सांस्कृतिक परिवर्तन- Sociology- Class 12th Chapter- 2nd Most Important Question Answer Term- 2

सांस्कृतिक परिवर्तन- Sociology- Class 12th Chapter- 2nd  Most Important Question Answer Term- 2

1- 19वी और 20वी शताब्दी में समाज सुधार आंदोलन की आवश्यकता के कारण क्या थे ?

समाज में कुरीतियों को दूर करने के लिए समाज सुधारकों द्वारा यह आंदोलन शुरू किए गए

1- सामाजिक कुरीति ( बुराई )

2- सती प्रथा   

3- बाल - विवाह 

4- विधवा पुनर्विवाह  निषेध 

5- जाति  प्रथा

2- समाज सुधार के कार्य उपनिवेशवाद के पहले भी हुए थे ?

  • जैन धर्म में जातिगत भेदभाव का विरोध हुआ 
  • बौद्ध धर्म में भी इनके खिलाफ आवाज उठाई गई 
  • लिंगायत समुदाय में भी जाति प्रथा का विरोध  हुआ 
  • भक्ति आंदोलनों के द्वारा भी  बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया गया

3- ऐसे  समाज सुधारकों के बारे में चर्चा कीजिए जिन्होंने सामाजिक कुरीति के खिलाफ आवाज उठाई ?

  • राजा राम मोहन राय - सती प्रथा के विरोध में आवाज उठाई
  • रानाडे ने- विधवा  विवाह का समर्थन किया 
  • सर सैयद अहमद खान - स्वतंत्र अन्वेषण की बात कही 
  • ज्योतिबा फुले -  जाति भेदभाव, महिला शिक्षा 
  • जहांआरा शाह नवास - बहुविवाह प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई
  • ब्रह्म समाज - सती प्रथा का विरोध किया

4- सांस्कृतिक परिवर्तन को कितनी प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है ?

  • सांस्कृतिक परिवर्तन को चार प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है
  • संस्कृतिकरण
  • आधुनिकीकरण
  • लोकिकीकरण/ धर्म निरपेक्षीकरण 
  • पश्चिमीकरण

5- संस्कृतिकरण शब्द के उत्पत्ति किस ने की ?

  • एम . एन . श्रीनिवास 

6- संस्कृतिकरण से क्या अभिप्राय है ?

  • संस्कृतिकरण का अर्थ है कि 
  • जब निम्न जाति अथवा जनजाति या समूह के लोग उच्च जातियों की जीवन पद्धति, मूल्य, अनुष्ठान, आदर्श विचारधारा का अनुकरण करें 
  • तो यह संस्कृतिकरण कहलाता है

7- संस्कृतिकरण के प्रभाव बताइए  ?

संस्कृतिकरण के बहुआयामी प्रभाव हैं –

  • संस्कृतिकरण के प्रभाव  भाषा , साहित्य , विचारधारा , संगीत , नृत्य  , नाटक अनुष्ठान ,जीवन पद्धति  में देखे जा सकते है 
  • संस्कृतिकरण की प्रक्रिया हिंदू समाज के अंतर्गत विद्यमान है
  • श्रीनिवास जी ने गैर हिंदू समाज में भी यह प्रक्रिया देखी है 
  • श्रीनिवास जी ने विभिन्न क्षेत्रों के अध्ययन में यह पाया कि 
  • यह प्रक्रिया देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीके से होती है 
  • जिन क्षेत्रों में उच्च स्तरीय सांस्कृतिक जातियां प्रभुत्वशाली थी 
  • उस क्षेत्र की संपूर्ण संस्कृति में किसी न किसी स्तर का संस्कृतिकरण जरूर देखा गया है 

8- संस्कृतिकरण की प्रक्रिया की आलोचना ?

  • संस्कृतिकरण की अवधारणा की अनेक स्तरों पर आलोचना की गई है
  • संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में सामाजिक गतिशीलता है कुछ का कहना है कि इस प्रक्रिया में कोई संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता केवल कुछ लोगों की स्थिति में ही परिवर्तन होता है
  • संस्कृतिकरण की अवधारणा में उच्च जाति की जीवन शैली उच्च तथा निम्न जाति के व्यक्तियों की जीवन शैली  निम्न है 
  • इस प्रकार उच्च जाति के लोगों की जीवन शैली का अनुकरण करने की इच्छा को आवश्यक तथा प्राकृतिक स्वीकार कर लिया गया है जो कि सही नहीं है
  • संस्कृतिकरण की अवधारणा एक ऐसे प्रारूप को सही बताती है जो असमानता और अपवर्जन पर आधारित है
  • इससे यह संकेत मिलता है कि पवित्रता और अपवित्रता के जातिगत पक्षों को उपयुक्त माना जाए 
  • इसलिए ऐसा लगता है कि उच्च जाति द्वारा निम्न जाति के प्रति 
  • भेदभाव एक प्रकार का विशेषाधिकार है

9- पश्चिमीकरण से क्या अभिप्राय है ?

  • नए उपकरणों का प्रयोग
  • पोशाक
  • खाद्य पदार्थ
  • आदतों में बदलाव
  • टेलीविज़न
  • फ्रिज
  • सोफ़ा सेट- खाने की मेज़

10- आधुनिकीकरण से क्या अभिप्राय है ?

  • आधुनिकरण शब्द का एक लंबा इतिहास है
  • प्रत्येक समाज और उसके लोग आधुनिक बनना चाहते थे
  • प्रारंभिक वर्षों में आधुनिकरण का आशय प्रौद्योगिकी और उत्पादन प्रक्रिया में होने वाले सुधार से था 
  • लेकिन बाद के समय में इसके मतलब बदलने लगे 
  • बाद में आधुनिकरण को विकास का वह तरीका माना गया जिसे पश्चिमी यूरोप या उत्तरी अमेरिका ने अपनाया

11- पंथनिरपेक्ष से क्या अभिप्राय है ?

  • आधुनिक समय  में पंथनिरपेक्षीकरण का मतलब एक ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें धर्म के प्रभाव में कमी आती है 
  • आधुनिकरण के सिद्धांत के विचार ऐसा मानते हैं कि आधुनिक समाज ज्यादा से ज्यादा पंथनिरपेक्ष होता है
  • यह विचारक आधुनिक समाज में धार्मिक संस्थानों और लोगों के बीच बढ़ती दूरी के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं
  • लेकिन हाल ही में धार्मिक चेतना में अभूतपूर्व वृद्धि और धार्मिक संघर्ष भी देखने को मिले है

12- जाति के पंथनिरपेक्षीकरण का अर्थ बताइए ?

  • जाति के पंथनिरपेक्षीकरण के अर्थ पर काफी जबरदस्त वाद विवाद होता रहा है 
  • भारतीय समाज में जाति व्यवस्था महत्वपूर्ण संस्था के रूप में रही है
  • आज के समय में जाति, राजनीतिक दबाव समूह के रूप में ज्यादा कार्य कर रही है 
  • भारत में जाति संगठन और जातिगत राजनीतिक दलों का उद्भव हुआ है 
  • यह जातिगत संगठन अपनी मांग मनवाने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं 
  • जाति की इस बदली हुई भूमिका को जाति का पंथनिरपेक्षीकरण कहा गया है

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