादी पर नियंत्रण करना होगा । 
  • फ़िल्मी प्रभाव से मुक्त होने के लिए अपने गीत होने आवश्यक हैं ।
  • व्यर्थ के तनाव को दूर करने के लिए थोड़ी हँसी बचाकर रखनी चाहिए, ताकि खिलखिला कर हँसा जा सके । 
  • अपनी पीड़ा को व्यक्त करने के लिए , रोने के लिए थोड़ा - सा एकांत भी आवश्यक है ।
  • बच्चों को खेलने के लिए मैदान , पशुओं को चरने के लिए हरी - हरी घास तथा बूढ़ों के लिए पहाड़ी प्रदेश का शांत वातावरण चाहिए ।
  • इन सब की प्राप्ति के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे ।

( काव्यांश 5 )

  • और इस अविश्वास-भरे दौर में
  • थोड़ा-सा विश्वास
  • थोड़ी-सी उम्मीद
  • थोड़े-से सपने
  •  
  • आओ मिलकर बचाएँ
  • कि इस दौर में भी बचाने को
  • बहुत कुछ बचा है,
  • अब भी हमारे पास !

( सन्दर्भ )

  • कवयित्री कहती है कि आज चारों ओर अविश्वास तथा धोखाधड़ी का बोलबाला है ।
  • कोई किसी पर विश्वास नहीं करता ।
  • अतः ऐसे माहौल में हमें लोगों में थोड़ा - सा विश्वास जगाना होगा, अच्छे कार्य संपन्न होने के लिए 
  • थोड़ी - सी उम्मीदें तथा थोड़े - से सपने भी बचाने होंगे, ताकि हम अपनी कल्पना के अनुसार जीवन - शैली निर्मित कर सकें । 
  • अंत में कवयित्री लोगों को जागृत करते हुए कहती है कि हम सबको मिलकर इन सभी जीवन मूल्यों को बचाने का प्रयास करना चाहिए, 
  • क्योंकि आज कृत्रिम जीवन - शैली के इस दौर में भी हमारे पास बहुत कुछ बचाने के लिए बचा है । 
  • जिसकी रक्षा कर हम अपनी बहुमूल्य संस्कृति व सभ्यता को पुनः स्थापित कर सकते हैं ।

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