Class 11th- Hindi Aroh Chapter- 2nd ( मीरा के पद ) Mira ke pad Easy Summary

Class 11th- Hindi Aroh Chapter- 2nd ( मीरा के पद ) Mira ke pad Easy Summary

  •  मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई
  • जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
  • छांड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई?
  • संतन ढिग बैठि-बैठि. लोक-लाज खोयी
  • अंसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोयी
  • अब त बेलि फैलि गयी, आणंद-फल होयी
  • दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी
  • दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी
  • भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
  • दासि मीरां लाल गिरधर! तारो अब मोही

( सन्दर्भ ) 

प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 1 में संकलित मीरा के पद से लिया गया है |  

( प्रसंग ) 

प्रस्तुत पंक्तियों में मीरा ने श्रीकृष्ण के लिए अपनी भक्ति भावना का परिचय दिया है | मीरा श्रीकृष्ण के प्रति अपना समर्पण भाव व्यक्त करके उनसे स्वयं के उद्धार की याचना करती है |

  • मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई
  • जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
  • छांड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई?
  • संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी

( व्याख्या )

  • श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त मीराबाई , अपने आराध्य के प्रति अपनी भक्ति भावना को प्रकट करते हुए कहती हैं
  • कि मेरे तो गिरधर गोपाल अर्थात् श्रीकृष्ण ही सब कुछ हैं ।
  • संसार में किसी अन्य व्यक्ति से मेरा कोई संबंध नहीं है । जिसके सिर पर मोर - मुकुट शोभायमान है , वही श्रीकृष्ण मेरे पति हैं ।
  • मैंने कुल की मान - मर्यादा , यश आदि विचारों को त्याग दिया है
  • और अब श्रीकृष्ण की शरण में जाने के उपरांत कोई भी मेरे साथ कुछ भी अनर्थ नहीं कर सकता अर्थात् अब मुझे किसी की परवाह नहीं है ।
  • मीराबाई आगे कहती हैं कि समाज द्वारा उनका संतों की संगति में बैठने को हेय दृष्टि से देखने के कारण उन्होंने लोक - लाज की भावना का त्याग कर दिया है ।

  • अंसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोयी
  • अब त बेलि फैलि गयी, आणंद-फल होयी
  • दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी
  • दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी
  • भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
  • दासि मीरां लाल गिरधर! तारो अब मोही

( व्याख्या )

  • वह कहती हैं कि मैंने जिस प्रेम रूपी बेल को अपने विरहाश्रुओं ( आँसुओं ) के जल से सींच - सींचकर बोया था,
  • अब वह बेल बड़ी होकर फैल गई है और अब उससे आनंददायक फल भी प्राप्त होने लगे हैं ।
  • इसका अर्थ है कि मीरा ने विरह में रो - रोकर कृष्ण भक्ति रूपी बेल को सींचा था और अब श्रीकृष्ण उनके मन में बस गए हैं ।
  • अब उन्हें बार - बार श्रीकृष्ण का स्मरण करना आनंद देता है ।
  • मीराबाई कहती हैं कि उन्होंने कृष्ण भक्ति रूपी दूध के दही को अपनी भक्ति द्वारा मथ कर उसमें से घी अर्थात् सार निकाल लिया है और छाछ रूपी सारहीन वस्तु को छोड़ दिया है
  • अर्थात् उन्होंने यह रहस्य जान लिया है कि ईश्वर भक्ति ही इस भौतिक संसार में उद्धार करने वाली है ।

  • भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
  • दासि मीरां लाल गिरधर! तारो अब मोही

( व्याख्या )

  • सांसारिकता छाछ के समान ही सारहीन है ।
  • मीरा भक्तजनों को देखकर प्रसन्न होती हैं और संसार में व्यर्थ के कार्यों में व्यस्त लोगों को देखकर दुःखी होती हैं ।
  • अंत में मीरा अपने प्रभु को पुकारते हुए कहती हैं कि मैं आपकी दासी हूँ ।
  • भवसागर रूपी इस संसार से मुझे मुक्त कीजिए और मेरा उद्धार कीजिए ।
  • इस प्रकार यहाँ एक ओर मीरा कृष्ण - भक्ति में आनंदित हैं
  • तो दूसरी ओर अपनी मुक्ति की बात कहकर श्रीकृष्ण से मिलने तथा उन्हें पाने की व्याकुलता को भी अभिव्यक्त करती हैं ।

( विशेष )

  • श्रीकृष्ण के प्रति मीरा ने अपने अनन्य भक्तिभाव को प्रकट किया है |
  • मीरा की भाषा राजस्थानी मिश्रित बृजभाषा है | 
  • मीरा ने अपने पदों में अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है |
  • गिरधर- गोपाल, कुल की कानि, लोक लाज में अनुप्रास अलंकार है |
  • काव्यांश में गेयता का गुण है तथा लयात्मकता है |

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