छोटा मेरा खेत ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Class 12th -gazal Easy Explained
परिचय
इस कविता में कवि ने अपने कवि-कर्म को कृषक के सामान बताया है |
किसान अपने खेत में बीज बोता है | बीज अंकुरित होकर पौधा बनता है, फिर पुष्पित होकर जब परिपक्व होता है, तब उसकी कटाई होती है |
इस कविता में जोशी जी ने एक कवि के रचना कर्म की व्याख्या की है |
सन्दर्भ
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह-भाग -2’ में संकलित उमाशंकर जोशी द्वारा रचित ‘छोटा मेरा खेत’ शीर्षक से लिया गया है |
प्रसंग
छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज़ का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया नि:शेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।
व्याख्या
कविता की इन पंक्तियों में खेती के रूपकों अर्थात् बीज बोने, अंकुरित होने, फलने फूलने और अंततः फसल काटने का वर्णन करते हुए कवि कहता है की कोई भी रचना ठीक खेती की फसल की तरह होती है |
कवि कहता है – मैं भी एक प्रकार का किसान हूँ | कागज़ का एक पन्ना मेरे लिए छोटे –से चौकोर खेत के समान है |
अंतर इतना ही है की किसान ज़मीन पर कुछ बोता है और मैं कागज़ पर कविता उगाता हूँ |
जिस प्रकार किसान धरती पर फसल उगाने के लिए कोई बीज उगाता है, उसी प्रकार मेरे मन में अचानक आई आंधी के समान कोई भाव रुपी बीज न जाने कहाँ से चला आता है |
यह भाव रुपी बीज मेरे मन रुपी खेत में अचानक बोया जाता है |
वास्तव में कविता या साहित्य मनोभावों की ही उपज है |
जिस प्रकार धरती में बोया बीज विभिन्न रसायनों – हवा, पानी, खाद आदि को पीकर स्वयं को गला देता है वैसे ही कवि के मनोभाव काव्य-शब्दों के अंकुर के रूप में कागज़ पर अंकित हो गए |
कवि आगे इन शब्द रुपी अंकुरों के पल्लव और पुष्पों से युक्त हो जाने की बात कहता है |
जिस प्रकार अंकुर पूरे खेत में विकसित होते हुए पूरे खेत को अपने पत्तों और फूलों से भरकर विस्तृत फसल का रूप दे देते हैं, वैसे ही कवि के शब्द रुपी अंकुर विकसित होकर रचना का रूप ले लेते हैं |
प्रसंग
झूमने लगे फल,
रस अलौकिक,
अमृत धाराएँ फूटती
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेरा खेत चौकोना।
व्याख्या
कवि यहाँ अपनी रचना प्रक्रिया के अंतिम चरण का वर्णन करते हुए कहता है की कल्पना के रसायनों से पोषित, पुष्पित एवं पल्लवित उसकी रचना रुपी फसल में कविता रुपी फल लगे हैं |
जब कवि के ह्रदय में पलने वाला भाव पककर कविता रुपी फल के रूप में झूमने लगता है तो उसमे से अद्भुत रस झरने लगता है |
आनंद की अमृत जैसी धाराएं फूटने लगती हैं |
वह आगे कहता है की इस प्रकार कवि कर्म के बाद जो रचना रुपी फसल उसने उपजाई, उसमे बोया तो उसने क्षण को, लेकिन काटने के बाद पाया अनंत को |
अनंत को काटने का अर्थ है, कवि की रचना का कालजयी होना | साहित्य में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं, जब रचना अपने समय को लांघकर आगे के समय के लिए भी प्रासंगिक बनी रहती है |
कवि आगे कहता है की उसकी यह सृजनात्मकता काव्य-पूँजी के व्यय से कम नहीं होती म बल्कि और बढ़ती जाती है |
लोगों द्वारा अपनाए जाने, प्रचार प्रसार से वह और भी अधिक प्रसिद्ध हो जाती है |
कविता की फसल ऐसी अनंत है की उसे जितना लुटाओ, वह खाली नहीं होती | वह युगों-युगों तक रस देती रहती है |
सचमुच कवि के पास कविता रुपी जो चौकोर खेत है, वह रस का अक्षय पात्र है जिसमे से कभी रस समाप्त नहीं होता |
विशेष
भाषा सहज, प्रवाहयुक्त तथा विचारप्रधान है |
कल्पना रुपी रसायन में रूपक है |
शब्द रुपी अंकुर में रूपक है |
यह कविता मुक्त-छंद की है |
संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग हुआ है |