Class 12th Hindi ( आरोह ) श्रम विभाजन और जाति प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज- Easy Summary Term- 2

Class 12th Hindi  ( आरोह )  श्रम विभाजन और जाति प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज- Easy Summary Term- 2

( श्रम विभाजन और जाति प्रथा )

  • इस पाठ के अंतर्गत समाज में प्रचलित जाति प्रथा को गलत ठहराकर कार्य कुशलता के आधार पर श्रम विभाजन को आवश्यक बताया गया है , क्योंकि जाति के आधार पर श्रम विभाजन करने से व्यक्ति की निजी क्षमता का सदुपयोग नहीं हो पाता ।

  • जाति -प्रथा एक ओर तो मनुष्य को जीवन भर किसी पेशे के साथ बाँधे रखती है तथा दूसरी ओर यदि कभी किसी व्यक्ति को पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ जाए तो उसके पास भूखे मरने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं छोड़ती । 

  • श्रम विभाजन के अनुसार व्यक्ति अपने पूर्व निर्धारित कार्य / श्रम को ही कर सकता है । उसको वही कार्य करना पड़ता है जो समाज उसके लिए निर्धारित करता है, चाहे वह कार्य उसकी रुचि के अनुरूप हो या प्रतिकूल ।

  • इस प्रकार श्रम विभाजन मनुष्य में काम के प्रति अरुचि और उसे टालने की प्रवृत्ति का कारण बनता है । ऐसी स्थिति में जहाँ काम करने वालों का न दिल लगता हो और न दिमाग, वहाँ कोई कुशलता कैसे प्राप्त कर सकता है ?

  • जाति -प्रथा भारत में बेरोज़गारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है, क्योंकि समाज में अपनी रुचि अनुसार पेशा न चुनने की आज़ादी बेरोज़गारी का एक मुख्य कारण है । जाति - प्रथा आर्थिक रूप से भी हानिकारक है ।

  • जाति प्रथा पर आधारित श्रम विभाजन मनुष्य की स्वेच्छा पर निर्भर नहीं होता और न ही मनुष्य की व्यक्तिगत भावना तथा व्यक्तिगत रुचि का इसमें कोई स्थान अथवा महत्त्व होता है ।

  • अतः यह निर्विवाद सिद्ध हो जाता है कि आर्थिक पहलू से भी जाति -प्रथा हानिकारक प्रथा है , क्योंकि यह मनुष्यों की स्वाभाविक प्रेरणा , रुचि व आत्म - शक्ति को दबाकर उन्हें अस्वाभाविक नियमों में जकड़कर निष्क्रिय बना देती है ।

( मेरी कल्पना का आदर्श समाज )

  • कि लेखक की कल्पना का आदर्श समाज वह हैं जिसमें स्वतंत्रता , समता और भाईचारे का भाव हो | भाई चारे में किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती | समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए कि कोई भी वांछित परिवर्तन समाज में तुरंत सब तरफ फैल जाए | 

  • ऐसे समाज में सब कार्यों में संभाग होना चाहिए सबको सबकी रक्षा के प्रति सजग होना चाहिए | सब को सामाजिक संपर्क के साधन और अवसर उपलब्ध होने चाहिए |

स्वतंत्रता का अधिकार 

  • आवागमन ,जीवन तथा शारीरिक सुरक्षा की स्वतंत्रता का विरोध कोई नहीं करता |संपत्ति रखने ,जीविकोपार्जन ये औजार तथा सामान रखने के अधिकार पर भी किसी को आपत्ति नहीं है | परंतु मनुष्य के लक्षण और प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता देने के अधिकार के लिए लोग तैयार नहीं होते |

  • इसके लिए अपना व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता देनी होती है |इस स्वतंत्रता के अभाव में मनुष्य दासता मे जकड़ा जाता है | दास्तां केवल कानूनी ही नहीं होती |जहाँ दूसरों के द्वारा निर्धारित व्यवहार और कर्तव्यों का पालन करना पड़े वहाँ भी दासता होती है |जाति प्रथा में भी अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशा अपनाने पड़ते हैं |

समता 

  •  फ्रांसीसी क्रांति के नारे में समता शब्द विवादास्पद रहा है  |क्षमता के आलोचकों का कहना है कि सभी मनुष्य बराबर नहीं होते |

मनुष्य की क्षमता तीन बातों पर निर्भर है 

  1. शारीरिक वंश परंपरा 
  2. सामाजिक उत्तराधिकार 
  3. मनुष्य को अपने प्रयत्न

  • प्रश्न है कि इन तीनों दृष्टियों से मनुष्य समान नहीं होते | परन्तु तब भी क्या समाज को उनके साथ असमान व्यवहार करना चाहिए ? इसका उत्तर है –आसमान प्रयत्न  के कारण असमान व्यवहार करना उचित है परंतु उसमें भी सब को अपनी क्षमता विकसित करने के पूरे अवसर देने चाहिए |

वंश और सामाजिक उत्तराधिकार 

  •  लेखक मानते है की वंश परंपरा और सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार पर असमानता नहीं की जानी चाहिए इससे केवल सुविधा संपन्न लोगों को लाभ मिलेगा वास्तव में प्रयास मनुष्य के वश में है किंतु वंश और सामाजिक प्रतिष्ठा उसके वश में नहीं है | अतः वंश और सामाजिकता के आधार पर असमान व्यवहार करना अनुचित है |

राजनेता 

  • एक राजनेता का बहुत बड़ी जनसंख्या से पाला पड़ता है |परन्तु उसके पास सब के बारे में जानने का उनकी अलग अलग आवश्यकताओं और क्षमताओं के बारे में जानने का अवसर नहीं होता  | अतः उन्हें मानवता को ध्यान में रखते हुए सब को दो वर्गों और श्रेणियों में विभाजित न किया जाए | सबके साथ समान व्यवहार किया जाए |

VIDEO WATCH

What's Your Reaction?

like
102
dislike
24
love
36
funny
11
angry
11
sad
6
wow
19